प्राचीन भारत का इतिहास (प्रारम्भ से 1200 ई. तक) : भारत के विश्वविद्यालयों में इतिहास विषय के स्नातक विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में प्राचीन भारत का इतिहास सम्मिलित किया जाता है। इस कालखण्ड में मानव सभ्यता के उदय से लेकर मुस्लिम शासकों द्वारा दिल्ली में अपना शासन स्थापित करने से पहले तक का इतिहास आता है। भारतीय इतिहास का यह कालखण्ड अत्यंत रोचक, पठनीय और रोमांचकारी है। घटनाओं का एक चिंरतन प्रवाह इसमें उत्सुकता का संचार करता है किंतु यह आश्चर्य की ही बात है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही अधिकांश पुस्तकों में इसे अत्यंत जटिल और कठिन बनाकर प्रस्तुत किया गया है। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने विश्वविद्यालयी विद्यार्थियों के लिये इस पुस्तक का लेखन इस प्रकार किया है कि स्नातक पाठ्यक्रम की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी यह समान रूप से उपयोगी सिद्ध हो सके। प्रस्तुत है इस पुस्तक का द्वितीय एवं परिवर्द्धित संस्करण।
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Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Political Mysteries
-10%Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Political Mysteries
The author, Mr. K.R. Malkani through this book, explains various political issues which had drastic effects on the world. Who hatched the conspiracy of killing Mahatma Gandhi? How the former Prime Minister of India. Lal Bahadur Shastri died in suspicious circumstances Under what mysterious circumstances was Pt. Deendayal Upadhyaya murdered? Why were me Kashmir Princess and Kanishka blown up? Likewise, there are many other issues with which the author has desk. These are the result of five years of his painstaking research that this book has tuned out to be an excellent source of information about various political assassinations as well mysterious happenings.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Poogal ka Itihas
पूगल का इतिहास इससे पहले कभी नहीं लिखा गया था, जब मैं इस विषय में गहराई से गया तब मुझ में स्वतः एक आत्म-विश्वास और भाटी होने का गौरव घर करता गया। अब मुझे ज्ञान हुआ कि पूगल के सामने अन्य राजवंशों के इतिहास क्या थे और उनमें सच्चाई कितनी थी? पूगल का इतिहास अपने आप में इतना उज्ज्वल है कि किसी तथ्य को छिपाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी; हां, कुछ पड़ोसी राज्यों के इतिहास पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पड़ सकती है। इस पुस्तक को तीन खण्डों में विभक्त किया गया है।
खण्ड अ : पृष्ठभूमि में भाटियों के गजनी से जैसलमेर तक के राज्यों का वर्णन है। भाटियों के आदिपुरुष राजा भाटी सन् 279 ई. में लाहौर में हुए थे। गजनी से जैसलमेर तक भाटियों की 9 राजधानियां रही, पूृगल 10वीं है।
खण्ड ब : सिंहावलोकन में पूगल का इतिहास संक्षेप में दिया गया है। भाटियों के मुलतान व अन्यों से सम्बंध, भटनेर के उत्थान और पतन की कहानी भी है। मेवाड़ की पड्डिनी रावल पूनपाल की बेटी थी।
खण्ड स : पूगल का इतिहास में पूगल के सत्ताईस रावों का वर्णन है। राव केलण, चाचगदेव का राज्य भटनेर, सिन्ध व सतलज नदियों के पश्चिम के क्षेत्रों तक में था। इनकी मुसलमान राणियों के पुत्रों के वंशज भट्टी मुसलमान हैं। राव सुदरसेन ने रावल रामचन्द्र को देरावर का राज्य दिया था, जो सन् 1763 ई. में बहावलपुर राज्य बन गया। पूगल के सात राव युद्धों में मारे गए थे। मुगलों के समय पूगल एक स्वतंत्र राज्य था, बाद में यह बीकानेर के संरक्षण में आ गया। इसके बाद का इतिहास केवल स्थानीय घटनाओं का वर्णन है।SKU: n/a -
English Books, Manoj Publication, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Popular Stories from Shrimad Bhagwat
English Books, Manoj Publication, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताPopular Stories from Shrimad Bhagwat
Sawan Popular Stories from Shrimad Bhagwat book is a store-house of most fabulous and popular stories. Each tale in the book has been written in a very lucid language accompanied by coloured illustration that adds to its beauty manifold. Young and old alike are sure to get lost in the world of these tales which hold the reader spellbound.
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English Books, Rupa Publications India, इतिहास
Potraits of Hindutva: From Harappa to Ayodhya
In Portraits of Hindutva: From Harappa to Ayodhya, the author traces the growth of what has today become a deeply polarizing issue. He recounts events which shaped the phenomenon and personalities that were its torchbearers and explores the evolution of Hindutva from religious to spiritual to political, spanning a period beginning from the Indus-Saraswati civilization, and rounding it off with the demolition of the Babri Masjid in Ayodhya.
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Prachchhann : Mahasamar – 6
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताPrachchhann : Mahasamar – 6
नरेन्द्र कोहली
महाकाल असंख्य वर्षों की यात्रा कर चुका, किन्तु न मानव की प्रकृति परिवर्तित हुई है, न प्रकृति के नियम। उसका ऊपरी आवरण कितना भी भिन्न क्यों न दिखाई देता हो, मनुष्य का मनोविज्ञान आज भी वही है, जो सहस्तों वर्ष पूर्व था। बाह्य संसार के सारे घटनात्मक संघर्ष वस्तुतः मन के सूक्ष्म विकारों के स्थूल रूपान्तरण मात्र हैं। अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर जाएँ तो ये मनोविकार, मानसिक विकृतियों में परिणत हो जाते हैं। दुर्योधन इसी प्रक्रिया का शिकार हुआ है। अपनी आवश्यकता भर पा कर वह सन्तुष्ट नहीं हुआ। दूसरों का सर्वस्व छीनकर भी वह शान्त नहीं हुआ। पाण्डवों की पीड़ा उसके सुख की अनिवार्य शर्त थी। इसलिए वंचित पाण्डवों को पीड़ित और अपमानित कर सुख प्राप्त करने की योजना बनायी गयी। घायल पक्षी को तड़पाकर बच्चों को क्रीड़ा का-सा आनन्द आता है। मिहिरकुल को अपने युद्धक गजों को पर्वत से खाई में गिराकर उनके पीड़ित चीत्कारों को सुनकर असाधारण सुख मिला था। अरब शेखों को ऊँटों की दौड़ में, उनकी पीठ पर बैठे बच्चों की अस्थियाँ टूटने और पीड़ा से चिल्लाने को देख-सुनकर सुख मिलता है। महासमर-6 में मनुष्य का मन अपने ऐसे ही प्रच्छन्न भाव उद्घाटित कर रहा है। दुर्वासा ने बहुत तपस्या की है, किन्तु न अपना अहंकार जीता है, न क्रोध। एक अहंकारी और परपीड़क व्यक्तित्व, प्रच्छन्न रूप से उस तापस के भीतर विद्यमान है। वह किसी के द्वार पर आता है, तो धर्म देने के लिए नहीं। वह तमोगुणी तथा रजोगुणी लोगों को वरदान देने के लिए और सतोगुणी लोगों को वंचित करने के लिए आता है। पर पाण्डव पहचानते हैं कि तपस्वियों का यह समूह जो उनके द्वार पर आया है, सात्विक संन्यासियों का समूह नहीं है। यह एक प्रच्छन्न टिड्डी दल है, जो उनके अन्न भंडार को समाप्त करने आया है, ताकि जो पाण्डव दुर्योधन के शस्त्रों से न मारे जा सके, वे अपनी भूख से मर जाएँ। दुर्योधन के सुख में प्रच्छन्न रूप से बैठा है दुख; और युधिष्ठिर की अव्यावहारिकता में प्रच्छन्न रूप से बैठा है धर्म। यह माया की सृष्टि है। जो प्रकट रूप में दिखाई देता है, वह वस्तुतः होता नहीं, और जो वर्तमान है, वह कहीं दिखाई नहीं देता। पाण्डवों का अज्ञातवास, महाभारत-कथा का एक बहुत आकर्षक स्थल है। दुर्योधन की गृध्र दृष्टि से पाण्डव कैसे छिपे रह सके? अपने अज्ञातवास के लिए पाण्डवों ने विराटनगर को ही क्यों चुना? पाण्डवों के शत्रुओं में प्रच्छन्न मित्र कहाँ थे और मित्रों में प्रच्छन्न शत्रुओं कहाँ पनप रहे थे?…ऐसे ही अनेक प्रश्नों को समेटकर आगे बढ़ती है, महासमर के इस छठे खण्ड ‘प्रच्छन्न’ की कथा।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Prachin Bhakt 0177
प्राचीनकाल में ऐसे अनेक संत और भक्त हुए हैं, जिन्होंने अपना सब कुछ भगवान को अर्पण कर अपनी आत्मा को प्रभुमय बना लिया और अपने जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को चरितार्थ कर जीवन का सर्वोत्कृष्ट लाभ प्राप्त किया। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही उत्कृष्ट भक्त मार्कण्डेय मुनि, राजा शंख, मुनि उतंक, विष्णुदास, राजा चित्रकेतु आदि चौदह भक्तों के सुन्दर चरित्र हैं।
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Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Prachin Bharat [PB]
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिPrachin Bharat [PB]
प्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविधप्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। गत शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है। तथ्यों की प्रामाणिकता का निर्वाह करते हुए इसका प्रत्येक अध्याय उद्बोधक और व्यञ्जक है। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों को ठीक संदर्भ में रखकर उनको चित्रित करने तथा समझाने का प्रयत्न किया गया है। प्राचीन भारत के इतिहास पर कतिपय पुस्तकों के रहते हुए भी यह एक अभिनव प्रयास और इतिहास-लेखन की दिशा में नया चरण है। इसमें राजनीतिक इतिहास के साथ जीवन के सांस्कृतिक पक्षों का समुचित विवेचन किया गया है। मूल पुस्तक में दी गई प्रस्तावना के इस उद्धरण ”नयी सामग्री का उपलब्ध होना, पुरानी सामग्री का नया परीक्षण, इतिहास के सम्बन्ध में नया दृष्टिकोण’ ने नए संस्करण के प्रस्तुतिकरण का अवसर प्रदान किया। १९६० ईस्वी से लेकर आज तक पुरातत्त्व की नई शोधों ने भारतीय प्रागैतिहास पर बहुत प्रकाश डाला है। इनके प्रकाश में ग्रन्थ में प्रागैतिहास के अध्याय का पुन: लेखन किया गया है। साथ-साथ इतिहास के विभिन्न काल-क्रमों की पुरातात्त्विक संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारतीय इतिहास की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर भी नई शोधों के प्रकाश में नया लेखन प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए कनिष्क की तिथि, भगवान् बुद्ध के निर्वाण की तिथि, मेहरौली के ‘चन्द्रÓ की पहचान, गणराज्यों के पुनर्गठन का इतिहास, त्रिराज्यीय संघर्ष आदि। परिशिष्ट में साक्ष्यों पर कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षा-प्रद है। गत दो शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Pramukh Deviyan
भारतीय दर्शनकी आदिशक्ति प्रकृति है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृतिमें शक्ति-उपासनाको प्रमुख स्थान दिया गया है। कलिकालमें तो शक्ति-उपासना सद्यः फलदायी है। इस पुस्तकमें भगवती शक्तिके द्वारा दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, पार्वती, सीता, राधा तथा गंगाके रूपमें की गयी लीलाओंका सुन्दर परिचय दिया गया है। भगवतीके प्रत्येक लीला-चरित्रके साथ उनके उपासनायोग्य बहुरंगे चित्र भी दिये गये हैं।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Pramukh Devta
इस पुस्तक में भगवान् गणेश, भगवान् सूर्य, भगवान् विष्णु, भगवान् शिव, ब्रह्मा, भगवान् श्री राम, भगवान् श्री कृष्ण, रुद्रावतार श्री हनुमान् तथा यज्ञ के अधिष्ठाता श्री अग्निदेव का शास्त्रों एवं पुराणों के आधार पर सुन्दर परिचय दिया गया है। प्रत्येक देव-परिचय के बायें पृष्ठ पर उनके उपासना योग्य चित्र भी दिये गये हैं।
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Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Pratham Aur Antim Mukti
प्रथम और अंतिम मुक्ति’ में जे. कृष्णमूर्ति की अंतर्दृष्टियों का व्यापक व सारगर्भित परिचय तथा उनमें सहभागिता का चुनौती-भरा निमंत्रण प्राप्त होता है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के विविध सरोकारों का समावेश इस एक पुस्तक में उपलब्ध है जो अंग्रेज़ी पुस्तक ‘द फस्र्ट एंड लास्ट फ्रीडम’ का अनुवाद है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1954 में हुआ था लेकिन आज भी यह पुस्तक कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में से एक है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के सघन अध्ययन में एक और आयाम जुड़े, इसी अभिप्राय से यह संस्करण प्रस्तुत है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Pratham Vishwa Yuddha
औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे, जहाँ से वे कच्चा माल पा सकें तथा मशीनों से बनाई हुई वस्तुएँ बेच सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सैनिक शक्ति बढ़ाई गई और गुप्त कूटनीतिक संधियाँ की गईं। इससे राष्ट्रों में अविश्वास और वैमनस्य बढ़ा और युद्ध अनिवार्य हो गया। ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्क ड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया की। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया। प्रारंभ में जर्मनी की जीत हुई। 1917 में जर्मनी ने अनेक व्यापारी जहाजों को डुबोया। इससे अमरीका ब्रिटेन की ओर से युद्ध में कूद पड़ा, किंतु रूसी क्रांति के कारण रूस महायुद्ध से अलग हो गया। सन् 1918 में ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका ने जर्मनी आदि राष्ट्रों को पराजित किया। जर्मनी और ऑस्ट्रिया की प्रार्थना पर 11 नवंबर, 1918 को युद्ध की समाप्ति हुई।
युद्धों से कभी किसी का भला नहीं हुआ। ये तो विनाश-सर्वनाश के कारण हैं। किसी भी सभ्य समाज में युद्धों का कोई स्थान नहीं है; और इन्हें किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। इस पुस्तक का उद्देश्य भी यही है कि विश्वयुद्धों की विभीषिका से सीख लेकर हम युद्धों से तौबा कर लें और ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न होने दें, जो युद्धों का जन्म दें। मानवीय संवेदना और मानवता को बचाए रखने का विनम्र प्रयास है यह पुस्तक।SKU: n/a