Fiction Books
Showing 145–168 of 595 results
-
Rajpal and Sons, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Dekh Kabira Roya
‘‘अब कभी नहीं पैदा होगा इस धरती पर ऐसा आदमी। ऐसा निर्भीक, ऐसा समतावादी, ऐसा मानवता-प्रेमी, ऐसा राम-भक्त और सबसे ऊपर ऐसा आशु-कवि जिसके मुख से दोहे और साखियां, रमैनी और उलटबांसियां झरने से निकलते जल की तरह झरती थीं-निर्बाध, निद्वन्द्व, अनायास, अप्रयास।’’
SKU: n/a -
Hindi Sahitya Sadan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Desh Ki Hatya
उपन्यासकार गुरुदत्त का जन्म जिस काल और जिस प्रदेश में हुआ उस काल में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर बहुत कुछ विचित्र घटनाएँ घटित होती रही हैं। गुरुदत्त जी इसके प्रत्यक्षदृष्टा ही नहीं रहे अपितु यथासमय वे उसमें लिप्त भी रहे हैं। जिन लोगों ने उनके प्रथम दो उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ और ‘पथिक’ को पढ़ने के उपरान्त उसी श्रृंखला के उसके बाद के उपन्यासों को पढ़ा है उनमें अधिकांश ने यह मत व्यक्त किया है कि उपन्यासकार आरम्भ में गांधीवादी था, किंतु शनैः-शनैः वह गांधीवादी से निराश होकर हिन्दुत्ववादी हो गया है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Devangana | देवांगना
वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षाम: और सोमनाथ जैसे सुप्रसिद्ध उपन्यासों के लेखक आचार्य चतुरसेन के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि बारहवीं ईस्वी सदी का बिहार है जब बौद्ध धर्म कुरीतियों के कारण पतन की ओर तेज़ी से बढ़ रहा था। कहानी है बौद्ध भिक्षु दिवोदास की, जो धर्म के नाम पर होने वाले दुराचारों को देखकर विद्रोह कर डालता है। जिसके लिए उसे कारागार और पागलखाने में डाल दिया जाता है। वहां पर उसे एक देवदासी और एक भूतपूर्व सेवक सहारा देते हैं और उनकी सहायता से दिवोदास धर्म के नाम पर किए जाने वाले अत्याचारों का भंडाफोड़ करता है। आचार्य चतुरसेन ने किस्सागोई के अपने खास अंदाज़ में, इस कथानक के जरिये धर्म और धर्म के ढोंग को बहुत ही भावनात्मक और रोचक ढंग से चित्रित किया है और दिखाया है कि भारत से बौद्ध धर्म का लोप किन कारणों से हुआ। पठनीयता इतनी है कि शुरू से अंत तक पाठक को बाँधे रखती है।
SKU: n/a -
Vani Prakashan, कहानियां
Devpriya
लगभग पिछली एक शताब्दी से समूची भारतीय आलोचना और अभी भी क्षीण रूप से सक्रिय शास्त्र-रचना की एक बड़ी कमजोरी यह रही है कि उसने शास्त्रीय कलाओं, उनमें आये महत्वपूर्ण परिवर्तनों और उनके माध्यम से पुनर्नवा होती परम्परा पर बहुत कम ध्यान दिया है। शास्त्रीय नृत्य और संगीता दोनों ही इस दुर्लक्ष्यता के शिकार रहे हैं। दोनों ही कलाओं में बहुत सारे परिवर्तन आये हैं, नये प्रभाव ‘सक्रिय और नवाचार हुए हैं: यह सब कई स्तरों पर। ‘विचारोत्तेजक’ है – खेद यही है कि ऐसी विचारोत्तेजना ने हमारी आलोचना में बहुत कम अपने होने का कोई साक्ष्य दिया है। इस सन्दर्भ में हमारे समय की एक महत्वपूर्ण और विचारशील सोनल मानसिंह पर एकाग्र यह पुस्तक हिन्दी में ही नहीं समूचे भारतीय परिदृश्य में अपना अलग स्थान रखती है। एक बहुश्रुत और स्पष्टभाषी कलाकार से संवाद पर आधारित यतीन्द्र मिश्र की यह पुस्तक पहल है, जो मार्गदर्शी भी है। एक कलाप्रेमी कवि का एक वरिष्ठ नर्तकी से संवाद अपने आप में रोमांचक और अभूतपूर्व है। वो एक स्तर पर दो। भिन्न सर्जनात्मकताओं के बीच संवाद भी है। सोनल मानसिंह की भावप्रवणता और कलाकौशल शुरू से ही विचार-पगे रहे हैं। उन्हें शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में। ‘सक्रिय रहने का अनुभव है उनकी नागरिकता सिर्फ़ शास्त्र-विहित मामला नहीं है। वह अनेक क्षेत्रों के ‘सस्पर्श और उनसे संवाद-सम्पर्क में रही है। इस कारण ‘उनसे बातचीत का रेज बहुत बड़ा हुआ है। शास्त्र परम्परा, नृत्य, संगीत रंगमच, साहित्य, प्रयोग गुरू ‘राजनीति सिनेमा अध्यात्म आदि बहुत सारे विषयों पर सोनल ने इन संवादों में अपने विचार, अनुभव, भावनाएँ, प्रतिक्रियाएँ मत-स्पष्टता और आत्मीयता से व्यक्त किये हैं।
SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dhalaan Se Utarte Hue
कला सिखाती नहीं, ‘जगाती’ है। क्योंकि उसके पास ‘परम सत्य’ की ऐसी कोई कसौटी नहीं, जिसके आधार पर वह गलत और सही, नैतिक और अनैतिक के बीच भेद करने का दावा कर सके. …तब क्या कला नैतिकता से परे है? हाँ, उतना ही परे जितना मुनष्य का जीवन व्यवस्था से परे। यहीं कला की ‘नैतिकता’ शुरू होती है… कोई अनुभव झूठा नहीं, क्योंकि हर अनुभव अद्वितीय है….झूठ तब उत्पन्न होता है, जब हम किसी ‘मर्यादा’ को बचाने के लिए अपने अनुभव को झुठलाने लगते हैं। सीता के अनुभव के सामने राम की मर्यादा कितनी पंगु और प्राणहीन जान पड़ती है… इसलिए नहीं कि उस मर्यादा में कोई खोट या झूठ है, बल्कि इसलिए कि राम अपनी मर्यादा बचाने के लिए अपनी चेतना को झुठलाने लगते हैं… जब हम कोई महान उपन्यास या कविता पढ़ते हैं, किसी संगीत-रचना को सुनते हैं, किसी मूर्ति या पेंटिंग को देखते हैं तो वह उन सब अनुभवों की याद दिलाती है, जो न सिर्फ़ हमें दूसरी कलाकृतियों से प्राप्त हुए हैं, बल्कि जो कला के बाहर हमारे समूचे अनुभव-संसार को झिंझोड़ जाता है…वह एक टूरिस्ट का निष्क्रिय अनुभव नहीं, जिसे वह अपनी नोटबुक में दर्ज करता है…वह हमें विवश करता है कि उस कलाकृति के आलोक में अपने समस्त अनुभव-सत्यों की मर्यादा का पुनर्मूल्यांकन कर सकें… -निर्मल वर्मा निर्मल वर्मा के निबन्धों की सार्थकता इस बात में है कि वे सत्य को पाने की सम्भावनाओं के नष्ट होने के कारणों का विश्लेषण करते हुए उन्हें पुनः मूर्त करने के लिए हमें प्रेरित करते हैं। निर्मल वर्मा लिखते हैं कि समय की उस फुसफुसाहट को हम अक्सर अनसुनी कर देते हैं, जिसमें वह अपनी हिचकिचाहट और संशय को अभिव्यक्त करता है क्योंकि वह फुसफुसाहट इतिहास के जयघोष में डूब जाती है-निर्मल वर्मा के ये निबन्ध इतिहास के जयघोष के बरअक्स समय की इस फुसफुसाहट को सुनने की कोशिश हैं। -नन्दकिशोर आचार्य
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Dharmaputra | धर्मपुत्र
धर्मपुत्र मनुष्य की अस्मिता के बारे में मूल प्रश्न उठाता है-क्या किसी इंसान का अस्तित्व इस बात पर निर्भर है कि वह किस परिवार में जन्मा या उसे किस प्रकार की शिक्षा संस्कार दिए गए या फिर इंसान की अस्मिता धर्म, शिक्षा और संस्कारों से परे इंसानियत से जुड़े जीवन-मूल्यों से है। यह कहानी है हिन्दू और मुसलमान परिवार की जिनका आपस में प्रेम भरा संबंध है। मुस्लिम परिवार की जवान लड़की की नाजायज़ औलाद को हिन्दू परिवार अपना लेता है और हिन्दू संस्कारों से उसका पालन-पोषण करता है। जवान होते-होते यह लड़का कट्टर हिन्दू बन जाता है और उसकी धारणा है कि मुसलमानों को भारत छोड़ देना चाहिए। इसी दौरान उसे अपनी जन्म देने वाली मां की सच्चाई का पता चलता है। मां और बेटे के आपसी संबंध होने के बावजूद वे नदी के दो अलग-अलग किनारों की तरह खड़े हैं और बीच में घृणा और अविश्वास की सुलगती नदी बह रही है। मशहूर फ़िल्म-निर्माता यश चोपड़ा ने 1961 में इस उपन्यास पर इसी नाम से फ़िल्म बनाई थी जो बहुत ही लोकप्रिय हुई थी।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Dharti Ab Bhi Ghoom Rahi Hai
‘पद्यमभूषण’ से सम्मानित लेखक विष्णु प्रभाकर का यह कहानी-संकलन हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ है। इसमें लेखक ने जिन चुनिंदा सोलह कहानियों को लिया है उन की दिलचस्प बात यह है कि अपनी हर कहानी से पहले उन्होंने उस घटना का भी उल्लेख किया है जिसने उन्हें कहानी लिखने की प्रेरणा दी।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, कहानियां
Dhoop-Chhanva
अटूट रिश्ता—क्षमा कीजिए पिताजी, जिस घर में प्रवेश के लिए मेरे पति जीवन भर तड़पते रहे, उस घर में प्रवेश के लिए मेरे कदम नहीं उठ सकते।
प्रेम-दीवानी—थैंक्स विनी, पर मुझे इसकी कीमत नहीं चाहिए। पेड़ों से झरी इन पत्तियों को मैंने एक नया रूप दिया है, मेरा यही पुरस्कार है। मारिया ने कहा।
धूप-छाँव—ब्रोकेन फैमिली का दर्द झेलता धूप-छाँव का जैकी और अकस्मात् का रिचर्ड, क्या किसी का प्यार उन्हें खुशी देता है?
चाहत की आहट और प्यार की सजा—मनोरंजक कहानियाँ हैं, नायिका अपनी मजेदार बातों से अपनी चाहत को अपना प्रेमी बनने को कैसे विवश कर देती हैं।
क्रिसमस की एक रात—अतुल के क्षमा माँगने पर भी पूजा क्यों उसे दंडित कराने का निर्णय लेती है।
प्यार के रंग—अमेरिका गई गीता रोनाल्ड के प्यार के शब्दों से मोहाविष्ट है। देव और रोनाल्ड के प्रेम के बीच गीता किसे चुनेगी?
इंतजार—कैंसरग्रस्त इरा का अमर के नाम अंतिम पत्र।
अकस्मात्—कहानी में रिचर्ड ने क्यों कहा, राम और सीता की न सही, रिचर्ड और मीता की जोड़ी खूब जमेगी। जॉन की गिफ्ट—दो नन्हे भाई-बहनों के प्यार की कहानी, जो आँखें नम कर देंगी।
मानसी इन वंडरलैंड—काली बिल्ली, अजायब घर का नमूना कहकर जेम्स जिस मानसी का उपहास करता था, क्यों उसी काली बिल्ली के साथ प्यार कर बैठता है?—इसी पुस्तक से संग्रह की विविध विषयक चौदह इंद्रधनुषी कहानियाँ कहीं पाठकों को प्रेम-रस में सरोबार कर मुग्ध करती हैं तो कभी जीवन के सच से परिचित कराती हैं। जीवन के विविध राग रोचक कहानियों की वस्तु बनते हैं। पुष्पा जी की कहानियाँ अचानक किसी घटना, कोई मन को छूनेवाली बात, किसी का साथ या किसी दृश्य आदि से प्रभावत होने पर लिखी गई प्रतीत होती हैं। इन कहानियों में परिवेश का महत्त्व स्पष्ट दिखाई देता है। कहानियों के परिचित परिवेश में पात्र सजीव नजर आते हैं।
SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dhundh Se Uthati Dhun
‘धुन्ध से उठती धुन’ एक ऐसे ही ‘समग्र, समरसी गद्य’ का जीवन्त दस्तावेज़ है, निर्मल वर्मा के ‘मन की अन्तःप्रक्रियाओं’ का चलता-फिरता रिपोर्ताज, जिसमें पिछले वर्षों के दौरान लिखी डायरियों के अंश, यात्रा-वृत्त, पढ़ी हुई पुस्तकों की स्मृतियाँ और स्मृति की खिड़की से देखी दुनिया एक साथ पुनर्जीवित हो उठते हैं। एक तरफ़ जहाँ यह पुस्तक उस ‘धुन्ध’ को भेदने का प्रयास है, जो निर्मल वर्मा की कहानियों के बाहर छाई रहती है, वहीं दूसरी तरफ़ यह उस ‘धुन’ को पकड़ने की कोशिश है, जो उनके गद्य के भीतर एक अन्तर्निहित लय की तरह प्रवाहित होती है।/
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Dhyaan
महान शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति की वार्ताओं तथा लेखन से संकलित संक्षिप्त उद्धरणों का यह क्लासिक संग्रह ध्यान के संदर्भ में उनकी शिक्षा को सार प्रस्तुत करता है-अवधान की, होश की वह अवस्था जो विचार से परे है, जो समस्त द्वंद्व, भय व दुख से पूर्णतः मुक्ति लाती है जिनसे मनुष्य-चेतना की अंतर्वस्तु निर्मित है। इस परिवर्द्धित संस्करण में मूल संकलन की अपेक्षा कृष्णमूर्ति के और अधिक वचन संगृहीत हैं, जिनमें कुछ अब तक अप्रकाशित सामग्री भी सम्मिलित है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Dilli Ab Door Nahin
धूल और सुस्ती में लिपटा पीपलनगर उत्तर भारत का एक छोटा-सा शहर है जहाँ ज़िंदगी बड़ी धीमी गति से चलती है और एक दिन से दूसरे दिन में कोई फर्क नहीं लगता। न कोई बड़ी घटना घटती और न ही बड़ी कोई खबर पैदा होती है। छोटे-से पीपल नगर के वासियों के सपने भी छोटे हैं जिनकी उड़ान दिल्ली पहुँच कर रुक जाती है। नाई दीपचंद का सपना है दिल्ली जाकर अपनी दुकान खोले और प्रधानमंत्री के बाल काटे। साइकिल-रिक्शा की जगह दिल्ली में स्कूटर-रिक्शा चलाना पीतांबर का सपना है और अज़ीज चाँदनी चौक में अपनी कबाड़ी की दुकान खोलने का सपना देखता है अपने को लेखक समझने वाला अरुण जासूसी उपन्यास लिखने के सपने देखता है और वेश्या कमला से भी प्यार करता है। इनमें से कौन अपने सपने पूरे कर पाते हैं और कौन पीपल नगर में ही रह जाते हैं-पढ़िए इस उपन्यास में। सरल भाषा, चुस्त कहानी और दिल को छू लेने वाले किस्सों से भरपूर रस्किन बान्ड का यह उपन्यास पाठकों को बहुत देर तक याद रहेगा। ‘‘वर्तमान भारत के एक बेहतरीन कहानीकार’’-ट्रिब्यून ‘‘एक लाजवाब किताब’’-आउट्लुक
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Dilli Durbar (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रDilli Durbar (PB)
‘दिल्ली दरबार’ पुस्तक में पिछले चार दशकों की राजनीति का छोटा ब्योरा दिया गया है। यह बताने का प्रयास किया है कि इन सालों में किस तरह से दिल्ली का राजनीतिक भूगोल बदला। इस दौरान किन नेताओं ने किस तरह की भूमिका अदा की। 1982 के एशियाई खेलों के आयोजन के समय दिल्ली में बड़े निर्माण कार्य हुए। भाजपा और कांग्रेस के अनेक नेताओं ने काफी काम करवाए। एच.के.एल. भगत ने यमुना पार को बदला, लेकिन दिल्ली के मूल ढाँचे की बेहतरी के लिए सबसे ज्यादा काम शीला दीक्षित के 15 साल के शासनकाल में हुए। तभी तो 2013 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने कहा था कि लोगों ने काम को महत्व नहीं दिया। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली में ऐतिहासिक जीत हासिल की। एक पत्रकार के नाते मनोज कुमार मिश्र ने इस पुस्तक में इन सभी के बारे में अपना नजरिया पेश किया है।
दिल्ली के शासन तंत्र और राजनीति में हुए बदलाव के साथ उनका जिन प्रमुख नेताओं से मिलना-जुलना रहा, इस पुस्तक में उनमें से कुछ के बारे में अपना अनुभव साझा किया है और कई ऐसे राजनीतिक किस्सों को लिखा है, जो पाठकों—खास करके राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए पठनीय हैं। संभव है कि इसमें नेताओं के बारे में दी गई जानकारी या उनसे जुड़े कई किस्से कुछ पाठकों को पता हों। श्री मिश्र ने उन सभी को एक साथ बताने का प्रयास किया है
SKU: n/a -
Literature & Fiction, Vani Prakashan, उपन्यास
Do Aurton Ke Patra (Paper Back)
“प्रस्तुत कृति में पुरुष शासित समाज में स्त्रियों की दुर्दशा का हू-ब-हू चित्रण है। स्त्री-भोग्या मात्र है और धर्मशास्त्रों में भी उसके पाँवों में बेड़ियाँ डाल रखी हैं। ईश्वर की कल्पना तक में परोक्षतः नारी-पीड़ा का समर्थन किया गया है। सामाजिकत रूढ़ियों के पालन में, और दाम्पात्य जावन के प्रत्येक क्षेत्र में-यानी स्त्रियों के किसी भी मामले में पुरुषों की लालसा, नीचता, आक्रमकता, और निरंकुश भाव को तसलीमा ने खुले आम चुनौती दी है। अपनी दुस्साहसपूर्ण भाषा-शाली और दो टूक अंदाज में अपने विचारों को इस तरह रखा है कि पाठक एक बारगी तो तिलमिला उठता है। पुरुष शासित समाज में स्त्रियों के अधिकार और नारी–मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे पेश किये जाएँ, बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन का स्वर निस्सन्देह सबसे भास्वर है। उनके लेखन का तेवर सर्वाधिक व्यंग्य मुखर और तिलमिला दोनो वाला है। संस्कार मुक्ति प्रतिवादी और बेबाक तसलीमा ने अपने ‘निर्वाचित कलम’ द्वारा बांग्लादेश में एक जबरदस्त हलचल-सी मचा दी और जैसा कि तय था, विवाद के केन्द्र में आ गयी। इस अप्रतिम रचना को आनन्द पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की खबर से सारे देश में एक कृति के प्रति स्वभावतः कौतुहल पैदा हो गया। उक्त रचना के साथ उनके द्वारा इसी विषय पर लिखित उनके अन्य लेखों को भी पस्तुत संस्करण में सम्मिलित कर लिया गया है। इस कृति में तसलीमा ने बचपन से लेकर अब तक की निर्मम, नग्न और निष्ठुर घटनाओं और अनुभवों के आलोक में नये सवाल उठाए गये हैं, जिनसे स्त्रियों के समान अधिकारों को एक सार्थक एवं निर्णायक प्रस्थान प्राप्त हुआ है। “
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Do Chattanein
देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।
SKU: n/a