Author – Dr. P. Jayaraman
ISBN – 9789350002025
Lang. – Hindi
Pages –252
Binding – Hardcover
Weight | .500 kg |
---|---|
Dimensions | 9.75 × 5.51 × 1.57 in |
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नरेन्द्र कोहली
‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ हो कर, वारणावत के अग्निकाण्ड पर जा कर समाप्त होती है। वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होने वाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
उपन्यासकार यह बताना चाहता है कि महाभारत की कथा भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती है। यह मनुष्य के उस अनवरत युध्द की कथा है, जो उसे अपने बाहरी और भीतरी शत्रुओं के साथ निरन्तर करना पड़ता है । इस संसार में चारों ओर लोभ, मोह, सत्ता और स्वार्थ की शक्तियाँ संघर्षरत हैं । लोभ, त्रास और स्वार्थ के विरुध्द मनुष्य के इस सात्विक युध्द को महाभारत में अत्यन्त विस्तार से प्रस्तुत किया गया है । ‘हिडिम्बा’ पाठकों के समक्ष प्रश्न उत्पन्न करती है कि हिडिम्बा कैसी पात्र है ? क्यों एक भाई के हत्यारे के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है ? क्यों कुंती अपने बड़े बेटे के विवाह से पहले भीम के विवाह पर राजी हो जाती है । क्यों हिडिम्बा हस्तिनापुर न जाकर जंगल में रहना ही स्वीकार करती है ? इस उपन्यास में ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिससे पाठक रूबरू होंगे।
युद्ध-1
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
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