पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:-
क्या बिना ध्यान के साक्षीभाव को उपलब्ध नहीं हुआ जा सकता?
विचारों पर नियंत्रण कैसे हो?
जीवन का अर्थ क्या है?
अभिनय क्या प्रेम को झूठा न बना देगा?
तुमने प्रेम किया है? या प्रेम हुआ है?-पर सोचना।
पूर्ण क्रांति का क्या अर्थ है?
मनुष्य एक वीणा है। अपूर्व संगीत की संभावना है। लेकिन जहां संगीत की संभावना हैं,वहां विसंगीत की भी संभावना है।
सितार कुशल हाथों में हो,तो गीत पैदा होगा। अकुशल हाथों में हो, शोरगुल। सितार वही है,हाथ की कुशलता चाहिए, कला चाहिए।
जीवन तो वही है, सभी के पास वही है। बुद्ध के पास वही, तुम्हारे पास वही; कृष्ण के पास वही, क्राइस्ट के पास वही। एक सी वीणा मिली है, और एक सा संगीत मिला है।
लेकिन वीणा से संसगीत उठाने की कला सीखनी जरूरी है। उस कला का नाम ही धर्म है।
तुम्हारे जीवन को जो संगीत मय कर जाए, वही धर्म। तुम्हारे जीवन में जो फूल खिला जाए, वही धर्म। तुम्हारे जीवन को जो कीचड़ से कमल बना जाए, वही धर्म।
और ध्यान रखना; क्षण भर को भी न भूलना: बीज तुममें उतना ही है, जितना बुद्ध में। हो तुम भी वही सकते हो। न हो पाए, तो तुम्हारे अतिरिक्त कोई और जिम्मेदार नहीं।
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