Author – Dr. A.K. Saxena & Dr. Preeti Pai
ISBN – 9788184305418
Language – English
Pages – 264
Dr. A.K. Saxena & Dr. Preeti Pai
Rs.300.00
Author – Dr. A.K. Saxena & Dr. Preeti Pai
ISBN – 9788184305418
Language – English
Pages – 264
Weight | .260 kg |
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संसार में यह एक प्रेरक शक्ति है। मनुष्य जैसें -जैसें उन्नत्ति करता जायेगा, वैसें वैसें विवेक और प्रेम उसके जीवन में आदर्श बनते जायेंगे। भक्ति को अपना सर्वोच्च आदर्श बनाना चाहिए तथा संसार और इंद्रियों से धीरे धीरे अपना रास्ता बनाते हुए हमें ईश्वर तक पहुचना है अथार्थ् भक्ति, भक्त और भगवान तीनों एक है।
मानव-जाति के भाग-निर्माण में जितनी शक्तियों ने योगदान दिया है और दे रही हैं, उन सब में धर्म के रूप में प्रगट होनेवाली शक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है। सभी सामाजिक संगठनों के मूल में कहीं-न-कहीं यही अद्भुत शक्ति काम करती रही है तथा अब तक मानवता की विविध इकाइयों को संगठित करनेवाली सर्वश्रेष्ठ प्रेरणा इसी शक्ति से प्राप्त हुई है। हम सभी जानते हैं कि धार्मिक एकता का संबंध प्रायः जातिगत, जलवायुगत तथा वंशानुगत एकता के संबंधों से भी दृढ़तर सिद्ध होता है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि एक ईश्वर को पूजनेवाले तथा एक धर्म में विश्वास करनेवाले लोग जिस दृढ़ता और शक्ति से एक-दूसरे का साथ देते हैं, वह एक ही वंश के लोगों की बात ही क्या, भाई-भाई में भी देखने को नहीं मिलता। धर्म के प्रादुर्भाव को समझने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। अब तक हमें जितने प्राचीन धर्मों का ज्ञान है, वे सब एक यह दावा करते हैं कि वे सभी अलौकिक हैं, मानो उनका उद्भव मानव-मस्तिष्क से नहीं बल्कि उस स्रोत से हुआ है, जो उसके बाहर है।
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