Religious & Spiritual Literature
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Dharam ka Yatharth Swaroop
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासDharam ka Yatharth Swaroop
भारतवर्ष मंे आज भी धार्मिक एवं जातिगत मतभेद विकट रूप में विद्यमान हैं। उपर्युक्त परिस्थितियों को सुनकर और देखकर लेखक के हृदय में एक विचार प्रस्फुटित हुआ कि क्यों न एक ऐसी पुस्तक का निर्माण किया जाए, जिसमें विभिन्न पन्थों के मूल सिद्धान्तों का परिचय और उसका उद्देश्य समाहित हो।
अतः चार महीने का अवकाश लेकर लेखक ने विभिन्न सम्प्रदायों की लगभग दो सौ पचास पुस्तकों का अध्ययन किया और उन विषयों के अधिकारिक विद्वानों से परस्पर विचार-विमर्श भी किया। तदुपरान्त यह समझ में आया कि सभी पन्थ अपने मूलरूप में परस्पर अत्यधिक साम्यता रखते हैं। सभी के मार्ग भले ही क्यों न पृथक्-पृथक् हों परन्तु सभी का लक्ष्य एक ही है।
ऋग्वेद के अनुसार ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति‘। अर्थात् सत्य एक ही है, जिसे विद्वान् विभिन्न प्रकार से व्याख्यायित करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न सम्प्रदायों के मूल सिद्धान्तों का उसी रूप में वर्णन किया गया है जिस रूप में वे सिद्धान्त उस पन्थ में विद्यमान हैं। निष्कर्ष में सभी पन्थों के सिद्धान्तों में विद्यमान पारस्परिक साम्यता का विवेचन किया गया है। आशा है कि जेखक का यह छोटा-सा प्रयास समाज में धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वासों तथा वैमनस्य को दूर करेगा तथा भिन्न-भिन्न पन्थों के अनुयायियों के मध्य सौहार्द, परस्पर प्रेम को उत्पन्न करने में अपना सहयोग प्रदान करेगा और महिलाओं का यथोचित सम्मान एवं गरिमा प्रदान करने के लिए इस विकसित समाज को प्रेरित करेगा।SKU: n/a -
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Dharma : Mahasamar – 4
नरेन्द्र कोहली
‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ का यह चौथा खण्ड है – ‘धर्म’! पाण्डवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला है, जहाँ न कृषि है, न व्यापार। सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है। अपराधियों और महाशक्तियों की वाहिनियाँ अपने षड्यन्त्रों में लगी हुई हैं…और उनका कवच है खाण्डव-वन, जिसकी रक्षा स्वयं इन्द्र कर रहा है। युधिष्ठिर के सम्मुख धर्म-संकट है। वह नृशंस नहीं होना चाहता; किन्तु आनृशंसता से प्रजा की रक्षा नहीं हो सकती। पाण्डवों के पास इतने साधन भी नहीं हैं कि वे इन्द्र-रक्षित खाण्डव-वन को नष्ट कर, उसमें छिपे अपराधियों को दण्डित कर सकें। उधर अर्जुन के सम्मुख अपना धर्म-संकट है। उसे राज-धर्म का पालन करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ती है और बारह वर्षों का ब्रह्मचर्य पूर्ण वनवास स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु इन्हीं बारह वर्षों में अर्जुन ने उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किये। न उसने ब्रह्मचर्य का पालन किया, न वह पूर्णतः वनवासी ही रहा। क्या उसने अपने धर्म का निर्वाह किया? धर्म को कृष्ण से अधिक और कौन जानता है? …अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर, खाण्डव-वन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? इस हिंसा की अनुमति युधिष्ठिर ने कैसे दे दी? और फिर राजसूय यज्ञ! क्या आवश्यकता थी, उस राजसूय यज्ञ की? जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीम के हाथों कैसे मारा गया; और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा? अन्त में हस्तिनापुर में होने वाली द्यूत-सभा। धर्मराज होकर युधिष्ठिर ने द्यूत क्यों खेला? अपने भाइयों और पत्नी को द्यूत में हारकर किस धर्म का निर्वाह कर रहा था धर्मराज? द्रौपदी की रक्षा किसने की? कृष्ण उस सभा में किस रूप में उपस्थित थे? – ऐसे ही अनेक प्रश्नों के मध्य से होकर गुजरती है ‘धर्म’ की कथा। यह उपन्यास न केवल इन समस्याओं की गुत्थियाँ सुलझाता है बल्कि उस युग का, उस युग के चरित्रों का तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी करता है। हम आश्वस्त हैं कि इस उपन्यास को पढ़कर ‘महाभारत’ ही नहीं, धर्म के प्रति भी आपका दृष्टिकोण कुछ अधिक विशद होकर रहेगा।…और फिर भी एक यह समकालीन मौलिक उपन्यास है, जिसमें आपके समसामयिक समाज की धड़कनें पूरी तरह से विद्यमान हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Dharma Aur Vigyan (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, अध्यात्म की अन्य पुस्तकेंDharma Aur Vigyan (PB)
भारतीय संस्कार, रीति-रिवाज, परंपराएँ, प्रथाएँ एवं धार्मिक कृत्य शास्त्रीय हैं या ऐसा कहें कि अपना धर्म और शास्त्र एक ही सिक्के के दो बाजू हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपने ऋषियों और प्राचीन काल के निष्णात गुरुओं ने अपनी अंतरात्मा की अनंत गहराई में उतरकर चेतना का जाग्रत् आनंद लिया था। अपने अंतर्ज्ञान के अनुभव और आध्यात्मिक परंपराओं को संस्कार एवं संस्कृति के रूप में उन्होंने जनमानस में वितरित किया। परंपराएँ तो चलती जा रही हैं, किंतु इनके मूल ज्ञान और मूल आधार से हम अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। भारतीयों को गुलामी झेलनी पड़ी। विशेष करके मुगलों के शासन काल में काफी धार्मिक अत्याचार सहने पड़े। हिंदुओं को धर्म-परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाने लगा। इसलिए उस समय के धार्मिक गुरुओं ने अपनी संस्कृति बचाने के लिए हर कर्म को धार्मिक रूप दे दिया, जिससे धर्म के नाम पर ही सही, जो संस्कार ऋषि-मुनियों ने दिए थे, उन्हें हमारे पूर्वज अपनाकर, अपनी धरोहर मानकर, सँजोकर रखने में सफल रहे। समय के साथ इन प्रथाओं ने धार्मिक विधि का रूप ले लिया और बिना कुछ सोचे-समझे ही धर्म की आज्ञा मानकर ये रीतियाँ चलती रहीं। किंतु आज की युवा पीढ़ी हर कर्म, विधि या संस्कार को मानने से पूर्व इसके पीछे क्या कारण है, यह जानने को उत्सुक है।
हिंदू धर्म की विभिन्न परंपराओं और प्रथाओं को वैज्ञानिकता के आधार पर प्रमाणित करती पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Dharma Ki Sadhana
“स्वामी विवेकानंद ने भारत में उस समय अवतार लिया, जब यहाँ हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मँडरा रहे थे। पंडित-पुरोहितों ने हिंदू धर्म को घोर आडंबरवादी और अंधविश्वासपूर्ण बना दिया था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म को एक अलग पहचान दिलाई।
स्वामीजी का विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं तथा ऋषियों का जन्म हुआ; यह संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘ धर्म की साधना’ में स्वामीजी ने भारत के प्राचीन गौरव का उल्लेख करते हुए देश के युवकों का आह्वान किया है कि यही उचित समय है, जब वे हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना में जुट जाएँ और भारतीय पुनर्जागरण में सहभागी बनें। सही अर्थों में धर्म की साधना करना, उस पर चलना सिखाने वाली प्रेरणादायी पुस्तक!”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Dharmashastra aur Jatiyon ka Sach
भारत की आर्ष-परंपरा के बारे में औपनिवेशिक काल से लेकर अब तक एक विशेष विचार का सृजन एवं पोषण किया गया है, जिसके अनुसार भारतीय समाज हजारों सालों से विभिन्न जातियों में बँटा हुआ था और ये जातियाँ एक-दूसरे को घृणा तथा हेयदृष्टि से देखती थीं। इसका कारण यह बताया गया कि ‘मनुस्मृति’ जैसी रचनाओं के कारण ही भारत में जाति प्रथा का सृजन हुआ और ऐसी रचनाओं के प्रभाव एवं दबाव के कारण ही आज तक भारत में जातियाँ प्रचलन में हैं।
अंग्रेजों को जातियों को कलुषित करने से कई लाभ थे। वे भारतीय समाज को विखंडित कर सकते थे। दूसरे, भारतीय सृजन-परंपरा के मूल स्वरूप को ही भ्रष्ट कर सकते थे। यह वैचारिक स्थिति स्वतंत्रता तक आते-आते इतनी प्रबल हो गई कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत के ऐतिहासिक लेखन एवं समाजशास्त्रीय लेखन ने औपनिवेशिक चर्चा को ही आदर्श मान उसका अंधानुकरण किया और ‘मूल रचनाओं एवं कृतियों’ तथा वास्तविक अवस्था का सांगोपांग अध्ययन करना आवश्यक ही नहीं समझा।
प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन भारतीय मामलों के विद्वानों के एकपक्षीय और मनपसंद विषय, मनु के सिद्धांतों पर वैकल्पिक विचार प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास किया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि कैसे अंग्रेज विद्वानों ने धर्म को कानून तथा धर्मशास्त्र के ग्रंथों को हिंदुओं का कानून बना दिया; और कैसे यह विचार-परंपरा अभी भी बलवान है।SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
Dhyan Darshan
‘ध्या्न दर्शन’ एक छोटी सी पुस्तक है जो साधना-पथ का मूल आधार बन सकती है। ओशो कहते हैं: जीवन के दो आयाम हैं—पहले जानना, फिर करना, जिसे हम विज्ञान का नाम देते हैं। दूसरा आयाम है—पहले करना, फिर जानना, जिसे हम धर्म का नाम देते हैं। पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: डाइनैमिक ध्यान-प्रयोग की उपयोगिता ध्यान: आध्यात्मिक विज्ञान ध्यान से स्वास्थ्य का क्या संबंध है? कैथार्सिस, रेचन और आपका स्वास्थ्य साउंड थेरेपी, ध्वनि-चिकित्सा और आपका स्वास्थ्य संकल्प का मूल्य
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Osho Media International, ओशो साहित्य
DHYAN KE KAMAL
प्रस्तुत पुस्तक के प्रवचनों के माध्यम से हम ध्यान की जिस भावदशा में प्रविष्ट हो सकते हैं उसकी पूर्व तैयारी के लिए ओशो हमें ध्यान के कुछ ऐसे प्रयोगों में उतारते हैं जिन्हें करने के पश्चात हम विश्रांति की झील बन जाते हैं और प्रतीक्षा करते हैं चेतना के कमल के खिलने की। कहीं पर ओशो ने समर्पण के लिए भी संकल्प के प्रयोग की चर्चा की है तो कहीं कीर्तन का उपयोग रेचन के लिए किया है। शरीर से तादात्म्य तोड़ने के छोटे-छोटे प्रयोग हैं जिनमें सबसे अधिक बल उन्होंने श्वास पर दिया है। वे कहते हैं कि श्वास पर जोर देने पर शरीर में छिपा हुआ विद्युत-स्रोत सजग हो उठता है। और शरीर मिट्टी-मांस-मज्जा का नहीं वरन विद्युत किरणों से निर्मित है और यह बायो-एनर्जी, जीव-ऊर्जा ईंधन का काम करती है और ध्यान की कुंजी हाथ लगती है—ध्यानं निर्विषयं मन:।
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Osho Media International, ओशो साहित्य
DHYANYOGA: PRATHAM AUR ANTIM MUKTI
Dhyanyog: Pratham Aur Antim Mukti – ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति
इक्कीसवीं सदी का जीवन जितनी तेज गति से भाग रहा है उतनी ही तेज गति से व्यक्ति के लिए तनाव बढ़ता जा रहा है। शांत बैठकर ध्यान में उतर जाना अब उतना सरल नहीं है जितना कि बुद्ध के समय में था।
ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति ओशो द्वारा सृजित अनेक ध्यान विधियों का विस्तृत व प्रायोगिक विवरण है, विशेषतः ओशो सक्रिय ध्यान विधियों व ओशो मेडिटेटिव थेरेपीज़ का, जो कि आधुनिक जीवन के तनावों से सीधे निपटती हैं व हमें ताजा व ऊर्जावान कर जाती हैं। ओशो बहुत सी प्राचीन विधियों की भी चर्चा करते हैं: विपस्सना व झाझेन, केंद्रीकरण की विधियां, प्रकाश व अंधकार पर ध्यान, हृदय के विकास की विधियां…।
साथ ही ओशो ध्यान संबंधी प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं व हमें बताते हैं कि ध्यान क्या है, कैसे ध्यान करना शुरू करें। और कैसे अपनी अंतर-यात्रा को निर्बाध रूप से जारी रख सकें।
‘‘ध्यान की शुरुआत तो है, पर उसका कोई अंत नहीं है। वह अंनत तक अनवरत चलता चला जाता है। मन तो छोटी सी चीज है, ध्यान तुम्हें पूरे अस्तित्व का हिस्सा बना देता है। यह तुम्हें स्वतंत्रता देता है कि तुम पूर्ण के साथ एक हो जाओ।’’
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Patanjali-Divya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Divine Transformation (English)
This book can be considered as the building block for creation of ideal nation and peaceful world. Vichar Kranti is an effort of Patanjali Yogpeeth to make this world free from diseases, sorrow, poverty and fear by transforming the thoughts of the people and showing them ways to achieve clear mind through yoga. This is a humble attempt of Swami Ramdev ji and Acharya Balkrishna for generating positive perceptions of people towards life, nation and the world. The book is a blessing for the mankind as it helps people to transform their lives from the darkness of sorrow to the sunlight of wisdom. Vichar Kranti has answers to all sorts of questions which arise in the mind of an individual for attaining peace and happiness.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Divya Bhagwadgita Atma Se Parmatma Tak (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताDivya Bhagwadgita Atma Se Parmatma Tak (PB)
श्रीमद्भगवद्गीता के अतुलनीय महत्त्व के कारण विश्व की 75 विदेशी भाषाओं सहित लगभग 82 भाषाओं में इसका रूपांतरण हो चुका है तथा सहस्रों टीकाएँ इस पर लिखी जा चुकी हैं। तो फिर इस एक और टीका की आवश्यकता क्यों पड़ी? जिन-जिन विद्वानों के मन में त्रिगुणमयी प्रकृति के गुणों से जन्य जैसा भाव उनके अंतःकरण व बुद्धि में रहा, उसके अनुरूप ही उन्होंने ‘गीता’ को अपने शब्दों में सँजोकर अपनी-अपनी कृतियों में उड़ेल दिया है। इसीलिए ‘गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण का एक निश्चित मत होते हुए भी भिन्न-भिन्न विद्वानों की कृतियों में नाना प्रकार से मतों की विभिन्नता दिखाई पड़ती है, जो कि स्वाभाविक ही है। भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों में जो सारगर्भित निश्चित मत अंतर्निहित है, उसी को स्वरूप देने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
परमात्मा के दिव्य अमृत वचनों के रहस्य तो परमगुह्य, अकथनीय, विशद एवं अलौकिक हैं। प्रस्तुत कृति आधुनिक युग के मानव को शोक, संत्रास, अतृप्त तृष्णाओं के उद्वेगों से मुक्ति दिलाकर शाश्वत सच्चिदानंद परमात्मा के सायुज्य में लाने का एक विनम्र प्रयास है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Do Seengon Wala Rishi
“क्या आपने उस राजा के बारे में सुना है, जिसने कबूतर की रक्षा के लिए अपना मांस बलिदान कर दिया था?या उस सिंहासन के बारे में, जो जिस किसी को भी दिया जाता है, उसमें न्याय प्रदान करने की अद्वितीय क्षमता आ जाती है?और उस मूर्तिकार के बारे में क्या खयाल है, जो बिना हाथों के भी शानदार मूर्तियाँ बनाने में कामयाब रहा?देवताओं के बीच झगड़ों और विवादों से राजाओं की भलाई के लिए महान् ऋषियों और सामान्य मनुष्यों के गुण।सुप्रसिद्ध लेखिका सुधा मूर्ति ने भारतीय पौराणिक कथाओं की अल्पज्ञात-ज्ञात कहानियों को नई भावभूमि के साथ प्रस्तुत किया है। मनभावन चित्रों के साथ और सादगी भरे अंदाज में सुनाई गई, ‘दो सींगों वाला साधु’ निश्चित रूप से प्रिय कहानीकार के प्रशंसकों को प्रसन्न करेगा।”
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Draupadi Ki Aatmakatha
द्रौपदी का चरित्र अनोखा है। पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्रा् नहीं हुई। महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्रा् के साथ नहीं हुआ। द्रौपदी संपूर्ण नारी थी। वह कार्यकुशल थी और लोकव्यवहार के साथ घर-गृहस्थी में भी पारंगत। लेकिन द्रौपदी जैसी असाधारण नारी के बीच भी एक साधारण नारी छिपी थी, जिसमें प्रेम, ईर्ष्या, डाह जैसी समस्त नारी-सुलभ दुर्बलताएँ मौजूद थीं। द्रौपदी का अनंत संताप उसकी ताकत थी। संघर्षों में वह हमेशा अकेली रही। पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अकेली। प्रतापी राजा द्रुपद की बेटी, धृष्टद्युम्न की बहन, फिर भी अकेली। पर द्रौपदी के तर्क, बुद्धिमत्ता, ज्ञान और पांडित्य के आगे महाभारत के सभी पात्र लाचार नजर आते हैं। जब भी वह सवाल करती है, पूरी सभा निरुत्तर होती है।
महाभारत आज भी उतना ही प्रासंगिक और उपयोगी है, वही समस्याएँ और चुनौतियाँ हमारे सामने हैं। राजसत्ता के भीतर होनेवाला षड्यंत्र हों या राजसत्ता का बेकाबू मद या फिर बिक चुकी शिक्षा व्यवस्था हो या फिर छल-कपट से मारे जाते अभिमन्यु। आज भी द्रौपदियों का अपमान हो रहा है। कर्ण नदी-नाले में रोज बह रहे हैं।
‘कृष्ण की आत्मकथा’ जैसी महती कृति के यशस्वी लेखक श्री मनु शर्मा ने महाभारत के पात्रों और घटनाओं की आज के संदर्भ में नई व्याख्या कर उपेक्षित द्रौपदी की पीड़ा और अडिगता को जीवंतता प्रदान की है। नारी की अस्मिता को सम्मान देनेवाली अत्यंत पठनीय कृति।SKU: n/a