Rajpal and Sons
Showing 73–96 of 164 results
-
Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon
प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Lakshmi Prasad Ki Amar Dastan
एक दुबली और लंबी सी लड़की पूरे गांव को बदल देती है. अड़सठ साल की बूढ़ी नोनी आपा एक शादीशुदा आदमी की ओर आकर्षित हैं और सोचती हैं कि रिश्तों को परिभाषित करना ज़रूरी क्यों है. बबलू केवट का परिवार आतंकित है कि उसपर सेनिटरी नैपकिन्स का जुनून सवार है और पांच शादियां करनेवाली एक नौजवान लड़की अपनी हरेक शादी के मंसूबे बनाते वक्त मौसम की भविष्यवाणियों पर नज़र रखती है. इस मज़ेदार, बारीक निगाहों वाली और समझदार क़िस्सागोई से आप खुद को दूर नहीं रख सकेंगे।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Aadamkhor
विश्व प्रसिद्ध ‘मालगुडी की कहानियां’ की तरह ही आर.के. नारायण के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि भी उनका प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी है। यहां रहने वाले नटराज की शांत ज़िंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उसकी प्रिंटिंग प्रेस की ऊपरी मंज़िल पर वासु डेरा डाल लेता है। वासु अव्वल दर्जे का गुंडा और फसादी है। उसका पेशा मरे हुए जानवरों की खाल में भूसा भर उन्हें सजावटी रूप देना है, इसलिए वह खुलेआम उनका शिकार करता है। यहां तक कि नटराज की प्यारी बिल्ली भी वासु की भेंट चढ़ जाती है और वह कुछ नहीं कर पाता। बड़े शिकार की तलाश में वासु मंदिर के हाथी पर निशाना साधने की फिराक में है। आखिरकार, नटराज भी वासु को सबक सिखाने की ठान लेता है और बड़ी होशियारी और सावधानी से एक-एक कर उसकी सभी चालों को नाकाम कर देता है। मंदिर में नृत्य करने वाली दिलकश रंगी और नटराज का निजी सहायक शास्त्री ‘मालगुडी का आदमख़ोर’ को और भी रंगीन और दिलचस्प बनाते हैं। उनकी बातें और हरकतें भीतर तक गुदगुदा देती हैं।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Chalta Purza
इस चुलबुले और रोचक उपन्यास में एक बार फिर लेखक आर.के. नारायण ने अपने प्रिय स्थान ‘मालगुडी’ को पृष्ठभूमि में रखा है। मार्गैय्या अपने आप को एक बहुत बड़ा वित्तीय सलाहकार समझता है लेकिन वास्तव में वह एक चलता पुर्ज़ा के अलावा कुछ नहीं जो औरों को सलाह मशवरा देकर, अनपढ़ किसानों को यह समझाकर कि कैसे वे बैंक से ऋण ले सकते हैं और तरह-तरह के छोटे-मोटे फार्म बेचकर अपनी अच्छी खासी आमदनी कर लेता है। उसका ‘दफ़्तर’ है मालगुडी का बरगद का पेड़, जिसके नीचे वह अपनी कलम, स्याही की दवात और टीन का बक्सा लेकर बैठता है और शायद आपको आज भी बैठा मिलेगा…आर.के. नारायण शायद अंग्रेज़ी के ऐसे पहले भारतीय लेखक हैं जिनके लेखन ने न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पाठकों में भी अपनी जगह बनाई। उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों के लिए न केवल रोचक विषयों को चुना, बल्कि उन्हें अपने चुटीले संवादों से इतना चटपटा भी बना दिया कि जिसने भी उन्हें एक बार पढ़ा उसमें नारायण की रचनाओं को पढ़ने की चाहत और बढ़ गई।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Mehmaan
काल्पनिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास में लेखक आर.के. नारायण ने एक अपने से मिलता-जुलता किरदार रचा है जो बेहद मज़ेदार कहानियां सुनाने वाला बातूनी है। बातू एक पत्रकार के रूप में अपनी जगह बनाने में लगा हुआ है। उसकी मुलाकात होती है डा. रोन से जो मालगुडी में संयुक्त राष्ट्र की एक बहुत बड़ी परियोजना पर काम करने के लिए पहुँचते हैं। डा. रोन बातों में बातू से भी ज़्यादा होशियार हैं और बातू को फुसलाकर उसके ही घर में रहने लगते हैं। पता चलता है कि मालगुडी में आए मेहमान, डा. रोन मालगुडी की किसी लड़की को बहकाने के चक्कर में हैं और तभी उनकी पत्नी भी वहां आ पहुंचती है! क्या होता है इस सबका अंजाम-पढ़िए इस चुलबुली, जादुई कहानी में। विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक आर.के. नारायण की यह विशेषता रही है कि वह ज़िंदगी की छोटी से छोटी बात को बहुत जीवंत और मनोरंजक बना देते हैं। ‘ गाइड’ और ‘मालगुडी की कहानियां’ की तरह इस उपन्यास में भी जीवन के हर रस का आनन्द पाठक को मिलता है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Mithai Wala
साठ साल की उम्र में जगन आज भी अपने-आपको पूरी तरह जवान रखता है और कड़ी मेहनत से अपनी मिठाई की दुकान चलाता है, जिससे वह अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा लेता है। आराम से चल रही जगन की ज़िन्दगी में उथल-पुथल आ जाती है, जब उसका बेटा माली अमरीका से अपनी नवविवाहिता कोरियन पत्नी के साथ मालगुडी आता है और यहां से शुरू होता है दो पीढ़ियों के विचारों के बीच टकराव। भरपूर कोशिश करने के बाद भी जगन अपने पारम्परिक ख्यालों को नहीं बदल पाता और काम-धन्धे को छोड़कर धार्मिक कार्यों और यात्राओं की तरफ अपना मन लगाने की सोचता है और तभी यह खबर आती है कि उसका बेटा पुलिस की हिरासत में है और उसने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया है। इस स्थिति से जगन कैसे निकलता है, पढ़िये इस रोचक उपन्यास में जो आर. के. नारायण के अपने अनूठे ढंग में लिखा गया है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Printer
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखक आर.के. नारायण लिखते तो अंग्रेज़ी में थे लेकिन उनकी सभी पुस्तकों के पात्र और घटनास्थल पूरी तरह भारत की मिट्टी से जुडे़ होते हैं। उनके लेखन में सहजता और मन को गुदगुदाने वाले व्यंग्य का एक अनोखा मिश्रण मिलता है, जो उनकी हर कृति को अपना ही एक अलग रंग प्रदान करता है। ‘मालगुडी का प्रिन्टर’ सम्पत और श्रीनिवास की दोस्ती की कहानी है। सम्पत मालगुडी में एक प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं और श्रीनिवास एक पत्र निकालते हैं, जो सम्पत के प्रेस में छपता है और यहीं से शुरू होती है दोनों की दोस्ती की कहानी जिसमें कई मज़ेदार किस्से, रोचक मोड़ और अजीबो-गरीब परिस्थितियां आती हैं। लेखक के प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी पर आधारित यह एक पठनीय और रोचक उपन्यास है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Maalgudi Ki Kahaniyaan
अपने उपन्यास ‘गाइड’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित तथा पद्मविभूषण द्वारा अलंकृत उपन्यासकार आर.के. नारायण विश्वस्तरीय रचनाकार गिने जाते हैं। उनके उपन्यास ‘गाइड’ पर बनी फिल्म ने उन्हें लोकप्रियता का एक और आयाम दिया, जिसे आज भी याद किया जाता है। ‘मालगुडी की कहानियां’ आर.के. नारायण की अद्भुत रोचक कहानियां समेटे हुए पुस्तक है। अपने दक्षिण भारत के प्रिय क्षेत्र मैसूर और चेन्नई में घूमते हुए उन्होंने आधुनिकता और पारंपरिकता के बीच यहां-वहां ठहरते साधारण चरित्रों को देखा और उन्हें अपने असाधारण कथा-शिल्प के ज़रिये, अपने चरित्र बना लिये। ‘मालगुडी के दिन’ पर दूरदर्शन ने धारावाहिक बनाया जो दर्शक आज तक नहीं भूले हैं। दशकों बाद भी ‘मालगुडी के दिन’ की कहानियां उतनी ही जीवंत और लोकप्रिय हैं, जितनी पहले कभी थीं। यही उनकी खूबी है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Madhubala
अग्रणी कवि बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य ‘मधु’ अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और ‘मधुशाला’ एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम ‘मधुशाला’ ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई और कालजयी रचनाओं कर श्रेणी में आ खड़ी हुई है। इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है: ‘आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं…, आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा।”
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Madhukalash
‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’, ‘मधुकलश’ अग्रणी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ के तीन कविता-संकलन हैं जो हिन्दी साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं और कालजयी श्रृंखलाओं की कड़ी में आ खड़े हुए हैं। इन कविताओं की रचना के समय बच्चन जी की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। ‘मधुकलश’ की भूमिका में बच्चन जी ने लिखा है, ‘‘ये कविताएं सन् 1935-36 में लिखी गईं और सर्वप्रथम 1937 में प्रकाशित हुईं। इसके पहले मधुशाला 1935 में और ‘मधुबाला’ 1936 में प्रकाशित हो चुकी थीं। मेरे जीवन का जो उत्साह, उल्लास और उन्माद-गो उनमें एक अभाव, एक असन्तोष, एक निराशा की व्यथा भी घुली-मिली थी-‘मधुशाला’ और ‘मधुबाला’ में व्यक्त हुआ था, वह अब उतार पर था।’’ आगे लिखते हैं, ‘‘ये कविताएं जीवन के रस से खाली नहीं हैं और जीवन का रस मधु ही मधु नहीं होता, कटु भी होता है…समर्थ के हाथों अमृत भी बनता है।’’
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Madhushala
हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना ‘मधुशाला’ 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है। मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Magnamaati
माटी ने ही रची विनाशलीला और उसी माटी से फिर मिला पुनर्जीवन…. 1999 में ओड़िशा में एक ऐसा भयंकर साइक्लोन आया जो उत्तरी हिन्द महासागर में अभी तक का सबसे विनाशकारी साइक्लोन था। समुद्र का पानी तट को पार कर 35 किलोमीटर अन्दर तक पहुँच कर जगतसिंहपुर जिले के तमाम गाँवों को तहस-नहस कर गया और अनुमान है कि 50, 000 लोगों की इसमें जान गयी। साइक्लोन के चार दिन बाद लेखिका प्रतिभा राय जगतसिंहपुर ज़िला गयीं। कुछ राहत-सामग्री इकट्ठी कर उन्होंने बचे हुए लोगों में बाँटी। दिल दहलाने वाले प्रकृति के इस विनाश से प्रतिभा राय बहुत विचलित हुईं और चार साल तक लगातार जगतसिंहपुर ज़िला जाती रहीं और राहत कार्य के अतिरिक्त वहाँ जिन लोगों ने अपने परिजन खोये थे, उनकी काउंसलिंग भी की। इन चार वर्षों के अनुभव के आधार पर जगतसिंहपुर के तटवर्ती क्षेत्र के लोगों के जीवन पर उन्होंने यह उपन्यास रचा है। जगतसिंहपुर एक ज़माने में सम्पन्न कलिंग साम्राज्य का हिस्सा था-उस ऐतिहासिक समय से लेकर साइक्लोन आने तक और इसके बाद वहाँ की संस्कृति, लोगों का रहन-सहन और उनकी जीविका कैसे परिवर्तित हुई, इन सबको समेटा गया है इस उपन्यास में। साइक्लोन को केन्द्र में रखते हुए, जहाँ एक ओर मग्नमाटी इस सारे परिवर्तन विशेष की कहानी है वहीं यह मानव के अदम्य साहस की गाथा है जो सब कुछ लुट जाने के बाद भी जीने की अभिलाषा रखता है।
SKU: n/a -
-
Rajpal and Sons, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Maharani Jhansi
यह 1857 के स्वातंत्रय-संग्राम की मुख्य योद्धा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस और वीरता की कहानी है। एक और होने के बावजूद, अपने छोटे-से राज्य, झांसी को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए रानी ऐसी वीरता और निडरता से लड़ी कि अंग्रेज़ भी उसकी बहादुरी के कायल हो गए। अपनी आखिरी साँस तक रानी लड़ती रही और चौबीस वर्षों की छोटी उम्र में वह अपने देश के लिए वीरगति को प्राप्त हो गई। दिलो-दिमाग पर छा जाने वाली झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की यह रोमांचक ऐतिहासिक गाथा भारत के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। रोचक और प्रेरणाप्रद।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Mahatma Ka Intezaar
महात्मा गांधी और उनके राष्ट्रीय आंदोलन की कहानी के साथ यह दो युवा दिलों की प्रेम कहानी है। दोनों को अपनी-अपनी मंज़िल की तलाश है। दोनों प्रेमी अपनी चाहत को तब तक दबाए रखते हैं जब तक स्वतंत्रता के लिए चलने वाला संघर्ष पूरा नहीं हो जाता और उन्हें एक-दूसरे को अपनाने के लिए महात्मा गांधी की स्वीकृति नहीं मिल जाती। वर्षों चले इस इंतज़ार में उन्हें किन-किन मुसीबतों और ज़ोखिमों से होकर गुज़रना पड़ता है, इसका बेहद रोमांचक वर्णन करता है यह उपन्यास। आर.के. नारायण की अनोखी शैली में लिखा यह बेहद रोचक उपन्यास बाकी उपन्यासों से हटकर है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Main Bheeshm Bol Raha Hoon
महाभारत में सबसे विशिष्ट चरित्र भीष्म पितामह का है। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने आजन्म ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की और साथ ही राजसिंहासन पर अपने अधिकार को भी तिलांजलि दी। दुर्योधन के विचारों, नीतियों और दुष्कर्मों के घोर विरुद्ध रहते हुए भी कौरवों के पक्ष की सेवा करने की विवशता को स्वीकार किया। राजदरबार में द्रौपदी चीरहरण के समय क्रोध और लज्जा से दाँत पीसकर रह गए। परंतु खुलकर विरोध करने में विवश रहे। महाभारत युद्ध में भी कौरव सेना का सेनापतित्व करना पड़ा। जबकि मन से पाण्डवों के पक्षधर थे। उनका हृदय पाण्डवों के साथ था, शरीर कौरवों की सेवा में। अनेक अन्तर्विरोधों से भरे भीष्म पितामह के चरित्र को बहुत ही पैनी दृष्टि से परखते हुए रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है इसके लेखक भगवतीशरण मिश्र ने।
SKU: n/a -
Ayuvardhak Health Care, Rajpal and Sons
Main Se Maa Tak
माँ बनने के साथ शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर जो परिवर्तन होते हैं और अनुभूतियों में जो उतार-चढ़ाव आते हैं उनके बारे में बहुत अंतरंगता से मैं से माँ तक में बात की गयी है। साथ ही कुटुम्ब को आगे बढ़ाने के लिए जो परिवार और समाज का दबाव और अपेक्षा का बोझ एक नयी-नवेली दुल्हन पर डाला जाता है, उसकी भी चर्चा है। माँ बनने पर औरत के पूरे व्यक्तित्व, सोच और जीवन-मूल्यों में परिवर्तन आ जाता है, एक तरह से उसका अस्तित्व ही बदल जाता है और माँ का रूप उसके अन्य सभी अस्तित्वों पर जैसे हावी हो जाता है। मैं से माँ तक अनुभव यात्रा केवल अंकिता जैन की ही नहीं, बल्कि वह उन सब महिलाओं और बहुत से दम्पतियों की है जो जीवन के इस सुन्दर मोड़ पर हैं। वे सब लेखिका की यात्रा में अपनी यात्रा की कहानी पायेंगे। अपनी प्रेग्नेंसी के दौरान अंकिता जैन ने प्रभात खबर और लल्लनटॉप में ‘माँ-इन-मेकिंग’ स्तम्भ लिखना शुरू किया, जिसे पाठकों ने बहुत पसन्द किया और वहीं से इस पुस्तक की प्रेरणा मिली। तीन वर्षों तक वह बतौर सम्पादक और प्रकाशक के रूप में मासिक पत्रिका रू-ब-रू दुनिया का प्रकाशन कर चुकी हैं और अब तक अंकिता जैन का एक कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुका है। उनका संपर्क है
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajpal and Sons, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Manas Ka Hans
मानस का हंस” लेखक अमृतलाल नागर का प्रतिष्ठित बृहद उपन्यास है। इसमें पहली बार व्यापक कैनवास पर “रामचरितमानस” के लोकप्रिय लेखक गोस्वामी तुलसीदास के जीवन को आधार बनाकर कथा रची गई है, जो विलक्षण के रूप से प्रेरक, ज्ञानवर्धक और पठनीय है। इस उपन्यास में तुलसीदास का जो स्वरूप चित्रित किया गया है, वह एक सहज मानव का रूप है। यही कारण है कि “मानस का हंस” हिन्दी उपन्यासों में ‘क्लासिक’ का सम्मान पा चुका है और हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि माना जाता है। नागर जी ने इसे गहरे अध्ययन और मंथन के पश्चात अपने विशिष्ट लखनवी अन्दाज़ में लिखा है। बृहद होने पर भी यह उपन्यास अपनी रोचकता में अप्रतिम है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Mann Kya Hai
”मन का मौन परिमेय नहीं है, उसे मापा नहीं जा सकता। मन को पूरी तरह से खामोश होना होता है, विचार की एक भी हलचल के बिना। और यह केवल तभी घटित हो सकता है, जब आपने अपनी चेतना की अंतर्वस्तु को, उसमें जो कुछ भी है उस सब को, समझ लिया हो। वह अंतर्वस्तु, जो कि आपका दैनिक जीवन है–आपकी प्रतिक्रियाएं, आपको जो ठेस लगी है, आपके दंभ, आपकी चातुरी तथा धूर्ततापूर्ण छलावे, आपकी चेतना का अनन्वेषित, अनखोजा हिस्सा–उस सब का अवलोकन, उस सब का देखा जाना बहुत ज़रूरी है; और उनको एक-एक करके लेने, एक-एक करके उनसे छुटकारा पाने की बात नहीं हो रही है। तो क्या हम स्वयं के भीतर एकदम गहराई में पैठ सकते हैं, उस सारी अंतर्वस्तु को एक निगाह में देख सकते हैं, न कि थोड़ा-थोड़ा करके? इसके लिए अवधान की, ‘अटेन्शन’ की दरकार होती है…“ मन की थाह पाने के मनुष्य ने बड़े जतन किये हैं। जीवन में उसकी सम्यक् भूमिका क्या है, सही जगह क्या है, यह जिज्ञासा इतिहास के प्रारंभ से ही मंथन और संवाद का विषय रही है। मन एवं जीवन से जुड़े इन प्रश्नों की यात्रा को जे.कृष्णमूर्ति ने नया विस्तार, नये आयाम दिये हैं। 1980 में श्रीलंका में प्रदत्त इन वार्ताओं में मनुष्य के जीवन को एक ऐसी किताब का रूपक दिया गया है, जो वह स्वयं है; और उसका पाठक भी वह स्वयं ही है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meri Jeewan Gatha
मेरी जीवन गाथा आर. के. नारायण की आत्मकथा है जिसमें उन्होंने नानी के घर बिताये बचपन के दिनों से लेकर लेखक बनने की अपनी यात्रा का वर्णन किया है। उनके लेखन में सहजता और मन को गुदगुदाने वाले हल्के व्यंग्य का अनोखा मिश्रण मिलता है जो इस आत्मकथा को एक अलग ही रंग प्रदान करता है। वे जि़न्दगी से जुड़ी छोटी से छोटी बातों को जीवन्त और मनोरंजक बना देते हैं और यही कारण है कि इस आत्मकथा को पढ़ते हुए पाठक उनके जीवन के उतार-चढ़ाव और संघर्षों में पूरी तरह डूबा रहता है। आर. के. नारायण विश्व स्तर के ख्यातिप्राप्त लेखक थे। लिखते वह अंग्रेज़ी में थे लेकिन उनकी सभी कहानियों के पात्रा और घटना-स्थल भारत की मिट्टी से जुड़े थे। उनका जन्म 10 अक्तूबर 1906 में मद्रास में हुआ था। उन्होंने अपने जीवनकाल में 15 उपन्यास, 5 कहानी-संग्रह, यात्रा-वृत्तांत और निबन्ध लिखे। उनके उपन्यास गाइड के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य में योगदान के लिए उन्हें 1964 में पद्मभूषण और 2000 में पद्मविभूषण से नवाज़ा गया। 2001 में 94 वर्ष की आयु में आर.के. नारायण ने इस दुनिया को अलविदा कहा लेकिन अपने साहित्य के माध्यम से पाठकों के दिलों में वे हमेशा जीवित रहेंगे।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Meri Priya Kahaniyaan
प्रतिभा राय की गिनती भारत के अग्रणी लेखकों में होती है। अभी तक इनके सत्रह उपन्यास, आठ यात्रा-वृत्तांत और तीन सौ से अधिक कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। लिखती यह अपनी मातृभाषा उड़िया में हैं, लेकिन इनकी कृतियाँ कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं जिन में से प्रमुख है ‘द्रौपदी’। इनके लेखन में उस सामाजिक न्याय और विकास की तलाश रहती है जिस में धर्म, जात, प्रांत, भाषा का कोई भेदभाव नहीं और पुरुष-स्त्री दोनों का समान दर्जा है। इस पुस्तक में उन्होंने उन बारह कहानियों को चुना है जो उन्हें विशेष प्रिय हैं।
SKU: n/a