Author – Osho
Publisher- Manoj Publication
ISBN –9788131009086
Language – Hindi
Pages- 200
Weight | .200 kg |
---|---|
Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
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परिवर्तन का समय अभी है। विकल्प स्पष्ट और भयानक है। अगर हम वर्तमान ढर्रे पर ही चलते रहे तो विश्व के अन्य लोग हमसे आगे निकल जाएँगे। गरीबी व बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ जाएगी, जो हमारे समाज को अंतर्विस्फोट की ओर ले जाएगी। और अगर हम बदलाव लाएँगे तो हम वास्तविक प्रगति कर पाएँगे—गरीबी से समृद्धि की ओर, गतिरोध से तीव्र विकास की ओर।’
भारत अभी भी एक दशक के भीतर ही विकसित देशों की सूची में शामिल हो सकता है। ‘भारत 2020 और उसके बाद’ नामक यह पुस्तक इस रूपांतरण के लिए एक पूरी कार्ययोजना प्रदान करती है।
This book is about Shri Ashutosh Maharaj Ji, whose disciples have a firm conviction that he is established in the highest state of Samadhi since 28th January, 2014.
जीवन वृक्ष — डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम केवल एक योग्य व प्रतिष्ठित वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि एक संवेदनशील और विचारशील कवि भी हैं। वैज्ञानिक उत्कृष्टता और काव्यमय प्रतिभा का यह संगम वास्तव में अद्भुत है।
इस काव्य-संग्रह की रचनाओं में भारत और इसकी समृद्ध संस्कृति के प्रति डॉ. कलाम का विशेष प्रेम देखने को मिलता है। ईश्वर और अपनी मातृभूमि के प्रति इनके समर्पण और मानवता के प्रति अनुराग की भी इनकी कविताओं में अद्भुत अभिव्यक्ति है। अपनी क्षमता और उपलब्धियों को ईश्वर की देन मानते हुए उन्होंने उन्हें भारतवासियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया है। अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने नि:स्वार्थ सेवा, समर्पण और सच्चे विश्वास का संदेश दिया है।
भारतीय समाज को गहराई से जाननेवाले डॉ. कलाम अनुकंपा, तटस्थ भाव, धैर्य और सहानुभूति से समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं।
जीवन के विविध रंगों और माननीय संवेदना से सज्जित डॉ. कलाम की कविताओं का यह वृक्ष एक नया विश्वास, नई छाया, नई आशाओं का संचार करेगा।
कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है; ‘कृ’ धातु का अर्थ है—करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। इस शब्द का पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है। दार्शनिक दृष्टि से यदि देखा जाए, तो इसका अर्थ कभी-कभी वे फल होते हैं, जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं। परंतु कर्मयोग में कर्म शब्द से हमारा मतलब केवल कार्य ही है। मानवजाति का चरम लक्ष्य ज्ञानलाभ है। प्राच्य दर्शनशास्त्र हमारे सम्मुख एकमात्र यही लक्ष्य रखता है। मनुष्य का अंतिम ध्येय सुख नहीं वरन् ज्ञान है; क्योंकि सुख और आनंद का तो एक न एक दिन अंत हो ही जाता है। अतः यह मान लेना कि सुख ही चरम लक्ष्य है, मनुष्य की भारी भूल है। संसार में सब दुःखों का मूल यही है कि मनुष्य अज्ञानवश यह समझ बैठता है कि सुख ही उसका चरम लक्ष्य है। पर कुछ समय के बाद मनुष्य को यह बोध होता है कि जिसकी ओर वह जा रहा है, वह सुख नहीं वरन् ज्ञान है, तथा सुख और दुःख दोनों ही महान् शिक्षक हैं, और जितनी शिक्षा उसे सुख से मिलती है, उतनी ही दुःख से भी। सुख और दुःख ज्यों-ज्यों आत्मा पर से होकर जाते रहते हैं, त्यों-त्यों वे उसके ऊपर अनेक प्रकार के चित्र अंकित करते जाते हैं।
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