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SHIV SUTRA

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अपनी तरफ देखो-न तो पीछे, न आगे। कोई तुम्हारा नहीं है । कोई बेटा तुम्हें नहीं भर सकेगा । कोई संबंध तुम्हारी आत्मा नहीं बन सकता । तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हारा कोई मित्र नहीं है । जैसे कि आग को तुम उकसाते हो-राख जम जाती है, तुम उकसा देते हो, राख झड़ जाती है, अंगारे झलकने लगते है ऐसी तुम्हें कोई प्रक्रिया चाहिए, जिससे राख तुम्हारी झड़े और अंगारा चमके, क्योंकि उसी चमक में तुम पहचानोगे कि तुम चैतन्य हो। और जितने तुम चैतन्य हो, उतने ही तुम आत्मवान हो।

तुम्हारी महत यात्रा में, जीवन की खोज में, सत्य के मंदिर तक पहुचने में-ध्यान बीज है । ध्यान क्या है?-जिसका इतना मूल्य है, जो कि खिल जाएगा तो तुम परमात्मा हो जाओगे, जो सड़ जाएगा तो तुम नारकीय जीवन व्यतीत करोगे । ध्यान क्या है? ध्यान है निर्विचार चैतन्य की अवस्था, जहा होश तो पूरा हो और विचार बिलकुल न हो।

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धर्म महान क्रांति है धर्म के नाम से तुमने जो समझा हुआ है, उसका धर्म से न के बराबर सबंध है इसलिए शिव के सूत्र तुम्हें चौंकाएंगे भी । तुम भयभीत भी होओगे, डरोगे भी, क्योंकि तुम्हारा धर्म डगमगाएगा । तुम्हारा मंदिर, तुम्हारी मस्जिद, तुम्हारे गिरजे-अगर ये सूत्र तुमने समझे तो-गिर जाएंगे तुम उन्हे बचाने की कोशिश में मत लगना, क्योकि वे बचे भी रहे, तो भी उनसे तुम्हे कुछ भी मिला नही है । तुम उनमें जी ही रहे हो, और तुम मुर्दा हो । मंदिर काफी सजे है, लेकिन तुम्हारे जीवन में कोई भी खुशी की किरण नही । मंदिर में काफी रोशनी है, उससे तुम्हारे जीवन का अंधकार नहीं मिटता तो उससे भयभीत मत होना, क्योंकि सूत्र तुम्हे कठिनाई में तो डालेगे ही क्योंकि शिव कोई पुरोहित नहीं है पुरोहित की भाषा तुम्हें हमेंशा संतोषदायी मालूम पड़ती है, क्योकि पुरोहित को तुम्हारा शोषण करना है । पुरोहित तुम्हे बदलने को उत्सुक नही है । तुम जैसे हो ऐसे ही रही, इसी में उसका लाभ है तुम जैसे हों-रुग्ण, बीमार-ऐसे ही रहो, इसी में उसका व्यवसाय है।

मैंने सुना है, एक डाक्टर ने अपने लड़के को पढ़ाया पढ़-लिख कर घर आया पिता ने कभी छुट्टी भी न ली थी । तो उसने कहा कि अब तू मेरे कारबार को सम्हाल और मैं एक तीन महीने विश्राम कर लू जीवन भर सिर्फ मैंने कमाया है और कभी विश्राम नही लिया । वह विश्व की यात्रा पर निकल गया मान महीने बाद लौटा, तो उसने अपने लडके से पूछा कि सब ठीक चल रहा है, उसके लडके न कहा कि बिलकुल ठीक चल रहा है आप हैरान होगे कि जिन मरीजों को आप जीवन भर में ठीक न कर पगार उनको मैंने तीन महीने में ठीक कर दिया । पिता ने सिर ठोक लिया । उसने कहा, मूढ़! वही हमारा व्यवसाय थे क्या मैं उनको ठीक नही कर सकता था? तेरी पढ़ाई कहा से आती थी? उन्हीं पर आधार था और भी बच्चे पढ़ लिख लेते । तूने सब खराब कर दिया । पुरोहित, तुम जैसे हो-रुग्ण, बीमार-तुम्हें वैसा ही चाहता है उस पर ही उसका व्यवसाय है । शिव कोई पुरोहित नहीं हैं । शिव तीर्थंकर है । शिव अवतार है । शिव क्रांतिद्रष्टा है, पैगंबर हैं । वे जो भी कहेंगे, वह आग है। अगर तुम जलने को तैयार हो, तो ही उनके पास आना; अगर तुम मिटने को तैयार हो, तो ही उनके निमंत्रण को स्वीकार करना । क्योंकि तुम मिटोगे तो ही नये का जन्म होगा । तुम्हारी राख पर ही नये जीवन की शुरुआत है ।

अनुक्रम

1 जीवन-सत्य की खोज की दिशा 1

2 जीवन-जागृति के साधना-सूत्र 25

3 योग के सूत्र : विस्मय, वितर्क, विवेक 51

4 चित्त के अतिक्रमण के उपाय 75

5 संसार के सम्मोहन और सत्य का आलोक 99

6 दृष्टि ही सृष्टि है 119

7 ध्यान अर्थात चिदात्म सरोवर मे स्नान 143

8 जिन जागा तिन मानिक पाइया 165

9 साधो, सहज समाधि भली! 185

10 साक्षित्व ही शिवत्व है 207

Weight .540 kg
Dimensions 8.66 × 5.57 × 1.57 in

AUTHOR: OSHO
PUBLISHER: Osho Media International
LANGUAGE: Hindi
ISBN: 9788172610531
PAGES: 239
COVER: HB
WEIGHT: 540 GM

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