Author – Dr. P. Jayaraman
ISBN – 9789350725795
Lang. – Hindi
Pages – 412
Binding – Hardcover
Weight | .850 kg |
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Dimensions | 7.87 × 5.51 × 1.57 in |
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Kavita Ki Pukar
0 out of 5(0)यूँ तो दिनकर जी की कविताओं के प्रायः नौ संकलन हैं, किन्तु उनके प्रमुख काव्य-संकलन ‘चक्रवाल’, ‘आज के लोकप्रिय कवि’, जिसका संकलन श्री मन्मथनाथ गुप्त ने किया था, और ‘रश्मिलोक’ व ‘संचयिता’ हैं। दिनकर जी ने ‘रश्मिलोक’ का स्वत्वाधिकार मुझे दिया है। अतएव इस संग्रह में इन पुस्तकों में सर्वाधिक आवृत्ति जिन कविताओं की हुई है, उसे ही मैंने प्रमुखता दी है। ‘सीपी और शंख’ में दिनकर जी ने विभिन्न भाषाओं के अपने कुछ पसन्दीदा कवियों का अनुवाद संकलित किया है। किन्तु बहुत-से दिनकर-प्रेमी यह मानते हैं कि यह अनुवाद उन कविताओं से मात्र प्रेरणा लेकर किया गया है और इसमें मौलिकता है। किन्तु दिनकर जी की दूसरी डी.एच. लॉरेंस की कविताओं के संग्रह ‘आत्मा की आँखें’ से कोई कविता ‘चक्रवाल’, ‘आज के लोकप्रिय कवि’ व ‘संचयिता’ में प्रायः नहीं मिली, फिर भी मैंने चयन की प्रक्रिया की अवहेलना कर इस संग्रह को अद्यतन बनाने के लिए ‘आत्मा की आँखें’ से ‘मच्छर’ और ‘आदमी’ नामक शीर्षक दो कविताओं को सम्मिलित किया है। यह कविताएँ दिनकर जी की प्रमुख कविताओं, मेरी पसन्द के अनुसार नहीं, बल्कि दिनकर जी की प्रतिनिधि कविताओं के तौर पर चुनी गयी हैं। आशा है। कि दिनकर साहित्य के अध्येता व स्नेही जनों को इस संग्रह के द्वारा सम्पूर्णता में तो सम्भव नहीं है किन्तु फिर भी दिनकर जी की सम्पूर्ण काव्य की एक छटा जरूर दिख जायेगी। -भूमिका से
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0 out of 5(0)नरेन्द्र कोहली
‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ हो कर, वारणावत के अग्निकाण्ड पर जा कर समाप्त होती है। वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होने वाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
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0 out of 5(0)नरेन्द्र कोहली
इस उपन्यास का नाम कुछ पौराणिक-सा लगता है किन्तु यह तनिक भी पौराणिक नहीं है। यह नरेन्द्र कोहली का पहला उपन्यास है, जो समकालीन है और विदेशी धरती पर लिखा गया है। विदेशी धरती ही नहीं, इसमें अनेक महाद्वीपों के लोगों के परस्पर गुँथे होने और एक नया संसार गढ़ने की कथा है। परिणामतः उनके हृदय में और परस्पर सम्बन्धों में अनेक विरोध भी हैं और अनेक विडम्बनाएँ भी। जहाँ इतिहास है, वहाँ उस ऐतिहासिक काल की कड़वाहट भी है, जिसे न आप भूल सकते हैं, न उसके कारणों को दूर कर सकते हैं। जहाँ वर्तमान है, वहाँ अपने मूल देश के प्रति प्रेम भी है और छिद्रान्वेषण भी। न स्वयं को अपने देश से असम्पृक्त कर सकते हैं और न उसको उसकी त्रुटियों के साथ स्वीकार कर सकते हैं। न देश के अपने हो पाये, न पराये। न उसे स्वीकार कर पाये, न अस्वीकार। इसके चरित्र व्यक्ति नहीं हैं, वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो अभी स्थिर नहीं हो पायी हैं। वे परिवर्तन की चक्की में पिस रहे हैं और अपने वास्तविक रूप को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। अपने देश को स्मरण भी करते हैं और उसे भूल भी जाना चाहते हैं। जिनके प्रति प्रेम है, उन्हें भूलना चाहते हैं; और जिन्हें प्रेम नहीं करते, उन्हें अपनाना चाहते हैं। उनसे मिलना भी चाहते हैं और उनसे दूर भी रहना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह परिवर्तन और नये निर्माण की कथा है। कहा नहीं जा सकता कि वह नया निर्माण कैसा होगा।
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