वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedant-Darshan
महर्षि वेदव्यास-प्रणीत ब्रह्मसूत्र भारतीय दर्शन का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ वेद के चरम सिद्धान्त परब्रह्म का निदर्शन कराता है। अतः इसे वेदान्त-दशर्न भी कहते हैं। वेद के उत्तरभाग उपासना और ज्ञान दोनों की मीमांसा करने के कारण इसका एक नाम उत्तरमीमांसा भी है। पदच्छेद और अन्वय सहित विस्तृत हिन्दी-व्याख्या।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedas Sanhita Set of 4
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedas Sanhita Set of 4
वेद चार हैं, ऋग्वेद ज्ञानकाण्ड है, यजुर्वेद कर्मकाण्ड, सामवेद उपासनाकाण्ड तथा अथर्ववेद विज्ञानकाण्ड है। ऋग्वेद मस्तिष्क का वेद है, यजुर्वेद हाथों का वेद है, सामवेद हृदय का वेद है और अथर्ववेद उदर=पेट का वेद है।
वेद में भी परमात्मा के आदेश, उपदेश और सन्देश हैं। महर्षि दयानन्द के शब्दों में ‘वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।‘ स्वयं वेद पढ़ो, उनपर आचरण करो।
हमने चारों वेदों को शुद्धतम छापने का संकल्प किया था। अपनी ओर से हमने पूर्ण प्रयत्न किया है। अब तक जितने भी संस्करण छपे हैं और जहाँ से भी छपे हैं, यह उनमें सर्वोत्कृष्ट हैं।
इस संस्करण की कुछ विशेषताएँ निम्न हैं-इन वेदों के ईक्ष्यवाचन प्रूफ रीडिंग में विषेष ध्यान रक्खा गया है। इतने शुद्ध, नयनाभिराम और सस्ते वेद अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होंगे। इसकी टाइप अन्य संस्करणों की अपेक्षा मोटी रक्खी गई है। कम्प्यूटर की कम्पोजिंग, उत्तम कागज, बढ़िया छपाई, टिकाऊ पक्की जिल्द, इसकी अन्य विशेषताएँ हैं। पाठगण ! इन्हे आप स्वयं क्रय कीजिए और अन्यों को प्रेरित कीजिए।
गुरुकुलों में अभ्यास के लिए, वेद पाठ के लिए, वेद परायण यज्ञों के लिए तथा वेद-मन्त्रों को कण्ठस्त करने के लिए इन चारों वेदों (मूल मात्र) के यह संस्करण अत्यन्त उपर्युक्त हैं।
सामवेद में स्वर-चिह्न मन्त्रों पर जो 1, 2, 3, आदि संख्या डली हुई हैं, ये संख्याएँ उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के चिह्न हैं। ऋग्वेद आदि अन्य वेदों में अनुदात्त का चिह्न पड़ी रेखा से और स्वरित का चिह्न खड़ी रेखा से दिखाया जाता है।
अनेक विशेषताओं से युक्त होने पर भी इसका मूल्य प्रचार-प्रसार की दृष्टि से रक्खा गया है। हम वेद का स्वाध्याय करें, वेद के अर्थों को जानें, वेद को जीवन में उतारकर अपने जीवन को सुजीवन बनाएँ।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Sanskriti ka Sandesh
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Sanskriti ka Sandesh
जिस बिन्दु पर जीवन-यात्रा के अनेक मार्ग फूटते हैं, वहां से मैं किधर जाउं! कौनसा रास्ता सही है, ये प्रष्न प्रत्येक युवक और युवती के हदय में किसी न किसी समय उठते हैं।
वैदिक संस्कृति, भोगवाद तथा त्यागवाद पर समन्वयात्मक दृष्टि प्रस्तुत करते हुए सही पथ प्रदर्षित करती है, जिसे विद्वान लेखक ने सर्व-साधारण तक पहुंचाने के लिए यह अनुपन ग्रन्थ लिखा है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Vangmay ka Itihas Set of 3
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Vangmay ka Itihas Set of 3
वैदिक वाड्मय का इतिहास 3 खण्ड में प्रकाषित किया गया है।
इसके प्रथम खण्ड में मुख्यतः वैदिक शाखाओं पर विचार किया गया है। विद्वान लेखक ने भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार भी प्रस्तुत किया है। पं. भगवद्दत्त जी की धारणाऐं और उपपत्तियां विद्वत् संसार में हड़कम्प मचा देने वाली थीं।
इसके द्वितीय खण्ड में लेखक ने ब्राहाण और आरण्यक साहित्य का विचार किया। उपलब्ध और अनुपलब्ध ब्राहाणों के विवरण के पष्चात् इन ग्रन्थों पर लिखे गये भाष्यों और भाष्यकारों की पूरी जानकारी दी गई है।
इस ग्रन्थ के तीसरे खण्ड में अनेक ऐसे भाष्यकारों की चर्चा हुई है जिनके अस्तित्व की जानकारी भी लोगों को नहीं थी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedon Ki Kathayen- Harish Sharma
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedon Ki Kathayen- Harish Sharma
कहते हैं धर्म वेदों में प्रतिपादित है। वेद साक्षात् परम नारायण है। वेद में जो अश्रद्धा रखते हैं, उनसे भगवान् बहुत दूर हैं। वेदों का अर्थ है—भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वास्तव में जीवन को सुंदर व साधक बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। मैक्स म्यूलर का तो यहाँ तक कहना था कि वेद मानव जाति के पुस्तकालय में प्राचीनतम ग्रंथ हैं।
वेद संख्या में चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद। वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘जानना’। ये हमारे ऋषि-तपस्वियों की निष्कपट, निश्छल भावना की अभिव्यक्ति हैं। इनमें जीवन को सद्मार्ग पर प्रशस्त करने का आह्वान है। इतना ही नहीं, वेदों में आत्मा-परमात्मा, देवी-देवता, प्रकृति, गृहस्थ-जीवन, सृष्टि, लोक-परलोक के साथ-साथ नाचने-गाने आदि की बातें भी निहित हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है—मानव-कल्याण।
एक ओर जहाँ वेदों में ईश-भक्ति और अध्यात्म की महिमा गाई गई है, वहीं दूसरी ओर कर्म को ही कल्याण का मार्ग कहा गया है।
वेद हमारे अलौकिक ज्ञान की अनुपम धरोहर हैं। अत: इनके प्रति जन-सामान्य की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, इसलिए वेदों के गूढ़ ज्ञान को हमने कथारूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इन कथा-कहानियों के माध्यम से सुधी पाठक न केवल इन्हें पढ़-समझ सकते हैं, बल्कि पारंपरिक वैदिक ज्ञान को आत्मसात् कर लोक-परलोक भी सुधार सकते हैं।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedon me Ishwar ka Swaroop
विद्वान् मनीषी व सुचिंतक श्री वेद प्रकाश जी द्वारा अपने ग्रंथ का नाम ‘वेदों में ईश्वर का स्वरूप‘ इसलिए रखा है की ब्रह्म को वेद की दृष्टि से जानने की जिनकी इच्छा है वह इसे पढ़कर तृप्त हों और ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को जान सकें।
इस क्रम में उन्होंने एक सौ ऐसे मंत्रों का चयन किया है, जिनमें ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव का स्पष्ट प्रतिपादन है।
आपने अपने इस संग्रह में महर्षि दयानंद के वेद भाष्य को ही आधार बनाकर, उन्हीं की चिंतन परंपरा को आगे बढ़ाया है। जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का यदि कोई उपाय है तो वह है उस आनंदघन पारब्रह्म को जानना, उसकी आज्ञा का पालन करना, उसको प्राप्त करना।
उस पारब्रह्म को जानने के लिए आईए हम अपनी ब्रह्म-विषयक जिज्ञासा को इस पुस्तक द्वारा शांत करें। -आचार्य नंदिता शास्त्री चतुर्वेदी, वाराणसीSKU: n/a -
English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vishnu Purana English
Vishnu Purana is one of the oldest Purana in the Hindu scriptures that is split into six parts and contains 7,000 versus. The Purana reveals some interesting details and is of high importance in Hindu religion.
One of the foremost Purana in the Hindu scriptures is the Vishnu Purana, which is a constituent of the eighteen great Puranas. The text of this Purana today contains 7,000 verses though it is thought to have 23,000 verses in its original form.
The Purana is in the form of a dialogue between Maharishi Parasara and the disciple Maitreya. It is however thought some of the parts have been written by Maharishi Parasara. Veda Vyasa is considered as the original source of the Puranas. Besides, these texts have survived through the age old tradition of oral reading. It is to be noted that most of the characters in this Purana cover events that are described in the Mahabharata and few of the verses describe certain events occurring after the Mahabharata froze. Some of the issues mentioned are about Lord Buddha and the reign of Chandra Gupta Maurya.
The Purana is split into six parts called amsas and have 126 chapters called adhyayas in total. The first part (amsa) details the stories of creation of the universe, the pralaya and the samundra manthanan (churning of the ocean). The concept of the four yugas in introduced in this part along with the stories of Hiranyakashipu and Prahlada. The Earth, with its seven continents and seven oceans, is elaborately described in the second section of the Purana along with the description of the nether world, the Patala, where the snake gods dwell and the hell, Naraka.
On the other side, you can see the description of the heavenly bodies, the sun and the planetary system. The third part of the Purana discusses the cycle of creation and destruction through the stories of Manvantara and the account of the Manus (ancestor of the human race). This section also discusses the four phases of life (ashramas), the four Vedas with the basis of their division and how they have been divided by Veda Vyasa.
The genealogy of the famous kings from the Suryavanshi and Chandravanshi dynasties forms part of the fourth division of the Vishnu Purana. Short summaries on the legends like the Pururavas, Urvasi, Lord Rama, birth of Pandavas and Lord Krishna can be found in this section of the Purana. Mahabharata is also touched upon briefly. The section concludes with the prophecy referring to the future kings of Magadha, Nandas, Kanvanayas and others, and the time when there would be no religion or morality which would end when Vishnu will incarnate as ‘Kalki’.
The fifth part of the Vishnu Purana focuses completely with the life and times of Lord Krishna, beginning from his birth till he leaves for heavenly abode and the destruction of the Yadava clan. It is to be noted that the same stories are repeated in the same order in Harivamsa Parv of Mahabharata. This section of the Purana is the biggest with 38 chapters. Part VI of the Purana is the shortest with only eight chapters. This part deals once again with the four yugas and the effects of kaliyuga culminating in pralaya of the cosmos, the travails of being born, being a child, being an adult, old age and death, hell and heaven and finally being liberated from existence and re-birth (Moksha)
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vishuddh Manusmriti – विशुद्ध मनुस्मृति
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVishuddh Manusmriti – विशुद्ध मनुस्मृति
स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है। मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेक स्मृतियाँ प्रकाश में आयीं किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे अपना प्रभाव न जमा सकीं, जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत् विद्यमान है। मनुस्मृति में एक ओर मानव-समाज के लिए श्रेष्ठतम सांसारिक कर्तव्यों का विधान है, तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण भी है, इस प्रकार मनुस्मृति भौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों-उपदेशों का मिला-जुला अनूठा शास्त्र है।
इस प्रकार अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति मानवमात्र के लिए उपयोगी एवं पठनीय है। किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज ऐसे उत्तम और प्रसिद्ध ग्रन्थ का पठन-पाठन लुप्त-प्रायः होने लगा है।
इसके प्रति लोगों में अश्रद्धा की भावना घर करती जा रही है। इसका कारण है-‘मनुस्मृति में प्रक्षेपों की भरमार होना‘। प्रक्षेपों के कारण मनुस्मृति का उज्ज्वल रूप गन्दा एवं विकृत हो गया है। परस्परविरुद्ध, प्रसंगविरोध एवं पक्षपातपूर्ण बातों से मनुस्मृति का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा विलुप्त हो गये हैं। एक महान तत्त्वद्रष्टा ऋषि के अनुपम शास्त्र को स्वार्थी प्रक्षेपकर्ताओं ने विविध प्रक्षेपों से दूषित करके न केवल इस शास्त्र के साथ अपितु महर्षि मनु के साथ भी अन्याय किया है।
प्रस्तुत संस्कारण का भाष्य पर्याप्त अनुसंधान के बाद किया गया है तथा प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को निकाल दिया गया है।
इसकी विषेषताएँ हैं-प्रक्षिप्त श्लोकों के अनुसंधान के मानदण्डों का निर्धारण और उनपर समीक्षा, विभिन्न शास्त्रों के प्रमाणों से पुष्ट अनुषीलन समीक्षा, मनु के वचनों से मनु के भावों की व्याख्या, मनु की मान्यता के अनुकूल और प्रसंगसम्मत अर्थ, भूमिका-भाग में मनुस्मृति का नया मूल्याकंन, महर्षि दयानन्द के अर्थ और भावार्थ, प्रथम बार हिन्दी-पदार्थ टीका प्रस्तुत, सभी अनुक्रमणिकाओं एवं सूचियों से युक्त, मनुस्मृति के प्रकरणों का उल्लेख।सम्पूर्ण श्लोकों के इस संस्करण में प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को उनके आरम्भ में ‘एस्टरिस्क‘(तारांकन) सितारे के चिन्ह के साथ प्रकाषित किया है। बिना चिन्ह वाले श्लोक मौलिक हैं।
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Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
VISHUDDHA MANUSMRITI (HB)
Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVISHUDDHA MANUSMRITI (HB)
मनुस्मृति पर अनुसंधान करने के पश्चात्, डॉ. सुरेन्द्र कुमार जी ने मनुस्मृति के दो संस्करण प्रकाशित किये हैं, जिनकें नाम क्रमशः – विशुद्ध मनुस्मृति और मनुस्मृति है। दोनों संस्करणों में प्रक्षिप्त श्लोकों पर विचार प्रस्तुत किया है और प्रयास किया गया है कि पाठकों के समक्ष मनुस्मृति के वास्तविक सिद्धान्त दृष्टिगोचर हो। अपितु दोनों संस्करण बहुत ही महत्त्वपूर्ण और पठनीय है, किन्तु इनमें जो मौलिक भेद है, उनमें से कुछ का उल्लेख निम्न पंक्तियों में करते हैं – – विशुद्ध मनुस्मृति में सभी प्रक्षिप्त श्लोकों को पृथक कर केवल मनु के मौलिक श्लोकों को ही प्रकाशित किया गया है। – मनुस्मृति में सभी उपलब्ध श्लोकों को रखा गया है किन्तु जो श्लोक प्रक्षिप्त है उनकें प्रछिप्त होने की समीक्षा भी की गई है। – विशुद्ध मनुस्मृति में श्लोकों की व्यवस्था, इस प्रकार की गई है कि पाठकों को मनु के उपदेशों को अविरलरूप से पढ़ने का आनन्द प्राप्त हो। – मनुस्मृति में श्लोकों को इस प्रकार रखा गया है कि पाठक प्रक्षिप्त और मौलिक श्लोकों में भेद कर तुलनात्मक अध्ययन करने में सक्षम होवें।
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Gita Press, Hindi Books, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vivek Chudamani 0133
Gita Press, Hindi Books, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVivek Chudamani 0133
भगवान् शंकराचार्य के द्वारा विरचित ग्रन्थों में विवेक-चूड़ामणि का विशेष स्थान है। इसमें ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व, ज्ञानोपलब्धि का उपाय, प्रश्न-निरूपण, आत्मज्ञान का महत्त्व, पञ्चप्राण, आत्म-निरूपण, मुक्ति कैसे होगी? आत्मज्ञान का फल आदि तत्त्वज्ञान के विभिन्न विषयों का अत्यन्त सुन्दर निरूपण किया गया है।
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Yajurveda
यजुर्वेद का मुख्य विषय मानवोचित कर्म को बताना है तथापि यह नहीं कहा जा सकता कि इस वेद में कर्म के अत्यरिक्त कोई अन्य विषय व्याख्यात नहीं हुआ है। यजुर्वेद में इनसे पृथक् ईश्वर, जीव, प्रकृति, सृष्टि-रचना, जीवन-मृत्यु आदि दार्शनिक विषयों पर गहन चिंतन प्राप्त होता है। दार्शनिक तत्व के साथ-साथ समाज शास्त्र जिसमें मनुष्यों के सर्वहितकारी नियम, वर्ण और आश्रम व्यवस्था, नारी सम्मान आदि का मूल, बीज रुप में उल्लेखित है। राष्ट्र भावना का और राष्ट्र में मनुष्यों के योगदान पर यजुर्वेद प्रकाश डालता है और राष्ट्र को सबल बनाने का उपाय बताता है। यजुर्वेद पर्यावरण के महत्व और उसकी सुरक्षा पर भी उपदेश करता है। यजुर्वेद का मन्त्र “द्यौः शान्तिः.-यजु.36-17” अनेक स्थानों पर दृष्टिगोचर होता है जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड सभी के लिए शान्तिदायक हो ऐसी प्रार्थना की गयी है। यहां शान्तिदायक ब्रह्माण्ड तभी होगा जब इनका संतुलन बना रहे और ये प्रदूषणादि दोषों से पृथक रहें। इस प्रकार यजुर्वेद पर्यावरण के महत्व पर उपदेश करता है। इस वेद में अनेक विषयों का उपदेश है, जैसे औषधिशास्त्र का “सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु”- ऋ.6.22 आदि। गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त पर, जैसे – आकृष्णेन रजसा वर्तमानो..-ऋ.33.43 आदि।
कृषि विद्या पर भी कृषन्तु भूमिं शुनं – यजु.12.69 आदि अनेक मन्त्र हैं। पशुपालन और गौरक्षा का “यजमानस्य पशुन् पाहि”-यजु.1.1 आदि मन्त्रों द्वारा उपदेश हैं। गणित विद्या पर “एका च मे तिस्त्रश्च मे तिस्त्रश्च.”- यजु.18.24 आदि मन्त्रों द्वारा उपदेश है। यजुर्वेद के 18वें अध्याय में अनेक खनिजों के नामों को बताया गया है।
प्रस्तुत भाष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती रचित है। इस भाष्य में ऊपर वर्णित सभी विषयों के अतिरिक्त अन्य विषयों का भी समावेश है। यह भाष्य नैरुक्त प्रक्रिया से सम्पन्न विज्ञान और दर्शनों की कसौटियों पर खरा उतरता है। जहां अन्य भाष्य केवलमात्र कर्मकांड युक्त है, वहीं ये भाष्य लौकिक, अलौकिक आदि ज्ञान-विज्ञान से युक्त है। इस भाष्य में व्यवहारिक ज्ञान की प्रचुरता है। भाष्यकार ने भाष्य में अर्थ प्रमाण की दृष्टि से निरूक्त, अष्टाध्यायी, तैत्तरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण का प्रमाण दिया है, जिससे भाष्य की शैली की प्रमाणिकता सिद्ध होती है। सभी मन्त्रों का उत्तम और जीवन में उपयोगी विषयों के अनुरूप यह भाष्य है। इस भाष्य के अध्ययन करने पर आप स्वयं कह उठेंगे कि “सर्वज्ञानमयो हि सः।
भाष्यकार : महर्षि दयानन्द सरस्वती
सम्पूर्ण यजुर्वेद भाष्य प्रथम बार कंप्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम डिजिटल छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, सुंदर टाइप, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित एक खण्ड में प्रस्तुत |
यजुर्वेद का विषय केवल कर्मकाण्ड ही नहीं है, बल्कि इसमें वर्णित है अध्यात्म एवं दर्शन ,सृष्टि-रचना तथा मोक्ष, नैतिक तथा आचारमूलक शिक्षाएं , मनोविज्ञान बुद्धिवाद, समाज दर्शन , राष्ट्र भावना, पर्यावरण का संरक्षण। काव्य तत्व के अतिरिक्त यजुर्वेद में विद्यमान है, विश्व मानव की एकता जैसे उपयोगी विषय ।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
चारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिचारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
सभी वेदों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। वेद संतप्त मानवों को अपूर्व शांति प्रदान करते हैं। आधि-व्याधि और वासनाओं से विक्षुब्ध मानव-हृदय वेद-मंत्रों का उच्चारण करते हुए आनंदसागर में निमग्न हो जाता है।
वेद क्या हैं-वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है और संपूर्ण विश्व के द्वारा वरणीय है। वेद ज्ञान-विज्ञान के अक्षय कोष हैं। वेद संपूर्ण वैदिक वाङ्मय का प्राण हैं। वेदों में तेज, ओज, और वर्चस्व की राशि है। वेदों में दिग्दिगंत को पावन करने वाले दिव्य उपदेश हैं, मानवता को झकझोरनेवाले अनुपम आदेश और संदेश हैं। वेद में आधिभौतिक उन्नति की चरम सीमा है, आधिदैविक अभ्युदय की पराकाष्ठा है और आध्यात्मिक आरोहण का सवोत्तम रूप है।
हम वेद क्यों पढ़ें-वेद उत्तम मनुष्य बनने और उत्तम संतान पैदा करने का आदेश देते हैं। ऋग्वेद में कहा है-‘मनुर्भव जनया दैव्यं जनम‘। वेद के स्वाध्याय से मनुष्य के मन और मस्तिष्क में यह बात भली-भाँति बैठ जाती है कि यह संसार परमात्मा द्वारा रचा गया है, जो अद्वितीय है। उससे बड़ा तो क्या उसके बराबर भी कोई नहीं है। वह परमात्मा न्यायकारी है। मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है-यह विचार मनुष्य को पुण्यात्मा, सदाचारी, दयालु, परोपकारी, न्यायकारी, पर-दुःखकातर, निर्भय और मानवता के गुणों से सुभूषित बना देता है।
वेद हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। हमारा अपने प्रति क्या कर्तव्य है, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, परमात्मा के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है-इस सबका ज्ञान हमें वेद से ही प्राप्त होगा। वर्णाश्रम धर्मों का प्रतिपादन भी वेद में सुंदररूप में प्रस्तुत किया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन सभी वर्गों के तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास-इन सभी आश्रमवासियों के कर्तव्यकर्मों का सदुपदेश वेद में विद्यमान है, जिन पर आचरण करने से मनुष्य का जीवन उदात्त भावनाओं से पूर्ण, नियमित, संयमित और संतुलित बन जाता है। मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने के लिए वेद का अध्ययन अनिवार्य है। मनुष्य और कुछ पढ़े या न पढ़े, वेद तो उसे पढ़ना ही चाहिए।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना आर्यों का परमधर्म बतलाया है। हम उनके इसी आदेश का पालन करते हुए वेदों का प्रकाशन किया गया है ताकि वेदों का प्रचार और प्रसार होता रहे।
यह संस्करण कम्प्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, मजबूत जिल्द, सुन्दर स्पष्ट टाईप, कुल 10400 पृष्ठों में, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित आठ खण्डों में उपलब्ध है। ऋग्वेद-महर्षि दयानन्द तथा अन्य वैदिक विद्वानों द्वारा, यजुर्वेद-महर्षि दयानन्द, सामवेद-पं. रामनाथ वेदालंकार तथा अथर्ववेद-पं. क्षेमकरणदास त्रिवेदी का भाष्य है।SKU: n/a