Author: TASLIMA NASRIN
Format: Hardcover
ISBN :9789350002353
Pages: 120
Weight | .300 kg |
---|---|
Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
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गलियाँ, तेरे संग यारा, कौन तुझे यूँ प्यार करेगा, मेरे रश्के-क़मर, मैं फिर भी तुमको चाहूँगा जैसे दर्ज़नों लोकप्रिय गीत लिखने वाले मनोज ‘मुंतशिर’, फिल्मों में शायरी और साहित्य की अलख जगाए रखने वाले चुनिंदा क़लमकारों में से एक हैं। वो दो बार IIFA अवार्ड, उत्तर प्रदेश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘यश भारती’, ‘दादा साहब फाल्के एक्सेलेन्स अवार्ड’, समेत फ़िल्म जगत के तीस से भी ज्यादा प्रतिष्ठित पुरस्कार जीत चुके हैं। फ़िल्मी पण्डित और समालोचक एक स्वर में मानते हैं कि ‘बाहुबली’ को हिन्दी सिनेमा की सबसे सफल फ़िल्म बनाने में, मनोज ‘मुंतशिर’ के लिखे हुए संवादों और गीतों का भरपूर योगदान है। रुपहले परदे पर राज कर रहे मनोज की जड़े अदब में हैं। देश-विदेश के लाखों युवाओं को शायरी की तरफ वापस मोड़ने में मनोज की भूमिका सराहनीय है। मेरी फितरत है मस्ताना… उनकी अन्दरूनी आवाज़ है। जो कुछ वो फ़िल्मों में नहीं लिख पाये, वो सब उनके पहले कविता संकलन में हाज़िर है।
The capability of reading and other personal skills get improves on reading this book Devi by SuryaKant Tripathi Nirala.This book is available in Hindi with high quality printing.Books from Novel category surely gives you the best reading experience.
राजनीतिक गुलामी से भी त्रासद होती है सामाजिक गुलामी। कुछ इसे मानते हैं, कुछ नहीं। जो मानते हैं उनमें भी इसका उच्छेद करने की पहल करने का नैतिक साहस बहुधा नहीं होता। औरों की तरह शाहूजी के जीवन में भी यह त्रासदी प्रकट हुई। राजा थे, चाहते तो आसानी से इससे पार जाने का मानसिक सन्तोष पा सकते थे। मगर नहीं, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को सामूहिक त्रासदी में देखा और मनुष्य की आत्मा तक को जला और गला देने वाली इस मर्मान्तक घुटन और पीड़ा को सामूहिक मुक्ति में बदल देने का संकल्प लिया।
“सृष्टि के सारे ग्रह पुल्लिंग हैं किन्तु एकमात्र पृथ्वी ही है जिसे स्त्रीलिंग कहा गया है क्योंकि पृथ्वी पर जीवन है, अर्थात् वह स्त्री ही होती है जो हमारे जन्म-जीवन का कारण होती है। सुश्री अंकिता जैन के द्वारा कृषि और कृषक पर लिखना मुझे आनन्द और आशा से भरता है। अंकिता की दृष्टि व्यापक ही नहीं गहरी भी है। उन्होंने ओह रे! किसान में बहुत गहरे उतरकर भूमिपुत्रों की परिस्थिति और मनःस्थिति का बेहद प्रभावशाली दृश्य प्रस्तुत किया है। नौकरी हो या व्यापार, संसार के सभी कर्म हम अपनी सुविधा से, अपने मन के मुताबिक़ कर सकते हैं, किन्तु कृषि एकमात्र कर्म है जिसे हमें मन के नहीं मौसम के अनुसार करना होता है, वह भी बिना रुके और बिना थके। सुश्री अंकिता को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ, मुझे विश्वास है कि किसानों की कथा और व्यथा को समाज और सरकार के सामने प्रस्तुत करने वाला उनका रचनाश्रम हमारी दृष्टि में ही नहीं हमारे दृष्टिकोण में भी सार्थक, व्यापक, सकारात्मक परिवर्तन का कारण होगा। जय कृषि-जय ऋषि! -आशुतोष राना अभिनेता और साहित्यकार “
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