Author: JULE BARNE
Format: Paperback
ISBN :8181431103
Language : Hindi
Pages: 80
- Sorry, this product cannot be purchased.
Weight | .250 kg |
---|---|
Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
Based on 0 reviews
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Related products
-
Literature & Fiction, Vani Prakashan
Yuddh – 2 (Hindi, Narendra Kohali)
0 out of 5(0)युद्ध-2
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Marxvad Ka Ardhsatya (Hindi, Anant Vijay)
0 out of 5(0)अनंत विजय की पुस्तक का शीर्षक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ एक बार पाठक को चौंकाएगा। क्षणभर के लिए उसे ठिठक कर यह सोचने पर विवश करेगा कि कहीं यह पुस्तक मार्क्सवादी आलोचना अथवा मार्क्सवादी सिद्धान्तों की कोई विवेचना या उसकी कोई पुनव्र्याख्या स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है। मगर पुस्तक में जैसे-जैसे पाठक प्रवेश करता जायेगा उसका भ्रम दूर होता चला जायेगा। अन्त तक आते-आते यह भ्रम उस विश्वास में तब्दील हो जायेगा कि मार्क्सवाद की आड़ में इन दिनों कैसे आपसी हित व स्वार्थ के टकराहटों के चलते व्यक्ति विचारों से ऊपर हो जाता है। कैसे व्यक्तिवादी अन्तर्द्वन्द्वों और दुचित्तेपन के कारण एक मार्क्सवादी का आचरण बदल जाता है। पिछले लगभग एक दशक में मार्क्सवाद से। हिन्दी पट्टी का मोहभंग हुआ है और निजी टकराहटों के चलते मार्क्सवादी बेनकाब हुए हैं, अनंत विजय ने सूक्ष्मता से उन कारकों का विश्लेषण किया है, जिसने मार्क्सवादियों को ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विचारधारा बड़ी है या व्यक्ति। व्यक्तिवाद के बहाने अनंत विजय ने मार्क्सवाद के ऊपर जम गयी उस गर्द को हटाने और उसे समझने का प्रयास किया है। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ दरअसल व्यक्तिवादी कुण्ठा और वैचारिक दम्भ को सामने लाता है, जो प्रतिबद्धता की आड़ में सामन्ती, जातिवादी और बुर्जुआ मानसिकता को मज़बूत करता है। आज मार्क्सवाद को उसके अनुयायियों ने जिस तरह से वैचारिक लबादे में छटपटाने को मजबूर कर दिया है, यह पुस्तक उसी निर्मम सत्य को सामने लाती है।
SKU: n/a -
Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bollywood Selfie (Hindi, Anant Vijay)
0 out of 5(0)बॉलीवुड सेल्फी हिन्दी की ऐसी किताब है जिसमें फिल्मी सितारों की जिन्दगी से जुड़ी प्रामाणिक कहानियाँ हैं। इस किताब में लेखक ने सितारों से जुड़े प्रसंगों को इस तरह से पाठकों के सामने पेश किया है कि पूरा दौर जीवन्त हो उठता है। इसमें ग्यारह फिल्मी हस्तियों को केन्द्र में रखकर उनकी जिन्दगी का विश्लेषण और अनछुए पहलुओं को उजागर किया गया है। इस किताब के नाम से ही साफ है कि इसमें सितारों के जीवनानुभव के आधार पर लेखक उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हैं। इस तरह से यह किताब हिन्दी में अपनी तरह की अकेली किताब है। अपनी एक टिप्पणी में हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह ने लेखक अनंत विजय की भाषा के बारे में कहा है कि – मैं अनंत विजय के लिखने की शैली की दाद दूँगा। इतनी अच्छी भाषा है, पारदर्शी भाषा है और पारदर्शी भाषा होते हुए भी थोडे़ से शब्दों में हर लेख अपने आप में इस तरह बाँधे रखता है कि आप आलोचना को कहानी की तरह पढ़ते चले जायें। ये निबन्ध नहीं लगते बल्कि एक अच्छी दिलचस्प कहानी के रूप में हैं, इतनी रोचक, पठनीय और इतनी गठी हुई भाषा से ही मैंने पहली बार अनंत विजय की प्रतिभा को जाना। फिल्मी सितारों की जिन्दगी से जुड़े अनबूझे पहलुओं को लेखक अनंत विजय प्रोफेसर नामवर सिंह के उपरोक्त कथन को इसी पुस्तक में साकार करते हैं। फिल्मी सितारों पर लिखी इस किताब में भाषा की रोचकता के साथ पाठक एक विशेष अनुभव यह भी करेंगे कि पुस्तक को जहाँ से भी पढ़ना आरम्भ करेंगे, वही रोचकता अन्त तक बनी रहेगी। हिन्दी में फिल्म लेखन पर गम्भीर किन्तु रोचक लेखन हुआ है। फिल्मों की समीक्षा तो बहुत लिखी जाती है लेकिन फिल्म और उससे जुड़े रोचक प्रसंग पुस्तकाकार रूप में उपलब्ध नहीं हैं। इस किताब में ऐसी तमाम कमियों को पूरा करने का प्रयास किया गया है।
SKU: n/a
There are no reviews yet.