ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
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Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Main Aryaputra Hoon (HB)
Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनMain Aryaputra Hoon (HB)
‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’
‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर
आता है।’’
‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।…तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।…झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’
‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Main Aryaputra Hoon (PB)
Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनMain Aryaputra Hoon (PB)
‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’
‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर
आता है।’’
‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।…तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।…झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’
‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियां
Main Vidhyalay Bol Raha Hoon
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियांMain Vidhyalay Bol Raha Hoon
मैं विद्यालय बोल रहा हूँ :
प्रस्तुत लेखनी मेरे जीवन की उस यात्रा का वर्णन है, जिसका कर्ता भी मैं (विद्यालय) हूँ और कारक भी मैं (विद्यालय) ही हूँ। मैं, शिक्षक, विद्यार्थी, भवन एवं अभिभावक नामक चार महत्त्वपूर्ण स्तम्भों के सामंजस्य की कहानी भी हूँ तो वर्तमान दौर में लड़खड़ाते उसी सामंजस्य की दुहाई भी हूँ। इस यात्रा में मेरे सुंदर से उपवन का विश्लेषण भी है एवं बंजर होती भूमि का अन्वेषण भी है। मेरे विविध आयामों का प्रस्तुतिकरण भी है तो भीतर छिपी असीमित संभावनाओं का प्रकटीकरण भी है। बदलते वक्त में व्यापक हो रहे मेरे परिवेश का प्रकट स्वरूप भी है तो बदलाव की संकीर्णताओं से मेरे भीतर उपजे आवेश का भयावह रूप भी है। मुझमे छिपी संस्कारों की सुहास का प्रतिफल भी है तो मेरे भीतर पनप रही व्यसन जैसी कुरीतियों का दावानल भी है। अविद्या से मिलने वाले भौतिक संसाधनों के महत्व का गहन चिंतन भी है तो विद्या के अभाव में लुप्त हो रहे मानवीय मूल्यों का मानस मंथन भी है। मेरे अस्तित्व की खोज ही इस लेखन का मूल है जो मुझे और मेरे चारों स्तम्भों को मेरे अस्तित्व का बोध कराती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwad ke Thikanon ka Itihas
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिMarwad ke Thikanon ka Itihas
मारवाड़ के ठिकानों का इतिहास (ठिकाना रोहिट के विशेष संदर्भ में, 1706-1950 ई.) :
राजस्थान के गौरवमय इतिहास में राठौड़ वंश का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिनकी साहित्य, इतिहास और संस्कृति के विभिन्न सौपानों में भूमिका बड़ी ही महत्त्वपूर्ण रही। इतिहास के आलोक में देखने पर ज्ञात होता है कि मण्डोर के राव रणमल के सुयोग्य आत्मज एवं जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के अनुज चांपा से राठौड़ों की चांपावत शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था।
मारवाड़ के इतिहास में चांपावत राठौड़ों की विशेष भूमिका रहने के फलस्वरूप यहाँ के उमरावों में उन्हें शीर्ष स्थान प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। जोधपुर की स्थापना के पीछे 200 वर्ष का संघर्षमय इतिहास रहा। राव रणमल के समय राठौड़ों के इतिहास ने एक नई करवट ली। मारवाड़ के राठौड़ों की बढ़ती हुई शक्ति और वर्चस्व के फलस्वरूप मेवाड़ के महाराणा कुंभा को चित्तौड़ की बागडोर संभालने में सफलता मिली। चांपाजी ने कापरड़ा में अपना ठिकाना स्थापित कर अपने वंशजों के उज्ज्वल भविष्य की नींव डाली। कापरड़ा गांव में आज भी उनकी छतरी विद्यमान है जो उनकी गौरवगाथाओं की याद दिलाती है।
चांपाजी के वंशजों का खूब वंश विस्तार हुआ, जिससे कई ठिकानों का निर्माण भी हुआ, जिनमें रोहिट ठिकाना भी प्रमुख रूप से है। रोहिट के चांपावत राठौड़ों ने जहाँ राज्य की ओर से लड़े जाने वाले युद्धों में रणकुशलता का परिचय दिया वहीं ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया।
मारवाड़ के उमरावों में चांपावत राठौड़ों का विशिष्ट स्थान रहा था। गोपालदास चांपावत और उसके 8 पुत्रों ने अलग-अलग युद्ध अभियानों में अपने प्राणों की आहुतियां दी थीं। शिलालेखों की खोज कार्यों में कापरड़ा, रणसी, हरसोलाव, रोहट, पाली और आऊवा की शोध यात्राएं और वहाँ से असंख्य शिलालेख जो काल के गरत में समा चुके थे उन्हें प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया।
डाॅ. भगवानसिंह जी शेखावत द्वारा रोहिट ठिकाने पर किया गया शोध कार्य ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ठिकाने की इकाई को न सिर्फ इसमें स्पष्ट किया गया है बल्कि मारवाड़ में यहाँ के उमरावों की भूमिका को समझने के साथ ही ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला है, जिसमें सहायक सामग्री के रूप में रोहिट ठिकाने की बहियों का भरपूर उपयोग किया गया है। मैं इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशा करता हूँ कि ऐसे शोध कार्य लगोलग प्रकाश में आने से न सिर्फ मारवाड़ बल्कि राजस्थान के इतिहास में उमरावों की भूमिका को समझने में महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwar mein Jatiya Panchayat aur Samaj
प्रस्तुत पुस्तक ‘मारवाड़ में जातीय पंचायत और समाज’ में राजस्थान की देशी रियासतों में से सबसे बड़ी रियासत जोधपुर राज्य में 1818 से पूर्व लगभग 100 वर्षों में प्रचलित न्याय व्यवस्था की एक पक्ष जातीय पंचायतों की कार्यप्रणाली पर विस्तृत प्रकाश डाला। साथ ही उस समय की विभिन्न जातियों की संस्कृति की विस्तृत विवेचना की, जिसमें यहाँ रहने वाली जातियों के रहन-सहन, रीति-रिवाजों एवं उनमें प्रचलित अनेक प्रथाओं की विषद विवेचना कि हैं। जातीय पंचायतों के स्वरूप, संगठन, प्रकार, कार्य पद्धति एवं उनके क्षेत्राधिकार का विस्तृत वर्णन किया।
इस पुस्तक में लेखक ने जातीय पंचायतों की समाज में भूमिका पर विस्तृत विवेचना के साथ ही जातीय पंचायतों के समक्ष आने वाले प्रमुख वाद एवं उस समय प्रचलित दंड व्यवस्था का विस्तृत उल्लेख भी किया है।
इस काल में सम्बंधित देशी रियासत एवं जातीय पंचायतों के सम्बंधों के बारे में भी बताया तथा समाज में आर्थिक राजनीतिक एवं न्यायिक महत्व के बारे में भी पुस्तक में चर्चा की गई है।
इन मुद्दों को यह जातीय पंचायतें कितना प्रभावित करती थी, इन पर भी पुस्तक में विस्तृत विवेचना की गई है। इस प्रकार लेखक ने अंग्रेजों से आने से पूर्व प्रचलित न्याय व्यवस्था को विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया है, जिससे आधुनिक न्याय प्रणाली एवं पूर्व प्रचलित न्याय प्रणाली के बीच तुलना की जा सके तथा इनके गुण दोषों को भी जाना जा सके। लेखक ने इस विषय पर एक सराहनीय प्रयास किया है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meena Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांMeena Samaj ki Kuldeviyan
मीणा समाज की कुलदेवियां : मानव आदिकाल से ही शक्ति की उपासना करता आया है। शक्ति का आदि स्वरूप देवी है। यह आद्याशक्ति सनातन शक्ति प्रकृति है, समस्त जगत की उत्पत्ति उसी से हुई, वही विश्व की जननी है। प्रत्येक सम्प्रदाय में देवी की उपासना परम्परा रही है। भारतीय संस्कृति में देवी की महिमा प्रतिष्ठापित है तथा समाज में देवी पूजा की जड़े बहुत गहरी हैं। प्रत्येक कुल की अधिष्टात्री देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की यहाँ परम्परा रही है। इसी कारण हर कुल की अपनी कुलदेवी स्थापित है और वह उस कुल की वंश वृद्धि और समृद्धि की प्रदाता मानी जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रयास करके मीणा समाज की 51 कुलदेवियों के सम्बद्ध में जानकारी व परिचय दिया है, जो उत्कृष्ट अन्वेषण के आधार पर आधारित है। मीणा समाज के लिए और उनके गोत्रों की पृथक-पृथक कुलदेवियों सम्बन्धी यह विवरण उपयोगी और पठनीय हैै। इससे मीणा समाज के लोग अवश्य लाभान्वित होंगे।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Mewar ki Gaurav Gathayen
मेवाड़ की गौरव गाथाएँ : ‘मेवाड़’ शक्ति, शौर्य, पराक्रम एवं बलिदान के इतिहास का वह एक नाम है, जिसकी परम पावन माटी का कण–कण अपने में निहित पवित्रता का आभास कराता है और जन–जन अपने माथे पर गौरव–तिलक लगाने के लिए स्वतः प्रेरित होता है। स्मरण रहे कि हर युग में यहाँ का व्यक्ति मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण हेतु सदैव तत्पर रहा है। एक से बढ़कर एक बलिदानियों के कई स्वर्णिम पृष्ठ मेवाड़ के इतिहास से जुड़े है। पद्मावती का अद्भुत जौहर, पन्ना–कृष्णा का अमर त्याग, गोरा–बादल जैसे युवा व बाल योद्धाओं का युद्ध कौशल, भामाशाह का महादान तो अमरचन्द बड़वा का बलिदान आज सम्पूर्ण जगत के लिऐ प्रेरणा–स्रोत बना हुआ है।
पुस्तक के लखन एवं प्रकाशन का यही उद्देश्य है कि मेवाड़ की यह थाती जन–जन तक पहुँचे और विरोचित मूल्य का प्रकाश सर्वत्र बिखरे। साथ ही यह लिखते हुए भी हर्ष का अनुभव हो रहा है कि श्री तरुण देश–प्रदेश के सुनाम इतिहासकार के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार भी हैं, अतः प्रस्तुत गौरव गाथाओं में इतिहास के साथ–साथ साहित्य की अनुभूति का आनन्द भी मिलेगा। इसी आशा एवं विश्वास के साथ…SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Prachin Bharat [PB]
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिPrachin Bharat [PB]
प्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविधप्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। गत शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है। तथ्यों की प्रामाणिकता का निर्वाह करते हुए इसका प्रत्येक अध्याय उद्बोधक और व्यञ्जक है। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों को ठीक संदर्भ में रखकर उनको चित्रित करने तथा समझाने का प्रयत्न किया गया है। प्राचीन भारत के इतिहास पर कतिपय पुस्तकों के रहते हुए भी यह एक अभिनव प्रयास और इतिहास-लेखन की दिशा में नया चरण है। इसमें राजनीतिक इतिहास के साथ जीवन के सांस्कृतिक पक्षों का समुचित विवेचन किया गया है। मूल पुस्तक में दी गई प्रस्तावना के इस उद्धरण ”नयी सामग्री का उपलब्ध होना, पुरानी सामग्री का नया परीक्षण, इतिहास के सम्बन्ध में नया दृष्टिकोण’ ने नए संस्करण के प्रस्तुतिकरण का अवसर प्रदान किया। १९६० ईस्वी से लेकर आज तक पुरातत्त्व की नई शोधों ने भारतीय प्रागैतिहास पर बहुत प्रकाश डाला है। इनके प्रकाश में ग्रन्थ में प्रागैतिहास के अध्याय का पुन: लेखन किया गया है। साथ-साथ इतिहास के विभिन्न काल-क्रमों की पुरातात्त्विक संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारतीय इतिहास की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर भी नई शोधों के प्रकाश में नया लेखन प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए कनिष्क की तिथि, भगवान् बुद्ध के निर्वाण की तिथि, मेहरौली के ‘चन्द्रÓ की पहचान, गणराज्यों के पुनर्गठन का इतिहास, त्रिराज्यीय संघर्ष आदि। परिशिष्ट में साक्ष्यों पर कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षा-प्रद है। गत दो शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Pratiharon ka Mool Itihas
प्रतिहारों का मूल इतिहास : भारत के इतिहास में कुछ वंश बहुत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, उनके साम्राज्य बड़े विस्तृत थे और उन्होंने साहित्य का बड़ा प्रसार किया। कुछ वंशों ने, जिनको जिस धर्म में आस्था थी, उसको बहुत फैलाया, परन्तु क्षत्रिय सभी धर्मों के प्रति उदार और सहिष्णु थे। शासक वर्ग जिस धर्म को मानता था, उसके अलावा अन्य धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे एवं दान-पुण्य देकर प्रोत्साहन देते थे। भारत के महान सम्राज्यों में प्रतिहारों का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है। इसकी एक विशेषता रही है कि जैसे मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि थे, उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे, जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था, जिससे वे सफल भी रहे। परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्वविजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था। दक्षिण में राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) से टक्कर थी, जो किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे। पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। अरब जो कि इनके शत्रु थे, उनके एक व्यापारी ने लिखा है कि प्रतिहारों को अपने साम्राज्य की समस्त दिशाओं में (चारों ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते है। इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आंकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है।
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Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Raaz Mahal: The Palace of Secrets
-16%Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRaaz Mahal: The Palace of Secrets
आगरा, भारत — ताज महल का शहर। ब्यूरो ऑफ़ आर्कियॉलजी को सूचना का अधिकार अधिनियम अर्थात् आरटीआई ऐक्ट के अन्तर्गत एक विचित्र याचिका प्राप्त होती है, जिसमें ब्यूरो से वर्ल्ड हेरिटेज स्मारक के कथानक के पीछे के प्रामाणिक ऐतिहासिक साक्ष्यों का खुलासा करने को कहा जाता है। रहस्यमयी मौतें और इण्टरपोल की एक चेतावनी मामले को और उलझा देते हैं। विजय कुमार सत्य की खोज में एक अन्तरराष्ट्रीय शोध-यात्रा पर निकलता है, जहाँ वह अपने अतिरिक्त किसी पर भी विश्वास नहीं कर सकता। क्या वह सच का पर्दाफ़ाश कर पाएगा, या फिर … क्या यह सदैव के लिए एक रहस्य ही रह जाएगा… राज़?
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Raj Darbar aur Raniwas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRaj Darbar aur Raniwas
पुस्तक ‘राज दरबार और रनिवास’ में नगर परिक्रमा की उस सामग्री का समावेश है, जिसमें जयपुर के राजमहलों, छत्तीस कारखानों, मंदिरों और जनानी ड्योढ़ी का सविस्तार वर्णन है। जयपुर के राजमहल अपने आप में वास्तुकला के नमूने हैं और शेष नगर से पूर्णतः भिन्न एवं स्वतंत्र इकाई के रूप में विद्यमान हैं। जयपुर रियासत के शासकों का सम्पूर्ण कार्य-क्षेत्र, शासकीय एवं व्यक्तिगत, इस दायरे में आ जाता है। रियासत के शासन में तब छत्तीस कारखानों का अपना महत्त्व था। पुस्तक राज-दरबार और रनिवास में उनके कार्यकलाप का समावेश है। जनानी ड्योढ़ी अभी तक पर्दे में ही रही है, जिस पर पहली बार नगर-परिक्रमा में इतना प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक में कुछ अन्य सामग्री के साथ संदर्भ में कतिपय तथ्य ऐसे हैं, जिनका अभी तक कहीं उल्लेख भी नहीं हुआ है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Raj Kahani – Avnindranath Thakur krit
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRaj Kahani – Avnindranath Thakur krit
श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा मूल बांग्ला में लिखित ‘राज काहिनी’ का हिन्दी अनुवाद है। नौ आलेखों के इस संकलन में मेवाड़ इतिहास के प्रमुख चरित्रों का चित्रण हुआ है:- शिलादित्य, गोह, बाप्पादित्य, पड्डिनी, हम्मीर, हम्मीर का राज्य लाभ, चण्ड, राणा कुंभा और संग्रामसिंह। किशारों के लिए लिखी गई इस पुस्तक का बंग समाज में बड़ा स्वागत हुआ था। अब तक इसका हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ था।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Aitihasik Durg
राजस्थान के ऐतिहासिक दुर्ग : राजस्थान का अर्थ है राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र। रियासती काल में छोटे से छोटे राजा के पास कम से कम एक दुर्ग का होना अनिवार्य था, जहाँ वह अपने परिवार एवं राजकोष को सुरक्षित रख सकता था। राजस्थान में महाराणा कुंभा जैसे राजा भी हुए हैं, जिसके राज्य में सर्वाधिक 84 दुर्ग थे। एक अनुमान के अनुसार राजस्थान में लगभग प्रत्येक 10 मील पर एक दुर्ग स्थित था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में सर्वाधिक 656 दुर्ग महाराष्ट्र में, 330 दुर्ग मध्यप्रदेश में तथा 250 दुर्ग राजस्थान में थे। राजस्थान के 33 जिलों में शायद ही कोई ऐसा है, जिसमें 5-10 दुर्ग अथवा उनके अवशेष नहीं हों। राजाओं के राज्य समाप्त हो जाने के बाद अधिकतर दुर्ग असंरक्षित छोड़ दिये गये, जिसके कारण ये तेजी से खण्डहरों में बदलते जा रहे हैं। बहुत कम दुर्गों को राज्य अथवा केन्द्र सरकार अथवा निजी क्षेत्र के न्यासों द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक राजस्थान में कालीबंगा सभ्यता से लेकर, उत्तरवैदिक काल, महाभारत काल, मौर्य काल, शुंग काल, गुप्त काल, राजपूत काल एवं पश्चवर्ती काल में बने दुर्गों को केन्द्र में रखकर लिखी गई है। इनमें से कुछ दुर्ग अब पूरी तरह नष्ट हो गये हैं, तो कुछ दुर्ग अब भी मौजूद हैं। प्रत्येक दुर्ग को उसके मूल निर्माता राज्यवंश के क्रम में जमाया गया है, ताकि इनका इतिहास शीशे की तरह स्पष्ट हो सके। वस्तुतः इन दुर्गों का इतिहास ही राजस्थान का वास्तविक इतिहास है, जिसे प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा प्रचुर शोध के पश्चात् लिखा गया है। डॉ. गुप्ता की लेखन शैली रोचक, भाषा कसी हुई और जन-जन की जिह्वा पर चढ़ने वाली है। एक बार यदि आप इस पुस्तक को पढ़ना आरम्भ करेंगे तो पूरी करके ही उठेंगे।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Lok Geet
राजस्थान के लोक गीत : राजस्थान के लोक गीत अपने सौन्दर्य में निराले हैं परन्तु आधुनिक तथाकथित सभ्यता और शिक्षा के प्रवाह में पड़कर दिनोंदिन विस्मृति के गर्भ में विलीन होते जा रहे हैं। उनके उद्धार और रक्षण के लिये यदि हम लोग अभी से प्रयत्नशील न हुए, तो अपनी इस अमूल्य निधि से हम शीघ्र ही हाथ धो बैठेंगे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर राजस्थानी लोक गीतों का संग्रह किया गया है। लगभग 1000 सुन्दर–सुन्दर गीतों में 230 गीत इस संकलन में रखे गये हैं। अभी तक राजस्थानी गीतों का कोई ऐसा संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ, जिसमें चुने हुए गीत पर्याप्त संख्या में हो और जो आधुनिक ढंग से टीका–टिप्पणियाँ तथा भावार्थ आदि सहित संपादित हो। आशा है यह संकलन इस कमी को बहुत कुछ पूरी कर सकेगा।
संकलन को तैयार करते समय इस बात पर ध्यान नहीं रखा गया है कि केवल सर्वश्रेष्ठ गीत ही दिये जायँ किन्तु ध्यान यह रखा गया है कि यथासंभव अधिकाधिक विषयों के गीत दिये जायँ। इसी प्रकार इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि केवल लोक गीत न देकर अन्यान्य लोक गीतों के भी कुछ नमूने दिये जायँ। फिर भी संकलन के अधिकांश गीत लोक गीत ही हैं।
इस कार्य ने राजस्थानी महिला-समाज का महान् उपकार किया है। नारी-हृदय के भाव इन गीतों में अपने वास्तविक रूप में व्यक्त हुए है और गार्हस्थ जीवन एवं उसके सुख–दुःख, प्रेम-कलह, आमोद-प्रमोद, आचार-विचार के अनेकों मनोरम चित्र इनमें उतारे गये हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Prachin Abhilekh
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajasthan ke Prachin Abhilekh
राजस्थान के प्राचीन अभिलेख डा श्रीकृृष्ण जुगनु मेवाड़ प्रदेश अपने अंक में प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बीज को अक्षुण्ण रखे हुए हैं । यहां आदिम समुदायों सहित लोकजन और अभिजात्य तीनों ही स्तर के समाजों के दर्शन होते हैं । पारियात्र अथवा अरावली की पहाडि़यों ने इसे कुदरतन रक्षित और पोषित किया है तो आगंूचा, दरीबा और जावर जैसी खदानों ने इसे आर्थिक रूप से समृद्धि प्रदान की है । इस दृष्टि से यह देश में प्राचीनतम समृऋि प्रदाता क्षेत्र रहा है । इस पर्वतमाला से निकली नदियांे ने यहां कृषि कार्य को सबल किया । यहां गणों से लेकर अनेक राजवंशों ने अपने शासक का सूत्र संचालित किया । अश्वमेध, एकषष्टिरात्र जैसे वैदिक सत्र-यज्ञ यहां हुए और शासकों ने जलाशयों के निर्माण के साथ जल-संसाधन के सुदीर्घ संरक्षण की परम्परा का प्रवर्तन किया ।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ki Sanskriti mein Nari
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRajasthan ki Sanskriti mein Nari
“इस संसार में यदि नारी न होती तो सभ्यता और संस्कृति न होती। इसीलिए किसी समाज के सांस्कृतिक विकास का मानदण्ड नारी की मर्यादा है।” – हजारी प्रसाद द्विवेदी
राजस्थान की संस्कृति में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। कुल मर्यादाओं व परम्पराओं के निर्वाह में यहाँ की नारी ने अद्वितीय आदर्श प्रस्तुत किये हैं। वीरांगना, सती और प्रेमिका के रूप में इस प्रदेश की नारी की अपनी निजी विशेषताएँ रही हैं।
संस्कारों के निर्माण में यहाँ की नारी की जो महती भूमिका रही है, वह इस प्रदेश की संस्कृति में अविस्मरणीय है। वैयक्तिक व पारिवारिक आदर्शों की स्थापना, कुल परम्पराओं का निर्वाह तथा सामाजिक व धार्मिक जीवन की समृद्धि और विकास में यहाँ की नारी के अनूठे योगदानों से इस प्रदेश की संस्कृति गरिमामय और जाज्वल्यमान बनी। संस्कृति के निर्माण और इसके संवर्धन में यहाँ की नारी सदा सचेष्ट रही है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthani Sahitya Mein Shakti Upasana
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajasthani Sahitya Mein Shakti Upasana
राजस्थानी साहित्य में शक्ति उपासना
भारतीय लोकमानस देवी-देवताओं की संकल्पना से ओत-प्रोत है। यद्यपि सृष्टि के संचालन के रूप में एक ही मूलशक्ति की सम्पृक्ति मानी गई है तथापि यह मूल चेतना अग्नि के अनेक स्फुर्लिंगों की तरह नाना देवी-देवताओं के रूप में लोक में विचरित होकर आशीर्वाद देती रही है। Rajasthani Sahitya Shakti Upasana
surely राजस्थान वीरों, संतों और लोक देवी-देवताओं की तपोभूमि रही है। यहां रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी, मेहाजी, देव नारायणजी जैसे अनेकानेक लोक देवताओं की तरह सच्चियाय माता, करणी माता, लटियाल माता, आवड़ माता, शीतला माता, आशापुरा माता, राणी भटियाणी, सकराय माता, नारायणी माता, जीण माता, पथवारी माता जैसी महान लोक देवियाँ भी अवतरित हुई हैं। इन देवियों ने मानव रूप में अवतार लेकर असाधारण एवं लोक कल्याणकारी कार्यों द्वारा लोकमानस को व्यापक धरातल पर प्रभावित किया है। इसलिए स्थानीय लोग इन्हें देव तुल्य मानकर भाव-विभोर होकर पूजा-अर्चना करते हैं। इन देवियों ने समय-समय पर सामाजिक विषमताओं व अनेकानेक समस्याओं से लड़ते हुए लोगों के उद्धार का कार्य किया। इसलिए इन लोक देवियों को जहां एक ओर जगत् जननी का दर्जा मिला वहीं दूसरी ओर लोक में इनके देवत्व को स्थापित किया गया।
Rajasthani Sahitya Shakti Upasana
सामाजिक रूपान्तरण व लोगों के अन्तकरण की शुद्धि के लिए राजस्थान की लोक देवियों को आदर के साथ याद किया जाता है। भारत के अन्य स्थानों की तरह राजस्थान भी विषमताओं का गढ़ रहा है। ऐसे में लोक देवियों ने जाति-पांति, ऊंच-नीच व छुआ-छूत को भुलाकर पीड़ित मानवता के उद्धार के लिए अपने आप को उत्सर्ग कर दिया। all in all इन लोक देवियों में जहां एक ओर ममता, वात्सल्य, करूणा, दया आदि भाव परिलक्षित होते हैं। वहीं दूसरी ओर इनमें दृढ़ता, शूरवीरता, दानवीरता, धैर्य, सहिष्णुता जैसे भाव पुरजोर रूप में मिलते हैं। इन्हीं भावों के कारण ये देवियाँ अतिमानवी रूप में लोकमानस में पूज्य हैं। यहां की कई देवियाँ शक्तिपीठों में भी अपना स्थान रखती हैं।
लोक देवियों के अलौकिक एवं लोक कल्याणकारी कार्यों के कारण उनकी कीर्ति में कई गीत, भजन व हरजस गाए जाते हैं, जो मौखिक और लिखित दोनों रूपों में उपलब्ध हैं।
accordingly यह पुस्तक के रूप में सुधी पाठकों के हाथ में है। इस पुस्तक के प्रकाशन से जहां हमें एक ओर राजस्थान की लोक देवियों की गौरवगाथा व उनके लोक कल्याणकारी कार्यों से परिचय प्राप्त होगा व दूसरी ओर हमें उनकी कीर्ति से युक्त लोक साहित्य का भी परिचय प्राप्त होगा। हमें इन देवियों की गौरवगाथा को जीवन में उतारना हैं, भावावेश में किसी भी तरह के अंधविश्वास को ओढ़ना देवियों के बताये मार्ग से पदच्युत होना है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
राजपुरोहित जाति का इतिहास (भाग 1, 2) :
अनुक्रमणिका
युगयुगीन राजपुरोहित इतिहास : प्रो. जहूरखां मेहर
अपनी बात : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
भूमिका : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
राजपुरोहित वंश परिचय : प्रस्तावना
राजपुरोहितों के गोत्र प्रवर
राजपुरोहितों की समस्त उपजाति, खांपें
भारद्वाज गोत्रिय राजगुरु पुरोहित सोढा
वशिष्ठ गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
पीपलाद
गौतम गोत्रिय राजगुरु राजपुरोहित
पारसर गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
शांडिल्य गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
उदालिक गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
कश्यप गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
बाल वशिष्ठ गोत्र
सेवड़ों का संक्षिप्त परिचय
सेवड़ वंश के बाबत पौराणिक तथा प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार
सेवड़ राजपुरोहितों का आदिनारायण से लेकर अद्यावधि तक वंशवृक्ष विशेष जानकारी
सेवड़ राजगुरु पुरोहित का राव सीहा के साथ कन्नौज से मारवाड़ आना……….SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ : अंग्रेजों ने भारत को दो तरह की राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखा। पहली तरह की व्यवस्था में भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियत्रंण था। इसे ब्रिटिश भारत कहा जाता था, जिसे उन्होंने 11 ब्रिटिश प्रांतों में विभक्त किया। दूसरी तरह की व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के लगभग 565 देशी रजवाड़े थे, जिनकी संख्या समय-समय पर बदलती रहती थी। देशी राज्यों को रियासती भारत कहते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन रजवाड़ों के साथ अधीनस्थ सहायता के समझौते किए, जिनके अनुसार राज्यों का आंतरिक प्रशासन देशी राजा व नवाब के पास रहता था और उसके बाह्य सुरक्षा प्रबन्ध अंग्रेजों के नियंत्रण में रहते थे। इस पुस्तक में अंग्रेज शक्ति के राजपूताने की रियासतों में प्रवेश करने से लेकर वापस लौटने तक की अवधि में हुई रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाओं को लिखा गया है।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rathore Rajvansh ke Riti-Riwaz
राठौड़़ राजवंश के रीति-रिवाज : ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की संस्कृति न केवल प्राचीन है, अपितु शोध जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भी है। जोधपुर राजवंश अनेक ऐतिहासिक कालचक्रों का साक्षी रहा है। शोथ के लिए सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर राजघराने के नीति-रिवाज एवं परम्पराओं का अध्ययन अत्यधिक रुचिकर एव जिज्ञासापूर्ण है। यहाँ सतत् रूप से राजवंश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का विकास होता रहा है।
यह पुस्तक जयनारायण व्यास विश्वविधालय, जोधपुर द्वारा सन् 1993 में स्वीकृत शोथ प्रबन्ध जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों का सामजिक एवं आर्थिक अध्ययन (1600-1850ई.) का आशिक संशोधित संस्करण है। इस ग्रन्थ में जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों विशेषकर राजपरिवार एवं जनाना ड्योढ़ी के नियम-कायदों, धार्मिक परम्पराओं, प्रमुख संस्कारों, राजदरबार के समसामयिक आयोजनों, शिष्टाचारों एवं विशिष्ट उत्सवों से संबंधित सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है, जो कि अप्रत्यक्ष रूप से मारवाड़ की सांस्कृतिक विरासत को ही इंगित करता है।
शोध की दिशा में विषय सर्वथा नवीन एवं मौलिक रहा है। विषय सामग्री का चयन विभिन्न शोध संस्थाओं में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों, अप्रकाशित ख्यातों, बहियों, वंशावलियों आदि में से किया गया है। सम्पादित पुस्तक मध्यकालीन राजस्थान के राजवंशों में रुचि रखने वाले शोधोत्सुक अध्ययनार्थियों, इतिहासवेत्ताओं एवं कला संस्कृतिविज्ञों के लिए महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी एवं संगृहणीय सिद्ध हो सकेगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a