Author: SHYAMA CHARAN DUBE
Format: Hardcover
ISBN :8170554713
Pages: 184
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VIKAS KA SAMAJSHASTRA
पिछले कुछ वर्षों से विकास और आधुनिकीकरण की हवा दुनिया-भर में अन्धड़ का रूप धारण किए हुए है। उससे उड़ती हुई गर्दो-गुबार आज आँखों तक ही नहीं, दिलो-दिमाग तक भी जा पहुँची है। ऐसे में जो मनुष्योचित और समाज के हित में है, उसे देखने, महसूसने और उस पर सोचने का जैसे अवसर ही नहीं है। मनुष्य के इतिहास में यह एक नया संकट है, जिसे अपनी मूल्यहंता विकास-प्रक्रिया के फेर में उसी ने पैदा किया है। यह स्थिति अशुभ है और इसे बदला जाना चाहिए। लेकिन वर्तमान में इस बदलाव को कैसे सम्भव किया जा सकता है या उसके कौन-से आधारभूत मूल्य हो सकते हैं, यह सवाल भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना कि बदलाव। कहना न होगा कि सुप्रतिष्ठित समाजशास्त्री डॉ. श्यामाचरण दुबे की यह कृति इस सवाल पर विभिन्न पहलुओं से विचार करती है।
Rs.300.00
Weight | .350 kg |
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Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
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