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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Mehmaan
काल्पनिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास में लेखक आर.के. नारायण ने एक अपने से मिलता-जुलता किरदार रचा है जो बेहद मज़ेदार कहानियां सुनाने वाला बातूनी है। बातू एक पत्रकार के रूप में अपनी जगह बनाने में लगा हुआ है। उसकी मुलाकात होती है डा. रोन से जो मालगुडी में संयुक्त राष्ट्र की एक बहुत बड़ी परियोजना पर काम करने के लिए पहुँचते हैं। डा. रोन बातों में बातू से भी ज़्यादा होशियार हैं और बातू को फुसलाकर उसके ही घर में रहने लगते हैं। पता चलता है कि मालगुडी में आए मेहमान, डा. रोन मालगुडी की किसी लड़की को बहकाने के चक्कर में हैं और तभी उनकी पत्नी भी वहां आ पहुंचती है! क्या होता है इस सबका अंजाम-पढ़िए इस चुलबुली, जादुई कहानी में। विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक आर.के. नारायण की यह विशेषता रही है कि वह ज़िंदगी की छोटी से छोटी बात को बहुत जीवंत और मनोरंजक बना देते हैं। ‘ गाइड’ और ‘मालगुडी की कहानियां’ की तरह इस उपन्यास में भी जीवन के हर रस का आनन्द पाठक को मिलता है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Mithai Wala
साठ साल की उम्र में जगन आज भी अपने-आपको पूरी तरह जवान रखता है और कड़ी मेहनत से अपनी मिठाई की दुकान चलाता है, जिससे वह अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा लेता है। आराम से चल रही जगन की ज़िन्दगी में उथल-पुथल आ जाती है, जब उसका बेटा माली अमरीका से अपनी नवविवाहिता कोरियन पत्नी के साथ मालगुडी आता है और यहां से शुरू होता है दो पीढ़ियों के विचारों के बीच टकराव। भरपूर कोशिश करने के बाद भी जगन अपने पारम्परिक ख्यालों को नहीं बदल पाता और काम-धन्धे को छोड़कर धार्मिक कार्यों और यात्राओं की तरफ अपना मन लगाने की सोचता है और तभी यह खबर आती है कि उसका बेटा पुलिस की हिरासत में है और उसने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया है। इस स्थिति से जगन कैसे निकलता है, पढ़िये इस रोचक उपन्यास में जो आर. के. नारायण के अपने अनूठे ढंग में लिखा गया है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Printer
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखक आर.के. नारायण लिखते तो अंग्रेज़ी में थे लेकिन उनकी सभी पुस्तकों के पात्र और घटनास्थल पूरी तरह भारत की मिट्टी से जुडे़ होते हैं। उनके लेखन में सहजता और मन को गुदगुदाने वाले व्यंग्य का एक अनोखा मिश्रण मिलता है, जो उनकी हर कृति को अपना ही एक अलग रंग प्रदान करता है। ‘मालगुडी का प्रिन्टर’ सम्पत और श्रीनिवास की दोस्ती की कहानी है। सम्पत मालगुडी में एक प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं और श्रीनिवास एक पत्र निकालते हैं, जो सम्पत के प्रेस में छपता है और यहीं से शुरू होती है दोनों की दोस्ती की कहानी जिसमें कई मज़ेदार किस्से, रोचक मोड़ और अजीबो-गरीब परिस्थितियां आती हैं। लेखक के प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी पर आधारित यह एक पठनीय और रोचक उपन्यास है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Maalgudi Ki Kahaniyaan
अपने उपन्यास ‘गाइड’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित तथा पद्मविभूषण द्वारा अलंकृत उपन्यासकार आर.के. नारायण विश्वस्तरीय रचनाकार गिने जाते हैं। उनके उपन्यास ‘गाइड’ पर बनी फिल्म ने उन्हें लोकप्रियता का एक और आयाम दिया, जिसे आज भी याद किया जाता है। ‘मालगुडी की कहानियां’ आर.के. नारायण की अद्भुत रोचक कहानियां समेटे हुए पुस्तक है। अपने दक्षिण भारत के प्रिय क्षेत्र मैसूर और चेन्नई में घूमते हुए उन्होंने आधुनिकता और पारंपरिकता के बीच यहां-वहां ठहरते साधारण चरित्रों को देखा और उन्हें अपने असाधारण कथा-शिल्प के ज़रिये, अपने चरित्र बना लिये। ‘मालगुडी के दिन’ पर दूरदर्शन ने धारावाहिक बनाया जो दर्शक आज तक नहीं भूले हैं। दशकों बाद भी ‘मालगुडी के दिन’ की कहानियां उतनी ही जीवंत और लोकप्रिय हैं, जितनी पहले कभी थीं। यही उनकी खूबी है।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Madhavji Scindhia
यह बात उस युग की है जिसके लिए कहा जाना है कि मराठे और जाट हल की नोक से, सिक्ख तलवार की धार से और दिल्ली के सरदार बोतल की छलक से इतिहास लिख रहे थे! और अंग्रेज उस समय क्या थे? क्लाइव के विविध रूपों के समन्वय -व्यवसाय सिपाहीगीरी, भेड़ की खाल उतारनेवाली राजनीतिज्ञता, बेईमानी, शूरता, धूर्तता । उस युग में चुनाव नहीं होते थे, परंतु राजनीतिक, राजनीतिज्ञ और राजदर्शी तो थे ही । और राजनीति के क्षेत्र में भयंकर महत्त्वाकांक्षी भी । राजदर्शी वह जो भेड़ के बाल काटे और राजनीतिक वह जो भेड़ की खाल खींच डालने पर ही जुट पड़े । ऐसे समय में माधवजी (महादजी सिंधिया) पैदा हुए । आँधी-तूफान की भँवरों और असंख्य धक्कों में छाती ताने, सिर सीधा किए हुए एक ही माधव – शायद उस युग में दूसरा कोई नहीं । तभी तो कीन ने कहा था, ” एशिया – भर के जननायकों में कोई भी ऐसा नाम नहीं है जो माधवजी सिंधिया की बराबरी कर सके ।” और जनरल मालकम ने उन्हें ‘Steel Under Velvet Gloves’, ‘ मखमली दस्तानों में फौलाद ‘ की उपाधि प्रदान की । -इसी पुस्तक के परिचय से भारत के महान् राजदर्शी माधवजी सिंधिया का चरित्र प्रस्तुत कर वर्माजी ने भारतीय साहित्य को वह अमर कृति उपलब्ध करा दी है जो आनेवाले समय में भी समाज और राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करती रहेगी ।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Madhubala
अग्रणी कवि बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य ‘मधु’ अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और ‘मधुशाला’ एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम ‘मधुशाला’ ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई और कालजयी रचनाओं कर श्रेणी में आ खड़ी हुई है। इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है: ‘आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं…, आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा।”
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Rajpal and Sons, कहानियां
Madhukalash
‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’, ‘मधुकलश’ अग्रणी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ के तीन कविता-संकलन हैं जो हिन्दी साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं और कालजयी श्रृंखलाओं की कड़ी में आ खड़े हुए हैं। इन कविताओं की रचना के समय बच्चन जी की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। ‘मधुकलश’ की भूमिका में बच्चन जी ने लिखा है, ‘‘ये कविताएं सन् 1935-36 में लिखी गईं और सर्वप्रथम 1937 में प्रकाशित हुईं। इसके पहले मधुशाला 1935 में और ‘मधुबाला’ 1936 में प्रकाशित हो चुकी थीं। मेरे जीवन का जो उत्साह, उल्लास और उन्माद-गो उनमें एक अभाव, एक असन्तोष, एक निराशा की व्यथा भी घुली-मिली थी-‘मधुशाला’ और ‘मधुबाला’ में व्यक्त हुआ था, वह अब उतार पर था।’’ आगे लिखते हैं, ‘‘ये कविताएं जीवन के रस से खाली नहीं हैं और जीवन का रस मधु ही मधु नहीं होता, कटु भी होता है…समर्थ के हाथों अमृत भी बनता है।’’
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Rajpal and Sons, कहानियां
Madhushala
हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना ‘मधुशाला’ 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है। मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Madhyakalin Bharat ka Itihas
मध्यकालीन भारत का इतिहास (1200 ई. से 1760 ई. तक) : भारत का मध्यकाल विदेशी आक्रांताओं द्वारा किये गये रक्तपात, हिंसा और लूटमार से भरा हुआ है किंतु यही वह समय है जिसमें प्राचीन शासन व्यवस्थायें समाप्त होकर नवीन शासन व्यवस्थाएं आरम्भ हो रही थीं। इन बड़े परिवर्तनों ने भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृति जनजीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इतिहास के क्षेत्र में नित्य नई शोध सामने आ रही हैं। अब इतिहास कुछ घिसी पिटी सूचनाओं का संग्रह नहीं रह गया है, प्राप्त तथ्यों को तार्किकता के साथ अपनाया जा रहा है तथा उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों की कसौटी पर भी कसा जा रहा है। विगत दशकों में सामने आई नई जानकारियों को इस पुस्तक में समाविष्ट करके इस पुस्तक को रोचक, पठनीय एवं सग्रंहणीय बनाया गया है। प्रस्तुत पुस्तक को भारत के विश्वविद्यालयों में स्नातक उपाधि की परीक्षाओं के लिये स्वीकृत पाठ्यक्रम के अनुसार लिखा गया है तथा 1200 ईस्वी से लेकर 1760 ईस्वी तक का इतिहास दिया गया है। इस पुस्तक की भाषा को स्नातक उपाधि स्तर के विद्यार्थियों की मांग के अनुरुप सरल रखा गया है। छोटे-छोटे वाक्य लिखे गये हैं ताकि सूचनाओं को मस्तिष्क में अच्छी तरह संजोया जा सके। ऐतिहासिक तथ्यों को क्रमबद्ध लिखा गया है तथा असंगत एवं विरोधाभासी तथ्यों से बचने का प्रयास किया गया है। डाॅ. मोहनलाल गुप्ता ने इतिहास के विद्यार्थियों को पहले भी अच्छी पुस्तकें दी हैं, मुझे आशा है कि यह पुस्तक स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Magadhnama: Magadh Ke Itihas Ki Kathatmak Yatra (HB)
मगधनामा : मगध के इतिहास की कथात्मक यात्रा
मगध अपने आरम्भिक दिनों में वैदिक आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा है। तब वह ‘व्रात्य-सभ्यता’ का केन्द्र हुआ करता था। वैसे आगे चलकर च्यवन और दधीचि जैसे ऋषियों का जन्म मगध में ही हुआ। अथर्ववेद की रचना भी यहीं हुई। मगध की धरती पर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को तत्वज्ञान हुआ, चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर को कैवल्य ज्ञान मिला; और गौतम सिद्धार्थ क्रो बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई। मगध की धरती पर यदि शूरवीरों की तलवारों की झंकार गूँजी; तो पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य और अहिंसा का संदेश देनेवाले बुद्ध और महावीर की अमृतवाणी भी मुखरित हुई। महावीर ने राजगृह में पहला सामूहिक उपदेश दिया; और राजगृह के समीप पावापुरी में राजा संस्थिपाल के राजभवन में उनका देहान्त हुआ। कुल चौबीस जैन तीर्थंकरों में से दो को छोड़कर अन्य सभी ने मगध की धरती पर ही निर्वाण प्राप्त किया। यहीं खगोलविद् आर्यभट पैदा हुए और गद्यकवि बाणभट्ट भी। यहाँ चाणक्य और कामन्दक जैसे कूटनीति-दक्ष आचार्य हुए; तो जीवक और धनवन्तरि जैसे आयुर्वेदाचार्य भी। बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, कालाशोक, महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, पुष्यमित्र शुंग, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजाओं की एक लम्बी शृंखला है, जिनकी जन्मदात्री होने पर किसी को भी गर्व हो सकता है।
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Magadhnama: Magadh Ke Itihas Ki Kathatmak Yatra (PB)
मगध अपने आरम्भिक दिनों में वैदिक आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा है। तब वह ‘व्रात्य-सभ्यता’ का केन्द्र हुआ करता था। वैसे आगे चलकर च्यवन और दधीचि जैसे ऋषियों का जन्म मगध में ही हुआ। अथर्ववेद की रचना भी यहीं हुई। मगध की धरती पर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को तत्वज्ञान हुआ, चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर को कैवल्य ज्ञान मिला; और गौतम सिद्धार्थ क्रो बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई। मगध की धरती पर यदि शूरवीरों की तलवारों की झंकार गूँजी; तो पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य और अहिंसा का संदेश देनेवाले बुद्ध और महावीर की अमृतवाणी भी मुखरित हुई। महावीर ने राजगृह में पहला सामूहिक उपदेश दिया; और राजगृह के समीप पावापुरी में राजा संस्थिपाल के राजभवन में उनका देहान्त हुआ। कुल चौबीस जैन तीर्थंकरों में से दो को छोड़कर अन्य सभी ने मगध की धरती पर ही निर्वाण प्राप्त किया। यहीं खगोलविद् आर्यभट पैदा हुए और गद्यकवि बाणभट्ट भी। यहाँ चाणक्य और कामन्दक जैसे कूटनीति-दक्ष आचार्य हुए; तो जीवक और धनवन्तरि जैसे आयुर्वेदाचार्य भी। बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, कालाशोक, महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, पुष्यमित्र शुंग, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजाओं की एक लम्बी शृंखला है, जिनकी जन्मदात्री होने पर किसी को भी गर्व हो सकता है।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Magnamaati
माटी ने ही रची विनाशलीला और उसी माटी से फिर मिला पुनर्जीवन…. 1999 में ओड़िशा में एक ऐसा भयंकर साइक्लोन आया जो उत्तरी हिन्द महासागर में अभी तक का सबसे विनाशकारी साइक्लोन था। समुद्र का पानी तट को पार कर 35 किलोमीटर अन्दर तक पहुँच कर जगतसिंहपुर जिले के तमाम गाँवों को तहस-नहस कर गया और अनुमान है कि 50, 000 लोगों की इसमें जान गयी। साइक्लोन के चार दिन बाद लेखिका प्रतिभा राय जगतसिंहपुर ज़िला गयीं। कुछ राहत-सामग्री इकट्ठी कर उन्होंने बचे हुए लोगों में बाँटी। दिल दहलाने वाले प्रकृति के इस विनाश से प्रतिभा राय बहुत विचलित हुईं और चार साल तक लगातार जगतसिंहपुर ज़िला जाती रहीं और राहत कार्य के अतिरिक्त वहाँ जिन लोगों ने अपने परिजन खोये थे, उनकी काउंसलिंग भी की। इन चार वर्षों के अनुभव के आधार पर जगतसिंहपुर के तटवर्ती क्षेत्र के लोगों के जीवन पर उन्होंने यह उपन्यास रचा है। जगतसिंहपुर एक ज़माने में सम्पन्न कलिंग साम्राज्य का हिस्सा था-उस ऐतिहासिक समय से लेकर साइक्लोन आने तक और इसके बाद वहाँ की संस्कृति, लोगों का रहन-सहन और उनकी जीविका कैसे परिवर्तित हुई, इन सबको समेटा गया है इस उपन्यास में। साइक्लोन को केन्द्र में रखते हुए, जहाँ एक ओर मग्नमाटी इस सारे परिवर्तन विशेष की कहानी है वहीं यह मानव के अदम्य साहस की गाथा है जो सब कुछ लुट जाने के बाद भी जीने की अभिलाषा रखता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat : Ek Darshan
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताMahabharat : Ek Darshan
महाभारत केवल रत्नों की ही खान नहीं है, असंख्य प्रश्नों की भी खान है। इस महाग्रंथ की कई घटनाएँ और कई कथानक सामान्य पाठक को ही नहीं, अध्ययनशील सुधीजनों को भी ‘यह ऐसा क्यों’ जैसे प्रश्न के साथ उलझा देते हैं। ऐसे अनेक प्रश्न/जिज्ञासाएँ चुनकर इस पुस्तक में संकलित की गई हैं और यथासंभव शुद्ध मन-भावना के साथ उनके निदान/ समाधान का प्रयास किया गया है। इस चर्चा का प्रधान केंद्र वर्तमान संदर्भ रहा है, यह इस ग्रंथ की विशेषता है।
वैसे तो महाभारत की अन्य वैश्विक धर्मग्रंथों के साथ तुलना नहीं कर सकते, क्योंकि महाभारत किसी विशेष धर्म का ग्रंथ नहीं है। महाभारत मानव व्यवहार का शाश्वत ग्रंथ है और सच कहा जाए तो विश्व के सभी धर्मों का निचोड़ है। धर्मसंकट का व्यावहारिक हल सुझाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हे अर्जुन, धर्म और सत्य का पालन उत्तम है, किंतु इस तत्त्व के आचरण का यथार्थ स्वरूप जानना अत्यंत कठिन है।’’
सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, जीवन-मृत्यु, पाप-पुण्य, इत्यादि द्वंद्वों को कथानकों और घटनाओं के माध्यम से इस ग्रंथ में निर्दिष्ट किया गया है।
महाभारत के वैशिष्ट्य और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता तथा व्यावहारिकता पर प्रकाश डालती पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat ke kuch Adarsh Patra
This book contains graphic depiction of ten ideal characters of Mahabharat such as Lord Shri Krishna, Yudhishthir the Righteous Person, Maharshi Ved Vyas, to be imitated in life. This book binding is Paperback. Book Publishing year is 2007. Book Publisher is Gita Press – Gorakhpur. 1st Edition Book. Number of Pages in this book is 112.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat Ke Patra
महाभारत के पात्र
बचपन में बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि ‘महाभारत ग्रंथ’ घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में ‘महाभारत’ अर्थात् लड़ाई होती है। ‘महाभारत’ का अर्थ ही ‘लड़ाई’ का ग्रन्थ घोषित कर दिया गया। also तब जिज्ञासा होना स्वाभाविक था कि क्या किसी ग्रंथ को पढ़ने से भी कोई व्यक्ति युद्ध में प्रवृत हो सकता है? तब ऐसे ग्रंथ को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस कसौटी पर देखना चाहिए कि क्या इससे हिंसक प्रवृत्ति होती है। Mahabharat Ke Patra
परन्तु जब सेवानिवृत्ति पश्चात् उक्त ग्रन्थ पढ़ा तो विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जिस ग्रंथ को श्री वेद व्यासजी ने लिखा और जिस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण के मुख से निसृत ‘ श्रीमद्भगवद्गीता’ का उपदेश है उसमें युद्ध करने या हिंसक प्रवृत्ति का तो उल्लेख ही नहीं है। all in all इस ग्रंथ में जो उपदेश है वह मानव मात्र के कल्याण के लिये है। युद्ध करने का उपदेश अपने धर्म के अनुसार जो कर्म निश्चित किया गया है, उसको करने के लिये है। तब फिर प्रश्न होता है कि महाभारत युद्ध” हुआ उसमें केवल दुर्योधन की मात्र राज्य लिप्सा ही एक मात्र कारण था या अन्य कारण भी थे? अगर मात्र राज्य लिप्सा ही कारण होता तो दुर्योधन को इतने अन्य राजाओं का सहयोग नहीं मिलता और इसी तरह पाण्डवों को भी श्री कृष्ण जैसे उस समय के सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ, वीर तथा अन्यों का सहयोग नहीं मिलता।
Mahabharat Ke Patra (Characters of Mahabharata)
अतः यह युद्ध नैतिकता बनाम अनैतिकता, धर्म विरुद्ध अधर्म, सदाचार बनाम अनाचार में प्रवृत शक्तियों के मध्य था। और इसमें पाण्डवों की जय मानव स्वातन्त्रय के सत्य की जय है, धर्म की जय है, मानवता की जय है। महाभारत मात्र वीर गाथा नहीं है, युद्ध गाथा भी नहीं है यह मनुष्यत्व की कठिन यात्रा का काव्य है। और इस युद्ध में जो प्रमुख नायक थे, उनके चारित्रिक गुणों, अवगुणों के कारण यह युद्ध हुआ। और जब कोई घटना घटित होती है तो उसके प्रारम्भ होने की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार होती है। accordingly लेखक ने इसी दृष्टिकोण को रख कर विश्लेषण करने का प्रयास किया है।
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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Mahabharat Khilbhag – Shri Harivansh Puran (Code 38)
श्रीहरिवंशपुराण वेदार्थ-प्रकाशक महाभारत ग्रन्थ का अन्तिम पर्व है। पुत्र प्राप्ति की कामना से श्रीहरिवंशपुराण के श्रवण की परम्परा भारतवर्ष में चिरकाल से प्रचलित है। अनन्त भावुक धर्मपराण लोग इसके श्रवण से पुत्र-प्राप्ति का लाभ प्राप्त कर चुके हैं। भगवद्भक्ति तथा प्रेरणादायी कथानकों की दृष्टि से भी इसका बड़ा महत्व है। भगवान् श्रीकृष्ण से सम्बन्धित अगणित कथाएँ इसमें ऐसी हैं, जो अत्यन्त दुर्लभ हैं। धार्मिक जन-सामान्य के कल्याणार्थ इसके अन्त में सन्तानगोपाल-मन्त्र, अनुष्ठान-विधि, सन्तान-गोपाल-यन्त्र, सन्तान-गोपालस्तोत्र भी संगृहीत हैं। सचित्र, सजिल्द।
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Garuda Prakashan, Hindi Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat ki Kahani, Vigyan Ki Jubani (HB)
-15%Garuda Prakashan, Hindi Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताMahabharat ki Kahani, Vigyan Ki Jubani (HB)
यह पुस्तक प्राचीन भारत के इतिहास के विषय में सैंकड़ो वर्षों से बनी गलत धारणओं को दूर कर पाठकों को महाकाव्यों के युग को भारतवर्ष का वास्तविक व स्वर्णिम इतिहास मानने के लिए विवश कर देगी। इस पुस्तक में सटीक तिथियों के साथ महाभारत युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है। बावन वर्षों की अवधि में देखे गए अनुक्रमिक खगोलीय संदर्भों के आकाशीय दृश्यों के माध्यम से सिद्ध किया गया है कि महाभारत का युद्ध 3139 वर्ष ईसा पूर्व में लड़ा गया था। देखें जब श्री कृष्ण अर्जुन को मार्गशीर्ष मास में गीता का उपदेश दे रहे थे तो आकाश कैसा दिखाई दे रहा था। युद्ध से पहले कार्तिक पूर्णिमा को प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर ने दिखाया चंद्रग्रहण तथा उसी कार्तिक मास की अमावस्या को दिखाई दिया सूर्यग्रहण। इस ग्रहण से केवल छः घंटे पहले सातों ग्रहों की स्थितियां सोलह नक्षत्रों के सम्बन्ध में बिल्कुल वैसी थीं जैसी महाभारत के भीष्मपर्व के अध्याय तीन में वर्णित की गई हैं। देखें कैसे पुरातात्त्विक प्रमाण खगोलीय तिथियों का समर्थन करते हैं। इस पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि वो मानचित्र है, जिसमें महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले सभी राज्यों की भौगोलिक स्थितियां, उन में स्थित लगभग 3000 वर्ष ईसा पूर्व की कार्बन तिथियों वाले पुरातात्त्विक स्थलों की जीपीएस प्लोटिंग के साथ दी गई है। यह मानचित्र निस्संदेह हमें यह निष्कर्ष निकालने के लिए विवश करता है कि हड़प्पा स्थलों के रूप में वर्णित किए जाने वाले स्थान वास्तव में महाभारत काल के वैदिक स्थल थे। भारतीय सभ्यता के विकास की प्रक्रिया 5100 वर्ष से भी पहले से निरंतर चली आ रही है। पुरावनस्पतिक अध्ययन बतातें हैं कि महाभारत में वर्णित पौधे 5000 वर्ष पहले भारत में विद्यमान थे।
19 फरवरी 3102 वर्ष ईसा पूर्व की सुबह कलियुग के प्रारंभ को दर्शाता हुआ आकाश देख कर पाठक गर्व का अनुभव कर सकते हैं कि कैसे उनके हजारों वर्ष पुराने विश्वास आज विज्ञान के माध्यम से सत्य सिद्ध हो रहे हैं।
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