Rs.250.00
हिन्दू रक्षा-शिक्षा के लिए एक अनिवार्य पुस्तक। तीन अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों की चेतावनी जैसे विश्लेषण-विवरण की हिन्दी में सारभूत प्रस्तुति।
इस्लाम के अनुसार अच्छा मुसलमान वह है जो प्रोफेट के सुन्ना का पालन करता है। यही एकमात्र निर्धारक है। यदि इस्लाम को जानना है तो सदैव मुहम्मद की ओर देखें, न कि किसी नेता, विद्वान या मौलाना को। तभी आपको सत्य मिलेगा। वरना धोखे खाने की ही पूरी संभावना है।… इस्लाम द्वारा दूसरों के साथ सह-अस्तित्व की सारी बातें सदैव अस्थाई होती हैं।… इसलिए पहले इस्लामी सिद्धांत व इतिहास जान कर ही सच्चाई समझे। यह अब कठिन नहीं रहा। तभी जरूरी है कि इस्लाम के सिद्धांत और व्यवहार के इतिहास को पूरी तरह जानने की व्यवस्था करना अनिवार्य कर्तव्य है। Islam denies coexistence
इस्लाम के साथ सामंजस्य का मतलब है उस की ओर से आती रहने वाली क्रमशः अंतहीन माँगें (डॉ. अंबेदकर ने कहा था, ‘मुसलमानों की माँगे हनुमान जी की पूँछ की तरह बढ़ती जाती हैं’) पूरी करते जाना। प्रोफेट मुहम्मद अपनी माँगों में कभी नहीं रुके,जब तक कि उन की 100% माँगें पूरी नहीं हो गईं। वही मुसलमानों के आदर्श हैं। इसलिए काफिरों के लिए कोई आसानी का रास्ता नहीं।
उन्हें समझ लेना होगा कि इस्लाम उस एक चीज – जिहाद – को कभी नहीं छोड़ेगा, जिस से उसे आज तक सारी सफलता मिली! इस्लाम की सारी सफलता राजनीतिक समर्पण की माँग, दोहरेपन और हिंसा पर आधारित है। बेचारा काफिर जो बदलना चाहता है वह यही चीज है – हिंसा, दबाव, हुज्जत, और राजनीति। जबकि काफिर से समर्पण की माँग करना और हिंसा करना, यही इस्लाम की सफलता का गुर रहा है। अतः हिंसा, दबाव, हुज्जत, और माँगें कभी नहीं रुकने वाली, क्योंकि वह 1400 वर्षों से काम कर रही हैं। आज तो वह पहले किसी भी समय से अधिक काम कर रही हैं! भारत में ही किसी भी हिन्दू नेता का भाषण सुन लीजिए।
यह पुस्तक राजनीतिक इस्लाम और कम्युनिज्म के स्वरूपों पर, भिन्न-भिन्न देशों के तीन बड़े विद्वानों के प्रमाणिक
आकलनों की एक प्रस्तुति है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति को समझने में भी यह सहायक हो सकती है।
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