Author: Shashibala
Year: 2007
Binding: (HB)
ISBN: 9788188643066
Pages: 312
Language: English
Buddhist Art and Thought
Rs.1,200.00
Weight | .600 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 2 in |
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Desh Ke Hit Mein
0 out of 5(0)नरेन्द्र कोहली
‘‘सत्य महाराज।’’ ललित ने हाथ जोड़ दिए, ‘‘किन्तुु क्या सरकार जानती है कि उसके जीवन के मूल में एक वोटर है और वह किसी भी दिन उसे छोड़ देगा; और सरकार के प्राण निकल जाएँगे।’’ ‘‘वोटर सरकार का शरीर बनाता है, सरकार की आत्मा तो उसका अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया कार्यालय-तंत्रा है। वह शाश्वत है। वोटर उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’ ‘‘किन्तुु सरकार का शरीर भी तो मरेगा, उसकी पेंशन का क्या होगा?’’ ललित ने कहा। ‘‘मंत्रियों और सांसदों को पेंशन मिलेगी। उस पेंशन के अनेक रूप हैं, हरि के अनेक रूपों के समान। आप जैसे हरि को नहीं समझ सकते, वैसे ही सरकार को भी नहीं समझ सकते।’’ वे रुके, ‘‘अच्छा, अब इस चर्चा को छोड़िए और अपने जीवित होने के प्रमाण का नहीं, प्रमाणपत्रा का प्रबन्ध कीजिए।’’ आगन्तुकों को विदा कर ललित अपने मुहल्ले के पार्षद के पास पहुँचा, ‘‘देखिए, मैं जीवित हूँ।’’ ‘‘देख रहा हूँ।’’ ‘‘तो मुझे मेरे जीवित होने का एक प्रमाणपत्रा दे दीजिए।’’ ‘‘आप जीवित हैं तो फिर प्रमाणपत्रा की क्या आवश्यकता है? आपका जीवन ही आपका सबसे बड़ा प्रमाण है।’’ ‘‘देखिए, हमारे देश में एक सरकार है। उसके कार्यालय में एक फाइल है। वह फाइल मुझे वेतन देती है। उस फाइल को मेरे जीवित होने का एक प्रमाणपत्रा चाहिए, नहीं तो वह मेरा वेतन बन्द कर देगी। वह फाइल मुझे नहीं पहचानती, केवल प्रमाणपत्रा को पहचानती है। प्रमाणपत्रा के बिना तो स्वामी विवेकानन्द भी अमरीका में नहीं पहचाने गये थे।’’ ‘‘आप महान हैं; स्वामी विवेकानन्द के समान महान हैं। उनके पास भी प्रमाणपत्रा नहीं था और आपके पास भी नहीं है।’’ वह बोला, ‘‘उन्हें प्रो. हेनरी जॉन राइट ने एक प्रमाणपत्रा दिया था। आप भी प्रो. हेनरी जॉन राइट के पास चले जाइए, वे आपको भी प्रमाणपत्रा दे देंगे। उनसे कम का कोई प्रमाणपत्रा आपको शोभा भी नहीं देता।’’ ‘‘पर हमारी सरकारी फाइलें क्या प्रो. हेनरी जॉन राइट को पहचान लेंगी?’’ ‘‘क्यों नहीं, हेनरी जॉन राइट पहले अपने जीवित होने का प्रमाणपत्रा प्रस्तुत करें।’’ और ललित प्रो. हेनरी जॉन राइट की खोज में निकल पड़ा… (पुस्तक अंश)
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishadon Ki Kathayen (HB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिUpanishadon Ki Kathayen (HB)
0 out of 5(0)हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शिष्यों को अपने समीप बैठाकर ज्ञान प्रदान किया, वही ज्ञान उपनिषद् बनकर प्रसिद्ध हुआ। उपनिषद् को वेदों का अंतिम भाग भी कहा जाता है—यानी वेदांत, अर्थात् ‘उपनिषद्’ वेदों में प्रतिपादित ज्ञान का सार है। उपनिषद् का सारा अनुसंधान इस प्रश्न में निहित है—‘वह कौन सी वस्तु है, जिसे जान लेने पर सबकुछ जान लिया जाता है?’ और विभिन्न उपनिषदों में इस प्रश्न का एक ही उत्तर दिया गया है और वह है ‘ब्रह्म’।
उपनिषद् ज्ञान का अजस्र स्रोत हैं। इनमें ज्ञान और कर्म का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। चरित्र-निर्माण की शिक्षा दी गई है। पितृ-महिमा, अतिथि-महिमा, आत्मा, प्राण, ब्रह्म, ईश्वर आदि का सूक्ष्म विश्लेषण है। मुगल-कुमार दाराशिकोह तो इनसे इतना प्रभावित हुआ कि कुछ उपनिषदों का उसने फारसी भाषा में अनुवाद कराया।
कहा जा सकता है कि उपनिषदों को समझे बिना भारतीय इतिहास और संस्कृति को नहीं समझा जा सकता। भारतीय संस्कृति में आदर प्राप्त सभी आदर्श उपनिषदों में देखे जा सकते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं उपनिषदों की शिक्षा को कथात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है, ताकि सामान्य पाठक भी इनका चिंतन-मनन कर ज्ञान अर्जित कर सकें।SKU: n/a -
Vani Prakashan, रामायण/रामकथा
Abhyuday -1 (Hindi, Narendra Kohali)
0 out of 5(0)अभ्युदय – 1
‘अभ्युदय’ रामकथा पर आधृत हिन्दी का पहला और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। ‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
‘अभ्युदय’ प्रख्यात कथा पर आधृत अवश्य है; किन्तु यह सर्वथा मौलिक उपन्यास है, जिसमें न कुछ अलौकिक है, न अतिप्राकृतिक। यह आपके जीवन और समाज का दर्पण है। पिछले पच्चीस वर्षों में इस कृति ने भारतीय साहित्य में अपना जो स्थान बनाया है, हमें पूर्ण विश्वास है कि वह क्रमशः स्फीत होता जाएगा, और बहुत शीघ्र ही ‘अभ्युदय’ कालजयी क्लासिक के रूप में अपना वास्तविक महत्त्व तथा गौरव प्राप्त कर लेगा।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास
Gandhi, Nehru, Subhash
0 out of 5(0)यह आम धारणा है कि सरदार पटेल कांग्रेस के तीन दिग्गजों-महात्मा गांधी, पं. नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के खिलाफ थे। किंतु यह मात्र दुष्प्रचार ही है। हाँ कुछ मामलों में-खासकर सामरिक नीति के मामलों में-उनके बीच कुछ मतभेद जरूर थे, पर मनभेद नहीं था। परंतु जैसा कि इस पुस्तक में उद्घाटित किया गया है, सरदार पटेल ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिए जाने के प्रस्ताव पर गांधीजी का विरोध नहीं किया था; यद्यपि वह समझ गए थे कि ऐसा करने की कीमत चुकानी पड़ेगी। इसी तरह उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में पं. नेहरू के प्रति भी उपयुक्त सम्मान प्रदर्शित किया। उन्होंने ही भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल करने के लिए पं. नेहरू को तैयार किया था; यद्यपि नेहरू पूरी तरह इसके पक्ष में नहीं थे। जहाँ तक सुभाष चंद्र बोस के साथ उनके संबंधों की बात है, वे सन् 1939 में दूसरी बार सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के खिलाफ थे। सुभाषचंद्र बोस ने जिस प्रकार सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल-जिनका विएना में निधन हो गया था-के अंतिम संस्कार में मदद की थी, उससे दोनों के मध्य आपसी प्रेम और सम्मान की भावना का पता चलता है।
अपने समय के चार दिग्गजों के परस्पर संबंधों और विचारों की झलक देती महत्त्वपूर्ण पुस्तक।SKU: n/a
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