कहानियां
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Rajpal and Sons, कहानियां
Khaiyam Ki Madhushala
बारहवीं शताब्दी के फ़ारसी शायर उमर खै़याम की रुबाइयों का, जिनमें मनुष्य जीवन की भंगुरता तथा अर्थहीनता को बड़े प्रभावी शब्दों में व्यक्त किया गया है, विश्व साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सात सौ वर्ष बाद उन्नीसवीं शताब्दी में एडवर्ड फिट्ज़जेरल्ड ने इसकी चुनी हुई रुबाइयों का अंग्रेज़ी अनुवाद किया तो दुनिया भर में उसकी धूम मच गई क्योंकि इस समय तक देशों में आवागमन बहुत बढ़ चुका था और अंग्रेज़ी पारस्परिक आदान-प्रदान का माध्यम बन चुकी थी। बीसवीं शताब्दी में यह तूफ़ान भारत में भी आ पहुँचा और 30 के दशक में एक दर्जन से ज़्यादा इसके अनुवाद-अनुवादकों में मैथिलीशरण गुप्त तथा सुमित्रानंदन पंत जैसे कवि भी थे-हिन्दी में प्रकाशित हुए। यह दरअसल एक नई चेतना, एक दर्शन था जिससे सभी प्रबुद्ध जन प्रभावित हो रहे थे।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
KHEL-KHEL MEIN
अनुवादक – निर्मल वर्मा तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की राजधानी ‘प्राग’ अर्थात् देहरी। एक तरह से प्राग नगर यूरोप का प्रयाग रहा है- पूर्व और पश्चिम की सांस्कृतिक धाराओं का पवित्र संगम-स्थल। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में वह यहूदी विद्वानों, जर्मन लेखकों और रूसी क्रान्तिकारियों का शरण-स्थल रह चुका है। उन दिनों उसमें शायद पेरिस या वियेना या बर्लिन की चकाचौंध नहीं थी, लेकिन एक अनूठी गरिमा और संवेदनशीलता अवश्य थी, जिसने वहाँ बसने वाले जर्मन और यहूदी लेखकों की मनीषा को एक बिरले रंग और लय में ढाला था। आज भी बीसवीं शती के जर्मन और यहूदी साहित्य को प्राग से अलग करके देख पाना असम्भव लगता है। इसी प्राग नगर में साठ के दशक में हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार श्री निर्मल वर्मा ने अपने युवा वर्ष गुजारे थे। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़ के निमन्त्रण पर वहाँ रह कर न केवल चेक भाषा सीखी, बल्कि तत्कालीन चेक साहित्य से हिन्दी जगत को सीधे परिचित करवाया। हिन्दी पाठकों के लिए यह दिलचस्प तथ्य होगा कि चेक साहित्य के गणमान्य मूर्धन्य लेखकों- कारेल चापेक, बोहुमिल हराबाल- के अलावा तब के युवा लेखकों, मिलान कुन्देरा और जोसेफ़ श्कवोरस्की की रचनाएँ हिन्दी में उस समय आयीं जब यूरोप में वे अभी अल्पज्ञात थे। यही इस संग्रह की ऐतिहासिक भूमिका है। प्रस्तुत कहानियाँ इससे पहले ‘इतने बड़े धब्बे’ नाम से 1966 में संकलित हो चुकी हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Kitni Maayen Hain Meri
माँ एक सुखद अनुभूति व कोमल भाव है, जहाँ समस्त प्रेम शुरू होते हैं और परिणति को प्राप्त होते हैं। इस भाव को शब्दों में बाँध पाना असंभव सा है। इस संकलन के केंद्र में माँ है—सृष्टि की अद्वितीय कृति! मातृत्व एक विशेष अनुभव है और माँ एक अनोखी कहानी, जिसके आदि-अंत का कोई छोर नहीं। माँ की गहराई, माँ की व्यापकता को मापना सरल नहीं है, क्योंकि माँ शब्द में ही संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है। भारतीय संस्कृति में जननी एवं जन्मभूमि दोनों को ही माँ का स्थान दिया गया है। इन दोनों के बिना देह-रचना संभव नहीं। इनको समकक्ष रखते हुए भगवान् श्रीराम के मुख से निकला—‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
‘कितनी माँएँ हैं मेरी’ कहानी संकलन माँ के बहुआयामी रूप को साकार करने का एक प्रयास है। माँ, सौतेली माँ, बिनब्याही माँ और धाय माँ की परंपरागत परिधि से आगे बढ़कर आज के युग में माँ के कई नए रूप— फोस्टर मदर, अडॉप्टेड मदर, सरोगेट मदर, सिंगल मदर, गे मदर…आकार ले चुके हैं।
संकलन की लगभग सभी माँएँ लेखिका के संपर्क में आई हैं और उसके अनुभव का हिस्सा रही हैं। परिस्थितियों की उठा-पटक के बीच उलझे घटनाक्रम में माँ किस प्रकार अस्तित्वमान रहती है, यही बात इस संकलन की कहानियों का प्राणतत्त्व है।
विभिन्न कालखंडों और विभिन्न स्थानों से जुड़ी कुल 12 कहानियों में माँ आपके सम्मुख है। माँ के विविध रूपों को मूर्त करने की यह कोशिश कितनी सफल हुई है, इसका निर्णय पाठक के हाथों में है।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियां
Kohinoor
‘खूबसूरती से लिखी गई एक मनोरंजक दास्तान’- वायर। ‘एक पत्थर के रोमांचक सफर के ज़रिए…भारत की कहानी’-ओपन। कोहिनूर दुनिया का सबसे मशहूर हीरा है, लेकिन इस पर हमेशा ही रहस्य का एक पर्दा पड़ा रहा है। अब इसके बारे में सुनी-सुनाई बातों और मिथकों को तार-तार करते हुए विलियम डेलरिंपल और अनिता आनंद ने इसका एक सच्चा इतिहास लिखने की कोशिश की है। कोहिनूर की यह दास्तान इतनी अजीबोगरीब और हिंसक है कि इसके आगे कपोल कल्पनाएं भी फीकी पड़ जाएं। मुग़लों के तख्त-ए-ताऊस से लेकर नादिर शाह के खज़ाने तक, रणजीत सिंह की पगड़ी से लेकर रानी विक्टोरिया के ताज तक के सफ़र के बारे में, यह कोहिनूर की अब तक की बेहतरीन कहानी है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Lakshmi Prasad Ki Amar Dastan
एक दुबली और लंबी सी लड़की पूरे गांव को बदल देती है. अड़सठ साल की बूढ़ी नोनी आपा एक शादीशुदा आदमी की ओर आकर्षित हैं और सोचती हैं कि रिश्तों को परिभाषित करना ज़रूरी क्यों है. बबलू केवट का परिवार आतंकित है कि उसपर सेनिटरी नैपकिन्स का जुनून सवार है और पांच शादियां करनेवाली एक नौजवान लड़की अपनी हरेक शादी के मंसूबे बनाते वक्त मौसम की भविष्यवाणियों पर नज़र रखती है. इस मज़ेदार, बारीक निगाहों वाली और समझदार क़िस्सागोई से आप खुद को दूर नहीं रख सकेंगे।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Lal Teen Ki Chhat
हिन्दी कहानी को निर्विवाद रूप से एक नयी कथा-भाषा प्रदान करने वाले अग्रणी कथाकार निर्मल वर्मा की साहित्यिक संवेदना एक ‘जादुई लालटेन’ की तरह पाठकों के मानस पर प्रभाव डालती है। प्रायः सभी आलोचक इस बात पर एकमत हैं कि समकालीन कथा-साहित्य को उन्होंने एक निर्णायक मोड़ दिया। ‘लाल टीन की छत’ उनकी सृजनात्मक यात्रा का एक प्रस्थान बिन्दु है जिसे उन्होंने उम्र के एक ख़ास समय पर फोकस किया है। ‘बचपन के अन्तिम कगार से किशोरावस्था के रूखे पाट पर बहता हुआ समय, जहाँ पहाड़ों के अलावा कुछ भी स्थित नहीं है।’
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Garuda Prakashan, Literature & Fiction, कहानियां
Lotus In The Stone: Sacred Journeys In Eternal India
Garuda Prakashan, Literature & Fiction, कहानियांLotus In The Stone: Sacred Journeys In Eternal India
A travelogue like no other, A guidebooks to India and its temples and hidden gems that you will cherish. Lotus In The Stone takes us on a journey to the dizzying array of deities, temples, festivals, rituals, art, architecture, applied sciences and living traditions of India, that is Bharat, bringing us to an understanding of the sublime, advanced society her culture nurtured. With her experiences and adventures in crisscrossing Inda for decades, the author shows us how ancient India’s surviving heritage and living traditions are a testimony to her history and the invisible threads and sacred geography that bind her people together.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, कहानियां
Maa Ka Dulaar
मैं उसके हस्तक्षेप से थक चुकी थी। मैं बोली, ‘ठीक है, मुझे इस बारे में सोचने दीजिए। हम बाद में बात करते हैं।’
अगले दिन उसने फिर मुझे फोन किया। ‘मैडम, हमारी फैक्टरी में लंबे लोग भी हैं। क्या मैं आपको अलग-अलग सूची भेज दूँ, ताकि आप उनके लिए अधिक कपड़ा खरीद सकें?’
‘सुनिए, मेरे पास संशोधनों के लिए समय नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकती।’
‘साड़ियों और कपड़ों का रंग क्या होगा?’
‘एक ही मूल्य के कपड़ों में हम अलग-अलग रंग ले लेंगे।’
‘अरे, आप ऐसा नहीं कर सकतीं। कुछ लोगों को अपने उपहारों के रंग पसंद आ सकते हैं और कुछ को बिलकुल भी नहीं आ सकते तो वे बहुत दुःखी हो जाएँगे।’
‘ऐसा है तो मैं एक ही रंग सभी को दे दूँगी।’
‘नहीं मैडम, ऐसा मत कीजिएगा। वे सोचेंगे कि आप उन्हें एक यूनिफॉर्म दे रही हैं।’
थककर मैं बोली, ‘तो आपका क्या सुझाव है?’SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Maalgudi Ki Kahaniyaan
अपने उपन्यास ‘गाइड’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित तथा पद्मविभूषण द्वारा अलंकृत उपन्यासकार आर.के. नारायण विश्वस्तरीय रचनाकार गिने जाते हैं। उनके उपन्यास ‘गाइड’ पर बनी फिल्म ने उन्हें लोकप्रियता का एक और आयाम दिया, जिसे आज भी याद किया जाता है। ‘मालगुडी की कहानियां’ आर.के. नारायण की अद्भुत रोचक कहानियां समेटे हुए पुस्तक है। अपने दक्षिण भारत के प्रिय क्षेत्र मैसूर और चेन्नई में घूमते हुए उन्होंने आधुनिकता और पारंपरिकता के बीच यहां-वहां ठहरते साधारण चरित्रों को देखा और उन्हें अपने असाधारण कथा-शिल्प के ज़रिये, अपने चरित्र बना लिये। ‘मालगुडी के दिन’ पर दूरदर्शन ने धारावाहिक बनाया जो दर्शक आज तक नहीं भूले हैं। दशकों बाद भी ‘मालगुडी के दिन’ की कहानियां उतनी ही जीवंत और लोकप्रिय हैं, जितनी पहले कभी थीं। यही उनकी खूबी है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Madhubala
अग्रणी कवि बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य ‘मधु’ अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और ‘मधुशाला’ एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम ‘मधुशाला’ ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई और कालजयी रचनाओं कर श्रेणी में आ खड़ी हुई है। इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है: ‘आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं…, आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा।”
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Rajpal and Sons, कहानियां
Madhukalash
‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’, ‘मधुकलश’ अग्रणी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ के तीन कविता-संकलन हैं जो हिन्दी साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं और कालजयी श्रृंखलाओं की कड़ी में आ खड़े हुए हैं। इन कविताओं की रचना के समय बच्चन जी की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। ‘मधुकलश’ की भूमिका में बच्चन जी ने लिखा है, ‘‘ये कविताएं सन् 1935-36 में लिखी गईं और सर्वप्रथम 1937 में प्रकाशित हुईं। इसके पहले मधुशाला 1935 में और ‘मधुबाला’ 1936 में प्रकाशित हो चुकी थीं। मेरे जीवन का जो उत्साह, उल्लास और उन्माद-गो उनमें एक अभाव, एक असन्तोष, एक निराशा की व्यथा भी घुली-मिली थी-‘मधुशाला’ और ‘मधुबाला’ में व्यक्त हुआ था, वह अब उतार पर था।’’ आगे लिखते हैं, ‘‘ये कविताएं जीवन के रस से खाली नहीं हैं और जीवन का रस मधु ही मधु नहीं होता, कटु भी होता है…समर्थ के हाथों अमृत भी बनता है।’’
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Rajpal and Sons, कहानियां
Madhushala
हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना ‘मधुशाला’ 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है। मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Mahatma
ये कहानियाँ मेरे उपन्यासों के अंतराल की उत्पाद हैं; पर ये उपन्यास नहीं हैं—न आकार में और न प्रकार में। यद्यपि आज यह बात भी उठ रही है कि कहानी कोई विधा ही नहीं है। जो कुछ है वह उपन्यास ही है। आकार की लघुता में भी वह उपन्यास है—और विशालता में तो है ही। दोनों में कथा-शिल्प एक है।
मेरा ‘पात्र’ जिन ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर ले चलता है वहाँ मैं अकेला नहीं होता। एक तो मेरा विवेक मेरे साथ होता है और दूसरे, मेरी कल्पना मेरे साथ होती है। विवेक रेखांकन करता है और कल्पना रंग भरती है। रेखांकन के बाहर उसका रंग नहीं जाता। विवेक कल्पना का नियंत्रण है, ‘पकड़’ है। जब कल्पना रेखांकन के बाहर जाने लगती है या वायवी होने लगती है तब विवेक कहता है, ‘ठहरो, कुछ सोच-विचार करो।’…और बाहर जाने की अपनी प्रकृति के बावजूद वह यथार्थ के दायरे में ही रहती है। तब वे चित्र बनते हैं, जिनके कुछ नमूने इस संग्रह में हैं।SKU: n/a -
Literature & Fiction, Prabhat Prakashan, कहानियां
MAIN PREMCHAND BOL RAHA HOON
उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचंद ने गरीब मजदूरों व किसानों पर हो रहे अत्याचारों और उनके शोषण को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि उन्होंने समाज से जुड़ी इस तरह की घटनाओं का अपनी रचनाओं में यथार्थ रूप से स्पष्ट वर्णन किया है। भारत उस समय परतंत्रता की बेडि़यों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेज सरकार भारतीय जनता पर तरह-तरह के अत्याचार कर रही थी, जिससे जनता बुरी तरह त्रस्त थी। लोगों में राष्ट्र-प्रेम की भावना जाग्रत् करने के लिए प्रेमचंद ने अनेक लेख, कहानियाँ और उपन्यास लिखे। घोर निराशा में डूबी और अवसादग्रस्त जनता को झकझोरने के लिए उन्होंने सामाजिक कुप्रथाओं, जैसे— अनमेल विवाह, दहेज-प्रथा और बाल-विवाह पर कड़े प्रहार किए। इस पुस्तक में देश, समाज, धर्म, मानवीय अनुभूतियों और साहित्य की विभिन्न विधाओं पर प्रेमचंदजी के सुस्पष्ट विचार-पुष्प संचित हैं। प्रेमचंद की विभिन्न रचनाओं, लेखों एवं भाषणों में अभिव्यक्त उनके विचारों का प्रेरणाप्रद संकलन है ‘मैं प्रेमचंद बोल रहा हूँ’।.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियां
Main Vidhyalay Bol Raha Hoon
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियांMain Vidhyalay Bol Raha Hoon
मैं विद्यालय बोल रहा हूँ :
प्रस्तुत लेखनी मेरे जीवन की उस यात्रा का वर्णन है, जिसका कर्ता भी मैं (विद्यालय) हूँ और कारक भी मैं (विद्यालय) ही हूँ। मैं, शिक्षक, विद्यार्थी, भवन एवं अभिभावक नामक चार महत्त्वपूर्ण स्तम्भों के सामंजस्य की कहानी भी हूँ तो वर्तमान दौर में लड़खड़ाते उसी सामंजस्य की दुहाई भी हूँ। इस यात्रा में मेरे सुंदर से उपवन का विश्लेषण भी है एवं बंजर होती भूमि का अन्वेषण भी है। मेरे विविध आयामों का प्रस्तुतिकरण भी है तो भीतर छिपी असीमित संभावनाओं का प्रकटीकरण भी है। बदलते वक्त में व्यापक हो रहे मेरे परिवेश का प्रकट स्वरूप भी है तो बदलाव की संकीर्णताओं से मेरे भीतर उपजे आवेश का भयावह रूप भी है। मुझमे छिपी संस्कारों की सुहास का प्रतिफल भी है तो मेरे भीतर पनप रही व्यसन जैसी कुरीतियों का दावानल भी है। अविद्या से मिलने वाले भौतिक संसाधनों के महत्व का गहन चिंतन भी है तो विद्या के अभाव में लुप्त हो रहे मानवीय मूल्यों का मानस मंथन भी है। मेरे अस्तित्व की खोज ही इस लेखन का मूल है जो मुझे और मेरे चारों स्तम्भों को मेरे अस्तित्व का बोध कराती है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Maulana Abdul Kalam Azad
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Maulana Abdul Kalam Azad
The full name of Abul Kalam was Abul Kalam Ahmed Mahiuddin Azad. He was born on November 11; 1888 in Mecca.
Abul Kalam Ghulam Muhiyuddin Ahmed bin Khairuddin) (11 November 1888 – 22 February 1958) was an Indian scholar, Islamic theologian, independence activist, and a senior leader of the Indian National Congress during the Indian independence movement. Following India’s independence, he became the First Minister of Education in the Indian government Minister of Human Resource Development (until 25 September 1958, Ministry of Education) . He is commonly remembered as Maulana Azad; the word Maulana is an honorific meaning ‘Our Master’ and he had adopted Azad (Free) as his pen name. His contribution to establishing the education foundation in India is recognised by celebrating his birthday as National Education Day across India.As a young man, Azad composed poetry in Urdu, as well as treatises on religion and philosophy. He rose to prominence through his work as a journalist, publishing works critical of the British Raj and espousing the causes of Indian nationalism.
Abul Kalam was the foremost freedom fighter of India. He impressed entire India with his foresight; knowledge; merit and his writings. He left an indelible mark on the history of India with his revolutionary work.
His father ’ s name was Mohammad Khairuddin. His father was a great scholar of Arabic language. His mother was the daughter of the well-known scholar of Mecca; Sheikh Mohammad Zahir Watri. Abul Kalam was the youngest child of his parents
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