Publisher – Manoj Publications
ISBN – 9788181333902
Language – Hindi
Pages – 144
Binding – Paperback
Netaji Subhash Chandra Bose
Rs.60.00
Weight | .250 kg |
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Dimensions | 9.5 × 7.25 × 1 in |
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0 out of 5(0)लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में हुआ। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लंदन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की और वापस आकर गुजरात के अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर वे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से पूरी तरह जुड़ गए। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा आंदोलन में रहा। बारदोली में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए ही उन्हें ‘सरदार’ कहा जाने लगा। सरदार पटेल को 1937 तक दो बार कांग्रेस का सभापति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। आजादी के बाद भारत के राजनीतिक एकीकरण में उनके महान् योगदान के लिए इतिहास उन्हें सदैव स्मरण रखेगा। अपनी दृढ़ता के कारण वे ‘लौह पुरुष’ कहलाए। सरदार पटेल स्वतंत्र भारत के उप-प्रधानमंत्री होने के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। उनकी महानतम देन है 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करना। वे नवीन भारत के निर्माता, राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी और भारतीय जनमानस अर्थात् किसान की आत्मा थे। अपने रणनीतिक कौशल, राजनीतिक दक्षता और अदम्य इच्छा-शक्ति के बल पर भारत को एक नई पहचान देनेवाले समर्पित इतिहास-पुरुष की प्रेरणाप्रद जीवनी।.
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0 out of 5(0)भारतीय क्रांतिकारी इतिहास में स्वातंत्रवीर विनायकदामोदर सावरकर का व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों का द्योतक है। ‘सावरकर’ शब्द ही अपने आपमें पराक्रम, शौर्य औरउत्कट देशभक्ति का पर्याय है। अपनी आत्मकथा मेरा आजीवन कारावास में उन्होंने जेल-जीवन की भीषण यातनाओं- ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-दो आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अपनी मानसिक स्थिति, भारत की विभिन्न जेलों में भोगी गई यातनाओं और अपमान, फिर अंडमान भेजे जाने पर जहाज पर कैदियों की यातनामय नारकीय स्थिति, कालापानी पहुँचने पर सेलुलर जेल की विषम स्थितियों, वहाँ के जेलर बारी का कूरतम व्यवहार, छोटी-छोटी गलतियों पर दी जानेवाली अमानवीय शारीरिक यातनाएँ यथा-कोडे लगाना, बेंत से पिटाई करना, दंडी-बेड़ी लगाकर उलटा लटका देना आदि का वर्णन मन को उद्वेलित करदेनेवाला है। विषम परिस्थितियों में भी कैदियों में देशभक्ति और एकता की भावना कैसे भरी, अनपढ़ कैदियों को पड़ाने का अभियान कैसे चलाया, किस प्रकार दूसरे रचनात्मक कार्यो को जारी रखा तथा अपनी दृढ़ता और दूरदर्शिता से जेल के वातावरण को कैसे बदल डाला, कैसे उन्होंने अपनी खुफिया गतिविधियों चलाई आदि का सच्चा इतिहास वर्णित है।
इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक प्रसंग, जिनको पढ़कर पाठकउत्तेजित और रोमांचित हुए बिना न रहेंगे। विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा प्राप्त करते हुए आप उनके प्रति श्रद्धानत हुएबिनान रहेंगे।SKU: n/a -
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0 out of 5(0)स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिदूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। बचपन से ही सुभाष पढ़ाई में बडे़ कुशाग्र बुद्धि के थे। इंग्लैंड से पढ़ाई करके लौटने पर सुभाष कलकत्ता के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काम करना चाहते थे। उन दिनों गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ रखा था। उनके साथ सुभाष बाबू उस आंदोलन में सहभागी हो गए और जल्द ही देश के एक महत्त्वपूर्ण युवा नेता बन गए। सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो कलकत्ता में सुभाष बाबू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। सुभाष बाबू गांधीजी और कांग्रेस के तौर-तरीकों से असहमत थे। गांधीजी के विरोध के बावजूद वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, पर कार्यकारिणी का सहयोग न मिलने पर उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया। नजरबंदी में ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंककर वे जापान पहुँचे और आजाद हिंद फौज की स्थापना की। उन्होंने नारा दिया-‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’ उन्होंने भारत की आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। सुभाष की राष्ट्रभक्ति बेमिसाल है। उनकी मृत्यु के बारे में अभी तक रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि 23 अगस्त, 1945 को उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। राष्ट्रनायक सुभाष बाबू आज भी अदम्य प्रेरणा के स्रोत हैं।
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