अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
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English Books, Garuda Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Authentic Concept of SHIVA
-10%English Books, Garuda Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनAuthentic Concept of SHIVA
The book is about lord shiva and common myths about him. This book contains insights about Lord Shiva. Many beliefs are not meant to change, but a noble approach to the whole concept can make reading informative & interesting.
This book introduces, the ninety-six Avatars of Lord Shiva and twenty-nine Avatars of Lord Vishnu. You may come to know about some new information hitherto unknown to many of us. Often Shiva is associated with intoxicants. But is it right to think of this weird thought Parmatma as intoxicants? This book is clarifying many such myths about Shiva.
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bal Chitramay BuddhaLeela 0537
भगवान् बुद्ध का चरित्र परम पवित्र और उदार है। इस पुस्तक में भगवान् बुद्ध की विभिन्न लीलाओं के 48 चित्र दिये गये हैं। प्रत्येक चित्र के नीचे कविता में चित्र में दर्शायी गयी लीला का वर्णन दिया गया है। यह पुस्तक बालक-बालिकाओं को भगवान् बुद्धके त्याग एवं वैराग्यसे सम्पन्न चरित्र का परिचय देने की दृष्टिसे विशेष उपयोगी है।
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Hindi Books, Suggested Books, Upasana Publications , अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bhaarateey Chintan Me Karm Evan Punarjanm
-15%Hindi Books, Suggested Books, Upasana Publications , अध्यात्म की अन्य पुस्तकेंBhaarateey Chintan Me Karm Evan Punarjanm
यह पुस्तक भारतीय चिन्तनधारा का प्रायः सर्वसम्मत सिद्धान्त है। कर्म और पुनर्जन्म भारतीय दर्शन-परम्परा में वस्तुतः परस्पराश्रित माने गये हैं। कर्म नहीं तो पुनर्जन्म नहीं, पुनर्जन्म नहीं तो दृश्य कर्म नहीं। कारण-कार्य सिद्धान्त सृष्टि का सार्वभौम सिद्धान्त है तथा कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त इस कारणता नियम पर ही आधृत होने से सर्वथा तर्कसङ्ग एवं समीचीन है। प्रस्तुत ग्रन्थ इस सर्वमान्य एवं रहस्यात्मक ‘कर्म और पुनर्जन्म सिद्धान्त’ के विविध आयामों पर आधारित विद्वतापूर्ण 46 शोधपत्रों का सङ्कलन है। यह ग्रन्थ संस्कृत एवं भारतीय विद्या के मूर्धन्य विचारकों ने विविध दृष्टिकोणें से कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर विपुल विचार-सामग्री प्रस्तुत की है, जो जिज्ञासू अध्येताओं के लिए अवश्य ही लाभप्रद होगी।
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Hindi Books, Rajkamal Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Bhagawan Parshuram
Hindi Books, Rajkamal Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासBhagawan Parshuram
आर्य-संस्कृति का उषःकाल ही था, जब भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि-पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म हुआ। यह वह समय था जब सरस्वती और हषद्वती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त में यदु और पुरु, भरत और तृत्सु, तर्वसु और अनु, द्रह्यू और जन्हू तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थीं और जहाँ वसिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरुषों के आश्रमों से गुंजरित दिव्य ऋचाएँ आर्यधर्म का संस्कार-संस्थापन कर रही थीं। लेकिन दूसरी ओर सम्पूर्ण आर्यावर्त, नर्मदा से मथुरा तक शासन कर रहे हैहयराज सहस्रार्जुन के लोमहर्षक अत्याचारों से त्रस्त था। ऐसे में युवावस्था में प्रवेश कर रहे परशुराम ने आर्य-संस्कृति को ध्वस्त करने वाले हैहयराज की प्रचंडता को चुनौती दी और अपनी आर्यनिष्ठा, तेजस्विता, संगठन-क्षमता, साहस और अपरिमित शौर्य के बदल पर विजयी हुए। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास एक युगपुरुष की ऐसी शौर्यगाथा है जो किसी भी युग में अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती रहेगी।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bhajan Amrit 0144
भक्तों के लिये भजनों का महत्त्व अमृत-तुल्य है। भगवत्प्रेम में उन्मत्त प्रेमी का मन अनेक प्रकार के भावतरंगों से अनुप्राणित होकर भजन बन जाता है। इन्हीं भावतरंगों की सहज माधुरी को समेटकर 67 मधुर भजनों का यह संग्रह निवेदन, भगवद्-वियोग, लीलागान आदि शीर्षकों में प्रकाशित किया गया है।
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English Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Bhakti And The Bhakti Movement: A New Perspective
English Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Bhakti And The Bhakti Movement: A New Perspective
This book makes a total departure from some well-established notions about bhakti and the Bhakti movement. It questions and rejects the current academic definition of bhakti and the portrayals of the Bhakti movement in the light of that definition. Trying to recapture the generic meaning of the term bhakti, the author postulates that bhakti by itself does not suggest any ideational or doctrinaire position. According to her, a restricted and erroneous definition of bhakti has served as the substratum for all theorisations about the Bhakti movement, when taken as a whole. What is reckoned as the Bhakti movement, she states, is an amalgam of a number of devotional movements of a divergent nature. A monolithic view of these can be taken only if their common denominator bhakti is understood in its generic sense. Not otherwise. In short, the author has called into question the whole conceptual framework and the basic terms of reference used hitherto for the study of bhakti and the Bhakti movement. This is significant since they have had the sanction of more than one hundred years of scholarship, and have not been questioned till now. She has done so on the strength of her being able to trace back the origins of the errors she has underlined. The author has tried to establish the fact that the accepted academic definition of bhakti is a modern construction; and that it was artificially formulated by certain Western Indologists of the nineteenth century with the aid of criteria which had no relevance in the context of Hinduism. The process of its formulation has been examined historiographically in this critique to show how it had gradually taken shape between 1846 and 1909. The reasons for its subsequent incorporation in modern Indian scholarship have also been made clear. Adopting an interdisciplinary approach in this book, Dr. Sharma has grappled with many vital issues related to the Bhakti theme. It is hoped that this erudite work would serve as a landmark in the study of bhakti and the Bhakti movement.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Bharatiya Pariprekshya
‘संकल्प’ संस्था सिविल सेवा के विद्यार्थियों में सामाजिक प्रतिबद्धता और समाज-परिवर्तन का दृष्टिकोण और भाव जाग्रत कर रही है। यह उसकी तीन दशक से ज्यादा की साधना है। इसके सूत्रधार श्री संतोष तनेजा हैं। यह तथ्य प्राय: ज्ञात है, परंतु साथ ही संकल्प संस्था वैचारिक यज्ञ भी कर रही है। इसी कड़ी में वर्ष 2015 से ‘संकल्प व्याख्यानमाला’ प्रारंभ हुई। इसका उद्देश्य सांस्कृतिक बोध के लेखकों, चिंतकों और विचारकों के माध्यम से देश के प्रबुद्ध समाज में विचारशील लोगों तक एक विमर्श (डिस्कोर्स ) और आख्यान (नैरेटिव) को स्थापित करना था।
इन व्याख्यानों का संकलन कर प्रकाशित किया जाए, यह विचार और सुझाव आदरणीय डॉ. कृष्ण गोपालजी का था। व्याख्यानमाला के इन कार्यक्रमों के आयोजन और इन महत्त्वपूर्ण विचारों की प्रस्तुति तथा प्रकाशन के प्रयत्नों को दिशा श्री संतोष तनेजा द्वारा दी गई। इसके लिए पहल एवं सतत प्रयत्न श्री राजेंद्र आर्य ने किया। यह पुस्तक वास्तव में उनके अथक प्रयासों का फल है।अनुक्रम
श्रीराम जन्मभूमि और व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य — डॉ. कृष्ण गोपाल
राष्ट्रीय सुरक्षा : वर्तमान परिप्रेक्ष्य जम्मू-कश्मीर और धारा 370 — अमित शाह
अद्वितीय प्रशासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज — स्व. अनिल माधव दवे
भारतीय संस्कृति के माध्यम से विश्व की चुनौतियों का समाधान — स्व. सुषमा स्वराज
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अल्पसंख्यकों के प्रति दृष्टिकोण — रमेश पतंगे
संस्कृति, अध्यात्म और प्रशासन — आदित्यनाथ योगी
सामाजिक समरसता एवं भारत की संत परंपरा — डॉ. कृष्ण गोपाल
व्यावसायिक शिक्षा का माध्यम बनें भारतीय भाषाएँ — संतोष तनेजा
हमने भारतीय भाषाओं को व्यावसायिक पाठ्यक्रम में लाने की पहल कर दी है — डॉ. अनिल सहस्रबुद्धे
भारतीय भाषाओं के संबंध में चुनौतियां — अनिल जोशी
विदेश नीति : भारत एवं पड़ोसी देश — विष्णु प्रकाश
विकास के इस तथाकथित मॉडल पर प्रश्नचिन्ह हैं — डॉ. मुरली मनोहर जोशी
नई शिक्षा नीति — डॉ. ओमप्रकाश कोहलीSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Bharatiyata Ki Pahchan
“हम भारत की संपूर्ण सत्ता को समझने के लिए उसे तीन कोणों से देखें तो ठीक-ठीक समझ सकते हैं। वे कोण हैं—
(1) ‘मृण्मय’ (अर्थात भौगोलिक-आर्थिक-जैविक दृष्टि से),
(2) ‘शाश्वत’ (ऐतिहासिक अविच्छिन्न विकास की दृष्टि से),
(3) ‘चिन्मय’ (श्रुति अर्थात ‘अचल’ मूल्यों की दृष्टि से, यानी ‘मूल प्रकृति’ या essence की दृष्टि से)।
इन तीन कोणों से भारत का अध्ययन करके संपूर्ण भारतीय ‘सत्ता’ और भारतीय पुरुषार्थ को हम समझ सकते हैं। भारत का मृण्मय रूप हमारे गाँव-नगर, खेत-खलिहान, नदी-पहाड़, हाट-बाजार में उपस्थित है और इस रूप द्वारा भारत ‘काम’ और ‘अर्थ’ की साधना कर रहा है।
भारत का ‘शाश्वत रूप’ काल-प्रवाह अर्थात इतिहास में हजार-हजार वर्षों से, सैंधव सभ्यता के पूर्व से, निषाद-द्रविड़-किरात आर्य—इन चार महान् प्रवाहों के क्रमागत आगमन से निरंतर चलायमान है। यह ‘शाश्वत’ इस अर्थ में है कि यह अविच्छिन्न रहा है। अत: भारत का ‘शाश्वत रूप’ इतिहास की विकास-यात्रा में नित्य देहांतर करते हुए, निरंतर चलते हुए ‘धर्म’ नामक तृतीय पुरुषार्थ की अखंड, अविच्छिन्न उपासना कर रहा है। भारत का ‘चिन्मय रूप’ इस शाश्वत रूप से भी सूक्ष्म है। इस रूप का लक्ष्य है ‘मोक्ष धर्म’, अर्थात ‘शुद्ध आनंद’।”SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhramar Geet : Darshnik Vivechan (HB)
-10%Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhramar Geet : Darshnik Vivechan (HB)
‘श्रीमद्भागवत’ के दशम-स्कन्ध के अन्तर्गत चार गीत उपलब्ध होते हैं; ‘वेणु-गीत’, ‘गोपी-गीत’, ‘युगल-गीत’ और ‘भ्रमर-गीत’। ये गीत अत्यन्त भावपूर्ण हैं। इनके श्रवण, अध्ययन एवं मनन से अन्त:करण की शुद्धि होती है, साथ ही भगवत्-चरणारविन्दों में दृढ़ प्रीति का उदय होता है। दशम-स्कन्ध का 47वाँ अध्याय ‘भ्रमर-गीत’ आख्यात है; इस गीत में गोप-बालिकाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण को उलाहना देने के ब्याज से उनका संकीर्तन किया है।
श्रीमद्भागवत में आनन्द-कन्द, परमानन्द, परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के नाना प्रकार की लीलाओं का वर्णन है। यह लीलाएँ भी दो प्रकार की हैं—सम्प्रयोगात्मक एवं विप्रयोगात्मक। गोवर्धन-लीला, नाग नाथने की लीला, चीर-हरण लीला, दधि-दान लीला आदि सम्प्रयोगात्मक लीलाएँ हैं। इनमें श्रीभगवान् और उनके भक्तों के सम्मिलन की लीलाएँ हैं; विप्रयोगात्मक लीलाओं के अन्तर्गत भक्तों का भगवान् के साथ वियोग हो जाता है; भगवान् से वियुक्त होकर भक्त जिस अतुलनीय संताप का अनुभव करता है, वही विशेष महत्त्वपूर्ण है। जैसे आतप से संतप्त प्राणी ही छाया के सुख का यथार्थ अनुभव कर पाता है वैसे ही विप्रलम्भ से रस की निष्पत्ति होने पर ही संप्रयोग-सुख का गूढ़ स्वाद मिलता है। श्रृंगार-रस रूप अमृत के दो चषक हैं—एक सम्प्रयोगात्मक रस से और दूसरा विप्रयोगात्मक रस से परिपूर्ण है तथापि दोनों परस्पर पूरक हैं।
सम्प्रयोगात्मक सुख की पूर्ण उपलब्धि के लिए पूर्व-राग अनिवार्य है। प्रियतम-मिलन की सम्भावना ही पूर्व-राग है। सम्भावना के आधार पर ही उत्कट उत्कंठा वृद्धिगत होती है; उत्कट उत्कंठा से ही तीव्र प्रयास सम्भव होता है। ‘वेणुगीत’ में पूर्वराग का ही वर्णन है। भौतिक लाभ की तृष्णा से विनिर्मुक्त हो भगवत्-पदाम्बुज-सम्मिलन की आशा-लता को पल्लवित-प्रफुल्लित करना ही पूर्व-राग है।
भगवान के सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य, सौगन्ध्य आदि के गुण-गणों का रसास्वादन ही भगवत्-सम्प्रयोग है। सम्भोग-सुख-प्राप्ति के अनन्तर वियोग हो जाने पर जो अतुलनीय ताप होता हैै वह पूर्व-राग के ताप की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। ‘भ्रमर-गीत’ में विप्रलम्भ-शृंगार का ही वर्णन है।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhramar Geet : Darshnik Vivechan (PB)
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhramar Geet : Darshnik Vivechan (PB)
‘श्रीमद्भागवत’ के दशम-स्कन्ध के अन्तर्गत चार गीत उपलब्ध होते हैं; ‘वेणु-गीत’, ‘गोपी-गीत’, ‘युगल-गीत’ और ‘भ्रमर-गीत’। ये गीत अत्यन्त भावपूर्ण हैं। इनके श्रवण, अध्ययन एवं मनन से अन्त:करण की शुद्धि होती है, साथ ही भगवत्-चरणारविन्दों में दृढ़ प्रीति का उदय होता है। दशम-स्कन्ध का 47वाँ अध्याय ‘भ्रमर-गीत’ आख्यात है; इस गीत में गोप-बालिकाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण को उलाहना देने के ब्याज से उनका संकीर्तन किया है।
श्रीमद्भागवत में आनन्द-कन्द, परमानन्द, परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के नाना प्रकार की लीलाओं का वर्णन है। यह लीलाएँ भी दो प्रकार की हैं—सम्प्रयोगात्मक एवं विप्रयोगात्मक। गोवर्धन-लीला, नाग नाथने की लीला, चीर-हरण लीला, दधि-दान लीला आदि सम्प्रयोगात्मक लीलाएँ हैं। इनमें श्रीभगवान् और उनके भक्तों के सम्मिलन की लीलाएँ हैं; विप्रयोगात्मक लीलाओं के अन्तर्गत भक्तों का भगवान् के साथ वियोग हो जाता है; भगवान् से वियुक्त होकर भक्त जिस अतुलनीय संताप का अनुभव करता है, वही विशेष महत्त्वपूर्ण है। जैसे आतप से संतप्त प्राणी ही छाया के सुख का यथार्थ अनुभव कर पाता है वैसे ही विप्रलम्भ से रस की निष्पत्ति होने पर ही संप्रयोग-सुख का गूढ़ स्वाद मिलता है। श्रृंगार-रस रूप अमृत के दो चषक हैं—एक सम्प्रयोगात्मक रस से और दूसरा विप्रयोगात्मक रस से परिपूर्ण है तथापि दोनों परस्पर पूरक हैं।
सम्प्रयोगात्मक सुख की पूर्ण उपलब्धि के लिए पूर्व-राग अनिवार्य है। प्रियतम-मिलन की सम्भावना ही पूर्व-राग है। सम्भावना के आधार पर ही उत्कट उत्कंठा वृद्धिगत होती है; उत्कट उत्कंठा से ही तीव्र प्रयास सम्भव होता है। ‘वेणुगीत’ में पूर्वराग का ही वर्णन है। भौतिक लाभ की तृष्णा से विनिर्मुक्त हो भगवत्-पदाम्बुज-सम्मिलन की आशा-लता को पल्लवित-प्रफुल्लित करना ही पूर्व-राग है।
भगवान के सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य, सौगन्ध्य आदि के गुण-गणों का रसास्वादन ही भगवत्-सम्प्रयोग है। सम्भोग-सुख-प्राप्ति के अनन्तर वियोग हो जाने पर जो अतुलनीय ताप होता हैै वह पूर्व-राग के ताप की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। ‘भ्रमर-गीत’ में विप्रलम्भ-शृंगार का ही वर्णन है।SKU: n/a -
Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Buddha Aur Unaki Shiksha (Prashnottari) [PB]
Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियांBuddha Aur Unaki Shiksha (Prashnottari) [PB]
भगवान बुद्ध की शिक्षा अत्यन्त सरल है। यह प्रकृति के शाश्वत नियम पर आधारित सार्वकालिक, सार्वजनिक, सार्वभौमिक मानव मात्र के उत्थान व कल्याण के लिए एक मार्ग है। इसे धर्मविशेष कहकर संकुचित करना अनुचित है। जो भी ‘आर्य अष्टांगिक’ मार्ग पर चलेगा, अपना उत्थान कर लेगा। यह शिक्षा नैतिकता और अध्यात्म से ओतप्रोत है। इसमें न कोई कर्मकाण्ड है, न कोई आडम्बर। सहज, सीधा मार्ग है। जो इस पर चलेगा, उसे प्रतिफल तत्काल मिलता है, यही इसकी विशेषता है। चाहे कोई बुद्धिजीवी हो या कोई अनपढ़ गँवार हो, सबके लिए यह सुगम मार्ग है। कोई चल कर तो देखे। इसीलिए लोग अब इस दिशा की ओर मुड़ने लगे हैं। जीवन छोटा है, समय का नितान्त अभाव है, सामने पुस्तकों के जंगल पड़े हैं। बुद्ध के विचार कैसे जाने जायँ? हेनरी यस.आल्काट की यह पुस्तक ‘गागर में सागर’ की उक्ति को चरितार्थ करती है। इस छोटी-सी पुस्तक में चमत्कार ही चमत्कार हैं जिसमें बुद्ध भगवान् द्वारा बतलाये गये उच्च और आदर्श विचारों को प्रारम्भ में समझने तथा अनुभव करने के लिए मुख्य रूप से बौद्ध इतिहास, नियम व दर्शन का संक्षिप्त, पर पूर्ण मौलिक ज्ञान कराने का प्रमुख उद्देश्य ध्यान में रखा गया, जिससे उसे विस्तार से समझने में आसानी हो सके। वर्तमान संस्करण में बहुत से नये प्रश्न और उत्तर जोड़े गये हैं और तथ्यों को 5 वर्गों में बाँट दिया गया है -यथा : (1) बुद्ध का जीवन, (2) उनके नियम, (3) संघ, विहार के नियम, (4) बुद्धधर्म का संक्षिप्त इतिहास, इसकी परिषद् व प्रसार (5) विज्ञान से बुद्धधर्म का समाधान। इससे, इस छोटी-सी पुस्तक का महत्व काफी बढ़ जाता है और सर्वसाधारण व बौद्ध-शिक्षालयों में उपयोग के लिए यह और भी सार्थक बन जाती है। समय के तीव्र प्रवाह के साथ विचारों में भी उतनी ही गति से परिवर्तन होना स्वाभाविक है। गतिशील जीवन-शैली व सामूहिक सोच ने हमें सकल विश्व को एक इकाई के रूप में पहचान करने को विवश कर दिया है। विश्व के विभिन्न धर्म जहाँ एक-दूसरे से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए छिद्रान्वेषण में लग जाया करते हैं, वहीं अब किसी सार्वभौमिक , सार्वलौकिक सार्वजनीन व सर्वदेशीय धर्म की तलाश होने लगी। बुभुक्षाभरी जिज्ञासा ने थियोसाफिकल सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष (स्व.) हेनरी यस. आल्काट का ध्यान ‘भगवान बुद्ध’ के विचारों की ओर आकर्षित किया। उन्होंने बुद्ध-धर्म व उनके विचारों में वह सब कुछ पाया, जिसकी आवश्यकता आज के विश्व की थी। धर्म केवल जानने के लिए नहीं, प्रत्युत धारण करने के लिए होता है। यह जीवन जीने की वास्तविक कला सिखाता है। अर्थ, काम, मोक्ष का प्रदाता है। इसीलिए 1881 में उन्होंने अंग्रेजी में यह पुस्तक लिखी थी। यह पुस्तक प्रश्नोत्तरी के रूप में अपनी विशेषताओं के कारण थोड़े ही समय में इतनी लोकप्रिय हो गयी कि यह अगणित संस्करणों के साथ यूरोप तथा विश्व की अनेक भाषाओं में प्रकाशित होने लगी। कुछ देशों ने तो इसे विद्यालयों की पाठ्य-पुस्तक के रूप में भी स्वीकृत कर दिया। पर हिन्दी में अब तक इसका अनुवाद न होना वस्तुत: एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू था। अत: सबके कल्याण हेतु हिन्द-भाषी लोगों के लिए इसका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। धर्म की इतनी संक्षिप्त पर पूर्ण, सरल, सटीक, स्पष्ट तथा उपयोगी व्याख्या कदाचित् ही कहीं मिले।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Chalisa Sangrah – Aarti Sangrah
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Chalisa Sangrah – Aarti Sangrah
यह पुस्तक “”चालीसा संग्रह”” भगवान के विभिन्न रूपों की महिमा को अद्वितीयता से बयां करने वाली एक अद्भुत संग्रह है। यह सामान्य हिंदी में लिखा गया है, ताकि इसे सभी आयुवर्गों के पाठकों को समझने में आसानी हो। पुस्तक में श्री गणेश, श्री दुर्गा, श्री हनुमान, श्री शिव, श्री कृष्ण, श्री राम, श्री सरस्वती, श्री लक्ष्मी, श्री संतोषी माता, श्री गायत्री, श्री शनि, श्री गंगा आदि की चालीसा शामिल हैं। इन चालीसाओं के माध्यम से पाठक भगवान की आराधना में समर्पित हो सकते हैं और उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा पा सकते हैं। “”चालीसा संग्रह”” के अलावा, पुस्तक में मंगल कामना, आरती श्री मंगलाचरण, आरती श्री गणेश जी की, आरती श्री जगदीश जी की, आरती श्री रामचन्द्र जी, आरती श्री शिव जी की, आरती श्री कुञ्ज बिहारीजी की, श्री हनुमान जी की आरती, आरती श्री सरस्वती जी, आरती श्री लक्ष्मी जी की, आरती श्री दुर्गा जी की, आरती श्री गंगा जी, आरती श्री संतोषी माता, आरती श्री काली जी, आरती श्री वैष्णो जी, आरती श्री शनि देव जी, आरती श्री श्याम खाटू जी, आरती श्री गायत्री जी, श्री राम-स्तुति और आरती श्री रामायण जी भी शामिल हैं। इस पुस्तक का उद्दीपन भगवान की भक्ति में नई ऊर्जा और उत्साह भरा हुआ है। यह संग्रह आपको धार्मिकता की ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए एक सहायक होगा और आपके आत्मा को शांति, शक्ति, और प्रेरणा प्रदान करेगा। इस पुस्तक के माध्यम से पाठक भगवान के साथ अपना संबंध मजबूती से बना सकते हैं और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Charani Lok Kavya Soundrya
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासCharani Lok Kavya Soundrya
चारणी लोक काव्य सौन्दर्य
चारणी-डिंगल साहित्य वैसे तो वीर रस की कविताओं के लिए सुप्रसिद्ध है, लेकिन इसमें श्रृंगार रस का भी निरूपण किया गया है। इस ग्रंथ में चारणी-डिंगल कविता के वीर एवं श्रृंगार रस के काव्य सौंदर्य को उजागर किया है। यह संशोधन का नहीं बल्कि काव्यास्वाद का ग्रंथ है। Charani Lok Kavya Soundrya
हम चारणी-डिंगल कविता की कितनी ही प्रशंसा करें, लेकिन जब तक बृहद् समाज को, शिष्ठ साहित्यकारों को उसके काव्य सौंदर्य का अनुभव न हो, तो वह व्यर्थ है।
चारण कवि एंव इतिहासकार
चारण साहित्य की शैली अधिकतर वर्णनात्मक है और इसे दो रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है: कथात्मक और प्रकीर्ण काव्य। also चारण साहित्य के कथात्मक काव्यरूप को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे, रास, रासौ, रूपक, प्रकाश, छंद, विलास, प्रबंध, आयन, संवाद, आदि। इन काव्यों की पहचान मीटर से भी कर सकते हैं जैसे, कवित्त, कुंडलिया, झूलणा, निसाणी, झमाल और वेली आदि। प्रकीर्ण काव्यरूप की कविताएँ भी इनका उपयोग करती हैं। डिंगलभाषा में लिखे गए विभिन्न स्रोत, जिन्हें बात (वार्ता), ख्यात, विगत, पिढ़ीआवली और वंशावली के नाम से जाना जाता है, मध्ययुगीन काल के अध्ययन के लिए प्राथमिक आधार-सामग्री का सबसे महत्वपूर्ण निकाय है।
although, चारणों के लिए, काव्य रचना और पाठ एक पारंपरिक ‘क्रीड़ा’ थी, जो सैन्य सेवा, कृषि, और अश्व (घोड़ों) और पशु व्यापार के प्राथमिक आय उत्पादक व्यवसायों के अधीन था। तथापि, महत्वाकांक्षी और प्रतिभाशाली चारण युवा व्यापक मार्गदर्शन के लिए अन्य चारण विद्वानों से पारंपरिक शिक्षा ग्रहण करते थे। एक विद्वान द्वारा शिष्य के रूप में स्वीकार किये जाने पर, वे काव्य रचना और कथन के आधारभूत ज्ञान के साथ-साथ विशेष भाषाओं में उपदेश और उदाहरण द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। इनका संस्मरण और मौखिक सस्वर पाठ करने पर ज़ोर दिया जाता था। चारण शिष्य प्राचीन रचनाओं का पाठ करते हुए अपनी शैली में लगातार सुधार करते थे।
डिंगल, संस्कृत, ब्रजभाषा, उर्दू और फारसी जैसी भाषाओं का ज्ञान भी विशिष्ट आचार्यों की सहायता से प्राप्त किया जाता था। so इस प्रकार, अध्ययन किए गए विषयों में न केवल इतिहास और साहित्य, बल्कि धर्म, ज्योतिष, संगीत और शकुन ज्ञान भी शामिल थे। उस समय के प्रख्यात चारण कवि राजदरबार का भाग थे, जिन्हें कविराज के पद से भी जाना जाता था।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Chitramay ShriDurgaSaptshati 2304
दुर्गासप्तशती हिन्दू-धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसमें भगवती की कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ अनेक गूढ़ रहस्य भरे हैं। सकाम भक्त इस ग्रन्थ का श्रद्धापूर्वक पाठ कर के कामनासिद्धि तथा निष्काम भक्त दुर्लभ मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस पुस्तक में पाठ करने की प्रामाणिक विधि, कवच, अर्गला, कीलक, वैदिक, तान्त्रिक रात्रिसूक्त, देव्यथर्वशीर्ष, नवार्णविधि, मूल पाठ, दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, श्री दुर्गामानसपूजा, तीनों रहस्य, क्षमा-प्रार्थना, सिद्धिकुञ्जिकास्तोत्र, पाठ के विभिन्न प्रयोग तथा आरती दी गयी है।
इस संस्करण में हिन्दी अनुवाद तथा पाठ-विधि सहित दुर्गा सप्तशती का प्रकाशन किया गया है। यह पुस्तक रंगीन अक्षरों में चित्रों के साथ है।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Collection of Agni, Devi Bhaagwad puran
-5%Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिCollection of Agni, Devi Bhaagwad puran
- Abridged Agni Puran(Code1362)
- Shrimad Devi Bhaagwad Maha Puran Pratham Khand (Code 1897)
- Srimad Devi Bhagwat Mahapuran with Hindi translation (Volume-2) Dwitiya Khand Code-1898
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