Format:Hard Bound
ISBN:81-7055-264-8
Author:NARENDRA KOHLI
Pages:224
नरेन्द्र कोहली
Rs.300.00
Format:Hard Bound
ISBN:81-7055-264-8
Author:NARENDRA KOHLI
Pages:224
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अनंत विजय की पुस्तक का शीर्षक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ एक बार पाठक को चौंकाएगा। क्षणभर के लिए उसे ठिठक कर यह सोचने पर विवश करेगा कि कहीं यह पुस्तक मार्क्सवादी आलोचना अथवा मार्क्सवादी सिद्धान्तों की कोई विवेचना या उसकी कोई पुनव्र्याख्या स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है। मगर पुस्तक में जैसे-जैसे पाठक प्रवेश करता जायेगा उसका भ्रम दूर होता चला जायेगा। अन्त तक आते-आते यह भ्रम उस विश्वास में तब्दील हो जायेगा कि मार्क्सवाद की आड़ में इन दिनों कैसे आपसी हित व स्वार्थ के टकराहटों के चलते व्यक्ति विचारों से ऊपर हो जाता है। कैसे व्यक्तिवादी अन्तर्द्वन्द्वों और दुचित्तेपन के कारण एक मार्क्सवादी का आचरण बदल जाता है। पिछले लगभग एक दशक में मार्क्सवाद से। हिन्दी पट्टी का मोहभंग हुआ है और निजी टकराहटों के चलते मार्क्सवादी बेनकाब हुए हैं, अनंत विजय ने सूक्ष्मता से उन कारकों का विश्लेषण किया है, जिसने मार्क्सवादियों को ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विचारधारा बड़ी है या व्यक्ति। व्यक्तिवाद के बहाने अनंत विजय ने मार्क्सवाद के ऊपर जम गयी उस गर्द को हटाने और उसे समझने का प्रयास किया है। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ दरअसल व्यक्तिवादी कुण्ठा और वैचारिक दम्भ को सामने लाता है, जो प्रतिबद्धता की आड़ में सामन्ती, जातिवादी और बुर्जुआ मानसिकता को मज़बूत करता है। आज मार्क्सवाद को उसके अनुयायियों ने जिस तरह से वैचारिक लबादे में छटपटाने को मजबूर कर दिया है, यह पुस्तक उसी निर्मम सत्य को सामने लाती है।
पुस्तक के बारे मै
पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद पनपने के बाद पिछले 50 वर्षों की राजनीतिक हिंसा से पूरी तरह परिचित कराती पहली पुस्तक। 1967 में किसानों के आंदोलन, उद्योगों में बंद और हड़ताल, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में बमों के धमाके तथा रिवाल्वरों से निकलती गोलियों के साथ अराजकता भरे आंदोलनों की जानकारी। 1972 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दमनचक्र के बाद 1977 में वाम मोर्चे की सरकार के गठन के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तृत विवरण। माकपा ने त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू करने के बाद किस तरह राजनीतिक हिंसा के सहारे सत्ता पर पकड़ बनाए रखी। 1978 से 2018 तक हुए नौ पंचायत चुनावों के दौरान हत्याओं और हिंसा का पूरी जानकारी के साथ 2013 और 2018 में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस द्वारा पंचायत चुनाव में वोटों की खूनी लूट का पुस्तक में खुलासा किया गया है।
हम चारदिवारी के अंदर सुख की जिंदगी जीते हैं, लेकिन सुख देने वाले कोई और नहीं हमारे देश के रक्षक पुलिसकर्मी और सुरक्षाबल के लोग हैं, जो दिन-रात अपनी जान हथेली पर लेकर हमारी सुरक्षा का दायित्व उठाते हैं।इस उपन्यास में बस्तर (नक्सलवादी क्षेत्र) में कार्यरत सैन्य सेवा की दुविधाएं ,परेशानियां, जद्दोजहद और उनकी कर्तव्यनिष्ठा का जीवंत चित्रण है। पढ़ने की लालसा हर पृष्ठ की साथ बढ़ती ही जाती है।बस्तर एक ऐसी जगह है जहां बाहर से बहुत कम लोगों का आना जाना होता है, ऐसे में आप जब इस उपन्यास को पढ़ेंगे, तो वहां से संबंधित बहुत सारी जानकारियों से अवगत होंगे।
कमल जी ने बहुत ही सहज, सरल और रोचक भाषा में कहानी लिखी है। लेखक क्योंकि स्वयं पैरा मिलिट्री में अफसर हैं ,इसलिए अनुभव की प्रामाणिकता का कयास लगाया जा सकता है। बस्तर की माटी की खुशबू, पुलिस का कठिन जीवन, जान हथेली पर लेकर जंगल जंगल कई दिन लगातार पेट्रोलिंग करना आपको रोमांचित कर देगा।
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