Novel
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Rangbhoomi
रंगभूमि प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यासों में है। इसकी रचना महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर की गई थी। ‘रंगभूमि’ का नायक सूरदास न्याय के लिए आजीवन संघर्ष करता है, फिर भी उसके मन में किसी के प्रति कटुता नहीं है। यह उपन्यास भारत में औद्योगिक संस्कृति की शुरुआत के दौरान साधारण जन की कठिनाइयों का बेबाक चित्रण करता है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां
Rasiya
‘‘मैं एक रसिया हूँ। अपनी काम-वासना पूरी करने के अलावा मैं और कुछ नहीं कर पाता।’’ रसिया कहानी है एक ऐसे आदमी की जो अपनी काम-प्रवृत्ति का गुलाम है। वासना का भूत उसके सिर चढ़कर तो जैसे तांडव करता है और वह अपनी यौनेच्छाओं को पूरा करने की राह पर चलने को मजबूर है। इस राह पर उसे आनन्द तो मिलता है लेकिन साथ ही जोखिमों का सामना भी होता है। रस्किन बॉन्ड का यह लघु उपन्यास रसिया उनकी जानी-पहचानी शैली से हटकर है जिसमें उन्होंने मानव-प्रवृत्ति के नकारात्मक पक्षों को उजागर किया है। ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया और मुट्ठी भर यादें।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
RATN KANGAN TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की रत्न-कंगन तथा अन्य कहानियाँ की शीर्षक-कथा रत्न-कंगन एकतरफ़ा प्रेम का मार्मिक आख्यान है, जिस पर 1965 में सोवियत संघ में एक फ़िल्म भी बनी थी। इस अभिशप्त कहानी के केंद्र में एक राजसी महिला से एकतरफ़ा प्रेम में पड़ गया एक साधारण क्लर्क है। जानी-पहचानी सामाजिक स्थिति, जिसमें क्लर्क हास्यास्पद है और राजसी परिवार के हर सदस्य को उसका उपहास उड़ाने का अधिकार है, देखते-देखते उदात्त प्रेम पर लंबे चिंतन के आख्यान में बदल जाती है। अपनी अनेक कहानियों में कुप्रीन ने प्रेम के इस सामाजिक पक्ष – आर्थिक ऊँच-नीच – को बड़ी संवेदनशीलता से छुआ है और हालाँकि लगभग हमेशा ही उनके कथानक में समाज की, बलवान की जीत होती है, यह जीत हमेशा के लिए प्रश्नांकित होने से नहीं बचती। पाठकों के लिए यह तथ्य रोचक होगा कि 1954 में जब युवा लेखक निर्मल वर्मा ने इन कहानियों का अनुवाद किया था, तो उनका अपना देश भी स्वतंत्रता के बाद एक संक्रमण-काल के सम्मुख नियति की पहचान कर रहा था।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Room on the Roof
1992 में साहित्य अकादमी अवार्ड से पुरस्कृत रस्किन बान्ड का यह पहला उपन्यास है जिसे उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में लिखा था। इस उपन्यास का पात्र, रस्टी एक सोलह वर्षीय एंग्लो-इंडियन लड़का है जिसके मां-बाप नहीं हैं और जिसे अपने अंग्रेज़ रिश्तेदारों के साथ रहना पड़ता है। मनमौजी, घुमक्कड़ और विद्रोही स्वभाव वाले रस्टी को अपने रिश्तेदारों का अनुशासन और तौर-तरीके बिलकुल रास नहीं आते और वह उनके घर से भाग जाता है। फिर उसे मिलते हैं नये दोस्त जिनके साथ बाज़ार, मेले और त्योहारों की चहल-पहल में वह खो जाता है…बचपन और जवानी के बीच की अल्हड़ उम्र के अनुभवों पर आधारित यह क्लासिक उपन्यास आज भी पाठकों का भरपूर मनोरंजन करता है। ‘‘अपना एक विशेष जादू है इस पुस्तक का’’-हैरल्ड ट्रिब्यून बुक रिव्यू ‘‘बेहद पठनीय’’-द गार्डियन।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rusty Aur Cheetah
रस्टी की ज़िन्दगी की कहानियों की कड़ी में यह तीसरी किताब है। रस्टी अपने अभिभावक का घर छोड़ चुका है और कपूर परिवार के साथ रहने आता है। वहाँ वह उनके बेटे किशन को पढ़ाता है और उससे उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है। बेहद सुन्दर, किशन की माँ, मीना कपूर, से रस्टी बहुत प्रभावित है और उनसे बहुत कुछ सीखता है। अचानक मीना की मौत हो जाने के बाद रस्टी और किशन देहरा छोड़ देते हैं और दून घाटी और गढ़वाल के पहाड़ों की ओर निकल जाते हैं। इस दौरान रस्टी और किशन के साथ क्या गुज़रता है यही है इस पुस्तक का ताना-बाना। ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया, मुट्ठी भर यादें, रसिया, रस्टी जब भाग गया, रस्टी की घर वापसी और रस्टी चला लंदन की ओर।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rusty Chala London Ki Ore
बीस साल की उम्र पार करते ही रस्टी देहरा छोड़कर लंदन चला जाता है। उसके मन में सपना है वहाँ जाकर एक लेखक बनने का। दिन में वह क्लर्क की नौकरी करता है और देर रात जागकर लिखता है। तीन साल वहाँ बिताने के बावजूद, रस्टी को लंदन रास नहीं आता। उसके मन में, यादों में अब भी बसा है भारत और देहरा, जहाँ उसने अपना बचपन बिताया था। आखिरकार वह देहरा वापिस आ जाता है और फिर वहीं रहता है। लंदन में रस्टी के साथ अनेक मज़ेदार किस्से होते हैं जो इस किताब में सम्मिलित हैं। रस्किन बॉन्ड भारत के अत्यन्त लोकप्रिय लेखक हैं। लोकप्रिय पात्र, रस्टी, की कहानियों की शृंखला में रस्किन बॉन्ड की यह चौथी किताब है। ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया, मुट्ठी भर यादें, रसिया, रस्टी और चीता, रस्टी की घर वापसी और रस्टी जब भाग गया।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rusty Jab Bhag Gaya
बारह वर्षीय रस्टी की दुनिया में उथल-पुथल मच जाती है जब उसके पिता और नानी का देहान्त हो जाता है। रस्टी को अब मिस्टर हैरिसन के साथ रहना पड़ता है, लेकिन वे उसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं हैं और रस्टी को बोर्डिंग स्कूल भेज देते हैं। स्कूल से दुखी और दुनिया देखने को बेचैन रस्टी स्कूल से भाग जाने का प्लान बनाता है लेकिन सफल नहीं हो पाता और एक बार फिर अपने अभिभावक, मिस्टर हैरिसन, के पास वापिस पहुँच जाता है। सत्रह साल के रस्टी को मिस्टर हैरिसन के साथ रहना कबूल नहीं है और वह हमेशा के लिए उनका घर छोड़ देता है। बचपन और जवानी के बीच के समय के दिलकश किस्सों का यह संकलन रस्टी की कहानी-शृंखला की दूसरी पुस्तक है। ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया, मुट्ठी भर यादें, रसिया, रस्टी और चीता, रस्टी की घर वापसी और रस्टी चला लंदन की ओर।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rusty Ki Ghar Wapsi
लम्बे अरसे से रस्किन बॉन्ड की पुस्तकों का लोकप्रिय पात्र, रस्टी, अपने कारनामों से पाठकों का मन लुभाता, गुदगुदाता और हँसाता आ रहा है। रस्टी ने पाठकों के मन में अपना एक विशेष स्थान बना लिया है और उसके किस्से-कहानियाँ से पाठक न थकता है, न ऊबता। लंदन से लौटने के बाद रस्टी देहरादून, दिल्ली और शाहगंज में कुछ समय बिताता है और आखिर में मसूरी के पहाड़ों में बस जाता है जहाँ वह बतौर लेखक अपना जीवन शुरू करता है। रस्टी फिर कभी मसूरी के पहाड़ों को छोड़कर कहीं नहीं जाता। रस्टी की कहानियों की शृंखला में यह पाँचवीं और आखिरी कड़ी है। इसमें पायेंगे रस्टी के कई दोस्तों-यारों के किस्से, जिसमें उसका खास दोस्त, सुरेश भी शामिल है, अंकल बिल जो लोगों को ज़हर देने की नई-नई तरकीबें सोचते रहते हैं और जिमी नामक जिन्न। कुछ अजीबोगरीब किरदार, कुछ प्यार-मोहब्बत के किस्सों से भरी रस्किन बॉन्ड की यह किताब हर उम्र के पाठकों को रास आयेगी। सहज भाषा और दिल को छू लेने वाले लेखक – यही है रस्किन बॉन्ड की खासियत जिसके कारण वह इतने लोकप्रिय हैं। ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया, मुट्ठी भर यादें, रसिया, रस्टी और चीता, रस्टी जब भाग गया और रस्टी चला लंदन की ओर।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Saagar Swar
‘‘आदमी सागर की सतह तक तो पहुंच गया है लेकिन अभी तक मानव मस्तिष्क की गहरी सतह तक नहीं पहुंच पाया है और न ही उसे पूरी तरह से समझ पाया है। शायद आज तक लोगों के बीच जो आपसी रिश्ते कायम हैं, वह इसलिए कि हम एक-दूसरे के अंदर के मन की बात को नहीं जान पाते। वर्षों साथ रहने के बाद भी शायद दो लोग एक-दूसरे को पूरी तरह से जान नहीं पाते। इसी बात को सोचते-सोचते मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि यदि कोई ऐसी मशीन बन जाए जिससे सबके मस्तिष्क पारदर्शी हो जाएं, तो क्या होगा? मुझे जवाब मिला कि शायद मानव सभ्यता ढह जाएगी। यहीं से शुरू हुई मेरे उपन्यास की शुरुआत…’’-प्रतिभा राय जब एक संवेदनशील नारी का विवाह एक ऐसे वैज्ञानिक से होता है जो हर मनुष्य को केवल एक मशीन ही समझता है, हृदय की भावनाएँ उसके लिए कोई मायने नहीं रखतीं तब नारी के कोमल मन पर क्या बीतती है, इसी पृष्ठभूमि पर लिखा गया है यह उपन्यास। वैज्ञानिक ‘ब्रेनोविश्जॅन’ का अन्वेषण करता है जिससे कि हरेक व्यक्ति के दिमाग में जो बात चल रही है, उसको सब देख सकते हैं। इससे उसकी पत्नी के साथ रिश्ते और खुद पर उसका क्या असर होता है? जानिए इस उपन्यास में।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Saath Saha Gaya Dukh
दिल्ली प्रशासन के ‘शलाका सम्मान’ से सम्मानित सुप्रतिष्ठित उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली का यह सामाजिक उपन्यास उनकी अन्य रचनाओं की भाँति अत्यंत मार्मिक और प्रभावी है, यह इस उपन्यास से स्पष्ट है। बच्चे की बीमारी और मृत्यु की घटना में पति और पत्नी का साथ सहा और एक-दूसरे में बांटा गया दुख उपन्यास का विषय है-जो पाठक के अन्तरंग को छू लेता है।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Sagar-Manthan
नरेन्द्र कोहली
इस उपन्यास का नाम कुछ पौराणिक-सा लगता है किन्तु यह तनिक भी पौराणिक नहीं है। यह नरेन्द्र कोहली का पहला उपन्यास है, जो समकालीन है और विदेशी धरती पर लिखा गया है। विदेशी धरती ही नहीं, इसमें अनेक महाद्वीपों के लोगों के परस्पर गुँथे होने और एक नया संसार गढ़ने की कथा है। परिणामतः उनके हृदय में और परस्पर सम्बन्धों में अनेक विरोध भी हैं और अनेक विडम्बनाएँ भी। जहाँ इतिहास है, वहाँ उस ऐतिहासिक काल की कड़वाहट भी है, जिसे न आप भूल सकते हैं, न उसके कारणों को दूर कर सकते हैं। जहाँ वर्तमान है, वहाँ अपने मूल देश के प्रति प्रेम भी है और छिद्रान्वेषण भी। न स्वयं को अपने देश से असम्पृक्त कर सकते हैं और न उसको उसकी त्रुटियों के साथ स्वीकार कर सकते हैं। न देश के अपने हो पाये, न पराये। न उसे स्वीकार कर पाये, न अस्वीकार। इसके चरित्र व्यक्ति नहीं हैं, वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो अभी स्थिर नहीं हो पायी हैं। वे परिवर्तन की चक्की में पिस रहे हैं और अपने वास्तविक रूप को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। अपने देश को स्मरण भी करते हैं और उसे भूल भी जाना चाहते हैं। जिनके प्रति प्रेम है, उन्हें भूलना चाहते हैं; और जिन्हें प्रेम नहीं करते, उन्हें अपनाना चाहते हैं। उनसे मिलना भी चाहते हैं और उनसे दूर भी रहना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह परिवर्तन और नये निर्माण की कथा है। कहा नहीं जा सकता कि वह नया निर्माण कैसा होगा।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sahitya Ka Aatm-Satya
हिन्दी के अग्रणी रचनाकार के साथ-साथ देश के समकालीन श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में गिने जानेवाले निर्मल वर्मा ने जहाँ हिन्दी को एक नयी कथाभाषा दी है वहीं एक नवीन चिन्तन भाषा के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनका साहित्य और चिन्तन न केवल उत्तर-औपनिवेशिक समाज में कुछ बहुत मौलिक प्रश्न और चिन्ताएँ उठाता है, बल्कि एक लेखक की गहरी बौद्धिक और आध्यामिक विकलता को भी व्यक्त करता है। अपने पाठकों को भारतीय परम्परा और पश्चिम की चुनौतियों के द्वन्द्व की नयी समझ भी देता है। इतिहास और स्मृति निर्मल वर्मा के प्रिय प्रत्यय हैं। उनके चिन्तन में इतिहास के ठोस और विशिष्ट अनुभव हैं। वे सवाल उठाते हैं कि यदि हम वैचारिक रूप से स्वयं अपनी भाषा में सोचने, सृजन करने की सामर्थ्य नहीं जुटा पाते तो हमारी राजनैतिक स्वतन्त्रता का क्या मूल्य रह जाएगा? निर्मलजी के निबन्धों के चिन्तन के केन्द्र में मात्रा साहित्य ही नहीं है बल्कि, उसमें उत्तर-औपनिवेशिक भारतीय समाज, उसका नैतिक-सांस्कृतिक विघटन और मनुष्य का आध्यात्मिक मूल स्वरूप, भारतीय संस्कृति का बहुकेन्द्रित सत्य आदि महत्त्वपूर्ण सवाल समाहित हैं जो पाठकों के रचनात्मक चिन्तन को एक नया आयाम देते हैं।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Sairandhri
नरेन्द्र कोहली
पाण्डवों का अज्ञातवास महाभारत कथा का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और मार्मिक स्थल है । कहा जाये कि यह एक वर्ष ही उनकी असली परीक्षा का काल था । जब उन्हें अपना नैसर्गिक रूप त्याग कर अलग और हीनतर रूप धारण करने पड़ते हैं । सवाल उठता है दुर्योधन की गिध्द-दृष्टि से पाण्डव कैसे बचे रह सकें ? अपने अज्ञातवास के लिए पाण्डवों ने विराट नगर को ही क्यों चुना ? पाण्डवों के शत्रुओं में प्रछन्न मित्र कहाँ थे ? और मित्रों में प्रछन्न शत्रु कहाँ पनप रहे थे ? बदली हुई भूमिकाओं से तालमेल बैठाना पाण्डवों के लिए कितना सुकर या दुष्कर था ? अनेक प्रश्न हैं जो इस प्रसंग में उठते हैं । लेकिन पाण्डवों से भी ज्यादा मार्मिक है द्रौपदी का रूपान्तरण । पाण्डवों को तो किसी-न किसी रूप में भेष बदलने का वरदान मिला हुआ था या उनमें यह गुण स्वाभाविक रूप से मौजूद था। अर्जुन को अगर उर्वशी का श्राप था तो युधिष्ठिर को द्यूत प्रिय होने के नाते कंक बनने में सुविधा थी । भीम वैसे ही भोजन भट्ट और मल्ल विद्या में पारंगत थे। समस्या तो द्रौपदी की थी, जो न केवल सुन्दरी होने के नाते सबके आकर्षण का केंद्र थी बल्कि जिसने कभी सेवा-टहल का काम नहीं किया था। सुदेष्णा जैसी रानियाँ तो उसकी सेवा-टहल करने के योग्य थीं । ऐसी स्थिति में उस एक वर्ष को सैरंध्री बनकर काटना द्रौपदी के लिए कैसी अग्नि परीक्षा रही होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है । द्रौपदी के सौन्दर्य को लेकर सुदेष्णा का भय और विराट की आशंका या फिर वृहन्नला और द्रौपदी की अपनी-अपनी व्यथाएँ । उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली ने इस उपन्यास में की । इसके साथ-साथ अनेक प्रश्नों को छुआ है, इन सबको नरेन्द्र कोहली ने अपनी सुपरिचित शैली में बड़ी सफलता से चित्रित किया है ।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Samay Aur Sanskriti
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
SANKARMAN KI PEERA
किसी भी गतिशील समाज में संक्रमण एक प्रक्रिया का नाम है, एक अपरिहार्य कालस्थिति का द्योतक। इसमें जिस तीव्रता से उलट-फेर होते हैं, उनसे अक्सर समाज की स्वस्थ परम्पराओं को भी नुकसान पहुँचता है। जीवन के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में ऐसा बहुत कुछ घटित होता हुआ दिखायी देता है, जिससे किसी भी देश के ऐतिहासिक सामरस्य में ‘सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अराजकता व्याप्त हो जाती है; भ्रांति को हम क्रान्ति समझ लेते हैं, समस्याएँ और भी उलझ जाती हैं, उनके कोई हल नहीं निकलते है।’ प्रो. दुबे की यह कृति एक दुर्लभ रचनात्मक धीरज के साथ भारतीय समाज के वर्तमान संक्रमण-काल का एक ऐसा अध्ययन है, जिससे प्रत्येक सजग पाठक को गुजरना चाहिए।
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