Religious & Spiritual Literature
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedon me Ishwar ka Swaroop
विद्वान् मनीषी व सुचिंतक श्री वेद प्रकाश जी द्वारा अपने ग्रंथ का नाम ‘वेदों में ईश्वर का स्वरूप‘ इसलिए रखा है की ब्रह्म को वेद की दृष्टि से जानने की जिनकी इच्छा है वह इसे पढ़कर तृप्त हों और ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को जान सकें।
इस क्रम में उन्होंने एक सौ ऐसे मंत्रों का चयन किया है, जिनमें ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव का स्पष्ट प्रतिपादन है।
आपने अपने इस संग्रह में महर्षि दयानंद के वेद भाष्य को ही आधार बनाकर, उन्हीं की चिंतन परंपरा को आगे बढ़ाया है। जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का यदि कोई उपाय है तो वह है उस आनंदघन पारब्रह्म को जानना, उसकी आज्ञा का पालन करना, उसको प्राप्त करना।
उस पारब्रह्म को जानने के लिए आईए हम अपनी ब्रह्म-विषयक जिज्ञासा को इस पुस्तक द्वारा शांत करें। -आचार्य नंदिता शास्त्री चतुर्वेदी, वाराणसीSKU: n/a -
Patanjali-Divya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Vichar Kranti (Hindi)
This book can be considered as the building block for creation of ideal nation and peaceful world. Vichar Kranti is an effort of Patanjali Yogpeeth to make this world free from diseases, sorrow, poverty and fear by transforming the thoughts of the people and showing them ways to achieve clear mind through yoga. This is a humble attempt of Swami Ramdev ji and Acharya Balkrishna jI for generating positive perceptions of people towards life, nation and the world. The book is a blessing for the mankind as it helps people to transform their lives from the darkness of sorrow to the sunlight of wisdom. Vichar Kranti has answers to all sorts of questions which arise in the mind of an individual for attaining peace and happiness.
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Vidhyarthiyon Ke Liye Gita (HB)
‘गीता’ कालजयी ग्रंथ है। यह भक्ति के साथ-साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। अपने कर्तव्य-पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्म-पथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है, महती योगदान है।
विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में पग-पग पर काम आएगा। जीने की कला आ जाएगी। आपत्तियों तथा कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अपने-पराए और मित्र-शत्रु के मोह से मुक्त होने का ज्ञान हो जाएगा। अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की भेंट चढ़ गया, दुःख और संतापों का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ? पाप और पुण्य कर्मों का फल तो भोगना निश्चित ही हो गया!
इस पुस्तक को विशेष रूप से छात्रों-विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गीता के हर अध्याय में जो महत्त्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें स्मरण किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं है, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएँ, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए सन्मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचें, यही इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य है।
विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण तथा कर्तव्य-पथ पर सतत चलने की प्रेरणा देनेवाली एक अनुपम पुस्तक।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Vidhyarthiyon Ke Liye Gita (PB)
‘गीता’ कालजयी ग्रंथ है। यह भक्ति के साथ-साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। अपने कर्तव्य-पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्म-पथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है, महती योगदान है।
विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में पग-पग पर काम आएगा। जीने की कला आ जाएगी। आपत्तियों तथा कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अपने-पराए और मित्र-शत्रु के मोह से मुक्त होने का ज्ञान हो जाएगा। अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की भेंट चढ़ गया, दुःख और संतापों का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ? पाप और पुण्य कर्मों का फल तो भोगना निश्चित ही हो गया!
इस पुस्तक को विशेष रूप से छात्रों-विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गीता के हर अध्याय में जो महत्त्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें स्मरण किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं है, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएँ, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए सन्मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचें, यही इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य है।
विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण तथा कर्तव्य-पथ पर सतत चलने की प्रेरणा देनेवाली एक अनुपम पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Vidrohi Sannyasi
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासVidrohi Sannyasi
श्री नगर से कामरूप-कामाख्या और कलकत्ता से कोच्चि तक आदिशंकर के नाम की पारसमणि हमारा मार्ग प्रदीप्त करती गई। उस महान् यात्री के पदचिह्न खोजते हुए अनायास ही भारत भर की प्रदक्षिणा कब संपन्न हो गई पता नहीं चला।
हर सुधार कालांतर में स्वयं रूढि़ बन जाता है, हर क्रांति को पोंगापंथी बनते हुए और मुक्ति-योद्धाओं को तानाशाह बनते देखना इतिहास की आदत है। वे विद्रोही थे, उन्होंने मानव बलि समेत तत्समय के ढोंग, पाखंड, वामाचार का प्राणपण से विरोध किया। संन्यासी होते हुए उनमें यह कहने का साहस था कि मैं न मूर्ति हूँ, न पूजा हूँ, न पुजारी हूँ, न धर्म हूँ, न जाति हूँ।
आदिशंकराचार्य के पास आज के युवाओं के सभी प्रश्नों का उत्तर है, उनकी जिज्ञासाओं और कुंठाओं के भी। उनसे बड़ा प्रबंधन गुरु कौन होगा, जिसने शताब्दियों पहले केरल के गाँव से यात्रा प्रारंभ कर संपूर्ण राष्ट्र की चेतना और जीवन-पद्धति को बदल दिया।
जो संन्यासी संसार के सारे अनुशासनों से परे हुआ करते थे, उन्हें अखाड़ों और आश्रमों में संगठित कर अनुशासित और नियमबद्ध कर दिया। बौद्धों और हिंदुओं के संघर्ष को शांत कर दिया। शैवों, वैष्णवों, शाक्तों, गाणपत्यों, सभी को एक सूत्र में पिरो दिया।
उस अद्भुत तेजस्वी बालक, चमत्कारी किशोर और सम्मोहक युवा शंकर की यह कथा आपको उनके विख्यात जीवन के अज्ञात प्रसंगों का दिग्दर्शन करा पाएगी, यह इस पुस्तक का विनम्र उद्देश्य है।SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
VIGYAN, DHARM AUR KALA
Vigyan, Dharm Aur Kala–विज्ञान, धर्म और कला
विज्ञान, धर्म और कला के अंतर-संबंध को समझाते हुए ओशो कहते है:ये तीन बातें मैंने कहीं। विज्ञान प्रथम चरण है। वह तर्क का पहला कदम है। तर्क जब हार जाता है तो धर्म दूसरा चरण है, वह अनुभूति है। और जब अनुभूति सघन हो जाती है तो वर्षा शुरू हो जाती है, वह कला है।और इस कला की उपलब्धि सिर्फ उन्हें ही होती है जो ध्यान को उपलब्ध होते हैं। ध्यान की बाई-प्रॉडक्ट है। जो ध्यान के पहले कलाकार है, वह किसी न किसी अर्थों में वासना केंद्रित होता है। जो ध्यान के बाद कलाकार है, उसका जीवन, उसका कृत्य, उसका सृजन, सभी परमात्मा को समर्पित और परमात्मामय हो जाता है।’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, उपन्यास
Vinayak Sahasra Siddhai
भारतीय जनमानस में विनायक को लेकर जैसी श्रद्धा व विश्वास है, वही उसे लोक नायक बनाने के लिए पर्याप्त है। वह सामाजिक दृष्टि से रूढि़ग्रस्त समाज को दिशा देता है और सामाजिक सरोकारों से जुड़कर लोक-कल्याण को सर्वोपरि मानता है। भारत में आर्यावर्त के समय से ही या यों कहें, उससे पूर्व से ही गणेश, गणपति, गणनायक एक ऐसे नायक रहे हैं, जो अपने श्रेष्ठ कार्यों के कारण घर-घर में वंदनीय रहे। मानव समाज उन्हीं की वंदना करता है, जो सेवा के बदले कोई अपेक्षा नहीं करते।
विघ्नहर्ता-मंगलमूर्ति-लंबोदर गणेशजी पर केंद्रित इस औपन्यासिक कृति का लेखन इसी वर्ष में पूर्ण हुआ, जिसका आधार मार्कंडेयपुराण, अग्निपुराण, शिवपुराण और गणेशपुराण सहित अनेक संदर्भ ग्रंथों का अध्ययन है।
विनायक एक सामान्य विद्यार्थी से लेकर समाज के पथ-प्रदर्शक के रूप में पल-पल पर संघर्ष करता है और प्रतिगामी शक्तियों से मुकाबला करता है। विनायक ने हर उस घटना, कार्य और यात्रा को सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़ा है, जिनसे वह गुजरता है। अपने मित्रों पर उसे अटूट विश्वास है। उसके पास अद्भुत संगठन क्षमता है। विनायक एक साधारण नायक से महानायक तक की यात्रा तय करता है; लेकिन मानव होने के नाते सारे गुण-अवगुण अपने भीतर समेटे हुए है। ‘विनायक त्रयी’ का यह भाग ‘विनायक सहस्र सिद्धै’ एक ऐसा ही उपन्यास है।
अत्यंत रोचक व पठनीय उपन्यास।SKU: n/a -
English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vishnu Purana English
Vishnu Purana is one of the oldest Purana in the Hindu scriptures that is split into six parts and contains 7,000 versus. The Purana reveals some interesting details and is of high importance in Hindu religion.
One of the foremost Purana in the Hindu scriptures is the Vishnu Purana, which is a constituent of the eighteen great Puranas. The text of this Purana today contains 7,000 verses though it is thought to have 23,000 verses in its original form.
The Purana is in the form of a dialogue between Maharishi Parasara and the disciple Maitreya. It is however thought some of the parts have been written by Maharishi Parasara. Veda Vyasa is considered as the original source of the Puranas. Besides, these texts have survived through the age old tradition of oral reading. It is to be noted that most of the characters in this Purana cover events that are described in the Mahabharata and few of the verses describe certain events occurring after the Mahabharata froze. Some of the issues mentioned are about Lord Buddha and the reign of Chandra Gupta Maurya.
The Purana is split into six parts called amsas and have 126 chapters called adhyayas in total. The first part (amsa) details the stories of creation of the universe, the pralaya and the samundra manthanan (churning of the ocean). The concept of the four yugas in introduced in this part along with the stories of Hiranyakashipu and Prahlada. The Earth, with its seven continents and seven oceans, is elaborately described in the second section of the Purana along with the description of the nether world, the Patala, where the snake gods dwell and the hell, Naraka.
On the other side, you can see the description of the heavenly bodies, the sun and the planetary system. The third part of the Purana discusses the cycle of creation and destruction through the stories of Manvantara and the account of the Manus (ancestor of the human race). This section also discusses the four phases of life (ashramas), the four Vedas with the basis of their division and how they have been divided by Veda Vyasa.
The genealogy of the famous kings from the Suryavanshi and Chandravanshi dynasties forms part of the fourth division of the Vishnu Purana. Short summaries on the legends like the Pururavas, Urvasi, Lord Rama, birth of Pandavas and Lord Krishna can be found in this section of the Purana. Mahabharata is also touched upon briefly. The section concludes with the prophecy referring to the future kings of Magadha, Nandas, Kanvanayas and others, and the time when there would be no religion or morality which would end when Vishnu will incarnate as ‘Kalki’.
The fifth part of the Vishnu Purana focuses completely with the life and times of Lord Krishna, beginning from his birth till he leaves for heavenly abode and the destruction of the Yadava clan. It is to be noted that the same stories are repeated in the same order in Harivamsa Parv of Mahabharata. This section of the Purana is the biggest with 38 chapters. Part VI of the Purana is the shortest with only eight chapters. This part deals once again with the four yugas and the effects of kaliyuga culminating in pralaya of the cosmos, the travails of being born, being a child, being an adult, old age and death, hell and heaven and finally being liberated from existence and re-birth (Moksha)
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Gita Press, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Vishnu Sahasranama 0819
प्रार्थना
महाभारतमें भगवान्के अनन्य भक्त पितामह भीष्मद्वारा भगवान्के जिन परम पवित्र सहस्र नामोंका उपदेश किया गया, उसीको श्रीविष्णुसहस्रनाम कहते हैं । भगवान्के नामोंकी महिमा अनन्त है । हीरा, लाल, पन्ना सभी बहुमूल्य रत्न हैं पर यदि वे किसी निपुण जड़ियेके द्वारा सम्राट्के किरीटमें यथास्थान जड़ दिये जायँ तो उनकी शोभा बहुत बढ़ जाती है और अलग अलग एक एक दानेकी अपेक्षा उस जड़े हुए किरीटका मूल्य भी बहुत बढ़ जाता है । यद्यपि भगवान्के नामके साथ किसी उदाहरणकी समता नहीं हो सकती, तथापि समझनेके लिये इस उदाहरणके अनुसार भगवान्के एक सहस्र नामोंको शास्त्रकी रीतिसे यथास्थान आगे पीछे जो जहाँ आना चाहिये था वहीं जड़कर भीष्म सदृश निपुण जड़ियेने यह एक परम सुन्दर, परम आनन्दप्रद अमूल्य वस्तु तैयार कर दी है । एक बात समझ रखनी चाहिये कि जितने भी ऐसे प्राचीन नामसंग्रह, कवच या स्तवन हैं वे कविकी तुकबन्दी नहीं हैं । सुगमता और सुन्दरताके लिये आगे पीछे जहाँ तहाँ शब्द नहीं जोड़ दिये गये हैं । परन्तु इस जगत् और अन्तर्जगत्का रहस्य जाननेवाले, भक्ति, ज्ञान, योग और तन्त्रके साधनमें सिद्ध, अनुभवी पुरुषोंद्वारा बड़ी ही निपुणता और कुशलताके साथ ऐसे जोड़े गये हैं कि जिससे वे विशेष शक्तिशाली यन्त्र बन गये हैं और जिनके यथा रीति पठनसे इहलौकिक और पारलौकिक हु कामना सिद्धिके साथ ही यथाधिकार भगवान्की अनन्यभक्ति या सायुज्य मुक्तितककी प्राप्ति सुगमतासे हो सकती है । इसीलिये इनके पाठका इतना महात्मय है और इसीलिये सर्वशास्त्रनिष्णात परम योगी और परम ज्ञानी सिद्ध महापुरुष प्रात स्मरणीय आचार्यवर श्रीआद्यशङ्कराचार्य महाराजने लोककल्याणार्थ इस श्रीविष्णुसहस्रनामका भाष्य किया है । आचार्यका यह भाष्य ज्ञानियों और भक्तों दोनोंके लिये ही परम आदरकी वस्तु है ।
पूज्यपाद स्वामीजी श्रीभोलेबाबाजीने भाष्यका हिन्दी भाषान्तर कर पाठकोंपर बड़ा उपकार किया है । मेरी प्रार्थना है कि पाठक इसका अध्ययन और मनन करके विशेष लाभ उठावें ।
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vishuddh Manusmriti – विशुद्ध मनुस्मृति
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVishuddh Manusmriti – विशुद्ध मनुस्मृति
स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है। मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेक स्मृतियाँ प्रकाश में आयीं किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे अपना प्रभाव न जमा सकीं, जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत् विद्यमान है। मनुस्मृति में एक ओर मानव-समाज के लिए श्रेष्ठतम सांसारिक कर्तव्यों का विधान है, तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण भी है, इस प्रकार मनुस्मृति भौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों-उपदेशों का मिला-जुला अनूठा शास्त्र है।
इस प्रकार अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति मानवमात्र के लिए उपयोगी एवं पठनीय है। किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज ऐसे उत्तम और प्रसिद्ध ग्रन्थ का पठन-पाठन लुप्त-प्रायः होने लगा है।
इसके प्रति लोगों में अश्रद्धा की भावना घर करती जा रही है। इसका कारण है-‘मनुस्मृति में प्रक्षेपों की भरमार होना‘। प्रक्षेपों के कारण मनुस्मृति का उज्ज्वल रूप गन्दा एवं विकृत हो गया है। परस्परविरुद्ध, प्रसंगविरोध एवं पक्षपातपूर्ण बातों से मनुस्मृति का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा विलुप्त हो गये हैं। एक महान तत्त्वद्रष्टा ऋषि के अनुपम शास्त्र को स्वार्थी प्रक्षेपकर्ताओं ने विविध प्रक्षेपों से दूषित करके न केवल इस शास्त्र के साथ अपितु महर्षि मनु के साथ भी अन्याय किया है।
प्रस्तुत संस्कारण का भाष्य पर्याप्त अनुसंधान के बाद किया गया है तथा प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को निकाल दिया गया है।
इसकी विषेषताएँ हैं-प्रक्षिप्त श्लोकों के अनुसंधान के मानदण्डों का निर्धारण और उनपर समीक्षा, विभिन्न शास्त्रों के प्रमाणों से पुष्ट अनुषीलन समीक्षा, मनु के वचनों से मनु के भावों की व्याख्या, मनु की मान्यता के अनुकूल और प्रसंगसम्मत अर्थ, भूमिका-भाग में मनुस्मृति का नया मूल्याकंन, महर्षि दयानन्द के अर्थ और भावार्थ, प्रथम बार हिन्दी-पदार्थ टीका प्रस्तुत, सभी अनुक्रमणिकाओं एवं सूचियों से युक्त, मनुस्मृति के प्रकरणों का उल्लेख।सम्पूर्ण श्लोकों के इस संस्करण में प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को उनके आरम्भ में ‘एस्टरिस्क‘(तारांकन) सितारे के चिन्ह के साथ प्रकाषित किया है। बिना चिन्ह वाले श्लोक मौलिक हैं।
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Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
VISHUDDHA MANUSMRITI (HB)
Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVISHUDDHA MANUSMRITI (HB)
मनुस्मृति पर अनुसंधान करने के पश्चात्, डॉ. सुरेन्द्र कुमार जी ने मनुस्मृति के दो संस्करण प्रकाशित किये हैं, जिनकें नाम क्रमशः – विशुद्ध मनुस्मृति और मनुस्मृति है। दोनों संस्करणों में प्रक्षिप्त श्लोकों पर विचार प्रस्तुत किया है और प्रयास किया गया है कि पाठकों के समक्ष मनुस्मृति के वास्तविक सिद्धान्त दृष्टिगोचर हो। अपितु दोनों संस्करण बहुत ही महत्त्वपूर्ण और पठनीय है, किन्तु इनमें जो मौलिक भेद है, उनमें से कुछ का उल्लेख निम्न पंक्तियों में करते हैं – – विशुद्ध मनुस्मृति में सभी प्रक्षिप्त श्लोकों को पृथक कर केवल मनु के मौलिक श्लोकों को ही प्रकाशित किया गया है। – मनुस्मृति में सभी उपलब्ध श्लोकों को रखा गया है किन्तु जो श्लोक प्रक्षिप्त है उनकें प्रछिप्त होने की समीक्षा भी की गई है। – विशुद्ध मनुस्मृति में श्लोकों की व्यवस्था, इस प्रकार की गई है कि पाठकों को मनु के उपदेशों को अविरलरूप से पढ़ने का आनन्द प्राप्त हो। – मनुस्मृति में श्लोकों को इस प्रकार रखा गया है कि पाठक प्रक्षिप्त और मौलिक श्लोकों में भेद कर तुलनात्मक अध्ययन करने में सक्षम होवें।
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Gita Press, Hindi Books, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vivek Chudamani 0133
Gita Press, Hindi Books, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVivek Chudamani 0133
भगवान् शंकराचार्य के द्वारा विरचित ग्रन्थों में विवेक-चूड़ामणि का विशेष स्थान है। इसमें ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व, ज्ञानोपलब्धि का उपाय, प्रश्न-निरूपण, आत्मज्ञान का महत्त्व, पञ्चप्राण, आत्म-निरूपण, मुक्ति कैसे होगी? आत्मज्ञान का फल आदि तत्त्वज्ञान के विभिन्न विषयों का अत्यन्त सुन्दर निरूपण किया गया है।
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