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Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Buddha Aur Unaki Shiksha (Prashnottari) [PB]
Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियांBuddha Aur Unaki Shiksha (Prashnottari) [PB]
भगवान बुद्ध की शिक्षा अत्यन्त सरल है। यह प्रकृति के शाश्वत नियम पर आधारित सार्वकालिक, सार्वजनिक, सार्वभौमिक मानव मात्र के उत्थान व कल्याण के लिए एक मार्ग है। इसे धर्मविशेष कहकर संकुचित करना अनुचित है। जो भी ‘आर्य अष्टांगिक’ मार्ग पर चलेगा, अपना उत्थान कर लेगा। यह शिक्षा नैतिकता और अध्यात्म से ओतप्रोत है। इसमें न कोई कर्मकाण्ड है, न कोई आडम्बर। सहज, सीधा मार्ग है। जो इस पर चलेगा, उसे प्रतिफल तत्काल मिलता है, यही इसकी विशेषता है। चाहे कोई बुद्धिजीवी हो या कोई अनपढ़ गँवार हो, सबके लिए यह सुगम मार्ग है। कोई चल कर तो देखे। इसीलिए लोग अब इस दिशा की ओर मुड़ने लगे हैं। जीवन छोटा है, समय का नितान्त अभाव है, सामने पुस्तकों के जंगल पड़े हैं। बुद्ध के विचार कैसे जाने जायँ? हेनरी यस.आल्काट की यह पुस्तक ‘गागर में सागर’ की उक्ति को चरितार्थ करती है। इस छोटी-सी पुस्तक में चमत्कार ही चमत्कार हैं जिसमें बुद्ध भगवान् द्वारा बतलाये गये उच्च और आदर्श विचारों को प्रारम्भ में समझने तथा अनुभव करने के लिए मुख्य रूप से बौद्ध इतिहास, नियम व दर्शन का संक्षिप्त, पर पूर्ण मौलिक ज्ञान कराने का प्रमुख उद्देश्य ध्यान में रखा गया, जिससे उसे विस्तार से समझने में आसानी हो सके। वर्तमान संस्करण में बहुत से नये प्रश्न और उत्तर जोड़े गये हैं और तथ्यों को 5 वर्गों में बाँट दिया गया है -यथा : (1) बुद्ध का जीवन, (2) उनके नियम, (3) संघ, विहार के नियम, (4) बुद्धधर्म का संक्षिप्त इतिहास, इसकी परिषद् व प्रसार (5) विज्ञान से बुद्धधर्म का समाधान। इससे, इस छोटी-सी पुस्तक का महत्व काफी बढ़ जाता है और सर्वसाधारण व बौद्ध-शिक्षालयों में उपयोग के लिए यह और भी सार्थक बन जाती है। समय के तीव्र प्रवाह के साथ विचारों में भी उतनी ही गति से परिवर्तन होना स्वाभाविक है। गतिशील जीवन-शैली व सामूहिक सोच ने हमें सकल विश्व को एक इकाई के रूप में पहचान करने को विवश कर दिया है। विश्व के विभिन्न धर्म जहाँ एक-दूसरे से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए छिद्रान्वेषण में लग जाया करते हैं, वहीं अब किसी सार्वभौमिक , सार्वलौकिक सार्वजनीन व सर्वदेशीय धर्म की तलाश होने लगी। बुभुक्षाभरी जिज्ञासा ने थियोसाफिकल सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष (स्व.) हेनरी यस. आल्काट का ध्यान ‘भगवान बुद्ध’ के विचारों की ओर आकर्षित किया। उन्होंने बुद्ध-धर्म व उनके विचारों में वह सब कुछ पाया, जिसकी आवश्यकता आज के विश्व की थी। धर्म केवल जानने के लिए नहीं, प्रत्युत धारण करने के लिए होता है। यह जीवन जीने की वास्तविक कला सिखाता है। अर्थ, काम, मोक्ष का प्रदाता है। इसीलिए 1881 में उन्होंने अंग्रेजी में यह पुस्तक लिखी थी। यह पुस्तक प्रश्नोत्तरी के रूप में अपनी विशेषताओं के कारण थोड़े ही समय में इतनी लोकप्रिय हो गयी कि यह अगणित संस्करणों के साथ यूरोप तथा विश्व की अनेक भाषाओं में प्रकाशित होने लगी। कुछ देशों ने तो इसे विद्यालयों की पाठ्य-पुस्तक के रूप में भी स्वीकृत कर दिया। पर हिन्दी में अब तक इसका अनुवाद न होना वस्तुत: एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू था। अत: सबके कल्याण हेतु हिन्द-भाषी लोगों के लिए इसका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। धर्म की इतनी संक्षिप्त पर पूर्ण, सरल, सटीक, स्पष्ट तथा उपयोगी व्याख्या कदाचित् ही कहीं मिले।
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