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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Bauddha Kapalika Sadhna Aur Sahitya
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियांBauddha Kapalika Sadhna Aur Sahitya
बौद्ध कापालिक साधना और साहित्य : हिन्दी के आदिकालीन साहित्य और भक्तिकालीन साहित्य की भूमिका प्रस्तुत करनेवाली बौद्ध सिद्धों की अपभ्रंश रचनाओं का अध्ययन केवल हिन्दी ही नहीं सम्पूर्ण समकालीन साहित्य, किंबहुना तत्कालीन समग्र धर्मदार्शनिक एवं साधनात्मक जीवन के अध्ययन के लिए उपयोगी है; क्योंकि तंत्रदर्शन एवं साधना का अति व्यापक एवं गंभीर प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। इसी दृष्टि से बहुत पहले १९५८ में तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य की रचना की गई थी।
यह ग्रन्थ उस अध्ययन के एक पक्ष का विस्तार है। बहुत पहले आचार्य डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ में जालंधर पाद और कान्हुपा के कापालिक साधन और ‘बामारग’ की चर्चा नाथ सम्प्रदाय के परिप्रेक्ष्य में ही की थी। दूसरे उस समय बौद्धों के कापालिक साधन और दर्शन से सम्बन्धित किसी शास्त्रीय ग्रन्थ की सहायता नहीं ली गई थी। अतः बौद्धों के कापालिक तत्त्वों, साधनों, दार्शनिक सिद्धान्तों की मीमांसा भी नहीं हो पाई। यहाँ तक कि श्री स्नेलग्रोव ने हेवज्रतंत्र और उसकी टीका हेवज्रपंजिका का संपादन करके भी उसके कापालिक तत्त्वों का विस्तृत विवेचन नहीं किया और न एक पृथक् बौद्ध साधनाधारा के रूप में इसे प्रस्तुत ही किया।
यह ग्रंथ बौद्ध साधना और साहित्य के अनेक अछूते, विस्मृत, तिरस्कृत और महत्त्वपूर्ण सूत्रों को एकत्रित कर उनका व्यवस्थापन करते हुए बौद्धों के कापालिकतत्त्व का स्वरूप प्रस्तुत करता है। सामान्यतया केवल शैवों में ही कापालिकों की स्थिति माननेवालों को इस ग्रंथ से नया प्रकाश, नई सूचनाएँ एवं भारतीय कापालिक साधना का एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। कापालिक साधना के विषय में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण भी होगा, इसमें संदेह नहीं।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Beyond 370 : Jammu and Kashmir Spreads its Wings
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Beyond 370 : Jammu and Kashmir Spreads its Wings
Beyond 370: Jammu and Kashmir spreads its Wings’ is a comprehensive book that delves into the changes post-abrogation of Article 370 in 2019 and its profound impact on the development and progress of Jammu and Kashmir. The book offers an in-depth exploration of the region’s transformative journey as it navigates a new path towards growth and empowerment.
Through meticulous research and on-the-ground accounts, ‘Beyond 370’ delves into the multi- faceted aspects of development in Jammu and Kashmir. It highlights numerous government initiatives and policies aimed at fostering economic growth, infrastructural development, and job creation. The book also assesses the impact of these measures on the lives of the region’s residents, exploring the socio-economic changes that have unfolded.
‘Beyond 370’ is a balanced and insightful account that provides readers with a comprehensive understanding of how Jammu and Kashmir has progressed in the wake of Article 370’s abrogation. It acknowledges the complexities and aspirations of the region while offering a glimpse into the transformative changes that have propelled Jammu and Kashmir towards a promising future.
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Hindi Books, Suggested Books, Upasana Publications , अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bhaarateey Chintan Me Karm Evan Punarjanm
-15%Hindi Books, Suggested Books, Upasana Publications , अध्यात्म की अन्य पुस्तकेंBhaarateey Chintan Me Karm Evan Punarjanm
यह पुस्तक भारतीय चिन्तनधारा का प्रायः सर्वसम्मत सिद्धान्त है। कर्म और पुनर्जन्म भारतीय दर्शन-परम्परा में वस्तुतः परस्पराश्रित माने गये हैं। कर्म नहीं तो पुनर्जन्म नहीं, पुनर्जन्म नहीं तो दृश्य कर्म नहीं। कारण-कार्य सिद्धान्त सृष्टि का सार्वभौम सिद्धान्त है तथा कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त इस कारणता नियम पर ही आधृत होने से सर्वथा तर्कसङ्ग एवं समीचीन है। प्रस्तुत ग्रन्थ इस सर्वमान्य एवं रहस्यात्मक ‘कर्म और पुनर्जन्म सिद्धान्त’ के विविध आयामों पर आधारित विद्वतापूर्ण 46 शोधपत्रों का सङ्कलन है। यह ग्रन्थ संस्कृत एवं भारतीय विद्या के मूर्धन्य विचारकों ने विविध दृष्टिकोणें से कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर विपुल विचार-सामग्री प्रस्तुत की है, जो जिज्ञासू अध्येताओं के लिए अवश्य ही लाभप्रद होगी।
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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Bhagvannam Mahima Aur Prarthna Ank(Code1135)
यह विशेषांक भगवन्नाम-महिमा एवं प्रार्थना के अमोघ प्रभाव का सुन्दर विश्लेषक है। इसमें विभिन्न सन्त-महात्माओं, विद्वान् विचारकों के भगवन्नाम-महिमा एवं प्रार्थना के चमत्कारों के सन्दर्भ में शास्त्रीय लेखों का सुन्दर संग्रह है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ भक्त-सन्तों के नाम-जप से होनेवाले सुन्दर अनुभवों का भी संकलन किया गया है।
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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Bhagvat Navneet(Code2009)
श्रीमदभागवत एक जीवन-दर्शन है। यह मानव जीवन का एक अनुपम, उत्कृष्ट एवं आदर्श मार्गदर्शक है। इसमें जीवन के प्रश्नों के उत्तर हैं, जीवन एवं जगत की समस्याओं के समाधान हैं और सफल, सार्थक, समृद्ध एवं शान्तिपूर्ण जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्र हैं। इस पुस्तक में श्रीमदभागवत पर सन्त श्रीरामचन्द्र केशव डोंगरे जी महाराज का सरस प्रवचन दिया गया है।
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Gita Press, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Bhakt-Charit-Ank
भक्तों के चरित्र सदा ही नवीन तथा प्रेरणादायक हैं। त्याग, तपस्या, भगवद्भक्ति तथा पवित्र सेवाभाव आदि का सच्चा स्वरूप तो भक्त चरित्रों में ही प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। इस विशेषांक में भगवद्विश्वास को बढ़ाने वाले उपासकों, साधकों तथा महात्माओं के जीवन-चरित्र का ऐसा दुर्लभ संग्रह है, जो पाठकों के हृदय में भगवद्भक्ति और भगवद्विश्वास का सहज ही संचार कर देता है। इसमें वर्णित कथाएँ रोचक, ज्ञानप्रद, अनुशीलनयोग्य, प्रेमानन्द को बढ़ाने वाली तथा शान्ति प्रदान करने वाली हैं।
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English Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Bhakti And The Bhakti Movement: A New Perspective
English Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Bhakti And The Bhakti Movement: A New Perspective
This book makes a total departure from some well-established notions about bhakti and the Bhakti movement. It questions and rejects the current academic definition of bhakti and the portrayals of the Bhakti movement in the light of that definition. Trying to recapture the generic meaning of the term bhakti, the author postulates that bhakti by itself does not suggest any ideational or doctrinaire position. According to her, a restricted and erroneous definition of bhakti has served as the substratum for all theorisations about the Bhakti movement, when taken as a whole. What is reckoned as the Bhakti movement, she states, is an amalgam of a number of devotional movements of a divergent nature. A monolithic view of these can be taken only if their common denominator bhakti is understood in its generic sense. Not otherwise. In short, the author has called into question the whole conceptual framework and the basic terms of reference used hitherto for the study of bhakti and the Bhakti movement. This is significant since they have had the sanction of more than one hundred years of scholarship, and have not been questioned till now. She has done so on the strength of her being able to trace back the origins of the errors she has underlined. The author has tried to establish the fact that the accepted academic definition of bhakti is a modern construction; and that it was artificially formulated by certain Western Indologists of the nineteenth century with the aid of criteria which had no relevance in the context of Hinduism. The process of its formulation has been examined historiographically in this critique to show how it had gradually taken shape between 1846 and 1909. The reasons for its subsequent incorporation in modern Indian scholarship have also been made clear. Adopting an interdisciplinary approach in this book, Dr. Sharma has grappled with many vital issues related to the Bhakti theme. It is hoped that this erudite work would serve as a landmark in the study of bhakti and the Bhakti movement.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan
ऋग्वेद में उल्लेख है ‘भद्रं इच्छन्ति ऋषयः’, ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं। लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है। इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है। यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है—सर्वे भवन्तु सुखिनः/सर्वे सन्तु निरामया/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु/मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत्। यानी सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब एक-दूसरे की भलाई में रत रहें, किसी के कारण किसी को दुख न पहुँचे।
भारत की संस्कृति इसी भावबोध का विस्तार है। हमारी ऋषि-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आद्य शंकराचार्य से लेकर संत तुलसीदास तक ने इसी सांस्कृतिक चेतना को परिपुष्ट किया है। इस तरह भारत विश्व को सुख-शांति-सद्भाव का मार्ग दिखानेवाली सांस्कृतिक चेतना का अधिष्ठान बन गया।
भारत को जानना है तो इस संस्कृति
के मर्म को जानना-समझना पड़ेगा। इसे ‘सरवाइवल ऑफ द फिटैस्ट’ जैसी पाश्चात्य या ‘वर्ग संघर्ष’ जैसी कम्युनिस्ट अवधारणाओं से नहीं जाना-समझा जा सकता, जो देश की स्वाधीनता के बाद भी सत्ता का संरक्षण पाकर औपनिवेशिक मानसिकता को पाल-पोसकर भारतीयता के विरुद्ध खड़ा करने में लगी रही हों। यह पूरी जमात ‘लोग आते गए, कारवाँ बनता गया’ जैसे जुमलों की आड़ में भारत की सांस्कृतिक पहचान को ही मिटाने का कुचक्र रचती रही है। जबकि विश्वविख्यात विद्वान् अर्नाल्ड टायन्बी अपनी पुस्तक ‘द स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में भारत के इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों को विनाश के कगार पर खड़ी मानवता को बचाने का विकल्प मानते हैं।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bharat Darshan (HB)
-20%Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBharat Darshan (HB)
विश्व में अपने वैभव के लिए ख्यातिप्राप्त किसी भी राष्ट्र के उस वैभव की प्राप्ति के लिए किए हुए प्रयत्नों का अध्ययन ऐसे वैभव की चाह रखनेवाले सभी राष्ट्रों को बहुत बोधप्रद होता ही है। ऐसे उपलब्ध सभी अध्ययन (एक बोध) निरपवाद रूप से प्रदान करते हैं कि राष्ट्र की वैभवप्राप्ति, राष्ट्र के भाग्योदय की शिल्पकार सदा ही उस राष्ट्र की सामान्य प्रजा होती है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, विचार एवं तत्त्वज्ञान, राजतंत्र और नेतागण, मान्यताएँ आदि बातें केवल सहायक ही होती हैं, जबकि सामान्य जनमानस का पुरुषार्थ ही राष्ट्र के भाग्योदय का प्रमुख माध्यम होता है।
स्व की जागृति के बिना व्यक्ति और समाज के पुरुषार्थ का उदय नहीं हो सकता है। हमें अपने राष्ट्र का भूगोल, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विशेषताएँ, गौरवशाली इतिहास एवं पूर्वजों के पुरुषार्थ-समर्पण आदि का वास्तविक ज्ञान होने से ही व्यक्ति एवं समाज को विरासत में मिले संसाधन एवं क्षमताएँ वर्तमान स्थिति की कारण बनीं। अपने गुणों की परंपराओं को जानने से ही राष्ट्र के भाग्योदय का पथ तथा दृढ़तापूर्वक उस पथ पर चलकर ध्येय प्राप्त करने का संकल्प, विजिगीषा वृत्ति तथा आत्मविश्वास एवं संबल प्राप्त होता है।
‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में देवस्तुति, नम्र निवेदन, भौगोलिक स्थिति, पुण्य स्थलों का स्मरण, प्राचीन वाङ्मय, धार्मिक पंथ एवं दर्शन, उन्नत विज्ञान, प्राचीन परंपराएँ, भुवनकोश एवं वैदिक-कालीन, रामायणकालीन, महाभारतकालीन विश्व रचना एवं संस्कृति, भारतवर्ष के दिग्विजयी राजाओं एवं राज्यों का विस्तार, संघर्षकालीन इतिहास, ध्येय समर्पित पूर्वजों का स्मरण, वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य एवं राजनीतिक राजव्यवस्था, साथ ही अविस्मरणीय उपलब्धियाँ एवं पुनः संकल्प आदि का इस ‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में समीचीन रूप से विवेचन उपलब्ध है।
भारत की प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली परंपराओं एवं वैज्ञानिक स्वप्रमाण तथ्यों का यह सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक ग्रंथ है। वस्तुतः भारत राष्ट्र को समझना है तो ‘भारत दर्शन’ का अध्ययन करना ही होगा।SKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat First
Bharat first’ is in many sense a trendsetting book. As a pioneering text, it deals with the transparent vision of one of the chief architects of the nation Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar with authentic evidences. The wholistic panorama of the then Bharat in logically embroidered chapterisation with Persnickety precision breaks the conventional barriers raised against the real personality of Dr. Ambedkar. The book is among the very few books that explores versatile character of Dr. Babasaheb Ambedkar with proper evidences and arguments. For future researchers, these well examined articles would play the role of foundational stones in the search of real personality of Constitutional architect of ‘BHARAT, that is India’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Ka Dalit-Vimarsh
दलित हिंदू ही हैं। ठीक वैसे ही जैसे भारत के पिछड़ा, आदि यानी सभी मध्यम जातियाँ हिंदू हैं और ठीक वैसे ही जैसे भारत की सभी सवर्ण जातियाँ हिंदू ही हैं। भारत के हिंदू समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। वे किसी भी आधार पर हिंदू से अलग, पृथक् कुछ भी नहीं हैं, फिर वह आधार चाहे भारत के जीवन-दर्शन का हो, भारत की अपनी विचारधारा का हो या भारत के इतिहास का हो, भारत के समाज का हो, भारत की संपूर्ण संस्कृति का हो। इस समग्र विचार-प्रस्तुति का अध्ययन होना ही चाहिए। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आह्वान का सम्मान करते हुए सारा भारत, जिसमें हमारे जैसे लिखने-पढ़ने वाले लोग भी यकीनन शामिल हैं, अब उस वर्ग को ‘दलित’ कहता है, जिसे वैदिक काल से ‘शूद्र’ कहा जाता रहा है। प्राचीन काल से शूद्र तिरस्कार के, उपेक्षा के या अवमानना के शिकार कभी नहीं रहे। हमारे द्वारा दिया जा रहा यह निष्कर्ष हमारी इसी पुस्तक में प्रस्तुत किए गए शोध और तज्जन्य विचारधारा पर आधारित है। इस विचारधारा को हमने अपनी ही पुस्तकों ‘भारतगाथा’ और ‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’ में विस्तार से तर्क और प्रमाणों के साथ देश के सामने रख दिया है। दलितों का पूर्व नामधेय शूद्र था। जाहिर है कि इसका अर्थ खराब कर दिया गया। पर सभी शूद्र उसी वर्ण-व्यवस्था का, ‘चातुर्वर्ण्य’ का हिस्सा थे, जिस वर्ण-व्यवस्था का हिस्सा वे तमाम ऋषि, कवि, साहित्यकार, मंत्रकार, उपनिषद्कार, पुराणकार और लेखक थे, जिनमें स्त्री और पुरुष, सभी शामिल रहे, जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र, सभी वर्णों के विचारवान् लोगों ने की; रामायण, महाभारत, पुराण जैसे कथा ग्रंथ लिखे; ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषद् साहित्य तथा समस्त निगम साहित्य की रचना की। ब्राह्मणों ने भी की और शूद्रों ने भी की। स्त्रियों ने की और पुरुषों ने भी की। सभी ने की।
दलितों के सम्मान और गरिमा की पुनर्स्थापना करने का पवित्र ध्येय लिये अत्यंत पठनीय समाजोपयोगी कृति।
भारत के हिंदू समाज में आए इन विविध परिवर्तनों और परिवर्तन ला सकनेवाले अभियानों-आंदोलनों के परिणामस्वरूप देश में जो नया वातावरण बना है, जो पुनर्जाग्रत समाज उभरकर सामने आया है, जो नया हिंदू समाज बना है, उस पृष्ठभूमि में, इस सर्वांगीण परिप्रेक्ष्य में हिंदू उठान और इसलिए पूरे भारत में आए दलित उठान, उसका मर्म और परिणाम समझ में आना कठिन नहीं। भारत चूँकि हिंदू राष्ट्र है, वह न तो इसलामी देश है और न ही क्रिश्चियन देश है, और भारत कभी इसलामी राष्ट्र या क्रिश्चियन राष्ट्र बन भी नहीं सकता, इसलिए भारत में दलित विमर्श, दलित समाज का स्वरूप और दलितों के उठान में इस अपने हिंदू समाज की, भारत के हिंदू राष्ट्र होने के सत्य की अवहेलना कर ही नहीं सकते। भारत का हिंदू आगे बढ़ेगा तो भारत का दलित भी आगे बढ़ेगा और भारत का दलित आगे बढ़ेगा, तो भारत का हिंदू भी आगे बढ़ेगा। उसे वैसा लक्ष्य पाने में भारत का हिंदू राष्ट्र होना ही अंततोगत्वा अपनी एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharat Ka Samvidhan
संविधान का राष्ट्रीय लोक-विमर्श आज भी लगभग पूरी तरह अंग्रेजी भाषा का मुखापेक्षी है। इस विमर्श में आम आदमी की छवि एवं उनके सरोकार तो नजर आते हैं, किंतु आम आदमी की भाषा सुनाई नहीं देती। इस ग्रंथ में हिंदी में विवेकसंगत एवं संतुलित संविधान-विमर्श के साथ ही आम आदमी की समझ में आनेवाली भाषा प्रयोग की गई है। संविधान-रचना की पृष्ठभूमि और व्याख्या की दृष्टि से यह ग्रंथ हिंदी भाषा में संविधान-साहित्य को एक अमूल्य और बेजोड़ उपहार है।
प्रस्तुत ग्रंथ में संविधान के विविध पक्षों पर सरल एवं सुबोध भाषा में प्रकाश डाला गया है। इसमें संविधान के उलझे हुए प्रश्नों के विवेचन के साथ-साथ संविधान के विषयों का अनुच्छेद-आधारित उल्लेख भी है। संविधान की रचना की पृष्ठभूमि देते हुए बताया गया है कि कई ‘अर्धवैधानिक’ नियम भी संविधान एवं शासन प्रबंध की व्यावहारिकता में महत्त्वपूर्ण होते हैं। उन सबको लेकर एक सांगोपांग एवं सर्वतोमुखी संवैधानिक विवेचन इस ग्रंथ में समाविष्ट है, जिसमें इतिहास है, राजनीति है, समाजशास्त्र है।
इस ग्रंथ की विशेषता है कि यह सरल, सुबोध एवं सुव्यवस्थित होने के साथ-साथ अध्ययनशील स्पष्टता, प्रामाणिकता एवं गुणवत्ता से भी संपन्न है। —डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवीSKU: n/a -
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
BHARAT KE ATEET KI KHOJ
भारत के अतीत की खोज
भारतीय धर्म ग्रंथ यह स्पष्ट संदेश देते हैं कि आधुनिक इतिहासकार जिन्हें भारतीय आर्य कहते हैं वे प्रथमत: हिमालय के उस पार के पर्वतीय अंचल में रहते थे। सीमित संसाधन और बढ़ते जन-घनत्व के कारण यहाँ के लोग हिमालय के इस पार आने और बसने लगे। ये लोग मुख्य रूप से दो शाखाओं में बँटकर दो भिन्न कालों में आये। एक शाखा कश्मीर में (हिमालय के आर-पार) बसी और दूसरी शाखा सरस्वती एवं सिन्धु के मैदानी भागों में जगह-जगह आबाद हुई। इन्हीं लोगों ने तथाकथित सिन्धु घाटी सभ्यता को जन्म दिया।
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार 3200-3100 ई.पू. में कश्मीर मंडल में एक महाप्रलय आया और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए। उनमें से एक समूह सरस्वती के पार कुरुक्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किये। समय के साथ इनका राज्य पूरे भारत में फैल गया। इन्हीं लोगों ने सर्वप्रथम अपने को आर्य घोषित किया और इसी वंश के एक प्रतापी राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। इस प्रकार आर्य और भारत दोनो समानार्थी शब्द हैं।
अतएव शब्द आर्य भारत की शाब्दिक सम्पत्ति है, इसे भारतीयों ने जन्म दिया, कभी प्रजाति के अर्थ में प्रयोग नहीं किया, इसे केवल श्रेष्ठता के अर्थ में प्रयोग किया जाता रहा है और इतिहास को इसी अर्थ में इसे संरक्षित करना चाहिए। इसलिए किसी अन्य देश का इसपर कोई दावा नहीं बनता है और न ही किसी इतिहासकार द्वारा किसी भी अन्य देश में आर्यों के मूल स्थान को ढूँढ़ने का आधार प्रदान करता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Bharat Ke Pavitra Teerthsthal
तीर्थ का अभिप्राय है पुण्य स्थान, अर्थात् जो अपने में पुनीत हो, अपने यहाँ आनेवालों में भी पवित्रता का संचार कर सके। तीर्थों के साथ धार्मिक पर्वों का विशेष संबंध है और उन पर्वों पर की जानेवाली तीर्थयात्रा का विशेष महत्त्व होता है। यह माना जाता है कि उन पर्वों पर तीर्थस्थल और तीर्थ-स्नान से विशेष पुण्य प्राप्त होता है, इसीलिए कुंभ, अर्धकुंभ, गंगा दशहरा तथा मकर संक्रांति आदि पर्वों को विशेष महत्त्व प्राप्त है। पुण्य संचय की कामना से इन दिनों लाखों लोग तीर्थयात्रा करते हैं और इसे अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं।
पुण्य का संचय और पाप का निवारण ही तीर्थ का मुख्य उद्देश्य है, इसलिए मानव समाज में तीर्थों की कल्पना का विस्तार विशेष रूप से हुआ है। श्रीमद्भागवत में भक्तों को ही तीर्थ बताकर युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं कि भगवान् के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थ के समान होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के आस्था के केंद्रों—पवित्र तीर्थस्थलों—का रोचक वर्णन है। ये न केवल आपकी आस्था और विश्वास में श्रीवृद्धि करेंगे, बल्कि आपको मानव जीवन के मर्म का सार भी बताएँगे। पढ़ते हुए आपको साक्षात् उस तीर्थ का दर्शन हो, यह इस पुस्तक की विशेषता है। यदि आपका मन निर्मल है, और हमें विश्वास है कि वह है, तो आप घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य-लाभ प्राप्त करेंगे।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat ki Yaadgaar Ghatnayen
एक सभ्यता के नजरिए से भले ही डेढ़ सौ वर्षों की अवधि छोटी लग सकती है, लेकिन जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो दंग रह जाते हैं कि इन डेढ़ सौ वर्षों में हमारे देश को कितने नाटकीय परिवर्तन से होकर गुजरना पड़ा है! इस पुस्तक में इतिहास के ऐसे ही उत्थान-पतन, विजय और त्रासदी को समेटने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में डेढ़ सौ वर्षों के यादगार लम्हों को प्रस्तुत किया गया है। पाठकों का परिचय ऐसे किरदारों से होगा, जिन्होंने हमारे देश का निर्माण किया। विश्वकप क्रिकेट की विजय से लेकर आर्थिक उदारीकरण तक, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन तक तमाम मील के पत्थरों को इस पुस्तक में समेटा गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Mein Paryatan (HB)
हमारे देश में जितनी विविधता है, उतनी विश्व के किसी भी अन्य देश में नहीं है। हिमाच्छादित पहाड़ियाँ, हिमखंड, गरम जल के फव्वारे, गुफाएँ, सम्मोहित करनेवाली झीलें, दूर तक पसरा रेगिस्तान, समुद्र तट, खान-पान, रहन-सहन, त्योहारों के आकर्षण आदि के बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है। यही वह देश है जहाँ सभी रुचियों के पर्यटकों के लिए वैविध्यपूर्ण छटा के पर्यटन स्थल हैं। यही नहीं, पर्यटन के लिहाज से भारत को एकमात्र ऐसा देश भी कहा जा सकता है जिसमें पर्यटक दूसरे देशों के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई या इससे भी कम खर्च पर घूमने-फिरने का आनंद उठा सकते हैं।
तेजी से फैल रहे एशियाई बाजारों को देखते हुए भारत के लिए पर्यटन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाने का यही सही समय है। इस दायित्व की पूर्ति के लिए आवश्यक है पर्यटन शिक्षा। पर्यटन शिक्षा की भी उपादेयता यही है कि इसके जरिए राष्ट्रें में बेहतर पर्यटन वातावरण निर्मित किया जा सके। ऐसा यदि होता है तो पर्यटन के जरिए आतंकवाद, हिंसा, आंदोलन, जातिवाद जैसी समस्याओं से स्वत: ही निजात पाई जा सकती है। पर्यटन परस्पर सौहार्द और जीवन स्तर को उत्कर्ष पर ले जाने का बेहतरीन माध्यम बन सकता है
पर्यटन के सैद्धांतिक पक्ष को व्यावहारिक अनुभवों के साथ प्रस्तुत किया गया है। विश्वास है विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमें, पर्यटन संगठनों, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई यह पुस्तक पर्यटन प्राध्यापकों, पर्यटन उद्योग में नियोजित व्यक्तियों, पर्यटकों तथा विद्यार्थियों के लिए समान रूप से लाभकारी सिद्ध होगी।SKU: n/a