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Jati Bhaskar


जाति भास्कर : हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएं बहुत पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय में इस तरह की मान्यताएं विदेशी अध्येताओं के लिए बहुत रोचक विषय रही। वर्ण और जाति का विचार कब जागा, स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, लेकिन 1847 में रौथ ने आर्य और आर्येतर समाजों के सम्बन्ध में जिस विचार को रखा तो वैदिक सन्दर्भों को टटोला जाने लगा और ज्ञात हुआ कि आर्यों के देवता इन्द्र दासों के विजेता रहे। इन्द्र ने दस्युओं का विनाश किया और आर्यवर्ण की सुरक्षा की। वर्ण की रक्षा का भाव बहुत बाद में गीता जैसे ग्रंथ में भी आता है। आरम्भ में आर्यों का समुदाय आधारित जीवन था और गण, सभा, समिति सहित विदथ जैसी सामुदायिक संस्थाएं होती थीं, जिनके माध्यम से यज्ञादि कार्यों पर विचार होता और पशुधन आदि की चिंता को अभिव्यक्त किया जाता था। प्रारम्भिक पुराणकाल में समाज में चतुर्वर्ग की व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। जातियों का वर्गीकरण कठिन है और फिर जातियों के उद्भव और विकास को पहचान पाना भी बड़ा जटिल है। आक्रमणों के बावजूद अविच्छिन्नता व टिके रहना भारतीयों का जातीय गुण रहा, पवित्रता व अपवित्रता जैसे भाव और उनका अनुकरण व्यवहार्य रहा, कुलों के अन्दर ही सर्वप्रकारेण व्यवहार रुचिकर रहा, पेशों का पक्ष और श्रम की बुनियाद अक्षुण्ण रही- ऐसे कई कारण हैं जिनके फलतः जातियों का अस्तित्व बना रहा। हालांकि विदेशी अध्येताओं ने जहाँ विदेशियों के सम्मिश्रण सम्बन्धी मत दिए हैं, वहीं भारतीयों ने अपने ढंग से यहाँ की जातिगत पहचान को स्थिरीकृत करने का प्रयास किया है। विश्वास सबके अपने-अपने हैं। न जाने कितनी सदियाँ गुजरी और अभी और गुजरेगी।

Rs.600.00

Jati Bhaskar
जाति भास्कर

Weight .800 kg
Dimensions 7.50 × 5.57 × 1.57 in

Author : Jwala Prasad Mishra
Language : Hindi
Edition : 2018
ISBN : 9789387297364
Publisher : RG GROUP

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