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MERE BACHPAN KE DIN


जिन्दगी की मोहर के तौर पर तस्लीमा नसरीन की यह किताब वैसी ही है जैसा एक अछूत का स्पर्श, और उससे भी कुछ ज्यादा। शोषण और धिक्कार के सामाजिक यथार्थ की सैरबीन के आरपार यह जाति व्यवस्था की झूठी योग्यता परखती है और छद्म मैरिट तन्त्र को चुनौती देती हुई महान मेधा के साथ दुनिया में दाखिल होती है। यह विनीत और संकोची है, लगभग नश्वर, विस्मय और जादू से भरे हुए एक नन्हे से बच्चे की नाज़ुक आँखें हैं, जो अपने परिवार के लिए रोजी कमाने की कोशिश कर रहा है जबकि इस उम्र में उसे खेलकूद के मैदान में या स्कूल में होना चाहिए था। ‘बेचैन’ यथा नाम तथा गुण, सदा के बेचैन हैं जैसा कि हिन्दी में इस मुहावरे का मतलब होता है, लेकिन उनकी इस अद्भुत ‘आत्म-पहचान’ में एक आत्मविश्वास और निरुद्विग्नता है जो सिर्फ महान साहित्य की बारीकी और संवेदना से अनुभूत और अभिव्यक्त हो सकती है। आप उसमें संघर्ष का एक पूरा इतिहास पायेंगे, रोजमर्रा की जिन्दगी के पारदर्शी प्रसंगों और यथास्थिति में जीने की इच्छा को नकारने की पूरी चेतना पायेंगे–पूर्व निश्चित साँचों को नकारते हुए, अपराध भाव या मानसिक दासता भाव के बिना यथार्थ को देखते और स्वीकारते हुए।

Rs.350.00

AUTHOR :TASLIMA NASRIN
PUBLISHER : Vani Prakshan
LANGUAGE : Hindi
BINDING :HardCover

Weight .550 kg
Dimensions 7.50 × 5.57 × 1.57 in

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