राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
KAUTILYA THE TRUE FOUNDER OF ECONOMICS
-10%English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKAUTILYA THE TRUE FOUNDER OF ECONOMICS
This book seeks to highlight the monumental contribution of Kautilya to economic thought. The Arthashastra explicitly promotes the goals of both artha (material well-being) and dharma (righteous behavior) as a consistent whole and repudiates any deviation from them. A serious attempt is made here to revise the currently accepted history of economic thought. It is claimed that presentation of Kautilya’s original contributions should succeed in dispelling the deep-seated myth that economics originated during the eighteenth century and Adam Smith was the founder of economics. A claim is only as good as the arguments it stands on. For the first time, strong arguments are provided by the author as to why Kautilya should be considered as the founder of economics in the fourth century BCE. It is also argued that Kautilya’s The Arthashastra may be correctly designated as Dharmanomics: economics built on an ethical foundation, projecting economics and economic policy in a more meaningful and socially desirable perspective. The book also shows that the Hindu civilization is not averse to economic growth.
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English Books, Parimal Publications, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kautilyas Arthasastra (Set of 2 Volumes)
-10%English Books, Parimal Publications, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKautilyas Arthasastra (Set of 2 Volumes)
The Arthasastra summarizes the political thoughts of Kautilya. The book contains detailed information about specific topics that are relevant for rulers who wish to run an effective government. Diplomacy and war (including military tactics) are the two points treated in most detail but the work also includes recommendations on law, prisons, taxation, irrigation, agriculture, mining, fortifications, coinage, manufacturing, trade, administrations, diplomacy, and spies.
The Arthasastra explores issues of social welfare, the collective ethics that hold a society together, advising the king that in times and in areas devastated by famine, epidemic and such acts of nature, or by war, he should initiate public projects such as creating irrigation waterways and building forts around major strategic holdings and towns and exempt taxes on those affected. The text was influential on other Hindu texts that followed, such as the sections on king, governance and legal procedures included in Manusmrti.
Likely to be the work of several authors over centuries, Kautilya, also identified as Visnugupta and Canakya, is traditionally credited as the author of the text. The Arthasastra was influential until the 12th century, when it disappeared. It was rediscovered in 1905 by R. Samasastri, who published it in 1909. The first English translation was published in 1915.
The present book contains Original Sanskrit text, verse by verse English translation and notes of R. Samasasti along with an exhaustive Introduction by Dr. Ashok Kumar Shukla.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Khandit Bharat
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKhandit Bharat
आधुनिक भारत के मनीषी, तत्त्वज्ञानियों और चिंतकों में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का प्रथम स्थान है। परदु:खकातरता, त्याग और सेवा- भाव उनके स्वाभाविक गुण थे। भारत की एकता और अखंडता बनाए रखना उनके लिए अत्यंत महत्त्व की बात थी। सन् 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलिम लीग ने जब देश के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया तो यह गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन गया। अनेक प्रमुख व्यक्तियों ने इस पर अपने विचार एवं योजनाएँ प्रस्तुत कीं तथा अपने-अपने ढंग से इस समस्या के समाधान सुझाए। 1945 में इसी बात को ध्यान में रखकर राजेंद्र बाबू ने अंग्रेजी में पुस्तक लिखी-‘ इंडिया डिवाइडेड’; खंडित भारत उसी का हिंदी अनुवाद है। पाकिस्तान की माँग से संबद्ध उस समय तक प्रकाशित प्राय: संपूर्ण साहित्य के विस्तृत अध्ययन के बाद लिखी गई इस पुस्तक की मुख्य विशेषता है कि इसमें लेखक के विचार पाठकों पर आरोपित नहीं किए गए। तथ्यों, आँकड़ों, तालिकाओं, नक्शों और ग्राफों की सहायता से भारतीय प्रायदीप के विभाजन से संबंधित संपूर्ण सामग्री उपस्थित कर देश के बँटवारे के पक्ष-विपक्ष में इस प्रकार तर्क प्रस्तुत किए गए हैं कि पाकिस्तान की व्यवहार्यता अथवा अव्यवहार्यता के विषय में पाठक स्वयं अपनी राय बना सकें। विभाजन के समर्थकों एवं विरोधियों-दोनों के लिए ‘ खंडित भारत’ एक आदर्श ग्रंथ माना गया। यद्यपि देश को विभाजित हुए साठ वर्ष से ऊपर बीत चुके हैं, इतिहासकारों की दृष्टि में आज भी यह पुस्तक महत्वपूर्ण है और प्रत्येक भारतीय के लिए पठनीय है
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Hindi Books, Suruchi Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kritiroop Sangh Darshan
पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रूपरेखा की एक विशद प्रस्तुति है जिसकी स्थापना 1925 में दूरदर्शी डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। उनका दृष्टिकोण राष्ट्रीय कायाकल्प और पुनर्निर्माण था और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इसने व्यक्ति / समाज निर्माण (निर्माण) का कार्य लिया। / सुसंस्कृत, अनुशासित और राष्ट्रवादी लोगों के समाज को आकार देना)। यह पुस्तक आरएसएस द्वारा परिकल्पित कार्यों, सिद्धांतों और उद्देश्यों से संबंधित है और उन्हें कितनी दूर तक प्राप्त किया गया है।
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Dharm Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Kya Hindu Mit Jayenge?
Dharm Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Kya Hindu Mit Jayenge?
“क्या हिन्दू मिट जायेंगे ?” – सच्चिदानंद चतुर्वेदी
एक अत्यंत गंभीर सवाल – अस्तित्व का सवाल – आज हिन्दू मानस में तीव्रता के साथ घूम रहा है ! इस विषय में यथा क्रम और सांगोपांग अध्यन करनेवालों के चिंतन के परिणाम एक भयानक प्रश्न खड़ा कर रहे है – क्या हिन्दू मिट जायेंगे ?
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Mahan Chanakya Ki Jeevan Gatha
Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रMahan Chanakya Ki Jeevan Gatha
आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य अपने गुणों से मंडित, राजनीति विशारद्, आचार-विचार के मर्मज्ञ, कूटनीति में सिद्धहस्त एवं एक कठोर गुरु के रूप में विख्यात हैं और राजनीतिकारों व कूटनीतिकों के आदर्श हैं।
मौर्यवंश की स्थापना आचार्य चाणक्य की एक महती उपलब्धि है। यह वह समय था, जब मौर्यकाल के प्रथम सिंहासनारूढ़ चंद्रगुप्त मौर्य शासक थे। उस समय चाणक्य राजनीति के गुरु थे। आज भी कुशल राजनीति विशारद् को चाणक्य की संज्ञा दी जाती है। चाणक्य ने संगठित, संपूर्ण आर्यावर्त का स्वप्न देखा था, तदनुरूप उन्होंने सफल प्रयास किया।
उन्होंने नंदवंश को समूल नष्ट कर उसके स्थान पर अपने सुयोग्य एवं मेधावी वीर शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिंहासनारूढ़ करके अपनी जिस विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया, उससे समस्त विश्व परिचित है।
चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री, गुरु, हितैषी तथा राज्य के संस्थापक थे। चंद्रगुप्त मौर्य को राजा पद पर प्रतिष्ठित करने का कार्य इन्हीं के बुद्धि-कौशल का परिणाम था। उन्हें भारत के एक महान् राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री के रूप में जाना जाता है। उनके सिद्धांत, परिभाषाएँ, सूत्र और वचन आज भी प्रासंगिक हैं।
ऐसे महान् रणनीतिज्ञ व समाजशास्त्री आचार्य चाणक्य की प्रामाणिक एवं प्रेरणाप्रद जीवनगाथा।SKU: n/a -
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Main Chanakya Bol Raha Hoon
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रMain Chanakya Bol Raha Hoon
विशाल साम्राज्य खड़ा करनेवाले चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु तथा विश्व-प्रसिद्ध आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य बचपन में अन्य बालकों से भिन्न एक असाधारण बालक थे। उनके पिता चणक एक शिक्षक थे, इसलिए चाणक्य भी अपने पिता का अनुसरण करके शिक्षक बनना चाहते थे। उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की। इसके पूर्व उन्होंने बचपन में ही वेद, पुराण इत्यादि वैदिक साहित्य का अध्ययन कर लिया था। उनका ग्रंथ ‘चाणक्य नीति’ साहित्य की अमूल्य निधि है।
आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन में जो कहा, वह इतिहास बन गया। उनके कथन उदाहरण बन गए। उनके कथन उस काल में जितने महत्त्वपूर्ण थे, आज भी वे उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका एक-एक कथन अनुभवों की कसौटी पर कसा खरे सोने जैसा है।
2,300 वर्ष पहले लिखे गए चाणक्य के ये शब्द आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं। अगर उनकी राजनीति के सिद्धांतों का थोड़ा भी पालन किया जाए तो कोई भी राष्ट्र महान्, अग्रदूत और अनुकरणीय बन सकता है।
आचार्य चाणक्य के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, कूटनीतिक तथा सभी प्रासंगिक विषयों के प्रेरणाप्रद सूत्र वाक्यों का प्रामाणिक संकलन।SKU: n/a -
Vani Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Marxvad Ka Ardhsatya (Hindi, Anant Vijay)
अनंत विजय की पुस्तक का शीर्षक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ एक बार पाठक को चौंकाएगा। क्षणभर के लिए उसे ठिठक कर यह सोचने पर विवश करेगा कि कहीं यह पुस्तक मार्क्सवादी आलोचना अथवा मार्क्सवादी सिद्धान्तों की कोई विवेचना या उसकी कोई पुनव्र्याख्या स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है। मगर पुस्तक में जैसे-जैसे पाठक प्रवेश करता जायेगा उसका भ्रम दूर होता चला जायेगा। अन्त तक आते-आते यह भ्रम उस विश्वास में तब्दील हो जायेगा कि मार्क्सवाद की आड़ में इन दिनों कैसे आपसी हित व स्वार्थ के टकराहटों के चलते व्यक्ति विचारों से ऊपर हो जाता है। कैसे व्यक्तिवादी अन्तर्द्वन्द्वों और दुचित्तेपन के कारण एक मार्क्सवादी का आचरण बदल जाता है। पिछले लगभग एक दशक में मार्क्सवाद से। हिन्दी पट्टी का मोहभंग हुआ है और निजी टकराहटों के चलते मार्क्सवादी बेनकाब हुए हैं, अनंत विजय ने सूक्ष्मता से उन कारकों का विश्लेषण किया है, जिसने मार्क्सवादियों को ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विचारधारा बड़ी है या व्यक्ति। व्यक्तिवाद के बहाने अनंत विजय ने मार्क्सवाद के ऊपर जम गयी उस गर्द को हटाने और उसे समझने का प्रयास किया है। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ दरअसल व्यक्तिवादी कुण्ठा और वैचारिक दम्भ को सामने लाता है, जो प्रतिबद्धता की आड़ में सामन्ती, जातिवादी और बुर्जुआ मानसिकता को मज़बूत करता है। आज मार्क्सवाद को उसके अनुयायियों ने जिस तरह से वैचारिक लबादे में छटपटाने को मजबूर कर दिया है, यह पुस्तक उसी निर्मम सत्य को सामने लाती है।
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Vani Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Marxvad Ka Ardhsatya (PB)
Vani Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Marxvad Ka Ardhsatya (PB)
अनंत विजय की पुस्तक का शीर्षक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ एक बार पाठक को चौंकाएगा। क्षणभर के लिए उसे ठिठक कर यह सोचने पर विवश करेगा कि कहीं यह पुस्तक मार्क्सवादी आलोचना अथवा मार्क्सवादी सिद्धान्तों की कोई विवेचना या उसकी कोई पुनव्र्याख्या स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है। मगर पुस्तक में जैसे-जैसे पाठक प्रवेश करता जायेगा उसका भ्रम दूर होता चला जायेगा। अन्त तक आते-आते यह भ्रम उस विश्वास में तब्दील हो जायेगा कि मार्क्सवाद की आड़ में इन दिनों कैसे आपसी हित व स्वार्थ के टकराहटों के चलते व्यक्ति विचारों से ऊपर हो जाता है। कैसे व्यक्तिवादी अन्तर्द्वन्द्वों और दुचित्तेपन के कारण एक मार्क्सवादी का आचरण बदल जाता है। पिछले लगभग एक दशक में मार्क्सवाद से। हिन्दी पट्टी का मोहभंग हुआ है और निजी टकराहटों के चलते मार्क्सवादी बेनकाब हुए हैं, अनंत विजय ने सूक्ष्मता से उन कारकों का विश्लेषण किया है, जिसने मार्क्सवादियों को ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विचारधारा बड़ी है या व्यक्ति। व्यक्तिवाद के बहाने अनंत विजय ने मार्क्सवाद के ऊपर जम गयी उस गर्द को हटाने और उसे समझने का प्रयास किया है। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ दरअसल व्यक्तिवादी कुण्ठा और वैचारिक दम्भ को सामने लाता है, जो प्रतिबद्धता की आड़ में सामन्ती, जातिवादी और बुर्जुआ मानसिकता को मज़बूत करता है। आज मार्क्सवाद को उसके अनुयायियों ने जिस तरह से वैचारिक लबादे में छटपटाने को मजबूर कर दिया है, यह पुस्तक उसी निर्मम सत्य को सामने लाती है।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
अस्त्र-शस्त्र का उत्तर अस्त्र-शस्त्र से देना उचित है। लेकिन विचारों का उत्तर तो विचार ही हो सकता है। किसी विचार, किसी लेख-कविता या पुस्तक के उत्तर में तलवार निकालना मजबूती नहीं, कमजोरी की निशानी है। किन्तु अरब से लेकर यूरोप, एसिया, अफ्रीका तक, हर कहीं इस्लामी नेता और संगठन सरल, संयत, वैचारिक संघर्ष से बचते हैं। इसे सदैव हिंसा से दबाने की कोशिश करते हैं। सदियों से, बल्कि आरंभ से ही, इस में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वयं प्रोफेट मुहम्मद ने अपने विचारों पर किसी के प्रतिवाद, संदेह का यही उत्तर दिया था।
तब क्या इस्लाम कागजी शेर नहीं है? एक दुर्बल, भयभीत मतवाद, जो केवल धमकी, हिंसा, छल-कपट, अनुचित रूप से उठाई जा रही विशेष सुविधाओं, अनुचित-असमान नियमों के बल से चल रहा है। ऐसा मत-विश्वास कितने दिन चलता रह सकता है? यह एक बुनियादी प्रश्न है, जिस से भारत और वर्तमान विश्व की कई समस्याएं जुड़ी हुई हैं।
इस समस्या का समाधान सैनिक तरीके से नहीं, बल्कि शिक्षा में है। ध्यान दें, कुरान में असंख्य बार कई प्रसंगों में ‘प्रमाण’, ‘स्पष्ट प्रमाण’, की बातें की गई है। अतः मुसलमान किसी विचार-बिन्दु, विषय में प्रमाण, सबूत, एविडेंस के महत्व से परिचित हैं। केवल उन्हें प्रमाण वाली कसौटी को उन विचारों, कानूनों, विवरणों, दलीलों पर भी लागू करके देखने की जरूरत है जिन्हें वे स्वतः-प्रमाणिक मानते रहे हैं। जैसे, मूर्तिपूजकों को घृणित समझना; इस्लाम से पहले या बाहर के मानव-समाजों को मूर्ख मानना; जीने के बदले मरने को अधिक अच्छा मानकर ‘जन्नत’ पाने के लिए हर तरह के चित्र-विचित्र काम करना; जिहाद को सब से बड़ा कर्तव्य समझना; मनुष्य को गुलाम बनाकर बेचना-खरीदना; स्त्रियों को वस्तु-संपत्ति मात्र भोग रूप में देखना; आदि मान्यताओं को विवेक से देखने की जरूरत है। ये मान्यताएं कोई ईश्वरीय देन या ‘सर्वकालिक सत्य’ नहीं हैं – इस की परीक्षा की जानी और शिक्षा दी जानी चाहिए। (पुस्तक अंश)
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
My Transportation For Life (PB)
-15%Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रMy Transportation For Life (PB)
The story is told. The curtain has been brought down on it. Two life-sentences have been run. And I have brought together my recollections of them within the cover of this book. They are narrated in brief and put together within the narrowest.
When I came into this world, God sent me here possibly on a sort of life-sentence. It was the span of life allotted to me by time to stay in this ‘prison-house of life’. This story is but a chapter of that book of life, which is a longer story not yet ended.
You can finish reading the book in a day, while I had to live it for 14 long years of transportation. And if the story is so tiresome, unendurable and disgusting to you, how much must have been the living of it for me! Every moment of those 14 years in that jail has been an agony of the soul and the body to me, and to my fellow convicts in that jail. It was not only fatiguing, unbearable and futile to us all, it was equally or more excruciating to them as to me. And it is only that you may know it and feel the fatigue, the disgust and the pain of it as we have felt it, that I have chosen to write it for you.
—Excerpts from this bookThis is the story of Swatantrayaveer Vinayak Damodar Savarkar—a great revolutionary, politician, poet and seer who tried to free India from the British yoke!
British policy was to torture and persecute the political prisoners/revolutionaries so that they would reveal the names of all their colleagues or go mad or commit suicide. My Transportation for Life is a firsthand story of the sufferings and humiliation of an inmate of the infamous Cellular Jail of Andamans, the legendary Kala Paani. The physical tortures inside the high walls were made all the more insufferable by the sickening attitude of the men who mattered—the native leaders back home. This is a running commentary on the prevalent political conditions in India and a treatise for students of revolution. It is a burning story of all Tapasvis who were transported to Andaman.SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Nardiya Sanchar Neeti
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रNardiya Sanchar Neeti
संचार एक अस्तित्वगत आकांक्षा है। यह आकांक्षा पहचान और निर्णयों को गढ़ती है। इस कारण संचारीय प्रक्रिया मानव-नियति की सबसे बड़ी निर्धारक बन जाती है। समाज में संचार की सदैव से निर्णायक भूमिका रही है, लेकिन नए माध्यमों ने इसके प्रभाव को बहुगुणित कर दिया है। इससे नीति-निर्णयन पर राजनीति का एकाधिकार समाप्त हो गया है और संचार ने केंद्रीय भूमिका प्राप्त कर ली है। नीति-निर्णयन की प्रक्रिया अब संनीति (संचार+राजनीति) का विषय बन गई है।
यह भी एक स्थापित तथ्य है कि संचारीय प्रक्रिया ही स्मृतियों और स्वपनों का वह संसार रचती है, जिससे संस्कृति, समाज, परंपरा और राष्ट्र बनते-बिगड़ते हैं। यदि संचार पारिस्थितिकी को बदल दिया जाए तो किसी समुदाय की सामूहिक स्मृति को बदला जा सकता है और अंतत: इससे उस समुदाय के समाजबोध और राष्ट्रबोध को भी परिवर्तित किया जा सकता है।
जीवन और समाज में संचार की ऐसी केंद्रीयता के बावजूद समकालीन संचार- अध्ययन प्राय: तकनीकी अथवा शाब्दिक संदर्भों में ही किए जाते हैं। इसके इतर, एक सभ्यता और एक राष्ट्र के रूप में भारत ने संचारीय-प्रक्रिया के संदर्भ में बहुआयामी और उदात्त चिंतन विकसित किया है। चरित्र एवं चिंतन में अद्वैत, शब्द ब्रह्म की संकल्पना इसके उदाहरण हैं। नवीन वैश्विक स्वपनो को देखने का अनुष्ठान कर रहे राष्ट्र के लिए यह पुस्तक संचारीय समिधा जैसी है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Nazarband Loktantra
लोकतंत्र आपातकाल (सन् 1 975- 77) की घटनाओं का रोमांचक विवरण है । सरल- सीधी लोकप्रिय भाषा में लिखी गई और रोचक घटनाओं से भरपूर यह केवल एक जेल डायरी नहीं है, न ही यह सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है बल्कि ये उस लेखक के अंतस से निकले हुए शब्द हैं जो उस समय एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष था और अब देश का गृहमंत्री है । लेखकने उन्नीस माह तक देश की विभिन्न जेलों में बिताई अवधिके दौरानघटित घटनाओं और अपने विचारों को लिपिबद्ध किया है । इस पुस्तक की भूमिका में पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई लिखते हैं-‘ ‘ यह डायरी एक ऐसे व्यक्तित्व को उद्घाटित करती है जो असामान्य रूप से ईमानदार, समर्पित, सुसंस्कृत और स्थिरचित्त है । यह उनकी उस प्रच्चलित आस्था की रेखांकित करती है जिसके माध्यम से वह सरकारी धूर्तता के परिणामों के मुकाबले में डटे रहे 1 एक संपादक के नाते प्रेस और अन्य जनसंचार माध्यमों की स्वतंत्रता केप्रति उनके प्रगाढ़ लगाव के। भी यह डायरी प्रकट करतीहै । ” इस पुस्तक में लोकतंत्र समर्थक वे लेख भी शामिल हैं जो लेखकने छद्म नामसे लिखे औरगुप्तरूप से वितरित किए । लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति लेखक की प्रतिबद्धता, साथ ही एक पारदर्शी समाज और अपने आदर्शो पर चलने के जन-अधिकार में दृढ़ विश्वास इस पुस्तक में उभरकर सामने आते हैं । जीवन मूल्यों और आदर्शो के प्रति गहन आस्था रखनेवाले हर भारतीयके लिएपठनीय और संग्रहणीय पुस्तक। लोकतंत्र आपातकाल (सन् 1 975- 77) की घटनाओं का रोमांचक विवरण है । सरल- सीधी लोकप्रिय भाषा में लिखी गई और रोचक घटनाओं से भरपूर यह केवल एक जेल डायरी नहीं है, न ही यह सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है बल्कि ये उस लेखक के अंतस से निकले हुए शब्द हैं जो उस समय एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष था और अब देश का गृहमंत्री है । लेखकने उन्नीस माह तक देश की विभिन्न जेलों में बिताई अवधिके दौरानघटित घटनाओं और अपने विचारों को लिपिबद्ध किया है । इस पुस्तक की भूमिका में पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई लिखते हैं-‘ ‘ यह डायरी एक ऐसे व्यक्तित्व को उद्घाटित करती है जो असामान्य रूप से ईमानदार, समर्पित, सुसंस्कृत और स्थिरचित्त है । यह उनकी उस प्रच्चलित आस्था की रेखांकित करती है जिसके माध्यम से वह सरकारी धूर्तता के परिणामों के मुकाबले में डटे रहे 1 एक संपादक के नाते प्रेस और अन्य जनसंचार माध्यमों की स्वतंत्रता केप्रति उनके प्रगाढ़ लगाव के। भी यह डायरी प्रकट करतीहै । ” इस पुस्तक में लोकतंत्र समर्थक वे लेख भी शामिल हैं जो लेखकने छद्म नामसे लिखे औरगुप्तरूप से वितरित किए । लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति लेखक की प्रतिबद्धता, साथ ही एक पारदर्शी समाज और अपने आदर्शो पर चलने के जन-अधिकार में दृढ़ विश्वास इस पुस्तक में उभरकर सामने आते हैं । जीवन मूल्यों और आदर्शो के प्रति गहन आस्था रखनेवाले हर भारतीयके लिएपठनीय और संग्रहणीय पुस्तक। इस पुस्तक में लोकतंत्र समर्थक वे लेख भी शामिल हैं जो लेखकने छद्म नामसे लिखे औरगुप्तरूप से वितरित किए । लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति लेखक की प्रतिबद्धता, साथ ही एक पारदर्शी समाज और अपने आदर्शो पर चलने के जन-अधिकार में दृढ़ विश्वास इस पुस्तक में उभरकर सामने आते हैं । जीवन मूल्यों और आदर्शो के प्रति गहन आस्था रखनेवाले हर भारतीयके लिएपठनीय और संग्रहणीय पुस्तक।
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Yash Publication, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Operation Bastar : Prem aur Jung
हम चारदिवारी के अंदर सुख की जिंदगी जीते हैं, लेकिन सुख देने वाले कोई और नहीं हमारे देश के रक्षक पुलिसकर्मी और सुरक्षाबल के लोग हैं, जो दिन-रात अपनी जान हथेली पर लेकर हमारी सुरक्षा का दायित्व उठाते हैं।इस उपन्यास में बस्तर (नक्सलवादी क्षेत्र) में कार्यरत सैन्य सेवा की दुविधाएं ,परेशानियां, जद्दोजहद और उनकी कर्तव्यनिष्ठा का जीवंत चित्रण है। पढ़ने की लालसा हर पृष्ठ की साथ बढ़ती ही जाती है।बस्तर एक ऐसी जगह है जहां बाहर से बहुत कम लोगों का आना जाना होता है, ऐसे में आप जब इस उपन्यास को पढ़ेंगे, तो वहां से संबंधित बहुत सारी जानकारियों से अवगत होंगे।
कमल जी ने बहुत ही सहज, सरल और रोचक भाषा में कहानी लिखी है। लेखक क्योंकि स्वयं पैरा मिलिट्री में अफसर हैं ,इसलिए अनुभव की प्रामाणिकता का कयास लगाया जा सकता है। बस्तर की माटी की खुशबू, पुलिस का कठिन जीवन, जान हथेली पर लेकर जंगल जंगल कई दिन लगातार पेट्रोलिंग करना आपको रोमांचित कर देगा।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan-Bangladesh : Aatankvad Ke Poshak
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Pakistan-Bangladesh : Aatankvad Ke Poshak
पिछले बीस वर्षों में भारत में आतंकवादी हिंसा में 60 हजार से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं। उनमें बूढ़े व जवान,स्त्रियाँ व बच्चे और गरीब व निस्सहाय भी शामिल हैं; और यह सब जेहाद के नाम पर हो रहा है। ऐसी कौन सी बात है, जो अल्लाह के वफादारों को ‘हत्यारे’ के रूप में तैयार कर रही है? पाकिस्तान के ‘गैर-मजहबी’ स्कूलों व मदरसों में शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के मन-मस्तिष्क में क्या घोला जा रहा है? पाकिस्तान में शासन कर रही संस्थाओं का इसलाम-पसंद पार्टियों और आतंकवादी संगठनों के साथ क्या संबंध है? क्या हमें पाकिस्तान के राष्ट्रीय और सामाजिक स्वरूप पर नजर डालनी चाहिए?
भारत के एक बड़े हिस्से पर बँगलादेशी घुसपैठियों ने अपना डेरा जमाया हुआ है। देश की सुरक्षा पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है? हमारे पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी और इसलामिक संगठनों को कौन जोड़ रहा है? बँगलादेश में तेजी से बढ़ रही कट्टरवादिता से क्या खतरा उत्पन्न हुआ है? आतंकवाद से निपटने में हम कहाँ चूके और इससे हमने क्या-क्या सबक सीखे हैं?
ऐसे और भी अनेक गंभीर प्रश्न हैं, जिनके उत्तर वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री अरुण शौरी की यह पुस्तक देती है। इसमें पाकिस्तान व बँगलादेश का आतंकवादी चेहरा तो बेनकाब हुआ ही है, उनकी करतूतों का कच्चा चिट्ठा भी खुला है।SKU: n/a