ऐतिहासिक उपन्यास
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Hindi Sahitya Sadan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Desh Ki Hatya
उपन्यासकार गुरुदत्त का जन्म जिस काल और जिस प्रदेश में हुआ उस काल में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर बहुत कुछ विचित्र घटनाएँ घटित होती रही हैं। गुरुदत्त जी इसके प्रत्यक्षदृष्टा ही नहीं रहे अपितु यथासमय वे उसमें लिप्त भी रहे हैं। जिन लोगों ने उनके प्रथम दो उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ और ‘पथिक’ को पढ़ने के उपरान्त उसी श्रृंखला के उसके बाद के उपन्यासों को पढ़ा है उनमें अधिकांश ने यह मत व्यक्त किया है कि उपन्यासकार आरम्भ में गांधीवादी था, किंतु शनैः-शनैः वह गांधीवादी से निराश होकर हिन्दुत्ववादी हो गया है।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Devangana | देवांगना
वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षाम: और सोमनाथ जैसे सुप्रसिद्ध उपन्यासों के लेखक आचार्य चतुरसेन के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि बारहवीं ईस्वी सदी का बिहार है जब बौद्ध धर्म कुरीतियों के कारण पतन की ओर तेज़ी से बढ़ रहा था। कहानी है बौद्ध भिक्षु दिवोदास की, जो धर्म के नाम पर होने वाले दुराचारों को देखकर विद्रोह कर डालता है। जिसके लिए उसे कारागार और पागलखाने में डाल दिया जाता है। वहां पर उसे एक देवदासी और एक भूतपूर्व सेवक सहारा देते हैं और उनकी सहायता से दिवोदास धर्म के नाम पर किए जाने वाले अत्याचारों का भंडाफोड़ करता है। आचार्य चतुरसेन ने किस्सागोई के अपने खास अंदाज़ में, इस कथानक के जरिये धर्म और धर्म के ढोंग को बहुत ही भावनात्मक और रोचक ढंग से चित्रित किया है और दिखाया है कि भारत से बौद्ध धर्म का लोप किन कारणों से हुआ। पठनीयता इतनी है कि शुरू से अंत तक पाठक को बाँधे रखती है।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Dharmaputra | धर्मपुत्र
धर्मपुत्र मनुष्य की अस्मिता के बारे में मूल प्रश्न उठाता है-क्या किसी इंसान का अस्तित्व इस बात पर निर्भर है कि वह किस परिवार में जन्मा या उसे किस प्रकार की शिक्षा संस्कार दिए गए या फिर इंसान की अस्मिता धर्म, शिक्षा और संस्कारों से परे इंसानियत से जुड़े जीवन-मूल्यों से है। यह कहानी है हिन्दू और मुसलमान परिवार की जिनका आपस में प्रेम भरा संबंध है। मुस्लिम परिवार की जवान लड़की की नाजायज़ औलाद को हिन्दू परिवार अपना लेता है और हिन्दू संस्कारों से उसका पालन-पोषण करता है। जवान होते-होते यह लड़का कट्टर हिन्दू बन जाता है और उसकी धारणा है कि मुसलमानों को भारत छोड़ देना चाहिए। इसी दौरान उसे अपनी जन्म देने वाली मां की सच्चाई का पता चलता है। मां और बेटे के आपसी संबंध होने के बावजूद वे नदी के दो अलग-अलग किनारों की तरह खड़े हैं और बीच में घृणा और अविश्वास की सुलगती नदी बह रही है। मशहूर फ़िल्म-निर्माता यश चोपड़ा ने 1961 में इस उपन्यास पर इसी नाम से फ़िल्म बनाई थी जो बहुत ही लोकप्रिय हुई थी।
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Rajpal and Sons, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Draupadi
द्रौपदी महाभारत ही नहीं, भारतीय जीवन तथा संस्कृति का एक अत्यन्त विलक्षण और महत्त्वपूर्ण चरित्र है-परन्तु साहित्य ने अब तक उसे प्रायः छुआ नहीं था। उपन्यास के रूप में इस रचना का एक विशिष्ट पक्ष यह भी है कि इसे एक महिला ने उठाया और वाणी दी है, जिस कारण वे इसके साथ न्याय करने में पूर्ण सफल हुई हैं। डा. प्रतिभा राय उड़िया की अग्रणी लेखिका हैं जिनके अनेक उपन्यास प्रकाशित होकर लोकप्रिय हो चुके हैं। उन पर अनेक पुरस्कार मिले हैं, फिल्में बनी हैं तथा कई कृतियां हिन्दी में भी सामने आ चुकी हैं। कृष्ण समर्पित तथा पांच पांडवों की ब्याही द्रौपदी का जीवन अनेक दिशाओं में विभक्त है, फिर भी उसका व्यक्तित्व बँटता नहीं, टूटता नहीं, वह एक ऐसी इकाई के रूप में निरन्तर जीती है जो तत्कालीन घटनाचक्र को अनेक विशिष्ट आयाम देने में समर्थ है। नारी-मन की वास्तविक पीड़ा, सुख-दुःख और व्यक्तिगत अन्तर्संबंधों की जटिलता को गहराई से पकड़ पाना, इस उपन्यास की विशेषता है।
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Fiction Books, Garuda Prakashan, Literature & Fiction, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Ek Kafir Mera Padosi
-10%Fiction Books, Garuda Prakashan, Literature & Fiction, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिEk Kafir Mera Padosi
कश्मीर आज इस धरती पर सबसे ज्यादा कट्टरपंथी क्षेत्र है। मगर धार्मिक अत्याचारों और हिंसा के ज्ञात लघु इतिहास से परे भी एक इतिहास है जहाँ पर इसके मूल निवासियों ने लगातार धार्मिक अत्याचारों का विरोध किया और अपने धर्म को बनाए रखने के लिए बार बार संघर्ष किया।
इस कहानी को एक ऐसे मनोवैज्ञानिक द्वारा संवेदना के तंतुओं के साथ बुना गया है जिन्होनें कश्मीर के दर्द को अपने काम के हिस्से के रूप में महसूस किया है। यह एक ऐसी प्रेरक कहानी है जो तीन युवाओं के इर्दगिर्द घूमती है, जो हैं आदित्य, एक हिन्दू कश्मीरी पुजारी, जो अपने लोगों के लिए न्याय खोज रहा है, अनवर जो उसका पड़ोसी और एक इमाम का बेटा है, जो एक इस्लामिक कश्मीर बनाने के लिए हर कदम उठाने के लिए तैयार है और जेबा जो अपने प्यार एवं मजहब के बीच फंसी है।
बगल में काफिर हर उस व्यक्ति के लिए शक्तिशाली कहानी है जो एक गहरे अन्धकार के बाद अपनी एक पहचान की तलाश में और पहली बार कोई किताब हिंदुत्व के बहुलतावाद एवं इस्लाम के एकेश्वरवाद के बीच के संघर्ष को इतनी गहराई बताती है तथा यह पहली ऐसी किताब है जो मानवीय भाव की क्षमा एवं पश्चाताप को बताती है।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Goli | गोली
‘‘मैं जन्मजात अभागिनी हूँ। स्त्री जाति का कलंक हूँ। परन्तु मैं निर्दोष हूँ, निष्पाप हूँ। मेरा दुर्भाग्य मेरा अपना नहीं है, मेरी जाति का है, जाति-परम्परा का है; हम पैदा ही इसलिए होते हैं कि कलंकित जीवन व्यतीत करें। जैसे मैं हूँ ऐसी ही मेरी माँ थी, परदादी थी, उनकी दादियाँ-परदादियाँ थीं। मैंने जन्म से ही राजसुख भोगा, राजमहल में पलकर मैं बड़ी हुई, रानी की भाँति मैंने अपना यौवन का शृंगार किया। रंगमहल में मेरा ही अदब चलता था। राजा दिन रात मुझे निहारता, कभी चंदा कहता, कभी चाँदनी। राजा मेरे चरण चूमता, मेरे माथे पर तनिक-सा बल पड़ते ही वह बदहवास हो जाता था। कलमुँहे विधाता ने मुझे जो यह जला रूप दिया, राजा उस रूप का दीवाना था, प्रेमी पतंगा था। एक ओर उसका इतना बड़ा राज-पाट और दूसरी ओर वह स्वयं भी मेरे चरण की इस कनी अंगुली के नाखून पर न्यौछावर था।’’
-इसी पुस्तक में से1958 में पहली बार प्रकाशित आचार्य चतुरसेन का यह अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास राजस्थान के रजवाड़ों में प्रचलित गोली प्रथा पर आधारित है। चंपा नामक गोली का पूरा जीवन राजा की वासना को पूरा करने में निकल जाता है और वह मन-ही-मन अपने पति के प्रेम-पार्श्व को तरसती रहती है। लेखक का कहना है, ‘‘मेरी इस चंपा को और उसके शृंगार के देवता किसुन को आप कभी भूलेंगे नहीं। चंपा के दर्द की एक-एक टीस आप एक बहुमूल्य रत्न की भाँति अपने हृदय में संजोकर रखेंगे।’’
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English Books, Garuda Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Gomantak ( English )
Gomantak is translated in English by Manjula Tekal. This book is a story written in verse by Swatantryaveer Vinayak Damodar Savarkar. The story is about an idyllic village on Maharashtra’s Konkan coast, which graphically describes the Portuguese misrule, during which they forcibly converted Hindus to Christianity en masse and held bloodcurdling Inquisitions terrorizing Hindus, destroying their places of worship, etc.
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Garuda Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Had Sardar Patel Been The First Prime Minister
Garuda Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रHad Sardar Patel Been The First Prime Minister
When a nation begins to pine for a person from its past, wishing he remained at the helm for longer, it indicates that the path taken by that nation is not the correct one. With Sardar Patel, especially vis-a-vis Nehru, the Indian nation still mourns the fact that the former did not become the first Prime Minister of India. This book, written by Justice (retd.) S N Aggarwal, author of “Nehru’s Himalayan Blunders”, establishes the real reasons why we still pine for Patel’s longer presence at the horizon of our national leadership. The book, quoting from authentic sources, also gives ample insight into the views and understanding of the affairs of the nation, which Sardar not only preached but also practiced. Usually, Sardar Patel, the “Iron Man” that he was, is lauded for his role in the unification of post-independent India. With Nehru botching up the only princely state he handled – namely, Jammu and Kashmir – Patel’s contribution in unifying more than 500 princely states in the Indian union becomes all the more laudable. However, this book goes beyond. “Had Sardar Patel been the first Prime Minister, the country would have been fully armed to defend herself, there could have been no danger from outside. By following the principles of patriotism, moral values and high character and discipline, there would have been no internal problem,” writes the author. And, like the case of Kashmir, in these matters too, Nehru’s conduct makes one wish all the more strongly that Sardar should have been the first Prime Minister of India.
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hindu Rajya-Tantra : Complete (Part – 1 & 2)
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिHindu Rajya-Tantra : Complete (Part – 1 & 2)
समितियों, चरणों और सभाओं के माध्यम से संचालित होने वाली वैदिक युगीन राज्य-तंत्र की व्यवस्था-यात्रा, आधुनिक भारत की संसदीय और पंचायती राज व्यवस्था तक आ पहुँची है। कहना अनुचित न होगा कि यह यात्रा भारतीय परिवेश के नवोन्मेष की यात्रा है। विश्लेषण की दृष्टि से देखें तो वैदिक युग के परवर्ती काल में लोगों की प्रवृत्ति अपने-अपने वर्ग का स्वतन्त्र शासन करने की हो चली थी। यह प्रवृत्ति वर्तमान लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था और आधुनिक राजनीति का विद्रूप भी है। वैसे तो विभिन्न कालखण्डों के इतिहासों को समेटे कितने ही कालजयी आख्यान हिन्दी पाठकों के बीच लोकप्रिय हुए, किन्तु स्व० काशीप्रसाद जायसवाल की 1924 ई० में प्रकाशित इस किताब को विशेष ख्याति मिली। मूल पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गयी थी। यह मूल पुस्तक का अनूदित संस्करण है। पुस्तक में लेखक ने अत्यन्त सजीव व नये दृष्टिकोण से वैदिक इतिहास की सांगोपांग झाँकी पाठकों के लिए उपस्थित की है। साम्राज्यों के उत्थान-पतन की गाथाओं से बिल्कुल अलग यह हिन्दू राज्य-तंत्र की राजा रहित शासन प्रणालियों का विस्तृत आ?यान भी है। इस पुस्तक से इस जाति के संगठनात्मक या शासन प्रणाली समबन्धी इतिहास के एक बहुत बड़े अंश की पूर्ति होती है। इस पुस्तक को पढ़कर पता चलता है कि वैदिक ग्रन्थों में वर्णित प्रजातंत्रों का हमारा इतिहास कुछ अधिक प्रयोगधर्मी, कुछ अधिक परिपक्व और कुछ अधिक सफल था। हिन्दू राजनीतिशास्त्र सम्बन्धी साहित्य की रचना का आरम्भ 650 ईसा पूर्व में हो चुका था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र, कामंदकीय नीतिसार तथा मेगास्थनीज के आख्यानों से होते हुए प्रस्तुत पुस्तक की रचना तक की यह यात्रा-कथा हिमालय से लेकर हिन्द महासागर के बीच बसे इस विस्तृत भारतीय भूखण्ड के राज्य-तंत्रात्मक इतिहास की प्राचीन कथा है। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण आने के बाद से दुनिया में बहुत-सी उथल-पुथल हुई है, छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन हुए हैं और भारत भी इस बीच आजाद हो गया है। किन्तु इतिहास का अन्वेषण करने वाले इस आख्यान की महत्ता कम नहीं हुई है। वैसे तो वैदिक काल के इतिहास पर किसी का भी कुछ भी लिखना चुनौतीपूर्ण कार्य है पर आज की दुनिया और उसके कठिन सवालों को छोड़कर बीते समय की खंगाल और वैदिक इतिहास के पन्नों से आज के समाज को रूबरू कराना लेखक का विशिष्ट पुरुषार्थ भी है। पुराना इतिहास हमें सबक सिखाता है, हिदायतें देता है और आज के अन्धकार पर नयी रोशनी डालता है। कुछ सवाल दिमाग को मथते हैं, दिमाग में बहते ऐसे विचारों को पकड़ कर कागज पर उतारने से उसके नये-नये पहलू निकलते हैं। हमारे वेदों, पुराणों और उपनिषदों में वर्णित राज्यतंत्र की नीतियाँ, बदलते समय के साथ आधुनिक होते समाज ने त्याज्य मान लीं, अन्यथा खारवेल के शिलालेखों में राज्यारोहण को शासक होने के लिए शास्त्रसम्मत विधान नहीं माना गया है। विधिवत राज्याभिषिक्त राजा ही विधिमान्य शासक कहलाता था। इसीलिए विदेशी आक्रान्ताओं को ‘नैव मूद्र्धाभिषिक्तास्ते’ कहकर तिरस्कृत किया गया है।
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Garuda Prakashan, Literature & Fiction, ऐतिहासिक उपन्यास
Kasheer: A Diabolical Betrayal of Kashmiri Hindus
-10%Garuda Prakashan, Literature & Fiction, ऐतिहासिक उपन्यासKasheer: A Diabolical Betrayal of Kashmiri Hindus
Thus comes the plainitive cry of Kailash Pandit. The reporting on Kashmir has whitewashed the human tragedy of Kashmiri Hindus. This book retells the tale in a fictionalized account which is all too real. It catches the facts of deception, betrayal, propaganda and political ambitions that have all but erased the memories of oppression of Kashmiri Hindus from the nation’s conscience. It extricates the truth of human tragedy and presents it with brutal honesty. Thus, Kailash Pandit’s question, trapped in his head, or Aarti Kaul’s unconceived womb become powerful metaphors of what happened to Kashmiri Hindus. It is time for Kailash Pandit to speak; this is his story. This is Kashmir’s story. This is Kasheer.
Originally written in Kannada, this book is translated into English by Hemanth Shanthigrama, who is a London-based technology professional.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Kashmir Files
“कर्नल सुनील कोटनाला के सभी कौशल इस उपन्यास में समाहित हैं। यह एक सामयिक कृति है, जो कश्मीर में होनेवाली घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है— जो दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक है और जहाँ विचारधारा, धर्म एवं जातीयता के बीच लगातार टकराव है।
अतीत में भारतीय सेना को बिना स्पष्ट जनादेश, खुफिया कवर या राजनीतिक समर्थन के आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में झोंक दिया गया। यह कहना पर्याप्त है कि हम हमेशा गले तक गंदगी में डूबे हुए थे। सबसे बढक़र, हमारे मानवाधिकार कार्यकर्ता उन्हीं भारत-विरोधी अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे थे, जो हमारे सैनिकों को प्रताड़ित कर रहे थे, मार रहे थे और अपंग कर रहे थे। पिछले कुछ वर्षों में सिर के ऊपर से बहुत सारा पानी बह गया है और कानून-व्यवस्था की स्थिति के रूप में शुरू हुआ कश्मीर अब जिहाद के लिए युद्ध का मैदान बन गया है।
भारतीय सैनिक प्रणम्य हैं जिन्होंने वीरता से लड़ाई लड़ी है। सशस्त्र बलों ने यह सब सरकार या अपने हमवतन—इस देश के लोगों के खिलाफ शिकायत के बिना किया है, जो उनके लिए बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन कभी नहीं किया।
वैसे यह एक उपन्यास है—फिर भी, यकीन है कि इसका स्कूल और विश्वविद्यालय की कक्षाओं में पाठन कराया जाएगा। इसमें मनोरंजन है, यह रोमांचित भी करता है। सुनील दैनिक क्रूरताओं का चित्रण करते हैं, जो युद्धक्षेत्रों की विशेषता है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Khandit Bharat
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKhandit Bharat
आधुनिक भारत के मनीषी, तत्त्वज्ञानियों और चिंतकों में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का प्रथम स्थान है। परदु:खकातरता, त्याग और सेवा- भाव उनके स्वाभाविक गुण थे। भारत की एकता और अखंडता बनाए रखना उनके लिए अत्यंत महत्त्व की बात थी। सन् 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलिम लीग ने जब देश के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया तो यह गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन गया। अनेक प्रमुख व्यक्तियों ने इस पर अपने विचार एवं योजनाएँ प्रस्तुत कीं तथा अपने-अपने ढंग से इस समस्या के समाधान सुझाए। 1945 में इसी बात को ध्यान में रखकर राजेंद्र बाबू ने अंग्रेजी में पुस्तक लिखी-‘ इंडिया डिवाइडेड’; खंडित भारत उसी का हिंदी अनुवाद है। पाकिस्तान की माँग से संबद्ध उस समय तक प्रकाशित प्राय: संपूर्ण साहित्य के विस्तृत अध्ययन के बाद लिखी गई इस पुस्तक की मुख्य विशेषता है कि इसमें लेखक के विचार पाठकों पर आरोपित नहीं किए गए। तथ्यों, आँकड़ों, तालिकाओं, नक्शों और ग्राफों की सहायता से भारतीय प्रायदीप के विभाजन से संबंधित संपूर्ण सामग्री उपस्थित कर देश के बँटवारे के पक्ष-विपक्ष में इस प्रकार तर्क प्रस्तुत किए गए हैं कि पाकिस्तान की व्यवहार्यता अथवा अव्यवहार्यता के विषय में पाठक स्वयं अपनी राय बना सकें। विभाजन के समर्थकों एवं विरोधियों-दोनों के लिए ‘ खंडित भारत’ एक आदर्श ग्रंथ माना गया। यद्यपि देश को विभाजित हुए साठ वर्ष से ऊपर बीत चुके हैं, इतिहासकारों की दृष्टि में आज भी यह पुस्तक महत्वपूर्ण है और प्रत्येक भारतीय के लिए पठनीय है
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Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक उपन्यास
Lajja
‘लज्जा’ की शुरुआत होती है 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद तोडे़ जाने पर बांग्लादेश के मुसलमानों की आक्रामक प्रतिक्रिया से। वे अपने हिन्दू भाई-बहनों पर टूट पड़ते हैं और उनके सैकड़ों धर्मस्थलों को नष्ट कर देते हैं। लेकिन इस अत्याचार, लूट, बलात्कार और मन्दिर ध्वंस के लिए वस्तुतः जिम्मेदार कौन है? कहना न होगा कि भारत के वे हिन्दूवादी संगठन, जिन्होंने बाबरी मस्जिद का ध्वंस कर प्रतिशोध की राजनीति का खूँखार चेहरा दुनिया के सामने रखा, भूल गये कि जिस तरह भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, उसी तरह पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। लेखिका ने ठीक ही पहचाना है कि भारत कोई विच्छिन्न जम्बूद्वीप नहीं है। भारत में यदि विष फोडे़ का जन्म होता है, तो उसका दर्द सिर्फ भारत को ही नहीं भोगना पडे़गा, बल्कि वह दर्द समूची दुनिया में, कम से कम पड़ोसी देशों में तो सबसे पहले फैल जाएगा। अतः हम सभी को एक-दूसरे की संवेदनशीलता का ख़याल रखना चाहिए और एक ऐसे सौहार्दपूर्ण समाज की रचना करनी चाहिए जिसमें हिन्दू, मुसलमान तथा अन्य सभी समुदायों के लोग सुख और शान्ति से रह सकते हैं।
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Rajpal and Sons, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Maharani Jhansi
यह 1857 के स्वातंत्रय-संग्राम की मुख्य योद्धा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस और वीरता की कहानी है। एक और होने के बावजूद, अपने छोटे-से राज्य, झांसी को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए रानी ऐसी वीरता और निडरता से लड़ी कि अंग्रेज़ भी उसकी बहादुरी के कायल हो गए। अपनी आखिरी साँस तक रानी लड़ती रही और चौबीस वर्षों की छोटी उम्र में वह अपने देश के लिए वीरगति को प्राप्त हो गई। दिलो-दिमाग पर छा जाने वाली झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की यह रोमांचक ऐतिहासिक गाथा भारत के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। रोचक और प्रेरणाप्रद।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Main Bheeshm Bol Raha Hoon
महाभारत में सबसे विशिष्ट चरित्र भीष्म पितामह का है। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने आजन्म ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की और साथ ही राजसिंहासन पर अपने अधिकार को भी तिलांजलि दी। दुर्योधन के विचारों, नीतियों और दुष्कर्मों के घोर विरुद्ध रहते हुए भी कौरवों के पक्ष की सेवा करने की विवशता को स्वीकार किया। राजदरबार में द्रौपदी चीरहरण के समय क्रोध और लज्जा से दाँत पीसकर रह गए। परंतु खुलकर विरोध करने में विवश रहे। महाभारत युद्ध में भी कौरव सेना का सेनापतित्व करना पड़ा। जबकि मन से पाण्डवों के पक्षधर थे। उनका हृदय पाण्डवों के साथ था, शरीर कौरवों की सेवा में। अनेक अन्तर्विरोधों से भरे भीष्म पितामह के चरित्र को बहुत ही पैनी दृष्टि से परखते हुए रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है इसके लेखक भगवतीशरण मिश्र ने।
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