इतिहास
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Ramkrishna Paramhans Ke 101 Prerak Prasang
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRamkrishna Paramhans Ke 101 Prerak Prasang
स्वामी राम कृष्ण परमहंस एक महान संत, समाज-सुधारक और हिंदू धर्म के प्रणेता थे। उनका मानना था कि यदि मनुष्य के हृदय में सच्ची श्रद्धा और लगन जग जाए तो ईश्वर का साक्षात्कार कतई मुश्किल नहीं है। वे कहते कि ईश्वर एक ही है, मनुष्यों ने उस तक पहुँचने के मार्ग अलग-अलग बना लिये हैं। वे स्वयं माँ काली के अनन्य भक्त थे और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं की आराधना में व्यतीत किया। उन्होंने हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा का कार्य अपने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि युवा नरेंद्र के रूप में हिंदुत्व की प्रतिष्ठा को विश्वमंच पर प्रस्थापित करने का पुरुषार्थ कर दिखाया। वे स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे, किंतु उन्होंने विश्व को विवेकानंद जैसा सार्वकालिक धर्म-प्रवर्तक दिया। परमहंस के जीवन काल में ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। फलस्वरूप मैक्समूलर और रोम्याँ रोलाँ जैसे सुप्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वानों ने उनकी जीवनी लिखकर अपने को धन्य माना।
इस पुस्तक में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़े रोचक एवं प्रेरक प्रसंगों का संकलन किया गया है। इसकी सामग्री रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद पर उपलब्ध साहित्य से प्राप्त की गई। यह पुस्तक स्वामीजी के जीवन को समझने की दिशा में एक विनम्र प्रयास है। आशा है, हमारे प्रबुद्ध पाठक इस पुस्तक को पढ़कर स्वामीजी के जीवन और जीवन-दर्शन को समझ पाएँगे।
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Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Rang Parampara
अत्यन्त समृद्ध नाट्य-परंपरा और सक्रिय आधुनिक नाट्य स्थिति के बावजूद न सिर्फ़ हिन्दी बल्कि भारत की किसी भी भाषा में समकक्ष रंगालोचना विकसित नहीं हो पायी है। नये रंगविचार की रोशनी में अपनी रंग परम्परा को खोजने और उसके पुनराविष्कार के अनेक प्रयत्न रंगमंच पर हुए हैं और उन्हें अपनी परम्परा में अवस्थित कर आलोचनात्मक दृष्टि से समझने की कोशिश कम ही हो पायी है। वरिष्ठ साहित्यकार नेमिचन्द्र जैन पिछली लगभग अर्द्धशती से हिन्दी और समूचे भारतीय रंगमंच के सजग और प्रबुद्ध दर्शक और समीक्षक रहे हैं। हिन्दी में तो उन्हें रंग समीक्षा का स्थपति ही माना जाता है। उनमें परम्परा, उसके पुनराविष्कार और उसके रंगविस्तार की गहरी समझ और उसकी बुनियादी उलझनों की सच्ची पकड़ है। उन्होंने आलोचना की एक रंगभाषा खोजी और स्थापित की है। उसी रंगभाषा और उसमें समाहित एक गतिशील और आधुनिक रंगदृष्टि से उन्होंने हमारी रंग परम्परा का गहन विश्लेषण किया है। दृष्टि का ऐसा खुलापन, समझ का ऐसा चौकन्ना सयानापन और समग्रता का ऐसा आग्रह हिन्दी में ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ है। अगर पिछले पचास वर्ष के भारतीय रंगमंच को, उसकी बेचैनी और जिजीविषा को, उसकी सीमाओं और सम्भावनाओं को, उसकी शक्ति और विफलता को समझना हो तो यह पुस्तक एक अनिवार्य सन्दर्भ है। सबके लिए, फिर वह दर्शक हो, या रंगकर्मी, नाटककार या समीक्षक।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rashtra Dharma Aur Sanskriti (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासRashtra Dharma Aur Sanskriti (PB)
आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे।
वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया ।
चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है।
इसीलिए इस संचयन का नाम ‘राष्ट्र, धर्म और संस्कृति’ रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र – सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rashtra Gaurav Samrat Hemchandra ‘Vikramaditya’
हिंदू सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। वैश्य परिवार में जनमे हेमू ने 22 लड़ाइयाँ लड़ीं व जीतीं। दिल्ली पर अधिकार करने के बाद हेमू ने अपनी बहादुरी और दूरदर्शिता से राजा विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त की।
इस पुस्तक में हेमू के व्यक्तित्व के यथार्थपरक चित्रण हेतु बिहार के सासाराम क्षेत्र में प्रचलित लोकगीतों व भगवत मुदित द्वारा रचित रसिक अनन्यमाल व राजस्थान से मिले कुछ तथ्यों को भी आधार बनाया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि हेमू एक कुशल संगठक, जनप्रिय नेता, श्रेष्ठ घुड़सवार, तलवारबाज तथा तुलगमा सैनिकों की भाँति घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे ही धनुष से बाणों का संधान करनेवाले एक महान् योद्धा व सेनानायक थे।
उन्होंने लगभग 350 वर्षों की दासता के बाद दिल्ली में पुनः हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, लेकिन भारत के भाग्य को यह स्वीकार न था। अतः पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू की आँख में लगे तीर ने जीती बाजी को पराजय में परिवर्तित कर दिया। फिर भी हेमू का स्वाभिमान, देशभक्ति, अपूर्व साहस और बलिदान हम सभी राष्ट्रप्रेमियों के लिए सदैव प्रेरणा का अथाह स्रोत बना रहेगा।
भारत के गौरव सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य की प्रेरणाप्रद जीवनी, जो नई पीढ़ी को उनके पराक्रम और शूरवीरता से परिचित करवाएगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rashtriya Aandolan Mein Hindi Press Ki Bhumika
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रRashtriya Aandolan Mein Hindi Press Ki Bhumika
राष्ट्रीय आंदोलन में हिन्दी प्रेस की भूमिका
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में जन-चेतना के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हिन्दी प्रेस एवं अनेक पत्र-पत्रिकाओं की हैं। मानव जीवन के विकास की प्रक्रिया में पत्र-पत्रिकाएँ सहायक रही हैं। भारतीय बुद्धिजीवियों ने जागरूकता के लिए अनेक पत्र-पत्रिकाओं को एक साधन के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया। Rashtriya Aandolan Hindi Press
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को आगे बढ़ाने में बुद्धिजीवियों को इन पत्र-पत्रिकाओं से मदद मिल रही थी। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय महिलाओं के द्वारा निकाले जा रहे पत्र-पत्रिकाओं का राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिका एवं सामाजिक समस्याओं आदि का वर्णन किया गया है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rashtriya Aarakshan Neeti Aur Aligarh Muslim Vishwavidyalaya
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रRashtriya Aarakshan Neeti Aur Aligarh Muslim Vishwavidyalaya
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) देश के प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है, किंतु दुर्भाग्य से इसकी स्थापना से लेकर आज तक इस बात को लेकर विवाद है कि क्या यह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान है? वास्तव में इसकी स्थापना से लेकर संविधान सभा, संसद और न्यायपालिका ने सदैव इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय स्वीकार किया; साथ ही इसके संस्थापकों ने भी इस बात को हमेशा माना कि यह देश के सभी वर्गो धर्मो के लिए बना है। इस पुस्तक की रचना के पीछे भी यही उद्देश्य है कि चूँकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत राष्ट्र की धरोहर है, अतः केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के कारण इस विश्वविद्यालय में भी राष्ट्र आरक्षण नीति के तहत SC/ST/OBCs को आरक्षण मिले तथा राष्ट्र निर्माण तथा सामाजिक न्याय की प्रक्रिया में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हो।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में मिलनेवाला SC/ST/OBCs आरक्षण, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में भी मिले, यही इस पुस्तक का वैचारिक अधिष्ठान है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Rashtriya Itihas Mein Rathore
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Rashtriya Itihas Mein Rathore
राष्ट्रीय इतिहास में राठौड़
जंग जीत्या केई जबर, ज्यांरी हुवे न किणसूं हौड़।
भागा न कोई भिड़ंत में, जीणसूं रणबंका राठौड़।।
कवि की इन पंक्तियों से राठौड़ों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के ऐतिहासिक महत्व का सहज रूप से ही अनुमान लगाया जा सकता है। शौर्य व बल प्रताप के धनी राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्व के बहुआयामी अध्ययन हेतु महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र की ओर से 24वीं राष्ट्रीय संगोष्ठी 6-7 अक्टूबर 2018 को आयोजित की गई थी। Rashtriya Itihas Mein Rathoreयह राष्ट्रीय संगोष्ठी महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई जिसका विषय “राठौड़ शासकों का भारतीय इतिहास में ऐतिहासिक महत्त्व” है। so इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य मारवाड़ के राठौड़ शासकों का भारत के राष्ट्रीय इतिहास में जो ऐतिहासिक महत्व एवं योगदान है उसे अधिकाधिक प्रकाश में लाना है। surely राठौड़ शासकों का राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक इतिहास में तो महत्त्वपूर्ण स्थान रहा ही, साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है, जिन पर अभी तक विस्तृत रूप से अध्ययन का अभाव है।
Rashtriya Itihas Mein Rathore
also ऐसे क्षेत्र है – सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, प्रशासनिक, आर्थिक, कला, साहित्य, स्थापत्य, जन कल्याणकारी कार्य, जल प्रबंधन व्यवस्था, पर्यावरण, व्यापार वाणिज्य, उद्योग धंधे, कृषि, भूमि सुधार, अकाल, सिंचाई की व्यवस्थाएँ इत्यादि अनेकोनक विषय है जिन पर अधिकाधिक शोध की आवश्यकता है। अतः इन विषयों पर शोध कार्यों को प्रोत्साहित कर उन्हें इतिहास जगत के पटल पर रखकर राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्त्व को उजागर करना ही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है।
देश के ख्याति प्राप्त इतिहासज्ञों, विद्वानों व शोधार्थियों ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने शोधपरक पत्रों का वाचन कर भारतीय इतिहास में राठौड़ शासकों के सर्वांगीण ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। all in all इस विषय विशेष से संबंधित महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों की प्रस्तुति से अनेक नवीन जानकारियाँ इतिहास में दर्ज हुई जो हमारे आने वाले इतिहास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
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Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rathoron ki Kuldevi Shri Nagnechiyan Mata
Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासRathoron ki Kuldevi Shri Nagnechiyan Mata
राठौड़़ों की कुलदेवी श्री नागणेचियाँ माता : दो शब्द भारत में शक्ति की उपासना प्राचीनकाल से ही अनवरत चली आरही है। अभिलेखीय प्रमाणों से शक्ति की उपासना के अनगिनत प्रमाण मिलते है। मध्यकाल में, जीवन में युद्व और भय का वातावरण बना रहने से सूरवीर शक्ति के अवतार दुर्गा को अपनी आराध्या मानते थे। युद्व के समय योद्वा ‘जय माताजी’ का उद्घोष्ष किया करते थे। वैदिक युग से ही शक्तिपुजा का बड़ा महत्व रहा है। शक्ति के विविध अवतारों की पुजा-अर्चना का उल्लेख महाभारत काल में ही मिलता है। मूलतः बल और बुद्वि-प्रदाता के रूप में शक्ति की उपासना युगो-युगों से होती आई है और आज भी शकित के विविध रूपों की आराधना कर मनुष्ष्य अपने मनोवांछित फल प्राप्त करने की चेष्ष्टा करता रहा है। यह सर्वविदित है कि प्रत्येक कुल या जाति की एक कुलदेवी होती है, जो उस कुल-जाति की रक्षा करती है। राठौड़ वंश में कुलदेवी के रूप में नागणेचियां माताजी पूजित है। परम्परा से पूर्व में राठेश्वरी, चक्रेश्वरी, पंखिणी आदि नामों से राठौड़ों द्वारा पूजी जाती रही है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a -
Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rigveda : Parichaya(PB)
Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRigveda : Parichaya(PB)
ऋग्वेद आदिम मानव सभ्यता के बाद का विकास है। लेकिन इसमें तत्कालीन सभ्यता के पहले के भी संकेत हैं। ऋग्वेद में इतिहास है, ऋग्वेद इतिहास है। प्राचीनतम काव्य है। प्राचीनतम दर्शन है। प्राचीनतम विज्ञान है। इसमें प्राचीनतम कला और रस-लालित्य है। प्राचीनतम सौन्दर्यबोध भी है। अतिरिक्त जिज्ञासा है। सुख आनन्द की प्यास है। ऋग्वेद में भरापूरा इहलोकवाद है और आध्यात्मिक लोकतन्त्र भी है। भारत के आस्तिक मन में यह ईश्वरीय वाणी है और अपौरुषेय है। वेद वचन अकाट्य कहे जाते हैं। अन्य विश्वासों की तरह यहाँ ईश्वर के अविश्वासी नास्तिक नहीं हैं। नास्तिक-आस्तिक के भेद वेद विश्वासअविश्वास से जुड़े हैं। जो वेद वचनों के निन्दक हैं, वे नास्तिक हैं। वेद वचनों को स्वीकार करने वाले आस्तिक हैं। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। विश्व मानवता का प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख है। प्रायः इसे रहस्यपूर्ण भी बताया जाता है। इसके इतिहास पक्ष की चर्चा कम होती है। इसका मूल कारण इतिहास की यूरोपीय दृष्टि है। भारत में इतिहास संकलन की पद्धति यूरोप से भिन्न है। स्थापित यूरोपीय दृष्टि से भिन्न दृष्टि काल मार्क्स ने भी अपनायी थी। इस दृष्टि से ऋग्वेद का विवेचन भारतीय मार्क्सवादी विद्वानों ने भी किया है। ऋग्वेद साढ़े दस हज़ार मन्त्रों वाला विशालकाय ग्रन्थ है। आधुनिक अन्तर्ताना-इंटरनेट तकनीकी से बेशक इसकी सुलभता आसान हुई है लेकिन इसका सम्पूर्ण अध्ययन परिश्रम साध्य है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथा
Rom-Rom Mein Ram (HB)
लगभग पांच सौ साल पहले अयोध्या में रामजी का मंदिर तोड़ दिया गया था। उस जगह पर एक ढांचा बनाकर उसे मस्जिद का नाम दिया गया। हमारे देवताओं की मूर्तियां टुकड़े-टुकड़े करके उसके फर्श और सीढ़ियों में गाड़ दी गईं। पराजित हिंदू जाति इसको रोक नहीं सकी, पर मंदिर टूटने की पीड़ा एक बुरे सपने की तरह पूरे समाज के मन में जलती रही। इस पीड़ा में 74 संघर्ष हो गए। लाखों लोगों ने प्राण दे दिए। कोर्ट में भी 70 सालों तक मामला उलझा रहा।
अब सपना नहीं सत्य है कि मंदिर बन गया है। यह भव्य है। एक हजार साल से अधिक आयु का है। इसमें जन्मस्थान पर रामजी विराजेंगे। आगे राम राज्य की ओर बढ़ना है। समाज के जीवन में और राज्य की संस्थाओं में मर्यादा, शील और पराक्रम लाना है। सभी धर्माधारित जीवन जीएँ। सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार मिले। भारत परम वैभव को प्राप्त करे। इस सबका समय आ रहा है।
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English Books, Suruchi Prakashan, इतिहास
RSS A Vision in Action
The directions of National Renaissance initiated by the RSS, as indicated herein, will
present – though in a miniature form – the picture, vibrant with life, of the Hindu Rashtra visualized by the RSS.It will be evident, from a perusal of
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Ruko Mat, Aage Badho
“स्वामी विवेकानंद के जीवन का तो हर प्रसंग ही प्रेरक है। जहाँ अपने ओजस्वी उद्बोधन से उन्होंने देश- विदेश में ख्याति अर्जित की और भारत का नाम रोशन किया, वहीं अपनी ओजस्वी वाणी से अपने देशवासियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया, जन-जन को जागरूक किया और उनमें मानवता का संचार किया।
इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाओं का संकलन प्रस्तुत है, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को रोचक भी लगेंगी और प्रेरणादायी भी। वे इन घटनाओं को अपने जीवन से जुड़ा हुआ भी महसूस करेंगे। देशभक्ति से लेकर मानवता, शिक्षा, लक्ष्य-प्राप्ति, धर्म- अध्यात्म, चरित्र-निर्माण, गुरु-शिष्य परंपरा, महिला सशक्तीकरण आदि कई सामाजिक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। ये प्रेरक कथाएँ आपमें आत्मविश्वास उत्पन्न करेंगी और संघर्षों से निपटने का साहस भी प्रदान करेंगी,
क्योंकि स्वामी विवेकानंद का जीवन केवल गेरुए वस्त्र में सिमटे एक सन्यासी तक ही सीमित नहीं था, वरन् मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था। तभी तो उनके जीवन की हर घटना हमें हार न मानने की शक्ति देती है। इसीलिए इतने वर्षों बाद भी वे युवाओं के लिए प्रेरणास्नोत हैं। स्वामी विवेकानंद के प्रेरक, अनुकरणीय और श्लाघनीय जीवन के ऐसे प्रसंग जो हर पाठक के जीवन को प्रकाशमान कर देंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Saanjh ke Deep
साँझ के दीप : वृद्धावस्था मानव जीवन का अंतिम सत्य है, जीवन का यह पड़ाव अनेक सीखों-अनुभवों-उपदेशों से युक्त एक चलती-फिरती पाठशाला है। वह परिवार सचमुच भाग्यशाली हैं, जिन पर वृद्धों की छत्र-छाया है, लेकिन वर्तमान में क्या यही सत्य है।
कड़वी सच्चाई तो यही है कि परिवार-समाज की यह महत्वपूर्ण इकाई आज हाशिए पर रहने को मजबूर हो चुकी है। यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे अनेकों दृष्टांत देखने को मिल ही जाते हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर देने वाले होते हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह में सम्मिलित प्रत्येक कहानी एक नया संदेश देती हुई नजर आती है। जीवन की कड़वी सच्चाई को उजागर करती यह कहानियाँ कई बार उन बच्चों को प्रायश्चित करवाती नजर आती हैं, जिन्होंने वृद्ध माँ-बाप को जीवन के अंतिम मोड़ पर घर से बेघर कर दिया हो, तो कहीं पर अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए दृढ़ वृद्धजन, कहीं पर अंतिम साँस ले रहे माँ-बाप की जुबाँ पर औलाद का नाम, कहीं पर जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत को चरितार्थ किया गया है। कहीं समाज की दृष्टि में कम पढ़े-लिखे माँ-बाप, किन्तु उनकी सीख आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों से उत्तम दर्ज की दिखलाई पड़ती है, तो कहीं वृद्ध हो चुके पति-पत्नी के बीच के मनोविज्ञान को दर्शाया गया है।
कुछ कहानियों को पढ़ कर लगता है कि परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत भले ही हो जाएं, लेकिन अंतिम क्षण तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ‘अप्प दीपो भवः’ के सिद्धान्त पर चल कर वह स्वयं के जीवन में तो प्रकाश भर ही रहे हैं, अपितु अन्य के जीवन को भी आलोढ़ित कर रहे हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Saat Chiranjeevi
एक सहज और स्वाभाविक प्रश्न है, क्या मनुष्य अमर हो सकता
है? इसका जवाब इतना आसान नहीं है, क्योंकि आज भी मनुष्य उन सीमाओं के पार नहीं पहुँच सका है, जो उसे अमर बना दें। हाँ, कभी-कभी कुछ विशेष व्यक्तियों के लिए प्रकृति ने अपने नियम जरूर बदले हैं। ऐसे ही विशेष महामानव हैं-सात चिरंजीवी। ये सात चिरंजीवी इसलिए कहलाए, क्योंकि सातों जीवन-मृत्यु के चक्र से ऊपर उठकर अमर हो गए। इन सात चिरंजीवियों में परशुराम, बलि, विभीषण, हनुमान, महर्षि वेदव्यास, कृपाचार्य और अश्वत्थामा हैं।
इन चिरंजीवियों में से कुछ के बारे में गलत धारणाएँ भी प्रचलित हैं, जैसे परशुराम का नाम सुनते ही हमारी आँखों के सामने एक ऐसे ऋषि की तसवीर उभरती है, जो बेहद क्रोधी स्वभाव के हैं। लेकिन उन्होंने अत्याचारी और अन्यायी राजाओं के खिलाफ ही शत्र उठाए। एक आदर्शवादी और न्यायप्रिय राजा के रूप में राम से मिलने के पश्चात् वे महेंद्र गिरि पर्वत पर तपस्या करने चले गए। परशुराम भगवान् विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। आज्ञाकारी पुत्र के रूप में वे अद्भुत हैं।SKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Saat Chiranjeevi: The 7 Immortals Book
-10%English Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSaat Chiranjeevi: The 7 Immortals Book
‘Saat Chiranjeevi’ unveils the remarkable stories of seven extraordinary individuals who have defied the very boundaries of life and death. These revered beings, known as the Seven Immortals, include Parashuram, Bali Vibhishana, Hanuman, Maharishi Ved Vyas, Kripacharya, and Ashwatthama. The book shatters common misconceptions about these illustrious figures. The book also delves into the unwavering devotion of Hanuman, the eleventh incarnation of Rudra, illustrating the rare bond between a devotee and his lord, Lord Rama.The book explores these enduring legends, painting a vivid tapestry of devotion, sacrifice, and immortality in the world of Indian mythology.
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Hindi Sahitya Sadan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Sada Vatsale Matrabhumi
मातृभूमि से अभिप्राय हिमालय पर्वत, गंगा-यमुना इत्यादि नदियाँ, पंजाब, सिंध, गुजरात, बंगाल इत्यादि भू-खंड नहीं, वरन् यहीं की समाज है। अतः देश-भक्ति वस्तुतः समाज की भक्ति को कहते हैं।
भारत भूमि की जो विशेषता है, वह इस देश में सहस्रो-लाखों वर्षों में उत्पन्न हुए महापुरुषों के कारण है; उन महापुरुषों के तप, त्याग, समाज-सेवा तथा बलिदान के कारण है; उनके द्वारा दिए ज्ञान के कारण है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sadhvi Ritambhara Aur Shriramjanmabhoomi Andolan
प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसी बालिका की कहानी है, जिसका बाल्यकाल अपने आसपास की घटनाओं को देखकर बहुत गहराई तक प्रभावित हुआ। माता-पिता के संस्कार और सामाजिक वर्जनाओं से गुजरते हुए उसकी तरुणाई एक ऐसी राह पर चल पड़ी, जिसके विभिन्न पड़ाव अविस्मरणीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ बनते चले गए ।
यह पुस्तक पंजाब के लुधियाना जिले के दोहारा गाँव में रहने वाली बालिका निशा की ऐसी कहानी है, जिसमें उसका घर से अचानक लापता हो जाना, उसके बिछोह में परिवारजनों का अंतहीन मानसिक वेदनाओं से गुजरना, गंगातट हरिद्वार से उसका जीवन-प्रवाह अध्यात्म-धारा की ओर मुड़ जाना, भाई द्वारा आश्रम से पुनः गाँव लाया जाना, उसके फिर आश्रम लौटने की जिद में पारिवारिक ऊहापोह, येन-केन-प्रकारेण उसका पुनः अपने गुरुदेव की शरण में आश्रम पहुँचना, निशा से ‘ज्ञानज्योति’ और फिर ‘साध्वी ऋतंभरा’ के रूप में समाज के सामने आना तथा सनातन धर्म- प्रचार में उनके द्वारा स्वयं को झोंक देने जैसे अनेक मार्मिक और भावपूर्ण प्रसंग अत्यंत रोचकता के साथ प्रस्तुत हैं ।
अयोध्या में श्रीरामलला की जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त करके मुगल आक्रांताओं द्वारा बलात् निर्मित बाबरी ढाँचे से मुक्ति के लिए हिंदू समाज के लगभग पाँच सौ वर्षों तक चले संघर्ष और उसमें तेजस्वी हिंदू प्रवक्ता साध्वी ऋतंभराजी की भूमिका एक क्रांतिकारी अध्याय है। इस पुस्तक में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन और उसमें साध्वी ऋतंभराजी के संघर्षरूपी योगदान को प्रामाणिक घटनाओं के रूप में क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया गया है।
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English Books, Garuda Prakashan, इतिहास
Saffron Swords (Eng)
How much do we know about the valorous saga of our ancestors from the east to west, north to south of Bharat? Unfortunately very little! Were we always defeated? It is a BIG No! But we have been projected as losers! During the last 1300 years, our ancestors across the country put up a brave resistance against invaders, first against Islamic invasion and rule and later the British. Hundreds and thousands of our warriors won battles and many fought until their last breath defending the motherland.
Indian History textbooks have hardly glorified these real warriors of the soil. We have grown up reading more about the glories of our invaders. A nation’s citizens, who are ignorant about the brave feats of their ancestors, tend to deviate away from their roots, historicity, and their sense of belongingness for the motherland. Saffron Swords that contains 52 tales of valor, is a tribute to the unsung warriors of India, both men, and women, from the last 1300 years. This book is the first in its series.
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Garuda Prakashan, इतिहास
Saffron Swords (Hindi)
लेखक-द्वय मानोषी सिन्हा रावल एवं योगादित्य सिंह रावल की पुस्तक “सैफरन स्वोर्ड्स” भारत के इतिहास के उस काल-खंड के बावन वीरों एवं वीरांगनाओं की कथाएँ कहती है, जिन्होंने अपनी वीरता और अदम्य साहस से देश में घुसपैठी आक्रमणकारियों, सुल्तानों, नवाबों और फिर अंग्रेजों से लोहा लिया। ये वो काल-खंड था जब देश एक-के-बाद-एक आक्रान्ताओं का सामना कर रहा था और बाद में मुगलों ने, और फिर अंग्रेजों ने देश में अपना साम्राज्य स्थापित किया।
किन्तु हम कितना जानते हैं इन वीरों एवं वीरांगनाओं के बारे में?
लगभग न के बराबर।
हमें पढ़ाया जाने वाला इतिहास इनके बारे में बिरले ही जानकारी देता है; और इससे एक अवधारणा बनी कि हम कमजोर थे, मजबूर थे और हम सदैव हारे।
किन्तु तमाम प्रयासों के बावजूद ये कथाएँ जीवित रहीं–इतिहास के खोए हुए पन्नों में; ब्रिटिश-काल के सरकारी अभिलखों में; विदेशी लेखकों की कृतियों में; इस्लामी आक्रमणकारियों के साथ चलने वाले इतिहासकारों के वर्णनों में; शिलालेखों पर; लोक-कथाओं में; किम्वदन्तियों में; जन-कवियों की कविताओं में और आम जन के मानस पटल पर। हमने उन्हें खोजा ही नहीं; ये मान बैठे कि जो हमें पढ़ाया जाता है, बस उतना ही सत्य है।
इन्हीं विस्मृत कथाओं को कठिन एवं अथक परिश्रम कर के लेखकगण ने ढूँढ कर आप के सामने रखा है, ताकि हम अपने इतिहास को न सिर्फ जान सकें, वरन उस पर गर्व भी कर सकें।
इन बावन कथाओं में भारत के सभी हिस्सों-पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण; सभी जातियों; स्त्री, पुरुष; 12 वर्ष के बच्चे से लेकर 80 वर्ष से ऊपर के उन योद्धाओं की कहानियाँ हैं, जिन्होंने आक्रान्ताओं को कई बार नाकों-चने चबवाए; और जब समय आया तो अपने प्राणों की आहुति देकर देश के लिए न्योछावर हो गए।
पढ़ें और जानें हमारे योद्धा पूर्वजों के बारे में ।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
Sahastrabahu
“यशस्वी रचनाकार स्व. गुरुदत्त ने रसायन विज्ञान (कैमिस्ट्री) में एम.एस-सी. की और गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर (अब पाकिस्तान में) में प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ने पर पद से त्याग-पत्र दे दिया। तत्पश्चात आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया और उसे ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया; साथ-ही-साथ उपनिषदों और वेदों का गहन अध्ययन किया।
लेकिन नियति उन्हें बचपन से ही लिखने की प्रेरणा दे रही थी। शीघ्र ही वे उपन्यास-जगत में छा गए। उन्होंने अपने उपन्यासों के पात्रों द्वारा पाठकों को भिन्न- भिन्न विषयों का ज्ञान दिया। विज्ञान के प्रोफेसर यशस्वी लेखक ने अपने उपन्यास ‘सहस्रबाहु’ में पाठकों को अत्यंत रुचिकर विधि से आधुनिक विज्ञान व प्राचीन भारतीय विज्ञान की जानकारी दी है।उपन्यास का एक पात्र बताता है कि इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन तो वेदों में वर्णित वरुण, मित्र एवं सोम ही हैं, और कैसे उनकी विभक्ति भयंकर ऊर्जा उत्पन्न करती है। यदि इन फॉर्मूलों की प्राप्तिएक आस्तिक वैज्ञानिक को होती है तो वह मानव कल्याण का साधन बन जाता है और नास्तिक वैज्ञानिक यही ज्ञान प्राप्त कर अशांति व सर्वनाश का कारण बन जाता है। महान् उपन्यासशिलपी वैद्य गुरुदत्त की यह कृति रोचक होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी है। – पदमेश दत्त
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Samajik Kranti Ki Vahak : Savitribai Phule
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSamajik Kranti Ki Vahak : Savitribai Phule
सामाजिक एकता, शिक्षा और महिला सशक्तीकरण के लिए अपना जीवन समर्पित कर देनेवाली महान् विभूति सावित्रीबाई फुले ने भारत में स्त्री शिक्षा का सूत्रपात करके मिसाल कायम की। वे भारत की प्रथम दलित महिला अध्यापिका व प्रधानाचार्या, कवयित्री और समाजसेविका थीं, जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना रहा। 3 जनवरी,1831 को सतारा (महाराष्ट्र) के नायगाँव के एक दलित परिवार में जन्म लेनेवाली सावित्रीबाई फुले को ही पहले किसान स्कूल की स्थापना करने का श्रेय जाता है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के साथ उन्हें समाज में सही स्थान दिलवाने, विधवा विवाह करवाने, छुआछूत को मिटाने और कन्या शिशु की हत्या को रोकने हेतु प्रभावी पहल करते हुए उल्लेखनीय कार्य किए। अछूत और दलित समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए उन्होंने दलित लड़कियों को शिक्षित करने की मुहिम स्वयं स्कूल खोलकर सफल शुरुआत की और एक साल के अंदर अलग-अलग स्थान पर पाँच स्कूल खोल दिए। इस कार्य में उनका भरपूर सहयोग उनके क्रांतिकारी पति ज्योतिबा फुले ने दिया। प्लेग से ग्रसित बच्चों की सेवा करते हुए प्लेग से सावित्रीबाई की मृत्यु हो गई थी।नारी का वर्तमान जीवन, शिक्षित, सभ्य और पुरुष के कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने का स्वरूप सावित्रीबाई के अनवरत संघर्षों और प्रयासों का ही सुपरिणाम है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक चेतना के संघर्ष को समर्पित कर दिया। भारत की महान् नारी सावित्रीबाई फुले के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से पाठकों को परिचित कराती उत्कृष्ट पुस्तक।”SKU: n/a -
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Samarth Guru Ramdas
भारत के सकल समाज के उद्धार में समर्थ गुरु रामदास का महत्त्वपूर्ण योगदान है। समर्थ गुरु ने युवावस्था में ही ख्याति अर्जित कर ली थी। गुरु रामदास ने ऐसे अनेक दुष्कर एवं असंभव लगनेवाले कार्य किए, जिन्हें संपन्न करने के कारण उन्हें ‘समर्थ गुरु’ कहा गया।
लंबे समय के बाद समर्थ गुरु की भेंट छत्रपति शिवाजी से हुई। दोनों ने मिलकर स्वराज की स्थापना का बीड़ा उठाया, जिसमें वे सफल रहे। समर्थ गुरु के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में छत्रपति शिवाजी मराठा साम्राज्य की स्थापना एवं उसकी नींव मजबूत करने में सफल रहे। बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता है, गुरु ही सच्चा मार्गदर्शक होता है और वह गुरु समर्थ रामदास जैसा हो तो निस्संदेह शिवा का ही जन्म होता है। वह शिवा जो राष्ट्र का गौरव है, रक्षक है, मार्ग-प्रदर्शक है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘समर्थ गुरु रामदास’ भारतीय जन-समुदाय के लिए अत्यंत पठनीय है।SKU: n/a