Format: PAPERBACK
ISBN: 9789352292059
Author: TASLIMA NASRIN
Pages: 112
Taslima Nasrin
बांग्ला भाषा से हिन्दी भाषा में अनूदित। (दुखियारी लड़की)
Rs.125.00
Format: PAPERBACK
ISBN: 9789352292059
Author: TASLIMA NASRIN
Pages: 112
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नरेन्द्र कोहली
इस उपन्यास का नाम कुछ पौराणिक-सा लगता है किन्तु यह तनिक भी पौराणिक नहीं है। यह नरेन्द्र कोहली का पहला उपन्यास है, जो समकालीन है और विदेशी धरती पर लिखा गया है। विदेशी धरती ही नहीं, इसमें अनेक महाद्वीपों के लोगों के परस्पर गुँथे होने और एक नया संसार गढ़ने की कथा है। परिणामतः उनके हृदय में और परस्पर सम्बन्धों में अनेक विरोध भी हैं और अनेक विडम्बनाएँ भी। जहाँ इतिहास है, वहाँ उस ऐतिहासिक काल की कड़वाहट भी है, जिसे न आप भूल सकते हैं, न उसके कारणों को दूर कर सकते हैं। जहाँ वर्तमान है, वहाँ अपने मूल देश के प्रति प्रेम भी है और छिद्रान्वेषण भी। न स्वयं को अपने देश से असम्पृक्त कर सकते हैं और न उसको उसकी त्रुटियों के साथ स्वीकार कर सकते हैं। न देश के अपने हो पाये, न पराये। न उसे स्वीकार कर पाये, न अस्वीकार। इसके चरित्र व्यक्ति नहीं हैं, वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो अभी स्थिर नहीं हो पायी हैं। वे परिवर्तन की चक्की में पिस रहे हैं और अपने वास्तविक रूप को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। अपने देश को स्मरण भी करते हैं और उसे भूल भी जाना चाहते हैं। जिनके प्रति प्रेम है, उन्हें भूलना चाहते हैं; और जिन्हें प्रेम नहीं करते, उन्हें अपनाना चाहते हैं। उनसे मिलना भी चाहते हैं और उनसे दूर भी रहना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह परिवर्तन और नये निर्माण की कथा है। कहा नहीं जा सकता कि वह नया निर्माण कैसा होगा।
स्मरण में है आज जीवन अस्वस्थता के दिनों में एक बार हितैषियों की इस माँग पर कि उन्हें आत्मकथा लिखनी चाहिए, निराला ने यह कहा कि मैं अपने बारे में सब कुछ लिख चुका हूँ, मेरा साहित्य पढ़िए। वास्तव में निराला ने अपने साहित्य में ही अपने जीवन का बहुत कुछ शामिल किया है। उनकी प्रसिद्ध लम्बी कविताओं की तो कुछ विद्वानों ने उस तरह से व्याख्या भी की है। निराला की उनके गद्य-साहित्य में बार-बार जो जीवन आता है, जो चरित्र कविताओं आते हैं, निराला और उनके परिवेश में उनकी पहचान संभव है। असल में निराला ने अपनी अनुभूति की ही अपने साहित्य में ढाला। अपने समय, अपने परिवेश से यही संवाद निराला-साहित्य को छायावाद-युग में विशिष्टता प्रदान करता है। इस पुस्तक में निराला की कुछ ऐसी गद्य-रचनाएँ शामिल की गयी हैं, जो उन्होंने समय-समय पर अपने परिवेश, अपने आस-पड़ोस, अपने जीवन पर पर लिखीं। कुछ मिलाकर ये रचनाएँ एक ऐसी चौहदी बनाती हैं कि न सिर्फ़ निराला के जीवन, बल्कि काफ़ी कुछ उनके साहित्य, उनकी रचना-प्रक्रिया को समझने में भी आसानी होती है। हालाँकि निराला के साहित्य की ही तरह, उनके जीवन में भी इतनी विविधताएँ थीं कि उसका पूरी तरह आकलन कर पाना या उसकी कोई व्यवस्था बनाना संभव नहीं है। बल्कि निराला की विशेषता ही यही है कि वह हर चौहदी को तोड़ती प्रतीत होती है। तो भी इस पुस्तक से इतना तो है कि महाप्राण निराला के जीवन के विविध पक्षों की एक झाँकी सी यह पुस्तक बनाती है। यही इस पुस्तक की सफलता है और उपलब्धि भी। निराला ने गद्य को। ‘जीवन-संग्राम की भाषा’ कहा था जोकि इस पुस्तक को। पढ़ते हुए बार-बार स्मरण आता है।
युद्ध-2
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
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