इतिहास
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
क्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणक्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय, भारतीय काल गणना, भारतीय इतिहास, आर्यों की वर्ण व्यवस्था, सूर्य वंश, सोमवंश, चन्द्रवंश, महाभारत की युगीन जनपद, राजपूतों की उत्पत्ति, कछवाहा, राठौड़, गुहिलोत, चौहान, देवड़ा, प्रतिहार, कुमार (कमाष) जेठवा राजवंश, निंकुभ राजवंश, हुल राजवंश, चालुक्य (सोलंकी) राजवंश, तोमर राजवंश, तंवर, गोहिल, गुर्जर, कलचूरी, राष्ट्रकूट, परमार, चावड़ा, यादव, यौधय, मकवाना, शिलाहार, चन्देल, गौड़, कटोच, राजपूत, मुस्लिम राजपूत एवं अन्य राजवंश आदि के राजवंश, राज्य एवं खांपें और ठिकाने, भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन, ब्रिटिशकाल, स्वतंत्र भारत में राजपूत जाति का संगठन, आन्दोलन एवं योगदान, विभिन्न क्षेत्रों में राजपूतों को राजनैतिक योगदान एवं विश्वविख्यात व्यक्तित्व, राजपूतों के विवाह सम्बंध एवं गोत्र प्रवरादि संस्कार, लोकदेवता तंवर शिरोमणि बाबा रामदेव जी का वंशक्रम आदि और भी बहुत कुछ…
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Surya Bharti Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
गाँधी वध और मैं | Gandhi Vadh Aur Main
Surya Bharti Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)गाँधी वध और मैं | Gandhi Vadh Aur Main
नाथूराम गोडसे
साहित्य दृष्टी से ‘गांधी-वध और मैं’ जीवनी,आत्मकथा तथा संस्मरण विधाओं का संगम हैं। गांधी वध करनेवाले वधक श्रद्धेय नाथूराम गोडसे का जीवन चरित है।लेखक की अपनी आत्म-कथा है।गांधी-वध से संबंधित तथा जेल-जीवन के संस्मरन हैं।इतिहास की दृष्टि से यह पुस्तक कांग्रेस,गांधी और भारत-विभाजन का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करती हैं इतिहास की सच्चाई को प्रकट करती हैं।भारत में प्रचारित झूठे तथा मनगढंत तथ्यों को उजागर करती हैं।
“गांधी-वध और मैं” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के भाई और इस षड्यंत्र में शामिल तथा उसके लिए कारावास भोगने वाले गोपाल गोडसे की कलम से उनका पक्ष प्रस्तुत करने वाली पुस्तक है। यह नाथूराम गोडसे की जीवनी भी है, गोपाल गोडसे की आत्मकथा भी है और साथ ही उनके संस्मरण भी। गांधीजी की हत्या से जुड़ी तमाम रोमांचक बातें इस पुस्तक में दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर गांधीजी से घृणा भी की जा सकती है और इसे इस रूप में भी देखा जा सकता है कि…प्रार्थना के लिए जाते समय गोडसे की तीन गोलियों ने गांधीजी को नहीं रोका…बल्कि गांधीजी ने ही उन तीन गोलियों को रोका, ताकि वे और न फैलें, किसी और पर न पड़ें और घृणा का उसी क्षण अंत हो जाए!
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणचित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
मेवाड़ के शीर्ष-पुरुषों की कीर्तिपूजा अपने शब्द-सुमनों से करने के उपरान्त और भक्त-शिरोमणि मीरां की श्रद्धांजलि समर्पित करने मे बाद भी, इन सबकी पंक्ति में प्रथम स्थान प्राप्त, मेवाड़ में इतिहास-लेखन-परम्परा प्रारम्भ करने वाले और अपनी कीर्ति में अपना, मेवाड़ में सबसे उत्तंग कीर्ति-स्तम्भ निर्मित कराने वाले, जो अब भारत की श्रेष्ठता का द्योतक बना हुआ है, महाराणा कुंभा से 100 वर्ष पहले होने वाली, अनेक प्रकार से अनुपम, जिनकी सौन्दर्य-सिद्धि के लिए समुद्रपार सिंहल द्वीप में उनका उद्गम उल्लिखित हुआ है और जिन्होंने चित्तौड़ में जौहर प्रणाली का प्रारम्भ करके उसकी ज्वालाओं से अपने पति का आत्मोसर्ग मार्ग आलोकित किया, उन राजरानी पद्मिनी की चारित मेरी लेखनी की परिधि से बाहर अब तक क्यों रहा, इसका कारण मुझसे अब तक नहीं बन पड़ा है, सिवाय इसके कि उनकी गाथा उनके समय में अब तक पद्मिनी की कोई क्रमबद्ध जीवनी नहीं है। मुनि जिनविजय जैसे अध्येता और उद्भट विद्वान को भी प्रश्न उठाना पड़ा है : “यह एक आश्चर्य सा लगता है, कि हेमरतन आदि राजस्थानी कवियों ने पद्मिनी के जीवन के अन्तिम रहस्य के बारे में कुछ नहीं लिखा?” इस अवधि में ही आता है साका और जौहर, जो राजस्थानी वीर परम्परा के ऐसे अंत रहे, जिसे भावी पंक्तिया प्रेरणा प्राप्त करती रहीं। इसकी परिपूर्ति करने का साहस मुझ जैसे मेवाड़ से दूर बैठकर अध्ययन और अभिव्यक्ति करने वाले अल्पज्ञ का नहीं हो सकता। फिर भी पद्मिनी चरित के अधूरे अंशों को शब्दों से ढकने का प्रयत्न मैंने इस पुस्तक में किया है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास
प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास | Pratapgarh Rajya ka Itihas
प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास मेवाड़ राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा है। उसके शासक उसी राजवंश की एक प्रमुख शाखा के रूप में अपनी परम्पराएँ विकसित करते चले हैं। इस राजवंश की स्थापना आज से प्रायः पाँच सौ वर्ष पूर्व की गई थी। महाराणा कुंभा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल इस राज्य के संस्थापक शासक थे। बागड़, मालवा और मेवाड़ की सीमाओं से जुड़ा हुआ होने के कारण यह राज्य ‘कांठल’ के नाम से भी पुकारा जाता है। यहाँ के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में भीलों और मीणों की बस्तियों की अधिकता पाई जाती है। प्रतापगढ़ राज्य के इतिहास को पूर्णतः प्रकाश में लाने की दृष्टि से ही इस ग्रंथ की रचना की गई है। इसके विद्वान् लेखक ने इसे सात अध्यायों में विभक्त कर प्रथमतः उसका भौगोलिक विवरण दिया है जिससे उस राज्य के नाम, स्थान, क्षेत्रफल, सीमा, पर्वतश्रेणियों, नदियों, झीलों तथा वनप्रदेशों आदि की पूरी जानकारी मिल जाती है। प्रथम अध्याय का सम्पूर्ण सर्वेक्षण प्रतापगढ़ रियासत के इतिहास का सम्यक् बोध करने के पूर्व उसकी भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझने की दृष्टि से परम उपयोगी है।
ग्रंथ के दूसरे अध्याय में सिसोदियों के पूर्व के राजवंशों का क्रमागत परिचय दिया गया है जिनकी परम्परा रघुवंशी प्रतिहारों, परमार और सोलंकी राजाओं तथा मुसलमान शासकों की भी गणना की गई है। तृतीय अध्याय महारावत क्षेमकर्ण से विक्रमसिंह तक की राज्यघटनाओं का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत करता है तो चौथे अध्याय में महारावत तेजसिंह से प्रतापसिंह तक के शासनकाल की उपलब्धियाँ गिनाई गई हैं। ऐतिहासिक विवरण का यह क्रम महारावत पृथ्वीसिंह, सामंतसिंह, दलपतसिंह तथा महारावत सर रामसिंह तक चलता रहा है जिसमें उन शासकों के जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाओं तथा उनकी राजवंशीय परम्पराओं आदि का भी विवरण सम्मिलित किया गया है। ग्रंथ के अंत में जोड़े गये, परिशिष्ट, अनुक्रमणिका एवं चित्रसूची के अध्ययन, अवलोकन तथा आकलन द्वारा प्रतापगढ़ राज्य की ऐतिहासिक सामग्री के उसे प्रपूरक भाग का भी प्रर्याप्त ज्ञान हो जाता है जो उस राज्य के निर्माण और विकास में सहायक सिद्ध हुई थी। कुल मिलाकर यह ग्रंथ प्रतापगढ़ राज्य का प्रामाणिक दस्तावेज है जिसे सही ढंग से खोज निकालने के लिए विद्वान लेखक को वर्षो तक अथक प्रयास करना पड़ा था। अपने क्षेत्र में इस ग्रंथ को लेखक की महान् उपलब्धि कहा जा सकता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास
बीकानेर राज्य का इतिहास (भाग – 1, 2) | Bikaner Rajya ka Itihas (vol. – 1, 2)
Rajasthani Granthagar, इतिहासबीकानेर राज्य का इतिहास (भाग – 1, 2) | Bikaner Rajya ka Itihas (vol. – 1, 2)
राजस्थान के इतिहास में बीकानेर राज्य का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है। बीकानेर राज्य के राठौड़ो की युद्धवीरता, दानवीरता, विद्याप्रेम, नीति-चातुर्य और सदाशयता प्रसिद्ध रही है। यहां के नरेशों का इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रहा है। राव बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। राव बीका से पूर्व का इस प्रदेश का जो इतिहास रहा वह प्रारंभ में संक्षिप्त रूप से दिया गया है। इसके साथ दिया गया इस राज्य की भूगोल सम्बंधी वर्णन भी उल्लेखनीय है। बीकानेर राज्य के इतिहास लेखन में इसके विद्धान लेखक डाॅ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने शिलालेखों, ताम्रपत्रों, सिक्कों, ख्यातों, प्राचीन वंशावलियों, संस्कृत, फारसी, मराठी और अंग्रेजी पुस्तकों, शाही फरमानों तथा राजकीय पत्रों का भरपूर प्रयोग करके इसे वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है। स्थानीय स्त्रोता को अपने इतिहास लेखन में विशेष महत्व दिया है।
बीकानेर के संस्थापक राव बीका से लेकर महाराजा प्रतापसिंह तक बीकानेर राज्य के नरेशों का प्रथम खण्ड में विस्तार से वर्णन किया गया है। बीकानेर राज्य के इतिहास के द्वितीय खण्ड में महाराजा सूरतसिंह से लेकर महाराजा गंगासिंह तक सविस्तार वर्णन किया है। अन्तिम अध्याय में बीकानेर राज्य के सरदारों और प्रतिष्ठित घरानों पर प्रकाश डाला है। पांच परिशिष्टों के अन्तर्गत दी गई ऐतिहासिक सामग्री से इस ग्रंथ का महत्व और बढ़ गया है। डाॅ. ओझा का इतिहास बोध और इतिहास दर्शन सभी इतिहासज्ञों को प्रभावित करने वाला है। अतः उनका यह इतिहास ग्रन्थ सभी शोधार्थियों और इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
राजपूत नारियां | Rajput Nariyan
राजपूत नारी की वीरता, साहस, त्याग, दृढ़संकल्प, कष्ट-साहिष्णुता, धर्म ओर पति-परायणता, शरणागत वत्सलता स्तुत्य रही है। अपने शील व स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीर माता, वीर पत्नी और वीर पुत्री के रूप में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, उस पर प्रस्तुत पुस्तक में संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। पौराणिक रामयणकालीन, महाभारत कालीन राजपूत रानी के आदर्श तत्कालीन युग के अनुरूप निर्धारित हुए। मध्यकाल जब आया तो उस काल की मांग के अनुरूप राजपूत नारी की चारित्रिक विशेषताओं के भिन्न मापदण्ड स्थापित हुए। यों तो हरयुग में राजपूत नारी में थोड़ा बहुत बदलाव आता रहा है। पर मूलभूत शाश्वत संस्कारों में विशेष अन्तर नहीं आया और प्राचीन मान्य आदर्शो से राजपूत नारी सदा संस्कारित होती रही है।
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Hindi Sahitya Sadan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
स्वाधीनता के पथ पर : SVADHEENATA KE PATH PAR
टन……टन……टन……..टन……..। मन्दिर का घण्टा बज रहा था। देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी। लोग चरणामृत पान कर अपने-अपने घर जा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति, नमृता और उत्साह में लोग आगे बढ़कर, दोनों हाथ जोड़, मस्तक नवा, देवता को नमस्कार करते और हाथ की अंजुली बना चरणामृत के लिए हाथ पसारते थे। पुजारी रंगे सिर, बड़ी चोटी को गाँठ दिये, केवल रामनामी ओढ़नी ओढे़, देवता के चरणों के निकट चौकी पर बैठा अरघे से चरणामृत बाँट रहा था।
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