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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Ayodhya Ne Kaise Badal Di Bambai
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिAyodhya Ne Kaise Badal Di Bambai
“6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी ढाँचे के विध्वंस के बाद पूरा भारत दंगों की चपेट में आ गया था। सांप्रदायिक अशांति को लेकर हमेशा ही अतिसंवेदनशील रही मुंबई में दिसंबर 1992 और फिर जनवरी 1993 में जो हिंसा हुई, वह अभूतपूर्व थी। दो महीने बाद, मार्च के महीने में सिलसिलेवार धमाकों ने शहर को दहला दिया, जिसमें 250 से अधिक लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए। सांप्रदायिक दंगों के बाद छिड़े गैंगवार और अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं ने शहर को तहस-नहस कर दिया। इन सबने मुंबई को हमेशा के लिए बदल दिया।
प्रस्तुत पुस्तक बताती है कि पिछले तीन दशकों में मुंबई ने अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव का कैसा दौर देखा है। 1992 के बाद, मुंबई अंडरवल्र्ड में एक विभाजन ने राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दिया, जिसने शहर की जनसांख्यिकी को बदल दिया और नई नई बस्तियों को जन्म दिया। कुछ समय की खामोशी के बाद, वर्ष 2002 में एक बार फिर धमाकों और आतंकवादी हमलों ने इसे हिला दिया। यह हिंसा का एक ऐसा चक्र था, जो 2008 में 26/11 के भयानक आतंकवादी हमलों के साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। मुंबई को जिन प्रमुख घटनाओं और लोगों ने वर्तमान रूप दिया है, उनके विषय में बताने के साथ ही, इस पुस्तक ने शहर के चरित्र में बदलाव, इसके भौतिक रूप और नागरिक मुद्दों से लेकर इसकी अर्थव्यवस्था, रियल एस्टेट और राजनीति तक में बदलाव को शब्दों में बुना है।”SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Azadi @ 75 : Krantikariyon Ki Shauryagatha
भारतीय स्वाधीनता संग्राम रूपी यज्ञ में अनेक वीरों ने अपनी आहुति दे दी। वे कठिनतम परिस्थितियों में भी अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहे, किंतु भारतीय इतिहास का यह दुर्भाग्य रहा कि हम कुछ ही वीरों की शौर्यगाथाओं को जनमानस में प्रचारित कर पाए। ‘आजादी ञ्च 75 क्रांतिकारियों की शौर्यगाथा’ पुस्तक संपूर्ण भारतवर्ष के सुने-अनसुने क्रांतिवीरों के जीवनचरित्र पर आधारित है, जो अपने महान् योगदान के बावजूद स्थानीय स्तर पर ही कहीं खोकर रह गए।
इसमें ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना से प्रेरित होकर उत्तर से लेकर दक्षिण एवं पूरब से लेकर पश्चिम तक क्रांति की अलख जगानेवाले क्रांतिकारियों को सम्मिलित किया गया है, ताकि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक समन्वित एवं समायोजित इतिहास की पृष्ठभूमि जन-मानस तक पहुँच सके।
इस पुस्तक का आधार केवल जानकारियों का एकत्रीकरण व संग्रहण न होकर हमारे शूरवीरों के दर्शन व तत्कालीन परिस्थितियों में उनके द्वारा किए गए धार्मिक, सामाजिक व शैक्षिक आंदोलनों का वर्णन करना है, ताकि हमारी भावी पीढ़ी उनसे प्रेरित होकर वर्तमान मुद्दों का हल निकाल सके और इस प्रकार जाति व्यवस्था रहित, महिला समानता आदि उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित एक ‘नए भारत’ का सृजन कर सके। इसी से भारत को विश्वगुरु के रूप में पुनः प्रतिस्थापित किया जा सकेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Azadi Ke Aranya Senani
“आजादी के अरण्य सेनानी’ पुस्तक अरण्य नायकों की गौरव-गाथा का स्मरण है। इसमें भारत के जनजातीय समुदायों के सत्रह स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और उनके बलिदान की कहानी है। वनों, बीहड़ों, पर्वतों और वनांचलों में बसनेवाले सामान्य ग्रामवासी किस तरह अपने समाज और भारत की आजादी के लिए आगे बढ़े, शक्तिशाली ब्रिटिश राज से टक्कर ली और अपना उत्सर्ग किया। इस पुस्तक में स्वातंत्र्यचेता अरण्य सेनानियों के संघर्ष को स्वर दिया गया है। आजादी के ये सत्रह मतवाले भारत के विभिन्न प्रांतों से हैं। इनकी जनजातियाँ भिन्न हैं। इनकी पृष्ठभूमि और संस्कृतियाँ अलग-अलग हैं, फिर भी आजादी की उत्कट अभिलाषा इन सबके हृदय में समान रूप से करवटें लेती है। यह पुस्तक इन्हीं अभिलाषाओं का प्रतिरूपण है।
‘आजादी के अरण्य सेनानी’ पुस्तक की यह विशेषता है कि इसे शुष्क इतिहास की तरह नहीं बल्कि एक भावात्मक गाथा की तरह लिखा गया है। ऐसी गाथा, जो पाठकों के मन में इन बलिदानियों का चित्र खींच देती है और उनके भीतर राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय अस्मिता का अनहद नाद गूँजने लगता है।
आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इस पुस्तक का प्रणयन आजादी की लड़ाई में भारत की जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की भूमिका को सशक्त एवं प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का संकल्प लेकर किया गया है। यह पुस्तक तत्संबंधी संकल्प की प्रस्तुति है।SKU: n/a -
Hindi Books, Vitasta Publishing, इतिहास
AZADI KE DIWANO KI DASTAN
एक बेहतर दुनिया के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम अपने इतिहास के सबसे प्रेरणादायक पक्षों से जरूरी प्रेरणा ओर सीख लेते रहे ! यह मानना हैं इस पुस्तक के वरिष्ठ लेखक भारत डोगरा हैं ! आजादी के दीवानो की दास्तान पुस्तक को चार लेखकों: प्रोफेसर जगमोहन, रेशमा भारती, मधु डोगरा, ओर भारत डोगरा ने मिलकर लिखा है ! इस में महान स्वतंत्रता सेनानियों शहीद भगत सिंह , खान अब्दुल गफ्फर खान , गणेश शंकर विद्यार्थी , श्रीदेव सुमन , बिरसा मुंडा , सुभद्रा कुमारी चौहान, आजादी की लड़ाई में शहीद हुई महिलाएं जरा याद करो कुर्बानी के तहत उनके जीवन और विचारो को प्रस्तुत किया है ! आजादी की लड़ाई के घटनाक्रमों को सिलसिलेवार, बेहद ही सटीक और सुरुचिपूर्ण तरिके से पाठको तक पहुंचाने का प्रयास किया है ! पुस्तक के संयोजक भारत डोगरा का मानना है कि इस को लिखने का उददेश्य मौजूदा समय में नई पीढ़ी के प्रेरणा स्तोत्र के रूप में इन स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और विचारो को प्रतिष्ठित किया जा सके! पुस्तक की प्रस्तुति में प्रत्येक सेनानी के जीवन परिचय से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और शहादतका विस्तार और गहनता से अध्ययन कर के बेहद ही सार्थक जानकारी ओर सामग्री पाठको तक पहुंचाई गयी है! क्रन्तिकारी महिलाओं में कई नाम तो परिचय के मोहताज नहीं है पर कई ऐसी महिलाएँ भी रही जो गुप्त तौर पर काम कर के आजादी के संघर्ष में शहीद हुई उनके बारे में जानना भी दिलचस्प है ! इस में दो राय नहीं है कि यह पुस्तक आजादी की लड़ाई के संघर्ष ओर उससे जुडी शहीदो की कहानी को संपूर्णता से पाठको तक पहुंचाती है ! सहज सरल भाषा से सुपाठ्य यह पुस्तक सभी के लिए प्रेरणा दायक साबित होगी!
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bal Chitramay BuddhaLeela 0537
भगवान् बुद्ध का चरित्र परम पवित्र और उदार है। इस पुस्तक में भगवान् बुद्ध की विभिन्न लीलाओं के 48 चित्र दिये गये हैं। प्रत्येक चित्र के नीचे कविता में चित्र में दर्शायी गयी लीला का वर्णन दिया गया है। यह पुस्तक बालक-बालिकाओं को भगवान् बुद्धके त्याग एवं वैराग्यसे सम्पन्न चरित्र का परिचय देने की दृष्टिसे विशेष उपयोगी है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Banda Singh Bahadur
बंदा बहादुर ने अपना प्रारंभिक जीवन एक वैरागी के रूप में बिताया। यह लगभग सत्रह वर्ष चला। अधिकांश समय उन्होंने दक्षिण भारत में गोदावरी नदी पर स्थित नंदेड़ नामक नगर में अपने आश्रम में तपश्चर्या करते बिताया। उन्होंने हिंदू शास्त्रों तथा योग एवं प्राणायाम विद्याओं का गहन अध्ययन किया। कुछ लोग मानते हैं कि वे तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे।
गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें गले से लगाया, उन्हें अमृत छकाकर सिख बनाया, उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रखा और उन्हें पंजाब से मुगल राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी।
इसके बाद उन्होंने पंजाब में मुगलों के शहर, गढ़ और किले आक्रमण करके अपने अधीन करने का कार्यक्रम शुरू किया। बंदा ने ऐलान किया कि वे जमींदारों को हटाकर सभी जमीन खेतिहर गरीब किसानों में बाँटेंगे।
महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के दिनों के बाद इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद पहली बार उत्तर भारत में किसी गैर-मुसलमानी शक्ति ने एक बड़े और बेशकीमती भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। अंततः मुगलों ने बंदा बहादुर को पकड़कर बेडि़यों में डाल लोहे के पिंजड़े में बंद कर दिया गया। हथकडि़यों और पाँव की साँकलों में बंदा को महीनों तक जेल में बंद रख, मुसलमान जल्लादों के हाथों जो अमानवीय यातनाएँ दी गईं, वे अनुमान और कल्पना से परे हैं।
वीर, क्रांतिकारी, हुतात्मा, धर्मपारायण, राष्ट्रनिष्ठ वीर बंदा सिंह बहादुर की जाँबाजी और पराक्रम का गौरवगान करती यह पुस्तक हर राष्ट्राभिमानी के लिए पढ़नी आवश्यक है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Batla House Encounter Ka Sach(PB)
“सितम्बर 2008: एक के बाद एक अनेक बम धमाकों ने दिल्ली
को दहलाकर रख दिया। जाँच-पड़ताल
के बाद दिल्ली पुलिस की एक विशेष टीम ने बाटला हाउस के फ्लैट नं. 108 पर छापा मारा।
टीम को स्पष्ट निर्देश दिए गए
थे कि फ्लैट पर छापा मारकर संदिग्ध आतंकवादियों को जिंदा गिरफ्तार करना है। इसके बाद जो हुआ, उसने एक मुठभेड़ का रूप धारण कर लिया और राजनीतिक गलियारे में तूफान ला दिया। यह घटना आज भी मीडिया-जगत् में उग्र एवं विवादास्पद मुद्दा बनी हुई है।
बाटला हाउस
इस ऑपरेशन का नेतृत्व कर्मठ एवं जुझारू पुलिस अधिकारी कर्नल सिंह ने किया था। देश को झकझोर देनेवाली इस मुठभेड़ की पल-पल की घटनाओं का वह स्वयं यहाँ वर्णन कर रहे हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो से मिली सूचनाओं, भारत के विभिन्न शहरों में घटी घटनाओं, भिन्न-भिन्न पहलुओं तथा स्थानीय संदेशवाहकों व गुप्तचरों द्वारा प्राप्त विशेष खबरों के आधार पर उन्होंने इस मुठभेड़ की घटनाओं को सिलसिलेवार जोड़कर एक कहानी का रूप दिया है, जिसने गुप्त और खूँखार इंडियन मुजाहिद्दीन के अंत की शुरुआत को चिह्नित किया है। आतंकवाद और आतंकियों को शह देनेवाले राष्ट्रघातकों
मुठभेड़ का जीवंत दस्तावेज है यह पुस्तक ‘बाटला हाउस’।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(PB)
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य सहयोगी, विप्लवी बटुकेश्वर दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल के ओआड़ी नामक गाँव में हुआ था। सन् 1928 में गठित ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के वे सक्रिय सदस्य थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त जन-जन के नायक बन गए। यह बम विस्फोट औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करनेवाला साबित हुआ। कारावास में की गई लंबी भूख-हड़ताल भारत के इतिहास में नजीर बनकर सामने आई। अंडमान जेल में ‘कालापानी’ की सजा के बाद भी बटुकेश्वर दत्त ने किसान आंदोलन, 1942 क्रांति और उसके बाद के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 3 अक्तूबर, 1963 से 6 मई, 1964 तक वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे। उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार वहीं हो, जहाँ ‘सरदार’ (भगत सिंह) की समाधि है। 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में उनकी मृत्यु होने के बाद फिरोजपुर के हुसैनीवाला में सरदार भगत सिंह की समाधि के निकट ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। जीवन भर भगत सिंह के साथ रहनेवाले बटुकेश्वर दत्त मृत्यु के बाद भी भगत सिंह के साथ ही रहे।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Bauddha Kapalika Sadhna Aur Sahitya
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियांBauddha Kapalika Sadhna Aur Sahitya
बौद्ध कापालिक साधना और साहित्य : हिन्दी के आदिकालीन साहित्य और भक्तिकालीन साहित्य की भूमिका प्रस्तुत करनेवाली बौद्ध सिद्धों की अपभ्रंश रचनाओं का अध्ययन केवल हिन्दी ही नहीं सम्पूर्ण समकालीन साहित्य, किंबहुना तत्कालीन समग्र धर्मदार्शनिक एवं साधनात्मक जीवन के अध्ययन के लिए उपयोगी है; क्योंकि तंत्रदर्शन एवं साधना का अति व्यापक एवं गंभीर प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। इसी दृष्टि से बहुत पहले १९५८ में तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य की रचना की गई थी।
यह ग्रन्थ उस अध्ययन के एक पक्ष का विस्तार है। बहुत पहले आचार्य डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ में जालंधर पाद और कान्हुपा के कापालिक साधन और ‘बामारग’ की चर्चा नाथ सम्प्रदाय के परिप्रेक्ष्य में ही की थी। दूसरे उस समय बौद्धों के कापालिक साधन और दर्शन से सम्बन्धित किसी शास्त्रीय ग्रन्थ की सहायता नहीं ली गई थी। अतः बौद्धों के कापालिक तत्त्वों, साधनों, दार्शनिक सिद्धान्तों की मीमांसा भी नहीं हो पाई। यहाँ तक कि श्री स्नेलग्रोव ने हेवज्रतंत्र और उसकी टीका हेवज्रपंजिका का संपादन करके भी उसके कापालिक तत्त्वों का विस्तृत विवेचन नहीं किया और न एक पृथक् बौद्ध साधनाधारा के रूप में इसे प्रस्तुत ही किया।
यह ग्रंथ बौद्ध साधना और साहित्य के अनेक अछूते, विस्मृत, तिरस्कृत और महत्त्वपूर्ण सूत्रों को एकत्रित कर उनका व्यवस्थापन करते हुए बौद्धों के कापालिकतत्त्व का स्वरूप प्रस्तुत करता है। सामान्यतया केवल शैवों में ही कापालिकों की स्थिति माननेवालों को इस ग्रंथ से नया प्रकाश, नई सूचनाएँ एवं भारतीय कापालिक साधना का एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। कापालिक साधना के विषय में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण भी होगा, इसमें संदेह नहीं।
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Hindi Books, Suggested Books, Upasana Publications , अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bhaarateey Chintan Me Karm Evan Punarjanm
-15%Hindi Books, Suggested Books, Upasana Publications , अध्यात्म की अन्य पुस्तकेंBhaarateey Chintan Me Karm Evan Punarjanm
यह पुस्तक भारतीय चिन्तनधारा का प्रायः सर्वसम्मत सिद्धान्त है। कर्म और पुनर्जन्म भारतीय दर्शन-परम्परा में वस्तुतः परस्पराश्रित माने गये हैं। कर्म नहीं तो पुनर्जन्म नहीं, पुनर्जन्म नहीं तो दृश्य कर्म नहीं। कारण-कार्य सिद्धान्त सृष्टि का सार्वभौम सिद्धान्त है तथा कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त इस कारणता नियम पर ही आधृत होने से सर्वथा तर्कसङ्ग एवं समीचीन है। प्रस्तुत ग्रन्थ इस सर्वमान्य एवं रहस्यात्मक ‘कर्म और पुनर्जन्म सिद्धान्त’ के विविध आयामों पर आधारित विद्वतापूर्ण 46 शोधपत्रों का सङ्कलन है। यह ग्रन्थ संस्कृत एवं भारतीय विद्या के मूर्धन्य विचारकों ने विविध दृष्टिकोणें से कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर विपुल विचार-सामग्री प्रस्तुत की है, जो जिज्ञासू अध्येताओं के लिए अवश्य ही लाभप्रद होगी।
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Hindi Books, Rajkamal Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Bhagawan Parshuram
Hindi Books, Rajkamal Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासBhagawan Parshuram
आर्य-संस्कृति का उषःकाल ही था, जब भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि-पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म हुआ। यह वह समय था जब सरस्वती और हषद्वती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त में यदु और पुरु, भरत और तृत्सु, तर्वसु और अनु, द्रह्यू और जन्हू तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थीं और जहाँ वसिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरुषों के आश्रमों से गुंजरित दिव्य ऋचाएँ आर्यधर्म का संस्कार-संस्थापन कर रही थीं। लेकिन दूसरी ओर सम्पूर्ण आर्यावर्त, नर्मदा से मथुरा तक शासन कर रहे हैहयराज सहस्रार्जुन के लोमहर्षक अत्याचारों से त्रस्त था। ऐसे में युवावस्था में प्रवेश कर रहे परशुराम ने आर्य-संस्कृति को ध्वस्त करने वाले हैहयराज की प्रचंडता को चुनौती दी और अपनी आर्यनिष्ठा, तेजस्विता, संगठन-क्षमता, साहस और अपरिमित शौर्य के बदल पर विजयी हुए। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास एक युगपुरुष की ऐसी शौर्यगाथा है जो किसी भी युग में अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती रहेगी।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bhajan Amrit 0144
भक्तों के लिये भजनों का महत्त्व अमृत-तुल्य है। भगवत्प्रेम में उन्मत्त प्रेमी का मन अनेक प्रकार के भावतरंगों से अनुप्राणित होकर भजन बन जाता है। इन्हीं भावतरंगों की सहज माधुरी को समेटकर 67 मधुर भजनों का यह संग्रह निवेदन, भगवद्-वियोग, लीलागान आदि शीर्षकों में प्रकाशित किया गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan
ऋग्वेद में उल्लेख है ‘भद्रं इच्छन्ति ऋषयः’, ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं। लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है। इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है। यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है—सर्वे भवन्तु सुखिनः/सर्वे सन्तु निरामया/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु/मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत्। यानी सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब एक-दूसरे की भलाई में रत रहें, किसी के कारण किसी को दुख न पहुँचे।
भारत की संस्कृति इसी भावबोध का विस्तार है। हमारी ऋषि-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आद्य शंकराचार्य से लेकर संत तुलसीदास तक ने इसी सांस्कृतिक चेतना को परिपुष्ट किया है। इस तरह भारत विश्व को सुख-शांति-सद्भाव का मार्ग दिखानेवाली सांस्कृतिक चेतना का अधिष्ठान बन गया।
भारत को जानना है तो इस संस्कृति
के मर्म को जानना-समझना पड़ेगा। इसे ‘सरवाइवल ऑफ द फिटैस्ट’ जैसी पाश्चात्य या ‘वर्ग संघर्ष’ जैसी कम्युनिस्ट अवधारणाओं से नहीं जाना-समझा जा सकता, जो देश की स्वाधीनता के बाद भी सत्ता का संरक्षण पाकर औपनिवेशिक मानसिकता को पाल-पोसकर भारतीयता के विरुद्ध खड़ा करने में लगी रही हों। यह पूरी जमात ‘लोग आते गए, कारवाँ बनता गया’ जैसे जुमलों की आड़ में भारत की सांस्कृतिक पहचान को ही मिटाने का कुचक्र रचती रही है। जबकि विश्वविख्यात विद्वान् अर्नाल्ड टायन्बी अपनी पुस्तक ‘द स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में भारत के इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों को विनाश के कगार पर खड़ी मानवता को बचाने का विकल्प मानते हैं।SKU: n/a -
Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Ek Swarnim Yatra
इस यात्रा में 200 से अधिक युवाओं ने 18 बोगी की विशेष ट्रेन में 7000 कि.मी. की यात्रा पूरे भारत में की जहाँ उन्हें अपने देश की बहुआयामी संस्कृति एवं समृद्ध इतिहास की सुन्दर झलक देखने को मिली। 12 गंतव्यों को छूती हुई इस रेल यात्रा का वृत्तान्त लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों के सामने रखा है।
इस यात्रा के पीछे की जो दृष्टि थी वो भारत की आजादी के अमृत महोत्सव जब हम ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के भाव से आगे बढ़ रहे हैं, के अवसर पर अत्यधिक प्रासंगिक है और इस राष्ट्र पर्व को यह पुस्तक और अधिक शक्ति तथा गति प्रदान करने वाली है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Ka Ankaha Itihas
“इस पुस्तक में आप पढ़ेंगे एक अहिंसक तानाशाह को, जिसने नियमों को हमेशा ताक पर रखा। कहानी कम्युनिज्म के नशे में चूर एक युवा नेता की, जिसने यहाँ तक कह दिया कि “सोवियत की जेलों में रहना बेहतर है, बजाय भारत की किसी फैक्टरी में काम करने से !” कहानी एक ऐसे संगठन की, जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मान कर भारतीय अस्मिता की रक्षा के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहा। साथ ही हम जानेंगे, आखिर कैसे रचा गया खालिस्तान का षड्यंत्र ? कितनी बार हुआ कश्यप की धरती पर उन्हीं के वंशजों का पलायन ? हम बात करेंगे इतिहास के मिथ्याकरण की, जिसमें कपटपूर्ण चालों से झूठ को सच बताया गया।
आप पढ़ेंगे एक ऐसे वीर को, जिसके साहस के आगे समुद्र को भी अपनी रफ्तार धीमी करनी पड़ी और फ्रांस जैसे सशक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति को त्यागपत्र तक देना पड़ा।आज आवश्यकता है इतिहास के पुनरावलोकन की, ताकि हम स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेवाले सच्चे वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें एवं उनसे प्रेरणा लेकर भविष्य की चुनौतियों का हल निकालने का प्रयास करते हुए स्वाधीनता की 100वीं वर्षगाँठ पर भारत को एक विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित कर सकें |”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Ka Dalit-Vimarsh
दलित हिंदू ही हैं। ठीक वैसे ही जैसे भारत के पिछड़ा, आदि यानी सभी मध्यम जातियाँ हिंदू हैं और ठीक वैसे ही जैसे भारत की सभी सवर्ण जातियाँ हिंदू ही हैं। भारत के हिंदू समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। वे किसी भी आधार पर हिंदू से अलग, पृथक् कुछ भी नहीं हैं, फिर वह आधार चाहे भारत के जीवन-दर्शन का हो, भारत की अपनी विचारधारा का हो या भारत के इतिहास का हो, भारत के समाज का हो, भारत की संपूर्ण संस्कृति का हो। इस समग्र विचार-प्रस्तुति का अध्ययन होना ही चाहिए। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आह्वान का सम्मान करते हुए सारा भारत, जिसमें हमारे जैसे लिखने-पढ़ने वाले लोग भी यकीनन शामिल हैं, अब उस वर्ग को ‘दलित’ कहता है, जिसे वैदिक काल से ‘शूद्र’ कहा जाता रहा है। प्राचीन काल से शूद्र तिरस्कार के, उपेक्षा के या अवमानना के शिकार कभी नहीं रहे। हमारे द्वारा दिया जा रहा यह निष्कर्ष हमारी इसी पुस्तक में प्रस्तुत किए गए शोध और तज्जन्य विचारधारा पर आधारित है। इस विचारधारा को हमने अपनी ही पुस्तकों ‘भारतगाथा’ और ‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’ में विस्तार से तर्क और प्रमाणों के साथ देश के सामने रख दिया है। दलितों का पूर्व नामधेय शूद्र था। जाहिर है कि इसका अर्थ खराब कर दिया गया। पर सभी शूद्र उसी वर्ण-व्यवस्था का, ‘चातुर्वर्ण्य’ का हिस्सा थे, जिस वर्ण-व्यवस्था का हिस्सा वे तमाम ऋषि, कवि, साहित्यकार, मंत्रकार, उपनिषद्कार, पुराणकार और लेखक थे, जिनमें स्त्री और पुरुष, सभी शामिल रहे, जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र, सभी वर्णों के विचारवान् लोगों ने की; रामायण, महाभारत, पुराण जैसे कथा ग्रंथ लिखे; ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषद् साहित्य तथा समस्त निगम साहित्य की रचना की। ब्राह्मणों ने भी की और शूद्रों ने भी की। स्त्रियों ने की और पुरुषों ने भी की। सभी ने की।
दलितों के सम्मान और गरिमा की पुनर्स्थापना करने का पवित्र ध्येय लिये अत्यंत पठनीय समाजोपयोगी कृति।
भारत के हिंदू समाज में आए इन विविध परिवर्तनों और परिवर्तन ला सकनेवाले अभियानों-आंदोलनों के परिणामस्वरूप देश में जो नया वातावरण बना है, जो पुनर्जाग्रत समाज उभरकर सामने आया है, जो नया हिंदू समाज बना है, उस पृष्ठभूमि में, इस सर्वांगीण परिप्रेक्ष्य में हिंदू उठान और इसलिए पूरे भारत में आए दलित उठान, उसका मर्म और परिणाम समझ में आना कठिन नहीं। भारत चूँकि हिंदू राष्ट्र है, वह न तो इसलामी देश है और न ही क्रिश्चियन देश है, और भारत कभी इसलामी राष्ट्र या क्रिश्चियन राष्ट्र बन भी नहीं सकता, इसलिए भारत में दलित विमर्श, दलित समाज का स्वरूप और दलितों के उठान में इस अपने हिंदू समाज की, भारत के हिंदू राष्ट्र होने के सत्य की अवहेलना कर ही नहीं सकते। भारत का हिंदू आगे बढ़ेगा तो भारत का दलित भी आगे बढ़ेगा और भारत का दलित आगे बढ़ेगा, तो भारत का हिंदू भी आगे बढ़ेगा। उसे वैसा लक्ष्य पाने में भारत का हिंदू राष्ट्र होना ही अंततोगत्वा अपनी एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।SKU: n/a