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Bourae Pratibimb


बौराए प्रतिबिम्ब

at first ‘क्या कहूँ ? वैसे जो होता है वह किसी को पूरा दीखता है क्या? आप मुझे इस वक्त ढहते हुए देख रहे हैं पर यही तो असल में ढह जाना नहीं है। इससे पहले का सब कुछ ? आप न देख सकते हैं, न मैं ढहने के उन क्षणों को बता सकती हूँ।” — गालों पर ढुरक आए आँसुओं को तनेश पोंछना चाहा किन्तु तत्क्षण ही कुछ सोचते हुए जेब से रूमाल निकालकर उसकी तरफ़ बढ़ाया। so नीना ने सकुचाते हुए रूमाल की तरफ़ देखा फिर आँचल के छोर से आँसू पोंछ लिए। कुछ पलों की चुप्पी के बाद किसी तरह नम आवाज़ में कहा – “क्या कुछ ऐसा नहीं हुआ कि होशहवास बने रहना भी मुश्किल था…लेकिन भगवान का शुक्र है कि कुछ होश बाकी है अभी।” Bourae Pratibimb Deepti Kulshreshtha

यह कोई नहीं जान पाया कि वह किस तरह निरीह और निस्सहाय होती जा रही है। ख़ामोश कमरों में दुबके दिन उसे भी ख़ामोश करते जा रहे हैं। वह पल-पल बिंधती रही, स्वयं को अनचाही सज़ा देती रही। किन्तु ऐसे बहुत से संकेत थे जो इस बदलाव की तरफ़ इंगित कर रहे थे। भीतर सबकुछ निर्जीव होता जा रहा था। गतिविहीन, घटनाविहीन दिखने वाली घड़ियों में बिना किसी आकस्मिकता के यह गहन अवसाद दबे पाँव चलता चला आया। hence अपनी उदासियों में डूबी हुई वह उतनी ही शांत रही और अक्सर बहुत धैर्य के साथ सब देखती, सुनती और सहती रही तो यह अवसाद उतनी ही शिद्दत से दर्ज़ होता रहा।

Rs.850.00 Rs.1,000.00

बौराए प्रतिबिम्ब
Author : Deepti Kulshreshtha
Language : Hindi
Edition : 2020
ISBN : 9788194937753
Publisher : RG Group

Weight 0.750 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in

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