Author – Jaidev
ISBN – 9789390101429
Language – Hindi
Pages – 160
Author – Jaidev
ISBN – 9789390101429
Language – Hindi
Pages – 160
Weight | .172 kg |
---|
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Prasann Kumar Chaudhary/Shrikant
मूलत: यह पुस्तक ‘स्वान्त: सुखाय’ ही लिखी गई है। एक और लक्ष्य भी रहा है। वह है भारत तथा विदेशों में रहती भारत-मूल की युवा पीढ़ी को प्राचीन भारतीय पारंपरिक ज्ञान से परिचित कराना।
रामचरितमानस ज्ञान का भंडार है। इस ‘दोहा शतक’ में रामचरितमानस से मूलत: ऐसे दोहों या चौपाइयों का चयन किया गया है, जो साधारण मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन दोहों-चौपाइयों को हिंदी में दिया गया है, साथ-साथ उनका अंग्रेजी में अनुवाद भी दिया गया है। इस कारण जो पाठक हिंदी से भली-भाँति परिचित नहीं हैं, उन्हें भी इन दोहो-चौपाइयों में छिपे ज्ञान का लाभ मिल सके। विद्वान् लेखक ने अपने सुदीर्घ अनुभव और अध्ययन के बल पर अपनी टिप्पणी भी लिखी है, जिन्हें पाठकगण अपने जीवन-अनुभवों व विचारों के अनुसार उन्हें आत्मसात् कर सकते हैं।
मानस के विशद ज्ञान को सरल-सुबोध भाषा में आसमान तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास।
‘मनुस्मृति’ सामाजिक व्यवस्था, विधि, न्याय एवं प्रशासन-तंत्र पर विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है, जो विद्वान् महर्षि मनु द्वारा संस्कृत की पद्यात्मक शैली (श्लोकों) में लिऌा गई है। इस ग्रंथ में मनु ने तत्कालीन समाज में प्रचलित कुरीतियों एवं मनुष्य के स्वभाव का अति सूक्ष्म परिवेक्षण कर मानव-समाज को सुव्यवस्थित, सुऌखी, स्वस्थ, संपन्न, वैभवशाली एवं सुरक्षित बनाने हेतु विविध नियमों का प्रावधान किया है, ताकि नारी व पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग, विद्वान् व अनपढ़, स्वस्थ व विकलांग, संपन्न व गरीब, सभी सऌमान एवं प्रतिष्ठा के साथ रह सकें तथा समाज और देश की चतुर्मुऌा उन्नति में अपना प्रशंसनीय योगदान करने में सफल हों।
मनुस्मृति किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। यह वास्तव में मानव-धर्म की पुस्तक है तथा समाज की तत्कालीन स्थिति से परिचित कराती है। समाज की सुव्यवस्था हेतु मनुष्यों के लिए जो नियम अथवा अध्यादेश उपयुत समझे, मनु ने इस मानव-धर्म ग्रंथ में उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इसमें मानवाधिकारों के संरक्षण पर अनेक श्लोक हैं। मनुस्मृति में व्यतियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुसार उनके कर्म निर्धारित किए गए हैं तथा कर्मानुसार ही प्रत्येक व्यति के अधिकारों, कर्तव्यों, उारदायित्वों एवं आचरणों के बारे में स्पष्ट मत व अध्यादेश अंकित हैं।
सरल-सुबोध भाषा में समर्थ-सशत-समरस समाज का मार्ग प्रशस्त करनेवाला ज्ञान-संपन्न ग्रंथ।
There are no reviews yet.