Pt. Madhusudan Ojha ki Saraswat Sadhana vol. 2
पं. मधुसूदन ओझा की सारस्वत साधना भाग-2
Pt. Madhusudan Ojha ki Saraswat Sadhana vol. 2
पं. मधुसूदन ओझा की सारस्वत साधना भाग-2
Weight | .480 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
पण्डित मधुसूदन ओझा ग्रन्थमाला RORI 193
Author : Fatah Singh
Language : Sanskrit, Hindi
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कहते हैं धर्म वेदों में प्रतिपादित है। वेद साक्षात् परम नारायण है। वेद में जो अश्रद्धा रखते हैं, उनसे भगवान् बहुत दूर हैं। वेदों का अर्थ है—भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वास्तव में जीवन को सुंदर व साधक बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। मैक्स म्यूलर का तो यहाँ तक कहना था कि वेद मानव जाति के पुस्तकालय में प्राचीनतम ग्रंथ हैं।
वेद संख्या में चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद। वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘जानना’। ये हमारे ऋषि-तपस्वियों की निष्कपट, निश्छल भावना की अभिव्यक्ति हैं। इनमें जीवन को सद्मार्ग पर प्रशस्त करने का आह्वान है। इतना ही नहीं, वेदों में आत्मा-परमात्मा, देवी-देवता, प्रकृति, गृहस्थ-जीवन, सृष्टि, लोक-परलोक के साथ-साथ नाचने-गाने आदि की बातें भी निहित हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है—मानव-कल्याण।
एक ओर जहाँ वेदों में ईश-भक्ति और अध्यात्म की महिमा गाई गई है, वहीं दूसरी ओर कर्म को ही कल्याण का मार्ग कहा गया है।
वेद हमारे अलौकिक ज्ञान की अनुपम धरोहर हैं। अत: इनके प्रति जन-सामान्य की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, इसलिए वेदों के गूढ़ ज्ञान को हमने कथारूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इन कथा-कहानियों के माध्यम से सुधी पाठक न केवल इन्हें पढ़-समझ सकते हैं, बल्कि पारंपरिक वैदिक ज्ञान को आत्मसात् कर लोक-परलोक भी सुधार सकते हैं।
युद्ध-2
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
‘मनुस्मृति’ सामाजिक व्यवस्था, विधि, न्याय एवं प्रशासन-तंत्र पर विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है, जो विद्वान् महर्षि मनु द्वारा संस्कृत की पद्यात्मक शैली (श्लोकों) में लिऌा गई है। इस ग्रंथ में मनु ने तत्कालीन समाज में प्रचलित कुरीतियों एवं मनुष्य के स्वभाव का अति सूक्ष्म परिवेक्षण कर मानव-समाज को सुव्यवस्थित, सुऌखी, स्वस्थ, संपन्न, वैभवशाली एवं सुरक्षित बनाने हेतु विविध नियमों का प्रावधान किया है, ताकि नारी व पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग, विद्वान् व अनपढ़, स्वस्थ व विकलांग, संपन्न व गरीब, सभी सऌमान एवं प्रतिष्ठा के साथ रह सकें तथा समाज और देश की चतुर्मुऌा उन्नति में अपना प्रशंसनीय योगदान करने में सफल हों।
मनुस्मृति किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। यह वास्तव में मानव-धर्म की पुस्तक है तथा समाज की तत्कालीन स्थिति से परिचित कराती है। समाज की सुव्यवस्था हेतु मनुष्यों के लिए जो नियम अथवा अध्यादेश उपयुत समझे, मनु ने इस मानव-धर्म ग्रंथ में उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इसमें मानवाधिकारों के संरक्षण पर अनेक श्लोक हैं। मनुस्मृति में व्यतियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुसार उनके कर्म निर्धारित किए गए हैं तथा कर्मानुसार ही प्रत्येक व्यति के अधिकारों, कर्तव्यों, उारदायित्वों एवं आचरणों के बारे में स्पष्ट मत व अध्यादेश अंकित हैं।
सरल-सुबोध भाषा में समर्थ-सशत-समरस समाज का मार्ग प्रशस्त करनेवाला ज्ञान-संपन्न ग्रंथ।
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