वेदामृतम (भाग-10) : सामवेद सुभाषितावली
Vedamritam (Vol.10) : Samaveda Subhashitavali
Rs.60.00
Weight | .200 kg |
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Dimensions | 8.50 × 5.57 × 1.57 in |
AUTHOR : Padmashri Dr. Kapil Deva Dvivedi
PUBLISHER : Vishwavidyalaya Prakashan
LANGUAGE : Hindi + Sanskrit
ISBN : 9788185246666
BINDING : (PB)
PAGES : 156
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0 out of 5(0)Vinayak Damodar Savarkar
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा? भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!SKU: n/a -
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Rated 5.00 out of 5(3)THE AUTHOR
संदीप देवसंदीप देव मूलतः समाज शास्त्र और इतिहास के विद्यार्थी हैं | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक (समाजशास्त्र) करने के दौरान न केवल समाजशास्त्र, बल्कि इतिहास का भी अध्ययन किया है । मानवाधिकार से परास्नातक की पढ़ाई करने के दौरान भी मानव जाति के इतिहास के अध्ययन में इनकी रुचि रही है । वीर अर्जुन, दैनिक जागरण, नईदुनिया, नेशनलदुनिया जैसे अखबारों में 15 साल के पत्रकारिता जीवन में इन्होंने लंबे समय तक क्राइम और कोर्ट की बीट कवर किया है । हिंदी की कथेतर (Non-fiction) श्रेणी में संदीप देव भारत के Best sellers लेखकों में गिने जाते हैं । इनकी अभी तक 9 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । संदीप देव भारत में Bloombury Publishing के पहले मौलिक हिंदी लेखक थे, लेकिन वैचारिक कारणों से इन्होंने Bloombury से अपनी अब तक प्रकाशित सभी पुस्तकें वापस ले ली हैं । ऐसा करने वाले वो देश के एक मात्र लेखक हैं | इसके उपरांत कपोत प्रकाशन को पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। वर्तमान में संदीप देव हिंदी के एकमात्र लेखक हैं, जिनकी पुस्तकों ने बिक्री में लाख के आंकड़ों को पार किया है | संदीप देव indiaspeaksdaily.com के संस्थापक संपादक हैं ।
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0 out of 5(0)निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को ‘भक्तियोग’ कहते हैं। इस खोज का आरंभ, मध्य और अंत प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति को देनेवाली होती है। ‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, ‘‘भगवान्् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है। जब मनुष्य इसे प्राप्त कर लेता है, तो सभी उसके प्रेमपात्र बन जाते हैं। वह किसी से घृणा नहीं करता; वह सदा के लिए संतुष्ट हो जाता है। इस प्रेम से किसी काम्य वस्तु की प्राप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि जब तक सांसारिक वासनाएँ घर किए रहती हैं, तब तक इस प्रेम का उदय ही नहीं होता। भक्ति कर्म से श्रेष्ठ है और ज्ञान तथा योग से भी उच्च है, क्योंकि इन सबका एक न एक लक्ष्य है ही, पर भक्ति स्वयं ही साध्य और साधन-स्वरूप है।’’
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अपने समय के चार दिग्गजों के परस्पर संबंधों और विचारों की झलक देती महत्त्वपूर्ण पुस्तक।SKU: n/a
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