Nonfiction Books
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Bourae Pratibimb
बौराए प्रतिबिम्ब
at first ‘क्या कहूँ ? वैसे जो होता है वह किसी को पूरा दीखता है क्या? आप मुझे इस वक्त ढहते हुए देख रहे हैं पर यही तो असल में ढह जाना नहीं है। इससे पहले का सब कुछ ? आप न देख सकते हैं, न मैं ढहने के उन क्षणों को बता सकती हूँ।” — गालों पर ढुरक आए आँसुओं को तनेश पोंछना चाहा किन्तु तत्क्षण ही कुछ सोचते हुए जेब से रूमाल निकालकर उसकी तरफ़ बढ़ाया। so नीना ने सकुचाते हुए रूमाल की तरफ़ देखा फिर आँचल के छोर से आँसू पोंछ लिए। कुछ पलों की चुप्पी के बाद किसी तरह नम आवाज़ में कहा – “क्या कुछ ऐसा नहीं हुआ कि होशहवास बने रहना भी मुश्किल था…लेकिन भगवान का शुक्र है कि कुछ होश बाकी है अभी।” Bourae Pratibimb Deepti Kulshreshtha
यह कोई नहीं जान पाया कि वह किस तरह निरीह और निस्सहाय होती जा रही है। ख़ामोश कमरों में दुबके दिन उसे भी ख़ामोश करते जा रहे हैं। वह पल-पल बिंधती रही, स्वयं को अनचाही सज़ा देती रही। किन्तु ऐसे बहुत से संकेत थे जो इस बदलाव की तरफ़ इंगित कर रहे थे। भीतर सबकुछ निर्जीव होता जा रहा था। गतिविहीन, घटनाविहीन दिखने वाली घड़ियों में बिना किसी आकस्मिकता के यह गहन अवसाद दबे पाँव चलता चला आया। hence अपनी उदासियों में डूबी हुई वह उतनी ही शांत रही और अक्सर बहुत धैर्य के साथ सब देखती, सुनती और सहती रही तो यह अवसाद उतनी ही शिद्दत से दर्ज़ होता रहा।
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Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Brahmacharya Gandhi & His Women Associates (PB)
Rajmohan Gandhi’s book on Mahatma Gandhi has created a controversy mainly because one of the chapters is devoted to Gandhiji’s relations with Saraladevi Choudharani whom he called his spiritual wife. Girja Kumar gives a more vivid characterisation of this relationship in his book which was released last year. This book, in fact, gives an authentic account of the Mahatma’s relations with various other women associates and the repercussions these romantic liaisons produced on those close to him, including ‘Ba’ (Kasturba Gandhi). The book is ready to go into reprint and the paperback edition will shortly hit the stands. A Hindi edition is also coming up.
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Govindram Hasanand Prakashan, Others, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Budape se Javani ki Ore
Govindram Hasanand Prakashan, Others, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Budape se Javani ki Ore
यह पुस्तक एक ऐसी पुस्तक के आधार पर लिखी गई है जो हजारों रुपए खर्च कर देने पर भी दुर्लभ थी। आज से 350 वर्ष पहले फ्रांस की एक महिला मदाम डी लेनक्लोस निनोन, जो कि 91 वर्ष की होकर मरीं, तब भी उनके चेहरे पर एक भी झूरी नहीं पड़ी थी।
सन् 1710 में फ्रांस के लेखक जीन सौवल ने एक पुस्तिका प्रकाशित की थी जिसमें उन प्रयोगों तथा व्यायाम का उल्लेख था जो उक्त महिला के युवा-सम स्वास्थ्य का कारण थे।
इन प्रयोगों को आधार बनाकर सैन फ्रांसिस्को के श्री सैनफोर्ड बेनेट ने यह प्रयोग अपने ऊपर किए और उन्हें सफलता प्राप्त हुई। उस आधार पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था ‘ओल्ड एज इट्स कॉजेज एंड प्रिवेंशन‘। यह पुस्तक मदाम निनोन के प्रयोगों के आधार पर लिखी गई थी। इसकी एक ही प्रति भारत में उपलब्ध थी, जिसे लेखक ने प्राप्त कर उसके आधार पर इस ग्रंथ की रचना की।
इस पुस्तक में जो लिखा गया है उसे नियम पूर्वक क्रिया में परिणत किया जाए, तो मनुष्य वृद्धावस्था में युवावस्था का-सा सुखद स्वास्थ्य तथा चेहरा-मोहरा कायम रख सकता है। इसलिए इस पुस्तक का नाम रखा है ‘बुढ़ापे से जवानी की ओर‘।
जिन प्रयोगों का इस पुस्तक में वर्णन है उनका वैज्ञानिक-विवेचन भी इसमें किया गया है। दीर्घ-जीवन का वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन करने के साथ-साथ, दीर्घ-जीवन की आसन, प्राणायाम, ब्रह्मचर्य आदि भारतीय-पद्धतियों का विवरण भी इसमें दिया है।
इस पुस्तक की यह भी विशेषता है कि इसमें वृद्धावस्था की अनेक शारीरिक समस्याओं के लिए होम्योपैथिक उपचार का भी निर्देश दिया गया है। बुढ़ापे के आने पर भी बुढ़ापा ना आए-इस उपाय को सामने रख देना इस पुस्तक का मुख्य लक्ष्य है।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Buddhakaleen Samajik Arthik Jeevan
प्राचीन भारत के इतिहास में महात्मा बुद्ध का उदय सामाजिक तथा धार्मिक परिवर्तन का काल था। पालि, त्रिपिटक बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में बुद्ध काल के सामाजिक, आॢथक, धाॢमक जीवन का विस्तृत विवरण है। सुत्तपिटक में बुद्ध के प्रवचनों का संग्रह है। इस पुस्तक में सुत्तपिटक के आधार पर तत्कालीन भौगोलिक परिवेश, ग्रामीण तथा नगरीय जीवन, भवन, व्यवसाय-वाणिज्य, कृषि एवं पशुपालन आदि का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। बुद्ध के समय बौद्ध धर्म मुख्यत: उत्तर भारत के पूर्वी भाग में प्रचलित था। बुद्ध ने उत्तर भारत के लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, राजगीर, (राजगृह), सांकश्य (संकिस्मा), वैशाली, श्रावस्ती आदि स्थानों की यात्राएँ कीं, उपदेश दिए। वे सभी त्रिपिटक में संगृहीत हुए। इन ग्रन्थों में तत्कालीन ग्रामीण और नगरीय जीवन, उनके भवन, उनके निर्माण की कला, उनके निर्माण में लगे लोग, उनके उपकरण, उनके वस्त्र, आभूषण, उनके व्यवसाय, उनके आहार-विहार, बौद्ध भिक्षुओं की दिनचर्या आदि का विस्तृत विवरण है, जिसकी झलक आज भी देखने को मिलती है।
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Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Buddham Sharnam Gachhami
-15%Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणBuddham Sharnam Gachhami
बुद्धम् शरणम् गच्छामि गौतम बुद्ध के जीवन पर आधारित उपन्यास है। गौतम बुद्ध एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। इनका जन्म कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में) के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और वे बचपन से ही दयालु थे। 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपने नवजात शिशु राहुल, धर्मपत्नी यशोधरा और राजपाठ का मोह त्यागकर सत्य ज्ञान की खोज में वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए। भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोककल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को भेजा। जिन्होंने भारत से निकालकर चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में बौद्ध धर्म को फैलाया और जहाँ बौद्ध धर्म आज भी बहुसंख्यक धर्म है।
राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान ‘मीरा पुरस्कार’ और ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित राजेन्द्र मोहन भटनागर अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। युगपुरुष अंबेडकर, विवेकानन्द, सरदार, दलित संत, गौरांग, कुली बैरिस्टर और शहादत उनकी कुछ लोकप्रिय रचनाएँ हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bundelkhand Ki Sanskrtik Nidhi
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBundelkhand Ki Sanskrtik Nidhi
“वैसे तो देश में हजारों बोलियाँ बोली जाती हैं और इन सब बोलियों का अपना-अपना महत्त्व अपनी-अपनी जगह है | मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में भी बुंदेलखंडी बोली बोली जाती है, जिसका अपना एक अंदाज है | किसी भी बोली को अलंकृत करने, मोहक और ज्ञानवर्धक बनाने के लिए उस बोली में पहेलियों, कहावतों, मुहावरों, कहानियों और अहानों का विशेष महत्त्व होता है।
बुंदेलखंडी बोली में लोक-स्मृति में आज भी ऐसी पहेलियाँ, कहावतें, कहानी, अहाने और मुहावरे सुरक्षित एवं संरक्षित हैं | यह सब पुरानी पीढ़ी के पास ही है, ऐसी लोक-स्मृतियों को एक जगह समेटने में आज तक कोई प्रयास नहीं हुआ है, संभवत ‘बुंदेलखंड की सांस्कृतिक निधि’ एकमात्र ऐसी पुस्तक है, जिसे लेखक ने लोक स्मृतियों से निकालकर साहित्य के रुप में संरक्षित किया है। इतना ही नहीं, बुंदेलखंड की सांस्कृतिक निधि पुस्तक बच्चों, युवाओं और सभी आयु वर्ण के लोगों को बुंदेलखंड के रीति-रिवाज, बुंदेली बोली के गूढ़ रहस्यों, पहेलियों, कहावतों, कहानियों, मुहावरों और अहान से परिचित कराने में मील का पत्थर है।
निश्चित रूप से आज की चकाचौंध भरी दुनिया में ऐसे ज्ञानमयी साहित्य की आवश्यकता है, जिसे लेखक ने इस पुस्तक में बखूबी सजाया है|”SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), सही आख्यान (True narrative)
Calcutta Quran Petition
This book compiles the documents of the Calcutta Quran Petition and provides extensive commentary on them. The stated goal of this book is to promote a public discussion of Islam as a religion, particularly its claim that every bit of the Quran and the Hadis has a divine source. This claim is used at present to prevent a close examination of what the book contains and what message Islam has for mankind at large. This is the Third Revised and Enlarged Edition.
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Voice of India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Catholic Ashrams: Sannyasins or Swindlers?
Voice of India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Catholic Ashrams: Sannyasins or Swindlers?
The emergence of Catholic ashrams in several parts of the country is not an isolated development. These institutions are links in a chain which is known as the ‘Ashram Movement’, and which different denominations of Christianity are promoting in concert. The Protestants and the Syrian Orthodox have evolved similar establishments. Taken together, these institutions are known as Christian ashrams. Several books and many articles have already been devoted to the subject by noted Christian writers. The Ashram Movement, in turn, is part of another and larger plan which is known as Indigenisation or Inculturation and which has several other planks. The plan has already produced a mass of literature and is being continuously reviewed in colloquies, conferences, seminars, and spiritual workshops on the local, provincial, regional, national, and international levels. High-powered committees and councils and special cells have been set up for supervising its elaboration and implementation. What strikes one most as one wades through the literature of Indigenisation is the sense of failure from which Christianity is suffering in this country. Or, what seems more likely, this literature is being produced with the express purpose of creating that impression. The gains made so far by an imperialist enterprise are being concealed under a sob-story. Whatever the truth, we find that the mission strategists are trying hard to understand and explain why Christianity has not made the strides it should have made by virtue of its own merits and the opportunities that came its way. Christianity, claim the mission strategists, possesses and proclaims the only true prescription for spiritual salvation. It has been present in India, they say, almost since the commencement of the Christian era. During the last four hundred years, it has been promoted in all possible ways by a succession of colonial powers – the Portuguese, the Dutch, the French, and the British. The secular dispensation which has obtained in this country since the dawn of independence has provided untrammeled freedom to the functioning as well as the multiplication of the Christian mission. Many Christian countries in the West have maintained for many years an unceasing flow of finance and personnel for the spread of the gospel. The costs of the enterprise over the years, in terms of money and manpower, are mind-boggling. Yet Christianity has failed to reap a rich harvest among the Hindu heathens. Sita Ram Goel (1921-2003) took his M.A. in History in 1944, from the University of Delhi. He won scholarships and distinctions in school as well as college. Well-versed in several languages, he had studied the literature, philosophy, religion, history and sociology of several cultures-ancient, medieval and modern. For his judgements and evaluations, however, he drew his inspiration from the Mahabharata and Suttapitaka, Plato and Sri Aurobindo. He had written several documented studies on Communism, Soviet Russia, Red China, Christianity and Islam. Author of eight novels, he had translated into Hindi quite a few books from English, including some dialogues of Plato and a biography of Shivaji. His other works include compilations from the Mahabharata and the Suttapitaka. Having become a convinced Communist by the time he came out of college, he turned against this criminal ideology in 1949 when he came to know what was happening inside Soviet Russia. From 1950 onwards he participated in a movement for informing the Indian people about the theory as well as the practice of Communism in Stalin’s Russia and Mao’s China. The numerous studies published by the movement in the fifties exist in cold print in many libraries and can be consulted for finding out how the movement anticipated by many years the recent revelations about Communist regimes.;
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Chalisa Sangrah – Aarti Sangrah
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Chalisa Sangrah – Aarti Sangrah
यह पुस्तक “”चालीसा संग्रह”” भगवान के विभिन्न रूपों की महिमा को अद्वितीयता से बयां करने वाली एक अद्भुत संग्रह है। यह सामान्य हिंदी में लिखा गया है, ताकि इसे सभी आयुवर्गों के पाठकों को समझने में आसानी हो। पुस्तक में श्री गणेश, श्री दुर्गा, श्री हनुमान, श्री शिव, श्री कृष्ण, श्री राम, श्री सरस्वती, श्री लक्ष्मी, श्री संतोषी माता, श्री गायत्री, श्री शनि, श्री गंगा आदि की चालीसा शामिल हैं। इन चालीसाओं के माध्यम से पाठक भगवान की आराधना में समर्पित हो सकते हैं और उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा पा सकते हैं। “”चालीसा संग्रह”” के अलावा, पुस्तक में मंगल कामना, आरती श्री मंगलाचरण, आरती श्री गणेश जी की, आरती श्री जगदीश जी की, आरती श्री रामचन्द्र जी, आरती श्री शिव जी की, आरती श्री कुञ्ज बिहारीजी की, श्री हनुमान जी की आरती, आरती श्री सरस्वती जी, आरती श्री लक्ष्मी जी की, आरती श्री दुर्गा जी की, आरती श्री गंगा जी, आरती श्री संतोषी माता, आरती श्री काली जी, आरती श्री वैष्णो जी, आरती श्री शनि देव जी, आरती श्री श्याम खाटू जी, आरती श्री गायत्री जी, श्री राम-स्तुति और आरती श्री रामायण जी भी शामिल हैं। इस पुस्तक का उद्दीपन भगवान की भक्ति में नई ऊर्जा और उत्साह भरा हुआ है। यह संग्रह आपको धार्मिकता की ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए एक सहायक होगा और आपके आत्मा को शांति, शक्ति, और प्रेरणा प्रदान करेगा। इस पुस्तक के माध्यम से पाठक भगवान के साथ अपना संबंध मजबूती से बना सकते हैं और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Challenges of Understanding History
The history of India, so far, has not focused on a civilizational Bharatiya perspective, emphasizing a geo-political history based on the Nation-state paradigm, rather than a geo-cultural practice based on India’s civilizational antiquity.
Until recently, history had been viewed from various ideological lenses- Colonial, Nationalist, Marxist, Subaltern, soon and so forth. These schools have been immensely successful not only in tapping the immense range of sources and exploring the various regions and sub-regions across the subcontinent, but have also contributed towards bringing to light important perspectives concerning the political, economic, social and cultural developments in the history of India from the 8th to the 14th centuries.
While tapping into these schools has its obvious advantages, in that they have focused on partial aspects of the grand march of the civilization’s history, a lot still needs to be done.SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Champawaton Ka Itihas
चांपावतों का इतिहास
मारवाड़ में मुगल सत्ता के विरुद्ध यहां के शासकों द्वारा एक सशस्त्र अभियान चलाया गया। इतिहास साक्षी मा है कि इन युद्धों में चांपावत वीरों ने आत्मोत्सर्ग करते हुए अपनी परम देशभक्ति एवं स्वामिभक्ति का परिचय दिया। जब महाराजा अजितसिंह ने वयस्क होने पर दुर्गादास को मारवाड़ के प्रधान का पद देना चाहा तो दुर्गादास ने स्वयं के लिए स्वीकार न कर वह पद ठाकुर मुकुन्ददास चांपावत (पाली) को देने का आग्रह किया। इस प्रकार राठौड़ों द्वारा मारवाड़ की रक्षा तथा स्वतंत्रता के लिए किये गए युद्धों के इतिहास में चांपावत शाखा का इतिहास महत्वपूर्ण रहा है। Champawaton Ka Itihas – Thakur Mohan Singh Kanota
ठाकुर मोहनसिंहजी कानोता द्वारा चालीस अध्यायों में रचित ‘चांपावतों का इतिहास’ एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। accordingly प्रत्येक अध्याय में चांपावत शाखा की उपशाखा पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। प्रशाखाओं के प्रवर्त्तक, उनके ठिकानों तथा ठिकानों के भाई-बेटों के क्रियाकलापों का भी रोचक वर्णन किया गया है। साथ ही शाखा प्रमुख राव चंपकराज से लेकर इस शाखा के घरानों की विभिन्न उपशाखाओं, प्रशाखाओं की ब्यौरेवार वंशावलियां, स्वयं उनके भाइयों की जागीरें तथा उनके पुत्र-पुत्रियों के विवाह आदि संबंधों पर भी समग्रता से विचार किया गया है।
इस दृष्टि से surely यह पुस्तक चांपावत राठौड़ों की ही नहीं अपितु उनके सगे-संबंधियों कछवाहों, सिसोदियों, चौहानों, हाड़ों और भाटियों के इतिहास के लिए भी निस्संदेह सर्वथा उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है तथा उनके बारे में सविस्तार, सुव्यवस्थित एवं प्रामाणिक व विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध करवाती है। एकद्कालीन राजस्थान के कतिपय राजघरानों के इतिहास के लिए भी ऐतिहासिक दृष्टि से अहम सामग्री से परिपूर्ण है। इसमें शूरवीर चांपावत राठौड़ों की कर्मठता, स्वामिभक्ति, मारवाड़ के प्रति प्रेम साथ-साथ अपने वचन की रक्षा करने और आन-बान-शान के लिए मर-मिटने के अनेकानेक प्रसंग प्राप्त होते हैं।
Champawaton Ka Itihas – Thakur Mohan Singh Kanota (Thakur Man Singh Kanota)
इन वीर गाथाओं तथा चांपावतों के गौरवमयी इतिहास को एक पुस्तक में प्रस्तुत करना एक असाध्य कार्य है, जिसे ठाकुर मोहनसिंहजी कानोता ने अत्यंत ही सुंदर, सरल व चित्रात्मक तरीके से प्रस्तुत करने का भगीरथ प्रयास किया है। वे इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं। इनके द्वारा निबद्ध चांपावतों के इतिहास का धैर्यपूर्वक सविवेक अध्ययन करने पर राजस्थान और विशेषत: मारवाड़ के इतिहास के लिए अनेक ऐसे सूत्र तथा संकेत – संदर्भ प्राप्त होते हैं। प्रशाखाओं का क्रमवार सुव्यस्थित वर्णन एवं वंशावलियों के साथ सारणियां पुस्तक को और अधिक सुरुचिपूर्ण, विश्वसनीय एवं पठनीय बनाती हैं। इसमें मारवाड़ में हुए तत्कालीन युद्धों तथा संघर्षों का वर्णन तो है ही, साथ में यह पुस्तक राजस्थान का समकालीन सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक परिदृश्य प्रस्तुत करती है। इसमें पूर्वकालीन शासकों द्वारा जनहित में किए गए कार्यों आदि का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
all in all ठाकुर मोहनसिंहजी कानोता द्वारा लिखित ‘चांपावतों का इतिहास’ केवल राजपूत समाज के लिए ही नहीं अपितु इतिहासप्रेमियों के लिए भी धरोहरस्वरूप है। यह पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए भी मार्गदर्शक एवं प्रेरणास्त्रोत है कि किस तरह से राजपूतों के छोटे बालकों, युवाओं तथा महिलाओं ने अपनी मातृभूमि की सेवा में अपने प्राणों की आहूति देकर इस धरा को पूजनीय बना दिया।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chanakya Aur Chandragupt
चाणक्य और चन्द्रगुप्त ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास और राजनीति का वर्णन अधूरा है। भारत में तो चाणक्य नीति को ही वास्तविक राजनीति माना जाता है और मगध नरेश के महामंत्री कौटिल्य की कूटनीति जगप्रसिद्ध है। चाणक्य ने मगध के राजदरबार में हुए अपमान के कारण नंदवंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की, और षड्यंत्र रच कर मगध नरेश धनानन्द एवं उसके आठ पुत्रों की हत्या कराने के पश्चात चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान करा दिया। हरिनारायण आप्टे ने अपने इस उपन्यास में इतिहास के इस काल का दर्शन कराते हुए चाणक्य और चन्द्रगुप्त के बारे में कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये हैं जिनसे इस पुस्तक की रोचकता बढ़ी है।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Aur Jeene Ki Kala
चाणक्य की नीतियों में राजनीति, अर्थशास्त्र, धर्म और नैतिक मूल्य सबकुछ समाहित है। वे शासक को सही सलाह देनेवाले सच्चे राष्ट्रभक्त थे, उनके लिए मातृभूमि सर्वोपरि थी। वे कुशल नीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री और समर्पित राष्ट्राभिमानी थे उनकी सलाह और कथन सारगर्भित होते थे, जो समाज-कल्याण और राष्ट्रोत्थान का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपने चिंतन के दायरे में रखा और सबके लिए यथोचित आदर्श आचरण एवं व्यवहार का एक खाका प्रस्तुत किया ।शासक, व्यापारी, कर्मचारी, महिलाएँ, धर्मभिक्षु-सब उनकी दृष्टि में थे।
चाणक्य के विशद ज्ञान के इस विराट् पुंज को संकलित करने का एक विनम्र प्रयास है यह पुस्तक, जिसमें उनके विभिन्न श्लोकों का अर्थ उचित उदाहरणों के माध्यम से आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है।
आचार्य चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375-ईसापूर्व 283) चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे ‘कौटिल्य’ नाम से भी विख्यात हैं। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे। उन्होंने नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान् ग्रंथ है।’कौटिल्य अर्थशास्त्र’ मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथों में भी उनकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य के शिष्य कामंदक ने अपने नीतिसार’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि विष्णुगुप्त चाणक्य ने अपने बुद्धिबल से अर्थशास्त्र रूपी महोदधि को मथकर नीतिशास्त्र रूपी अमृत निकाला। प्रकारांतर में विद्वानों ने चाणक्य के नीति ग्रंथों से घटा-बढ़ाकर वृद्धचाणक्य, लघुचाणक्य, बोधिचाणक्य आदि कई नीतिग्रंथ संकलित कर लिये। ‘विष्णुगुप्त सिद्धांत’ नामक उनका एक ज्योतिष का ग्रंथ भी मिलता है। कहते हैं, आयुर्वेद पर भी उनका लिखा’ वैद्यजीवन’ नामक एक ग्रंथ है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Ke Management Sootra
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रChanakya Ke Management Sootra
चाणक्य कूटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अर्थशास्त्री भी थे। उनके ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में एक राज्य के आदर्श अर्थतंत्र का विशद विवरण है और उसी में राजशाही के संविधान की रूपरेखा भी है। शायद विश्व में चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ विधि-विधानपूर्वक लिखा गया राज्य का पहला संविधान है।
चाणक्य ने राजनीति को अर्थ दिया, कूटनीति का समावेश किया, दाँव-पेंच के गुर सिखाए, समाज को एक दिशा दिखाई तथा नागरिकों को आचार-संहिता दी। टुकड़ों में बँटे देश को एक विशाल साम्राज्य बनाया तथा सिकंदर के विश्व-विजय के सपने को भारत में ही दफना दिया और एक साधारण व्यक्ति को राह से उठाकर मगध का सम्राट् बनाकर देश की समृद्धि में श्रीवृद्धि की।
चाणक्य विश्व के प्रथम मैनेजमेंट गुरु थे। उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में कुशल प्रबंधन का रास्ता दिखाया। उनके बताए सूत्रों और जीवन-मंत्रों के आधार पर आज भी कैसे अपने जीवन का सही प्रबंधन करके हम सफल हो सकते हैं, इसी बात को इस पुस्तक के जरिए बताने का प्रयास किया गया है। शासन, राज्य, परिवार, समाज, वित्त, सुरक्षा—सभी विषयों पर प्रस्तुत हैं महान् आचार्य चाणक्य के मैनेजमेंट सूत्र, जो आपकोे जीवन के संघर्षों से जूझने की शक्ति प्रदान करेंगे।
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Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Neeti
Acharya Chanakya
विष्णुगुप्त चाणक्य एक असाधारण बालक थे। उनके पिता चणक एक शिक्षक थे। वह भी शिक्षक बनना चाहते थे। उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशात्र की शिक्षा ग्रहण की। इसके पूर्व वेद, पुराण इत्यादि वैदिक साहित्य का उन्होंने किशोर वय में ही अध्ययन कर लिया था।
उनकी कुशाग्र बुद्धि और तार्किकता से उनके साथी तथा शिक्षक भी प्रभावित थे; इसी कारण उन्हें ‘कौटिल्य’ भी कहा जाने लगा। अध्ययन पूरा करने के बाद तक्षशिला विश्वविद्यालय में ही चाणक्य अध्यापन करने लगे। इसी दौर में उत्तर भारत पर अनेक विदेशी आक्रमणकारियों की गिद्धदृष्टि पड़ी, जिनमें सेल्यूकस, सिकंदर आदि प्रमुख हैं। परंतु चाणक्य भारतवर्ष को एकीकृत देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तक्षशिला में अध्यापन-कार्य छोड़ दिया और राष्ट्रसेवा का व्रत लेकर पाटलिपुत्र आ गए।
चाणक्य का जीवन कठोर धरातल पर अनेक विसंगतियों से जूझता हुआ आगे बढ़ा। कुछ लोग सोच सकते हैं कि उनका जीवन-दर्शन प्रतिशोध लेने की प्रेरणा देता है; लेकिन चाणक्य का प्रतिशोध निजी प्रतिशोध न होकर सार्वजनिक प्रतिशोध था। उन्होंने जनता के दुख-दर्द को देखा और स्वयं भोगा था। उसी की फरियाद लेकर वे राजा से मिले थे। घनानंद चूँकि प्रजा का हितैषी नहीं था, इसलिए चाणक्य ने उसे खत्म करने का प्रण किया।
उन्होंने ‘चाणक्य नीति’ जैसा नीतियों का एक अनमोल खजाना दुनिया को दिया, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Neeti (Eng)
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रChanakya Neeti (Eng)
Chanakya was an Indian teacher, philosopher and royal advisor. He managed the first Maurya emperor Chandragupta’s rise to power at a young age. He is widely credited for having played an important role in the establishment of the Maurya Empire, which was the first empire in archaeologically recorded history to rule most of the Indian subcontinent.Chanakya is traditionally identified as Kautilya or Vishnu Gupta, who authored the ancient Indian poltical treatise called Arthasastra. As such, he is considered as the pioneer of the field of economics and political science in India, and his work is thought of as an important precursor to Classical Economics.Chanakya Neeti is a treatise on the ideal way of life, and shows Chanakya’s deep study of the Indian way of life. Chanakya also developed Neeti-Sutras (aphorisms—pithy sentences) that tell people how they should behave. Of these well-known 455 sutras, about 216 refer to rajaneeti (the do,s and don’ts of running a kingdom). Apparently, Chanakya used these sutras to groom Chandragupta and other selected disciples in the art of ruling a kingdom.
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Chanakya Neeti (English)
Chanakya was An Indian teacher, philosopher and royal Advisor. He managed the first Maurya emperor Chandragupta’s rise to power at a young age. He is widely credited for having played an important role in the establishment of the Maurya Empire, which was the first empire in archaeologically recorded history to rule most of the Indian subcontinent.
Chanakya is traditionally identified as Kautilya or Vishnu Gupta, who authored the ancient Indian poltical treatise called Arthasastra. As such, he is considered as the pioneer of the field of economics and political science in India, and his work is thought of as an important precursor to Classical Economics.
Chanakya Neeti is a treatise on the ideal way of life, and shows Chanakya’s deep study of the Indian way of life. Chanakya also developed Neeti-Sutras (aphorisms-pithy sentences) that tell people how they should behave. Of these well-known 455 sutras, about 216 refer to rajaneeti (the do, s and don’ts of running a kingdom). Apparently, Chanakya used these sutras to groom Chandragupta and other selected disciples in the art of ruling a kingdom.SKU: n/a