वेदामृतम् (भाग-38-40) : वेदों में लोक कल्याण
Vedamritam (Vol.38-40) : Vedon mein Lok Kalyan
Rs.250.00
Weight | .350 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
AUTHOR : Padmashri Dr. Kapil Deva Dvivedi
PUBLISHER : Vishwavidyalaya Prakashan
LANGUAGE : Hindi + Sanskrit
ISBN : 9788185246536
BINDING : (HB)
PAGES : 224
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0 out of 5(0)हिंदू सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। वैश्य परिवार में जनमे हेमू ने 22 लड़ाइयाँ लड़ीं व जीतीं। दिल्ली पर अधिकार करने के बाद हेमू ने अपनी बहादुरी और दूरदर्शिता से राजा विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त की।
इस पुस्तक में हेमू के व्यक्तित्व के यथार्थपरक चित्रण हेतु बिहार के सासाराम क्षेत्र में प्रचलित लोकगीतों व भगवत मुदित द्वारा रचित रसिक अनन्यमाल व राजस्थान से मिले कुछ तथ्यों को भी आधार बनाया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि हेमू एक कुशल संगठक, जनप्रिय नेता, श्रेष्ठ घुड़सवार, तलवारबाज तथा तुलगमा सैनिकों की भाँति घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे ही धनुष से बाणों का संधान करनेवाले एक महान् योद्धा व सेनानायक थे।
उन्होंने लगभग 350 वर्षों की दासता के बाद दिल्ली में पुनः हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, लेकिन भारत के भाग्य को यह स्वीकार न था। अतः पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू की आँख में लगे तीर ने जीती बाजी को पराजय में परिवर्तित कर दिया। फिर भी हेमू का स्वाभिमान, देशभक्ति, अपूर्व साहस और बलिदान हम सभी राष्ट्रप्रेमियों के लिए सदैव प्रेरणा का अथाह स्रोत बना रहेगा।
भारत के गौरव सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य की प्रेरणाप्रद जीवनी, जो नई पीढ़ी को उनके पराक्रम और शूरवीरता से परिचित करवाएगी।SKU: n/a -
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वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
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Puranon Ki Kathayen- Harish Sharma
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