Novel
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Bhuvanvikram
ठहरिए’ गौरी की माँ के गले का कंप कम हो गया था और स्वर पैना- ‘ठहरिए, मैं कुछ और कह रही हूँ ।’ भुवन को रुकना पड़ा । चुपचाप, सुन्न । वह कहती रही-‘ आप हम दीन- दुखियों के साथ खिलवाड़ करना चाहते हैं! याद रखिए, हम भी क्षत्रिय हैं।’ ‘कैसा खिलवाड़, माँजी. .कैसा?’ ‘जैसा अभी-अभी कर रहे थे हमारी भोलीभाली गौरी के साथ. .मैं स्पष्ट पूछती हूँ-क्या आप उसके साथ वैदिक रूप से विवाह करने को तैयार होंगे?’ अब भुवन का सिर ऊँचा हुआ । ‘अवश्य, माँजी, अवश्य। ‘उसके गले में न कैप था, न घबराहट। ‘आप गंगा की और अपने पुरुखों की सौगंध खाते हैं? स्मरण करिए, राम आपके पुराने पूर्वज हैं।’ ‘मैं सौगंध खाता हूँ माँजी।’ गौरी आँगन में होकर सुन रही थी। पृथ्वी को पैर के नख से कुरेद रही थी, जिसपर दो आँसू आ टपके। ‘पक्का वचन?’ गौरी की माँ का स्वर अब धीमा पड़ गया था। ‘पक्का, माँजी, बिलकुल पक्का। उतनी बड़ी सौगंध खा चुका हूँ। आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत माता-पिता के आशीर्वाद से पहला काम यही करूँगा।’ ‘अच्छा बेटा, सुखी रहो तुम दोनों। ‘गौरी की माँ का गला काँप रहा था। उस कैप के साथ आँखों में आँसू भी थे। गौरी आँसू पोंछती हुई घर के एक कमरे में चली गई।
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Vani Prakashan, उपन्यास
BUNIYAAD
दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में ‘ बुनियाद’ को देश के लाखों- करोड़ों दर्शकों ने देखा और सराहा। उसकी इस सफलता को लेकर लेखक की खुसी जायज भी है। खासकर इसलिए भी इसके मध्यम से लेखक लोगो को समझ पाया और उनके हिसाब से सोच पाया। परिवारिक जीवन की डँसता कहता यह उपन्यास लेखक की दूरगामी सोच का नतीजा है जिसे पढ़ कर पाठक चिंतन करने के लिए प्रेरित होता है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
BUNIYAD-II
“अपने तमाम फिष्ल्मी लटकों-झटकों के बावजूद, हमारे लाख नाक-भौं सिकोड़ने के बावजूद जिस निरन्तरता से ‘बुनियाद’ ने एक-से-एक चरित्रा हमें दिए, वैसे दूरदर्शन ने अब तक के इतिहास में न दिए होगे हवेलीराम का दृढ़ आदर्शवाद, लाजो का धरती जैसा ‘माँ’ – रूप और विभाजन की विभीषिका को पृष्ठभूमि बनाकर चलती हुई कहानी, तमाम उत्तर भारत के आधुनिक मध्यवर्ग की नींव की तरह हमें छूती रही। अगर दूरदर्शन वाले इस सीरियल से मनमानी छेड़छाड़ न करते और जोशी-सिप्पी को थोड़ी अधिक आजशदी देते तो यह आजादी के बाद के परिवार का और इस तरह समाज का राजनीतिक-सांस्कृतिक अध्ययन बन गया होता। फिर भी, इतने दबावों, आपाधापी और सेंसरों के बाद, ‘बुनियाद’ सीरियलों के इतिहास में एक निशान छोड़ने वाला है।” -सुधीश पचौरी
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Chaturang
किसी लोकप्रिय लेखक के एक से अधिक चुने हुए उपन्यास एकसाथ उपलब्ध होना महत्त्वपूर्ग घटना है। प्रस्तुत पुस्तक में बिमल मित्र के प्याज कल परसों’, ‘वे दोनों ओर वहां, “गवाह नंबर तीन’ तथा ‘काजल’ उपन्यास, जो सभीपाठको के मन में अपना विशेष स्थान बना चुके है उपलब्ध हैं। ये चारों विभिन्न वातावरण में चार विभिन्न प्रकार की कथाएं कहते हैं।”आज कल परसों’ मानव जीवन की नियति को, जो कई बार बहुत नाटकीय रूप धारण कर होती हैं, रेखांकित करती है। ‘वे दोनों और वहां दो नारियों और एक पुरूष की कथा है जिससे प्यार सबल है अथवा प्रतिशोध … यह निर्णय करना कठिन हो जाता है। ‘गवाह नंबर तीन’ मनुष्य के वास्तविक चरित्र के सम्बन्ध में कई विलक्षण सच्चाईयां सामने रखता है। ‘काजल’ एक विशिष्ट नारों के त्याग की मर्मस्पर्शी कहानी है … दुनिया जिसे कुत्नटा समझती रही, वह वास्तव में अपनी सहेली के भविष्य को सुधारने में लगी देवी है।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Cheeron Par Chandani
निर्मल वर्मा के गद्य में कहानी, निबन्ध, यात्रा-वृत्त और डायरी की समस्त विधाएँ अपना अलगाव छोड़कर अपनी चिन्तन-क्षमता और सृजन-प्रक्रिया में समरस हो जाती हैं…आधुनिक समाज में गद्य से जो विविध अपेक्षाएँ की जाती हैं, वे यहाँ सब एकबारगी पूरी हो जाती हैं। -डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी / निर्मल वर्मा के यहाँ संसार का आशय सम्बन्धों की छाया या प्रकाश में ही खुलता है, अन्यथा नहीं। सम्बन्धों के प्रति यह उद्दीप्त संवेदनशीलता उन्हें अनेक अप्रत्याशित सूक्ष्मताओं में भले ले जाती हो, उनको ऐसा चिन्तक-कथाकार नहीं बनाती जिसका चिन्तन अलग से हस्तक्षेप करता चलता हो। वे अर्थों के बखान के नहीं, अर्थों की गूंजों और अनुगूगूँजों के कथाकार हैं।
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