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Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Mere Sapnon Ka Bharat
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का स्वप्न है कि वर्ष 2020 तक भारत एक विकसित राष्ट्र बने। प्रस्तुत पुस्तक में लेखकद्वय डॉ. कलाम व डॉ. सिवताणु पिल्लै ने इस स्वप्न को साकार करने की प्रक्रिया का बड़ी ही सूक्ष्मता और गहराई से विश्लेषण किया है। विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में छात्र, युवा, किसान, वैज्ञानिक, इंजीनियर, तकनीशियन, चिकित्सक, चिकित्सा कर्मी, शिक्षाविद्, उद्योगपति, सैन्य कर्मी, राजनेता, प्रशासक, अर्थशास्त्रा्, कलाकार और खिलाड़ियों की क्या-क्या भूमिका हो सकती है, इसके बारे में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
हाल के वर्षों में, जीवन-स्तर को बेहतर बनाने में प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रौद्योगिकी एक ऐसा इंजन है, जिसमें देश को विकास तथा संपन्नता की ओर ले जाने और राष्ट्रों के समूह में उसे आवश्यक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ उपलब्ध कराने की क्षमता है। इस प्रकार, भारत को एक विकसित देश में बदलने में प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आज भारत के पास प्रक्षेपण यानों, मिसाइलों तथा वायुयानों के सिस्टम डिजाइन, सिस्टम इंजीनियरिंग, सिस्टम इंटीग्रेशन तथा सिस्टम मैनेजमेंट की योग्यता और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास की क्षमता है—इस पुस्तक में इन सभी पहलुओं पर अनुकरणीय प्रकाश डाला गया है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meri Jeevan Yatra
रामेश्वरम में पैदा हुए एक बालक से लेकर भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बनने तक का डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन असाधारण संकल्प शक्ति, साहस, लगन और श्रेष्ठता की चाह की प्रेरणाप्रद कहानी है। छोटी कहानियों और पार्श्व चित्रों की इस शृंखला में डॉ. कलाम अपने अतीत के छोटे-बड़े महत्त्वपूर्ण पलों को याद करते हैं और पाठकों को बताते हैं कि उन पलों ने उन्हें किस तरह प्रेरित किया। उनके प्रारंभिक जीवन पर गहरी छाप छोड़ने वाले लोगों और तदनंतर संपर्क में आए व्यक्तियों के बारे में वे उत्साह और प्रेम के साथ बताते हैं। वे अपने पिता और ईश्वर के प्रति उनके गहरे प्रेम, माता और उनकी सहृदयता, दयालुता, उनके विचारों और दृष्टिकोणों को आकार देनेवाले अपने गुरुओं समेत सर्वाधिक निकट रहे लोगों के बारे में भी उन्होंने बड़ी आत्मीयता से बताया है। बंगाल की खाड़ी के पास स्थित छोटे से गाँव में बिताए बचपन के बारे में तथा वैज्ञानिक बनने, फिर देश का राष्ट्रपति बनने तक के सफर में आई बाधाओं, संघर्ष, उनपर विजय पाने आदि अनेक तेजस्वी बातें उन्होंने बताई हैं।
‘मेरी जीवन-यात्रा’ अतीत की यादों से भरी, बेहद निजी अनुभवों की ईमानदार कहानी है, जो जितनी असाधारण है, उतनी ही अधिक प्रेरक, आनंददायक और उत्साह से भर देनेवाली है।आभार
मेरी जीवन-यात्रा घटनाओं से भरे जीवन का विवरण है। मेरे मित्र हैरी शेरिडॉन करीब बाईस वर्षों से मेरे साथ रहे हैं और अनेक घटनाओं के भागीदार बने हैं। उन्होंने मेरे साथ सुख और दुःख, दोनों झेले हैं। शेरिडॉन हर तरह के उतार-चढ़ावों में मेरे साथ रहे हैं और जब कभी मुझे जरूरत पड़ी, उन्होंने मेरी पूरी-पूरी सहायता की। ईश्वर उन्हें और उनके परिवार को सदैव सुखी रखे। मैं सुदेषणाशोम घोष को भी धन्यवाद देना चाहूँगा, जो पुस्तक की परिकल्पना से लेकर उसे आकार देने तक मेरे साथ रहीं। पुस्तक प्रकाशित होने तक वे धैर्य के साथ निरंतर मुझसे जुड़ी रहीं। मैं उनके प्रयासों को नमन करता हूँ।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Parinde
निर्मल वर्मा की कहानियों के प्रभाव के पीछे जीवन की गहरी समझ और कला का कठोर अनुशासन है। बारीकियाँ दिखाई नहीं पड़ती हैं तो प्रभाव की तीव्रता के कारण अथवा कला के सघन रचाव के कारण। एक बार दिशा-संकेत मिल जाने पर निरर्थक प्रतीत होने वाली छोटी-छोटी बातें भी सार्थक हो उठती हैं, चाहे कहानी हो चाहे जीवन। कठिनाई यह है कि दिशा-संकेत निर्मल की कहानी में बड़ी सहजता से आता है और प्रायः ऐसी अप्रत्याशित जगह जहाँ देखने के हम अभ्यस्त नहीं। क्या जीवन में भी सत्य इसी प्रकार अप्रत्याशित रूप से यहीं कहीं साधारण से स्थल में निहित नहीं होता? निर्मल ने स्थूल यथार्थ की सीमा पार करने की कोशिश की है। उन्होंने तात्कालिक वर्तमान का अतिक्रमण करना चाहा है, उन्होंने प्रचलित कहानी-कला के दायरे से बाहर निकलने की कोशिश की है, यहाँ तक कि शब्द की अभेद्य दीवार को लाँघकर शब्द के पहले के ‘मौन जगत्’ में प्रवेश करने का भी प्रयत्न किया है और वहाँ जाकर प्रत्यक्ष इन्द्रिय-बोध के द्वारा वस्तुओं के मूल रूप से पकड़ने का साहस दिखलाया है।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Pheriwala Rachnakar
आत्मकथा ईमानदारी माँगती है, जिसे यहाँ बखूबी निभाया गया है। जहाँ-जहाँ इस लेखक में कमजोरियाँ नजर आईं, पूरी ईमानदारी से उसने स्वीकार किया। लेखकीय जीवन के वे राज भी बयाँ हुए हैं, जिन्हें एक उम्र तक कलम की नोक तले दबाकर रखा गया। ‘कृष्ण की आत्मकथा’ का यह रचनाकार अपनी आत्मकथा में भी उन्हीं योगेश्वर के आशीर्वाद की प्रतिध्वनि सुनता नजर आया है, वरना अपनी आँखों से उस युग की तस्वीर कैसे देख सकता था, जिसे कृष्ण ने भोगा था। उस संत्रास का कैसे अनुभव कर सकता था, जिसे उस युग ने झेला था। उस मथुरा को कैसे समझ पाता, जो भगवान् कृष्ण के अस्तित्व की रक्षा के लिए नट की डोर के तनाव पर सिर्फ एक पैर से चली। उस दुखी ब्रज के प्रेमोन्माद को कैसे महसूस करता, जो कृष्ण के वियोग में विरहाग्नि बिखेर रही थी।
जिंदगी के इस महाभारत में लेखक जयी हुआ या पराजित, इसका उत्तर सिर्फ समय के पास है। मगर यह आत्मकथा इस बात की गवाह है कि यह लड़ाई उन्होंने पूरी शिद्दत, ईमानदारी और पराक्रम से लड़ी।
मनु शर्मा की यह आत्मकथा फेरीवाला रचनाकार कृष्ण तथा अन्य चरित्रों की आत्मकथाओं की तरह पाठकों के हृदय में स्थान बनाएगी। पूरी शिद्दत और आत्मीयता के साथ पढ़ी जाएगी, इसमें कोई संशय नहीं है। आत्मकथाओं की शृंखला में एक और पठनीय आत्मकथा।मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।
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Vani Prakashan, कहानियां
Pichhli Garmiyon Mein
निर्मल वर्मा बार-बार अपनी रचना-संवेदना के परिचित दायरों की ओर वापस लौटते हैं। हर बार चोट की एक नयी तीव्रता के साथ लौटते हैं और जितना ही लौटते हैं, उतना ही वह कुछ जो परिचित है और भी परिचित, आत्मीय और गहरा होता जाता है। अनुभव के ऊपर की फालतू परतें छिलती जाती हैं और रचना अपनी मूल संवेदना के निकट अधिक पारदर्शी होती जाती है। निर्मल वर्मा की रचना की पारदर्शी चमड़ी के नीचे आप उस अनुभव को धड़कते सुन सकते हैं, छू सकते हैं। यह अनुभव बड़ा निरीह और निष्कवच है। आपको लगता है कि यह अपनी कला की पतली झिल्ली के बाहर की बरसती आग और बजते शोर की जरब नहीं सह पाएगा। – मलयज
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
R.U.R
आर यू आर यानी रोसुम युनिवर्सल रोबोज़। कारेल चापेक द्वारा सन् 1920 में लिखे गये इस नाटक में पहली बार रोबोट शब्द का इस्तेमाल किया गया। एक ऐसा यन्त्र मानव-गुलाम या दास, जो मनुष्य को उसके सब बोझिल कामों से छुटकारा दिला दे। चापेक ने यह शब्द गढ़ा चेक भाषा के शब्द रोबोटा से, जिसका अर्थ है, बेगार या बंधुआ मज़दूरों से कराया गया काम। सन् 1920 में लिखे इस नाटक में कारेल चापेक ने, जब वैज्ञानिकों को रोबोट बनाने का विचार भी नहीं आया था, कल्पना की थी कि एक फ़ैक्टरी ने रोबोट बनाने की विधि ईजाद कर ली है, उसके पास जल्दी ही हज़ारों-लाखों में दुनिया भर से ऑर्डर आने लगे हैं, और फिर रोबोट इतने बढ़ जाते हैं और बलशाली हो जाते हैं कि एक दिन मानवता के खिलाफ़ विद्रोह करके पूरी मानव जाति को ही नष्ट कर देते हैं। इस नाटक का मूल चेक भाषा से हिन्दी अनुवाद निर्मल वर्मा ने अपने चेकोस्लोवाकिया प्रवास (1959-1968) से लौट कर किया था। सन 1972 में यह अनुवाद- आर यू आर- पहली बार साहित्य अकादमी के तत्त्वाधान में प्रकाशित हुआ था।
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Vani Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
ROMEO JULIET AUR ANDHERA
द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में किशोर वय के प्रेमियों की कोमल-करुणहाथा शुरू होती है, जिसमे ईसाई लड़का एक यहूदी लड़की को अपने पढ़ने की कोठरी में छिपा देता है,ताकि वह कन्संट्रेशन केंप भेजे जाने से बच जाए। धीरे-धीरे कोठरी के बाहर का जीवन कोठरी के भीतर के जीवन से इतना घुल-मिल जाते हैं। कि एक ही प्रश्न बचा रहता है- स्वतन्त्रता क्या है? पृथ्वी पर जीवन कि मनी क्या है? प्रेम कि यात्रा को रोचक ढंग से पेश करता ये उपन्यास पाठक को कई ऐसे रंग दिखाता चलता है जो उसने पहले कभी देखे नहीं होंगे।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sahitya Ka Aatm-Satya
हिन्दी के अग्रणी रचनाकार के साथ-साथ देश के समकालीन श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में गिने जानेवाले निर्मल वर्मा ने जहाँ हिन्दी को एक नयी कथाभाषा दी है वहीं एक नवीन चिन्तन भाषा के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनका साहित्य और चिन्तन न केवल उत्तर-औपनिवेशिक समाज में कुछ बहुत मौलिक प्रश्न और चिन्ताएँ उठाता है, बल्कि एक लेखक की गहरी बौद्धिक और आध्यामिक विकलता को भी व्यक्त करता है। अपने पाठकों को भारतीय परम्परा और पश्चिम की चुनौतियों के द्वन्द्व की नयी समझ भी देता है। इतिहास और स्मृति निर्मल वर्मा के प्रिय प्रत्यय हैं। उनके चिन्तन में इतिहास के ठोस और विशिष्ट अनुभव हैं। वे सवाल उठाते हैं कि यदि हम वैचारिक रूप से स्वयं अपनी भाषा में सोचने, सृजन करने की सामर्थ्य नहीं जुटा पाते तो हमारी राजनैतिक स्वतन्त्रता का क्या मूल्य रह जाएगा? निर्मलजी के निबन्धों के चिन्तन के केन्द्र में मात्रा साहित्य ही नहीं है बल्कि, उसमें उत्तर-औपनिवेशिक भारतीय समाज, उसका नैतिक-सांस्कृतिक विघटन और मनुष्य का आध्यात्मिक मूल स्वरूप, भारतीय संस्कृति का बहुकेन्द्रित सत्य आदि महत्त्वपूर्ण सवाल समाहित हैं जो पाठकों के रचनात्मक चिन्तन को एक नया आयाम देते हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Samaya Sakshi Hai
मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की श्रृंखला में यह दूसरा उपन्यास है। ‘समय साक्षी है’ का कालखंड आजादी से पूर्व का है। उस समय स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था। बनारस में ‘नहीं रखनी सरकार जालिम, नहीं रखनी’ ऐसे गीत गाते हुए देश प्रेमियों के दल-के-दल दशाश्वमेध घाट से जुलूस निकालते हुए टाउन हॉल के मैदान में सभा के रूप में परिवर्तित हो जाते थे।
आजादी की लड़ाई में उफान उस समय आया जब 9 अगस्त, 1942 को बापू ने देश की जनता को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। फिर क्या था—जनता सर पर कफन बाँधकर सड़कों पर उतर आई। गांधीजी गिरफ्तार कर लिये गए। दूसरे बड़े नेता भी रातोरात पकड़ लिये गए।
अजीब समाँ था—जेलें भरी जाने लगीं, अस्पतालों में बिस्तर खाली नहीं। गलियों में, सड़कों पर आबालवृद्धनारीनर सब पर आजादी पाने का जुनून सवार था। सरकारी भवनों से यूनियन जैक हटाकर तिरंगा फहराया गया। चारो तरफ अराजकता फैल गई थी। ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की हद पार हो गई। रेलें रोकी जाने लगीं, संचार माध्यम नष्ट किए जाने लगे, सरकारी संपत्ति की लूट मची और पुलिस थानों पर कब्जा कर लिया गया।
स्वातंत्र्य समर के दौरान अगणित पात्रों, घटनाओं, विभीषिकाओं का जीवंत दस्तावेज है यह उपन्यास। उस काल की घटनाओं की बारीकियों को प्रस्तुत करता है—‘समय साक्षी है’।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sarjana Path Ke Sahyatri
निर्मल वर्मा निश्चय ही हिन्दी के उन रचनाकारों में आते हैं जिन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से अपना आत्मीय, जादुई और निराला संसार रचा है। उन्होंने समय-समय पर अपने प्रिय लेखकों-कलाकारों पर लिखा है। इन लेखों में उन्होंने ‘आलोचन की लगी-बँधी खूँटी से अपने को छुड़ाकर’ आत्मीय प्रतिक्रियाओं के प्रवाह में स्वयं को बहने दिया है। भाषा के नैतिक और आध्यात्मिक आयामों को विकसित करती उनकी ये आत्मीय और पारदर्शी गद्य रचनाएँ मूर्धन्य व्यक्तियों के आलोक और अँधेरे को जिस सजीवता के साथ प्रकट करती हैं वह दुर्लभ साधना और अनिवार्य जिज्ञासा से ही अर्जित की जा सकती हैं। इस पुस्तक में देश के लगभग तमाम महत्त्वपूर्ण रचनाकारों- प्रेमचन्द, महादेवी वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, रेणु, मुक्तिबोध, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, मलयज और चित्रकारों-कलाकारों- हुसेन, रामकुमार, स्वामीनाथन पर तो आलेख हैं ही बोर्ख़ेज, नायपाल, नाबोकोव, राब्बग्रिये और लैक्सनेस पर भी बेहद संजीदगी और तरल संवेदना से लैस रचनाएँ संकलित हैं। निश्चय ही पाठकों को यह पुस्तक निर्मलजी की अन्य पुस्तकों की तरह बेहद पठनीय और मननीय लगेगी। kapot Books, NIRMAL VERMA BOOKS, story, Vani Prakashan Books
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Prabhat Prakashan, कहानियां
Selected Stories of Premchand
Premchand, the undisputed master short story writer has written many short stories and novels. To introduce the master craftsman to the English reader these short stories have been selected for this volume. Each story is a classic in itself. A Pair of two Oxen, The Chess Players, Secret Treasure, Jamai Babu, Game of Tip Cat, The Spell, Idgah and The Tall Talker are all nonpareil of the great writer. The stories have survived the long spell of time and are still the most cherished stories of the reader. Quite a few stories have been selected by various film producers for successful films like The Chess Players as Shatranj Ke Khilari. The stories speak volumes about the economic, social and political conditions of the era.
While presenting the English version no compromise has been made with the quality and original flavour of the stories. So the esteemed reader will feel the same magnetic pull in each of the selected stories as in the original by the writer.SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shabda Aur Smriti
रोमन खँडहरों या पुराने मुस्लिम मकबरों के बीच घूमते हुए एक अजीब गहरी उदासी घिर आती है जैसे कोई हिचकी, कोई साँस, कोई चीख़ इनके बीच फँसी रह गयी हो…जो न अतीत से छुटकारा पा सकती हो, न वर्तमान में जज़्ब हो पाती हो…किन्तु यह उदासी उनके लिए नहीं है, जो एक जमाने में जीवित थे और अब नहीं हैं…वह बहुत कुछ अपने लिए है, जो एक दिन खँडहरों को देखने के लिए नहीं बचेंगे…पुराने स्मारक और खँडहर हमें उस मृत्यु का बोध कराते हैं, जो हम अपने भीतर लेकर चलते हैं, बहता पानी उस जीवन का बोध कराता है, जो मृत्यु के बावजूद वर्तमान है, गतिशील है, अन्तहीन है… शब्द और स्मृति में निर्मल वर्मा ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रश्न ‘भारतीय अनुभव’ का नहीं, भारतीय ‘स्मृति’ का है और ‘स्मृति’ व्यक्ति और अतीत के बीच एक विशिष्ट जुड़ाव, एक सांस्कृतिक सम्बन्ध से जन्म लेती है। अतः स्मृति का प्रश्न इतिहास का नहीं, ‘संस्कृति का प्रश्न’ है।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shatabdi Ke Dhalte Varshon Mein
प्रश्नाकुल अनुभव से जन्मे निर्मल वर्मा के ये निबन्ध पिछले चार दशकों के दौरान लिखे गये निबन्धों और लेखों का स्वयं उनके द्वारा किया गया चयन है। इनमें स्वयं अपने बारे में और साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के बारे में रचनाकार के आत्ममंथन की प्रक्रिया ने रूपाकार ग्रहण किया है। एक ऐसी पीड़ित किन्तु अपरिहार्य प्रक्रिया जो ‘अन्य’ के सम्पर्क में आने पर ही शुरू होती है।…ये निबन्ध ‘अन्य’ से कायम किये गये उस नये रिश्ते की भी पहचान कराते हैं, जिसमें आत्मनिर्वासन की जगह आत्मबोध रहता है। समाज, संस्कृति और धर्म आदि शुद्ध साहित्यिक प्रश्नों के अलावा कुछ विशिष्ट रचनाकारों पर भी निर्मल वर्मा ने दृष्टि केन्द्रित की है। जीवन जगत के इतने कगारों को उनकी व्यापकता में छूते हुए ये निबन्ध अपने पाट की चौड़ाई से ही नहीं, मोती निकाल लाने की लालसा में गहरे डूबने के प्रयास से भी पाठक को आकर्षित और प्रभावित करते हैं। बीसवीं शताब्दी के वैचारिक उतार-चढ़ावों को पारदर्शी दृष्टि से अंकित करने वाले ये निबन्ध स्वयं निर्मल वर्मा की लम्बी चिन्तन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को पहली बार एक सम्पूर्ण संकलन में समेटने का प्रयास हैं।
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अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Sookha Tatha Anya Kahaniyan
निर्मल वर्मा की कथा में ‘पढ़ने’ का कोई विकल्प नहीं है; न ‘सुनना’, न ‘देखना’, न ‘छूना’। वह पढ़ने की शर्तों को कठिन बनाती है तो इसी अर्थ में कि हम इनमें से किसी भी रास्ते से उसे नहीं पढ़ सकते। हमें भाषा पर एकाग्र होना होगा क्योंकि वही इस कथा का वास्तविक घातांक है; वही इस किस्से की किस्सागो है। जब कभी से और जिस किसी भी कारण से इसकी शुरुआत हुई हो पर आज के इस अक्षर-दीप्त युग में विडम्बनापूर्ण ढंग से ‘पढ़ने’ की हमारी क्षमता सर्वाधिक क्षीण हुई है। हम वाक् से स्वर में, दृश्य में, स्पर्श में, रस में एक तरह से निर्वासित हैं। भाषा को अपनी आत्यन्तिक, चरम और निर्विकल्प भूमि बनाती निर्मल वर्मा की कथा इस निर्वासन से बाहर आकर सबसे अधिक क्रियाशील और समावेशी संवेदन वाक् में हमारे पुनर्वास का प्रस्ताव करती है। -मदन सोनी
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
TEEN EKAANT
आमतौर पर हिन्दी की अधिकांश कहानियों में, स्मृति का ‘इस्तेमाल’ है- निर्मल वर्मा के यहाँ स्मृति को जीने की कोशिश। यहाँ ‘रिकलेक्शन’ नहीं ‘मेमोरी’ है। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि निर्मल वर्मा की कहानियों में उनके पात्र महत्त्वपूर्ण हैं या वे दृश्य, जिनमें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की बहुत छोटी-छोटी चीजें , एक आत्मीय लय के साथ मन के भीतर खुलती हैं।…मेरा ख़याल है – बिल्कुल निजी अनुभव के साक्ष्य पर यह बात कह रहा हूँ- कि अपने मन में निर्मल वर्मा की कहानियों को पाकर, हम मानवीय सम्बन्धों की गहराई में उतरते हैं। यह इसलिए मुमकिन होता है कि निर्मल वर्मा की कहानियों में व्यक्तिमत्ता है और समग्र कथा-प्रवाह को बेहद ऐन्द्रिक भाषा के सहारे, हमारे अन्तर्जीवन से जोड़ दिया गया है। यह कोई चिपकाने की कला नहीं है, बल्कि संश्लेषण है। इस अनुभव से गुज़रते हुए प्रायः हम, तथाकथित मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की दयनीय सीमाओं से परिचित होते हैं।
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Fiction Books, Literature & Fiction, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Veer Shivaji
इतिहास घटनाओं और परिस्थितियों की याद दिलाता है, जिसमें जीवन का सत्य रहस्य में छिपा रहता है। इतिहास की परिधि ‘क्यों’ और ‘कब’ के भीतर ही समाप्त हो जाती है, वह ‘कैसे’ पर बहुत कम विचार करता है। यह विचार साहित्य की सीमा के भीतर ही होता है। इतिहास जीवन से अधिक घटनाओं के विषय में जागरूक रहता है और साहित्य घटनाओं से अधिक जीवन के विषय में। आमंत्रण पर शिवाजी अ़फज़ल खाँ से मिले। खाँ ने धोखा देकर शिवाजी पर वार किया; किंतु वे पहले से तैयार थे। उन्होंने उसका सामना किया और उसे मार भगाया। बस, इतिहास का उद्देश्य इतने से समाप्त हो गया। किंतु मिलते समय शिवाजी में कैसा अंतर्द्वंद्व था, अ़फज़ल खाँ क्या सोच रहा था, पूरी मराठा सेना रहस्यमय भविष्य की ओर किस प्रकार एकटक निहार रही थी—यह बताना इतिहास के दायरे के बाहर की चीज है। किंतु जीवन-चरित्र में दोनों चाहिए। इतिहास सत्य के बाह्य पक्ष की ओर जहाँ संकेत करता है वहाँ कल्पना उसके आंतरिक सत्य का दर्शन कराती है। इसी से सत्य को सजीव बनाने के लिए, उसका जीवंत चित्र खींचने के लिए कल्पना के पुट की भी आवश्यकता पड़ती है; किंतु यह कल्पना परियों के देश की नहीं होती जो आदमी को सोने की चिडि़या बना देती है, वरन् इतिहास में वर्णित हाड़-मांस के आदमी में प्राण फूँककर पाठकों के सामने चलता-फिरता, हँसता-बोलता मनुष्य तक ही सीमित रखती है। इस उपन्यास में भी शिवाजी को पाठकों के समक्ष ऐसा ही उपस्थित करने का प्रयास है।
शिवाजी का प्रादुर्भाव ऐसे समय में हुआ जब संपूर्ण भारत पर मुगलों का एकच्छत्र शासन था। औरंगजेब के अत्याचारों से भारतीय जन-मानस त्राहि-त्राहि कर रहा था। ऐसी विकट परिस्थितियों में भी शिवाजी ने अपने पराक्रम, युद्ध-कौशल एवं बुद्धि-चातुर्य से मुगलों को नाकों चने चबवाए और हिंदुत्व एवं हिंदू राज्य का परचम लहराया।
इसमें शिवाजी के जीवन की रोचक, रोमांचक व प्रेरणादायी घटनाओं का विश्लेषणपरक, ऐतिहासिक एवं प्रामाणिक विवेचन किया गया है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Vibhajit Savera
Prabhat Prakashan, उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Vibhajit Savera
मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की शृंखला की यह तीसरी और अंतिम कड़ी है। इसका कालखंड आजादी के बाद का है। गुलामी की जंजीरें कटने के बाद देश ने आजादी का सवेरा देखा, पर यह सवेरा विभाजित था। देश दो भागों में बँट गया था—भारत और पाकिस्तान। अंग्रेज चाहते थे कि दोनों देश हमेशा एक-दूसरे के विरोधी बने रहें। एक ओर वे जिन्ना की पीठ ठोंकते। दूसरी ओर ‘अमनसभाइयों’ को भी उत्साहित करते। अमनसभाई तो थे ही सुराजियों के विरोधी। फिरंगियों ने इनका संगठन बनाया ही इसीलिए था। अमनसभाई अंग्रेज अफसरों के यहाँ ‘डालियाँ’ भिजवाते रहे और सुराजियों की गुप्त सूचनाएँ भी उन्हें देते रहे। इसी उलझन में भारतीय राजनीति आगे बढ़ रही थी कि एक सिरफिरे हिंदू ने गांधीजी को गोली मार दी। अहिंसा का पुजारी हिंसा के घाट उतार दिया गया। इसके कारणों पर भी उपन्यास में विचार हुआ है। ‘टु नेशन थ्योरी’ के आधार पर सांप्रदायिक हिंसा का जो नंगा नाच हुआ, उसका भी चश्मदीद गवाह है यह उपन्यास। ‘विभाजित सवेरा’ खंडित भारत का सार्थक, संवेदनापूर्ण और यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है इसमें लेखक की अनुभूति की सघनता, आत्मीयता और भावुकता है। कथा अंत तक विभाजित सवेरे का दंश भोगती रहती है। आजादी की मरीचिका और देश के सामने मुँह बाए खड़ी ज्वंलत समस्याओं से अवगत कराता है—‘विभाजित सवेरा’।
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