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Lalitaditya


राजा ने यथाशक्‍त‌ि नम्रता के साथ कहा-‘ हम कश्मीर नरेश, भारत सम्राट‍् ललितादित्य हैं । तुक्खर देश की ओर जा रहे हैं । ‘
साधु के मुख पर आश्‍चर्य की एक रेखा तक नहीं खिंची । उसी समता, तटस्थता के साथ बोला-‘ जानते हो, पूर्वजन्म में क्या थे?’
राजा के भीतर विनय की बाढ़-सी आ गई । नम्रता के साथ उत्तर दिया-‘ मैं नहीं जानता, जान ही नहीं सकता । आप योगी हैं, अवश्य हैं । आप ही बतलाइए ।’
साधु ने कुछ क्षण ध्यान लगाने के बाद कहा-‘ तुम पूर्वजन्म में एक समृद्ध गृहस्थ के नौकर थे, जो खेती कराता था । तुम उसका हल जोतते थे । वह गाँव श्रीनगर से बहुत दूर है जहाँ तुम उस भूमि-स्वामी के खेतों में हल जोतकर अपना जीवन चलाते थे । जिन दिनों तुम हल चलाते, भूमि-स्वामी तुम्हारे लिए खेत पर रोटी औंर पानी भेजता था । एक दिन गरमी की ऋतु में बड़े-बड़े बैलों का भारी हल चलाते-चलाते थक गए । दिन- भर हल चलाया, परंतु न रोटी आई और न पानी मिला । आसपास कहीं भी पानी था ही नहीं । भूख और प्यास के मारे तुम्हारा गला सूख गया । तड़प रहे थे कि थोड़ी- सी दूरी पर रोटी-पानी लानेवाला दिखलाई पड़ा । प्रसन्न हो गए । वह एक मोटी रोटी लाया था और एक छोटा-सा घड़ा पानी का । तुमने खाने के लिए हाथ-मुँह धोया ही था कि कहीं से एक ब्राह्मण हाँफता- हाँफता तुम्हारे पास आकर बोला-‘ मत खाओ, मैं भूखों मरा जा रहा हूँ ‘ ।

Rs.450.00

Vrindavan Lal Verma
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ‘ ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ‘, बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ‘ पद‍्म भूषण ‘ की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ‘ सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ‘ से भी सम्मानित किया गया तथा ‘ झाँसी की रानी ‘ पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ‘ झाँसी की रानी ‘ तथा ‘ मृगनयनी ‘ का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

Weight .350 kg
Dimensions 7.50 × 5.57 × 1.57 in

Author – Vrindavan Lal Verma
ISBN – 9789352669219
Language – Hindi
pages – 224
Binding: Hardcover

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