महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gita Prashnottari
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताGita Prashnottari
“गीता’ वह ईश्वरीय वाणी है, जिसमें धर्म संवाद के माध्यम से—मैं कौन हूँ? यह देह क्या है? इस देह के साथ क्या मेरा आदि और अंत है? देह त्याग के पश्चात् क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह अस्तित्व कहाँ और किस रूप में होगा? मेरे संसार में आने का क्या कारण है? मेरे देह त्यागने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा, इन सभी के प्रश्नों के उत्तर भगवान् श्रीकृष्ण ने बड़े सहज ढंग से दिए हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वभावगत कर्म में लगे रहने को ‘श्रेष्ठ योग’ कहा है। उनके अनुसार, कर्म अवश्यंभावी है। बिना कर्म के मुक्ति पाना तो दूर, मनुष्य बनना भी कठिन है। स्वाभाविक कर्म करते हुए बुद्धि का अनासक्त होना सरल है।
इस प्रकार, ‘गीता’ ज्ञान का भंडार है। इसमें सात सौ श्लोक और अठारह अध्याय हैं। इसके उपदेश को सरलता और सहजता से समझाने के लिए मैंने इसे अध्याय-दर- अध्याय प्रश्नोत्तरी फॉरमेट में प्रस्तुत किया है, ताकि बड़ों के साथ-साथ स्कूल- कॉलेज के विद्यार्थी भी क्विज प्रतियोगिता के माध्यम से इसके संदेश को खेल-खेल में ही ग्रहण कर लें।”
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Gita Press, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
GITA SADHAK SANJEEVANI (Code 6)
गीता-साधक-संजीवनी—ब्रह्म लीन श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजने गीतोक्त जीवनकी प्रयोगशालासे दीर्घकालीन अनुसन्धानद्वारा अनन्त रत्नोंका प्रकाश इस टीकामें उतार कर लोककल्याणार्थ प्रस्तुत किया है, जिससे आत्मकल्याणकामी साधक साधनाके चरमोत्कर्षको आसानीसे प्राप्त कर आत्मलाभ कर सकें। इस टीकामें स्वामीजीकी व्याख्या विद्वत्ता-प्रदर्शनकी न होकर सहज करुणासे साधकोंके लिये कल्याणकारी है। विविध आकार-प्रकार, भाषा, आकर्षक साज-सज्जामें उपलब्ध यह टीका सद्गुरुकी तरह सच्ची मार्गदॢशका है।
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Gita Press, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gita-Darpan (0008)
सरल-से-सरल शैली में गीतोक्त जीवन-कला के संवाहक श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी द्वारा प्रणीत इस ग्रंथरत्न के स्वाध्याय से अनेक भावुक भक्त गीता रूपी दर्पण के द्वारा आत्मपरिष्कार कर चुके हैं। इसमें गीता को सुबोध रूप में प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत किया गया है तथा गीता को विभिन्न दृष्टियों से विचार की कसौटी पर कसते हुए प्रधान-प्रधान विषयों को विशद व्याख्या से समलंकृत किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें गीता-व्याकरण एवं छन्द-सम्बंधी ज्ञान से भी परिचित कराया गया है।
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताGitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
There are many commentaries on the Gita which generally lack in the Vedic thought. This work, not only presents the Vedic but also the thought of the entire Mahabharata in its interpretation of the Gita by Anirvan, a great scholar of Vedas and Vedic literature.
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Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gopal
भगवान् श्रीकृष्ण की बाल-लीलाएँ परम मंगलमयी तथा अमृतस्वरूप हैं। इस पुस्तक में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा बलराम की यशोदा के समक्ष शिकायत से लेकर वत्सासुर-उद्धार तक की नौ बाललीलाओं का सरल भाषा में सुन्दर वर्णन किया गया है। पुस्तक में प्रत्येक बाललीला का बहुरंगा आकर्षक चित्र भी दिया गया है।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Hidimba
उपन्यासकार यह बताना चाहता है कि महाभारत की कथा भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती है। यह मनुष्य के उस अनवरत युध्द की कथा है, जो उसे अपने बाहरी और भीतरी शत्रुओं के साथ निरन्तर करना पड़ता है । इस संसार में चारों ओर लोभ, मोह, सत्ता और स्वार्थ की शक्तियाँ संघर्षरत हैं । लोभ, त्रास और स्वार्थ के विरुध्द मनुष्य के इस सात्विक युध्द को महाभारत में अत्यन्त विस्तार से प्रस्तुत किया गया है । ‘हिडिम्बा’ पाठकों के समक्ष प्रश्न उत्पन्न करती है कि हिडिम्बा कैसी पात्र है ? क्यों एक भाई के हत्यारे के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है ? क्यों कुंती अपने बड़े बेटे के विवाह से पहले भीम के विवाह पर राजी हो जाती है । क्यों हिडिम्बा हस्तिनापुर न जाकर जंगल में रहना ही स्वीकार करती है ? इस उपन्यास में ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिससे पाठक रूबरू होंगे।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
JEENE KI RAAH SHRIMADBHAGVADGITA
आप यह पुस्तक उठाकर पढ़ रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप कहीं-न-कहीं आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक शांति तलाश रहे हैं। बेशक हजारों युगों से मानव का पथ-प्रदर्शन करनेवाली श्रीमद्भगवद्गीता आपके लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी कभी यह महाबली अर्जुन या उन्नत महापुरुषों की प्रतिकूल अवस्थाओं में रही है।
‘जीने की राह’ में मौजूद श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित ‘सफलता के व्यावहारिक नियम’ आपके जीवन को सुखद और मंगलमय बनाने के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। इस पुस्तक में वे सनातन रहस्य छिपे हैं, जो आपके विशिष्ट स्वप्नों को साकार करने में आपका मार्गदर्शन और आपकी सहायता करेंगे। यह इस धारणा को पुष्ट करती है कि आर्थिक या आध्यात्मिक सफलता केवल सुनिश्चित योजनाओं, उच्च महत्त्वाकांक्षा और कठिन परिश्रम से ही प्राप्त हो सकती है।
प्रख्यात टेलीविजनकर्मी सुहैब इल्यासी ने इस पुस्तक में स्वयं अपने जीवन में श्रीमद्भगवद्गीता की व्यावहारिक उपयोगिता का प्रेरणात्मक उल्लेख किया है। उनका मानना है कि जब हम श्रीमद्भगवद्गीता द्वारा बताए तरीके से जीवन गुजारना शरू करते हैं तो फिर प्रकृति से तादात्म्य सहज ही स्थापित हो उठता है और जीवन में सुख-सौभाग्य, सुस्वास्थ्य, सुमधुर संबंध और भौतिक सुख अनायास ही प्राप्त होने लगते हैं।
यह पुस्तक जीवन में आध्यात्मिक उत्थान और स्वयं की पहचान करानेवाली तथा जीवन को जबरदस्त उत्प्रेरणा से भर देनेवाली एक व्याहारिक कृति है।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Kalyan Path
कर्तव्य-कर्म का समुचित रीति से पालन करते हुए अधिकार और फलासक्ति का त्याग कर भगवत्प्राप्ति का उद्देश्य वाला व्यक्ति स्वतः मुक्त है। स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक कल्याण-पथ-पथिकों हेतु योग्य मार्गदर्शक है।
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Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Kanhaiya
श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के आधार पर लिखी गयी चित्रकथा के इस भाग में भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर माखन-लीला तक की नौ लीलाओं का सरल भाषा में सजीव चित्रण किया गया है। कथा की भाषा-शैली इतनी सरस और रोचक है कि बाल-बृद्ध सभी लोग श्रीकृष्ण-लीला के मधुर प्रसंगों का सहज ही आनन्द उठा सकते हैं। प्रत्येक कथा के दायें पृष्ठ पर सुन्दर आर्टपेपर पर लीला से सम्बन्धित आकर्षक चित्र भी दिये गये हैं।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Karma : Mahasamar – 3
नरेन्द्र कोहली
महासमर-3 (कर्म) की कथा युधिष्ठिर के युवराज अभिषेक के पश्चात की कथा है। इस युवराज अभिषेक के पीछे मथुरा की यादव शक्ति है। अपनी राजनीति में उलझ जाने के कारण जब यादव पाण्डवों की सहायता नहीं कर पाते, दूसरी ओर गुरु द्रोण का वरदहस्त भी पाण्डवों के सिर से हट जाता है तो दुर्योधन पाण्डवों को वारणावत में भस्म करने का षड्यन्त्र रच डालता है। वारणावत से जीवित बच कर पाण्डव पांचालों की राजधानी काम्पिल्य में पहुँचते हैं। पाण्डवों का वारणावत से काम्पिल्य पहुँचाने की योजना इस कथा खण्ड का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। उन्हें हिडिम्ब वन से किसने निकाला? उनके काम्पिल्य तक सुरक्षित पहुँचने की व्यवस्था किसने की? और उन्हें काम्पिल्य ही क्यों लाया गया? इस संदर्भ में विदुर, कृष्ण तथा महर्षि व्यास के नाम लिये जाते हैं। लेखक का विचार है कि इस संदर्भ में तीनों की ही अपनी-अपनी भूमिका है। हमारे पाठक के मन में सदा से एक प्रश्न काँटे के समान चुभता रहा है कि एक स्त्री के पाँच पुरुषों के साथ विवाह कर दिये जाने के पीछे क्या तर्क था? उसका औचित्य क्या था? लेखक ने अपनी विशिष्ट, तथ्यपरक, तर्कसंगत शैली में इन प्रश्नों के समुचित उत्तर इस खण्ड में दिये हैं। पाण्डवों का हस्तिनापुर लौटना एक प्रकार का गृहआगमन भी है और मृत्यु के मुख में लौटना भी। किन्तु इस समय वे असहाय व भयभीत पाण्डव नहीं हैं और यादवों तथा पांचालों की सैन्य शक्ति उनके साथ है। यदि आज वे अपना अधिकार नहीं माँगेंगे तो कब माँगेंगे। पाण्डवों का सत्कार होता, किन्तु धृतराष्ट्र की योजना उन महावीर पाण्डवों को पुनः हस्तिनापुर से निष्कासित कर, खाण्डवप्रस्थ वन में फेंक देती है। भीष्म, विदुर, कृष्ण तथा व्यास के होते हुए भी पाण्डवों को हस्तिनापुर क्यों छोड़ना पड़ा?… ऐसे ही और सहज प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है यह उपन्यास।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Krishna Janmabhoomi (PB)
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताKrishna Janmabhoomi (PB)
“The sole intention of the outcome of the book is do provide clearer view with regard to the position of the Krishna Janmasthan and Shahi Idgah Mosque. I have written this book so that Readers may arrive at a conclusion themselves with regard to status quo of the disputed site whether it is a Temple or a Mosque.
The book encompasses vividly the historical facts with regard to Krishna Janmabhoomi and Shahi Idgah mosque, legal position what is and what should be. It’s not only about the historical facts but then also about the Islamic law, Hindu Dharmshastras, culture & practices and above all a broader picture in the light of the Constitution of India.
Efforts have been made to keep this book as a complete package of historical, philosophical and legal treatise with a flow and language that even the layman could assimilate it.”
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Kunti
नरेन्द्र कोहली
वेद कहते हैं कि अनस्तित्व में से अस्तित्व का जन्म नहीं होता। जो नहीं है, वह हो नहीं सकता। किसी का जन्म नहीं होता। कुछ उत्पन्न नहीं होता। स्रष्टा और सृष्टि दो समानान्तर रेखाएँ हैं, जिनका न कहीं आदि है न अन्त। वे दोनों रेखाएँ समानान्तर चलती हैं। ईश्वर नित्य क्रियाशील विधाता है। जिसकी शक्ति से प्रलयपयोधि में नित्यशः एक के बाद एक ब्रह्माण्ड का सृजन होता रहता है। वे कुछ काल तक गतिमान रहते हैं और उसके पश्चात् विनष्ट कर दिए जाते हैं। सूर्य चन्द्रमसौ धाता यथापूर्वम् अकल्पयत्। इस सूर्य और इस चन्द्रमा को भी पिछले चन्द्रमा के समान निर्मित किया गया।…तो यह जन्म लेने से पहले, इस शरीर को धारण करने से पहले भी तो कुन्ती कुछ रही होगी, कोई रही होगी। कौन थी वह ?…
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat : Ek Darshan
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताMahabharat : Ek Darshan
महाभारत केवल रत्नों की ही खान नहीं है, असंख्य प्रश्नों की भी खान है। इस महाग्रंथ की कई घटनाएँ और कई कथानक सामान्य पाठक को ही नहीं, अध्ययनशील सुधीजनों को भी ‘यह ऐसा क्यों’ जैसे प्रश्न के साथ उलझा देते हैं। ऐसे अनेक प्रश्न/जिज्ञासाएँ चुनकर इस पुस्तक में संकलित की गई हैं और यथासंभव शुद्ध मन-भावना के साथ उनके निदान/ समाधान का प्रयास किया गया है। इस चर्चा का प्रधान केंद्र वर्तमान संदर्भ रहा है, यह इस ग्रंथ की विशेषता है।
वैसे तो महाभारत की अन्य वैश्विक धर्मग्रंथों के साथ तुलना नहीं कर सकते, क्योंकि महाभारत किसी विशेष धर्म का ग्रंथ नहीं है। महाभारत मानव व्यवहार का शाश्वत ग्रंथ है और सच कहा जाए तो विश्व के सभी धर्मों का निचोड़ है। धर्मसंकट का व्यावहारिक हल सुझाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हे अर्जुन, धर्म और सत्य का पालन उत्तम है, किंतु इस तत्त्व के आचरण का यथार्थ स्वरूप जानना अत्यंत कठिन है।’’
सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, जीवन-मृत्यु, पाप-पुण्य, इत्यादि द्वंद्वों को कथानकों और घटनाओं के माध्यम से इस ग्रंथ में निर्दिष्ट किया गया है।
महाभारत के वैशिष्ट्य और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता तथा व्यावहारिकता पर प्रकाश डालती पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat ke kuch Adarsh Patra
This book contains graphic depiction of ten ideal characters of Mahabharat such as Lord Shri Krishna, Yudhishthir the Righteous Person, Maharshi Ved Vyas, to be imitated in life. This book binding is Paperback. Book Publishing year is 2007. Book Publisher is Gita Press – Gorakhpur. 1st Edition Book. Number of Pages in this book is 112.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat Ke Patra
महाभारत के पात्र
बचपन में बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि ‘महाभारत ग्रंथ’ घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में ‘महाभारत’ अर्थात् लड़ाई होती है। ‘महाभारत’ का अर्थ ही ‘लड़ाई’ का ग्रन्थ घोषित कर दिया गया। also तब जिज्ञासा होना स्वाभाविक था कि क्या किसी ग्रंथ को पढ़ने से भी कोई व्यक्ति युद्ध में प्रवृत हो सकता है? तब ऐसे ग्रंथ को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस कसौटी पर देखना चाहिए कि क्या इससे हिंसक प्रवृत्ति होती है। Mahabharat Ke Patra
परन्तु जब सेवानिवृत्ति पश्चात् उक्त ग्रन्थ पढ़ा तो विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जिस ग्रंथ को श्री वेद व्यासजी ने लिखा और जिस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण के मुख से निसृत ‘ श्रीमद्भगवद्गीता’ का उपदेश है उसमें युद्ध करने या हिंसक प्रवृत्ति का तो उल्लेख ही नहीं है। all in all इस ग्रंथ में जो उपदेश है वह मानव मात्र के कल्याण के लिये है। युद्ध करने का उपदेश अपने धर्म के अनुसार जो कर्म निश्चित किया गया है, उसको करने के लिये है। तब फिर प्रश्न होता है कि महाभारत युद्ध” हुआ उसमें केवल दुर्योधन की मात्र राज्य लिप्सा ही एक मात्र कारण था या अन्य कारण भी थे? अगर मात्र राज्य लिप्सा ही कारण होता तो दुर्योधन को इतने अन्य राजाओं का सहयोग नहीं मिलता और इसी तरह पाण्डवों को भी श्री कृष्ण जैसे उस समय के सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ, वीर तथा अन्यों का सहयोग नहीं मिलता।
Mahabharat Ke Patra (Characters of Mahabharata)
अतः यह युद्ध नैतिकता बनाम अनैतिकता, धर्म विरुद्ध अधर्म, सदाचार बनाम अनाचार में प्रवृत शक्तियों के मध्य था। और इसमें पाण्डवों की जय मानव स्वातन्त्रय के सत्य की जय है, धर्म की जय है, मानवता की जय है। महाभारत मात्र वीर गाथा नहीं है, युद्ध गाथा भी नहीं है यह मनुष्यत्व की कठिन यात्रा का काव्य है। और इस युद्ध में जो प्रमुख नायक थे, उनके चारित्रिक गुणों, अवगुणों के कारण यह युद्ध हुआ। और जब कोई घटना घटित होती है तो उसके प्रारम्भ होने की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार होती है। accordingly लेखक ने इसी दृष्टिकोण को रख कर विश्लेषण करने का प्रयास किया है।
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