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Sri Vayu Maha Purana


वायुपुराण इस समय १२००० श्लोकों में ही उपलब्ध हैं । पूर्वकाल में इसकी श्लोक संख्या अत्याधिक थी । यहाँ तक कि यही शिवपुराण का भी मूल स्रोत रहा है। इसे वायुदेव द्वारा कहे जाने के कारण वायुपुराण नाम दिया गया है वायुपुराण में इस भूमंडल का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसी के साथ ही ऊर्ध्वस्थ लोकों का भुवन विन्यास एवं ज्योतिष प्रचार का वर्णन भी परिलक्षित होता है। इसमें वर्णित पाशुपतयोग का वर्णन तो अत्यन्त अलौकिक है। यह पुराण पूर्णत: शैवोपासना पर आधारित है। इसमें “विष्णु माहात्म्य कीर्तन” नामक प्रसंग का सन्निवेश होने के कारण यह पुराण शैवों तथा वैष्णवों के मतैक्य पूर्ण तत्कालीन समाज का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कालान्तर में शैवों तथा वैष्णवों के बीच जो मतभेद एवं द्वन्द्व देखे गये थे, उनका इस पुराण के रचना काल में पूर्ण अभाव था । अन्य पुराणों में अनेक प्रकार की उपासना, यज्ञ, अनेक कर्मकाण्ड आदि का वर्णन है, परन्तु इस पुराण में इन विषयों का अभाव है । इसमें पाशुपतयोग, कतिपय स्तव, विष्णु माहात्म्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। ‘यज्ञ वर्णन इसमें मात्र एक ऐसा अध्याय है, जिसमें यज्ञ का संक्षेप में वर्णन है । इस पुराण में मुख्यतः वंश-परम्परा, कल्पवर्णन, भुवनविन्यास, ज्योतिष प्रचार का विशद वर्णन है। जबकि श्राद्धकल्प तथा गयामाहात्म्य पर अत्यधिक चर्चा मिलती है। इस प्रकार यह पुराण भूमण्डल के भौगोलिक वर्णन, वंश-परम्परा वर्णन, नक्षत्रों, तारकों आदि के महत्त्वपूर्ण स्वरूप को उपस्थित करता है ।

Rs.1,125.00 Rs.1,250.00

Author: S. N. Khandelwal
ISBN: 9788170848585
Bound: HARD COVER
Publishing Date: 2023
Publisher: chaukhamba
Weight 1.950 kg
Dimensions 10.7 × 7.7 × 2.5 in

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