प्रवचन 1 : चिंतन की स्वतंत्रता
प्रवचन 2 : प्राचीन से नवीन
प्रवचन 3 : धर्म की क्रांति
प्रवचन 4 : धर्म और चिंतन
प्रवचन 5 : खोलो नए ऊर्जा द्वार
प्रवचन 6 : अश्लीलता : नैतिकता का फल
‘देश भर में घूमते हुए दिए गए इन प्रवचनों के संकलन में ओशो भारत की आत्मा को झकझोरते हुए उसे विचार और व्यवहार के संकुचन से बाहर निकलकर एक विराट आकाश को छू लेने का आमंत्रण देते हैं।
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प्रवचन 1 : चिंतन की स्वतंत्रता
प्रवचन 2 : प्राचीन से नवीन
प्रवचन 3 : धर्म की क्रांति
प्रवचन 4 : धर्म और चिंतन
प्रवचन 5 : खोलो नए ऊर्जा द्वार
प्रवचन 6 : अश्लीलता : नैतिकता का फल
Weight | .250 kg |
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Dimensions | 8.50 × 7.25 × 1.57 in |
AUTHOR: OSHO
PUBLISHER: Osho Media International
LANGUAGE: Hindi
ISBN: 9788172610975
PAGES: 152
COVER: PB
WEIGHT :250 GM
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हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्याय
मूलत: यह पुस्तक ‘स्वान्त: सुखाय’ ही लिखी गई है। एक और लक्ष्य भी रहा है। वह है भारत तथा विदेशों में रहती भारत-मूल की युवा पीढ़ी को प्राचीन भारतीय पारंपरिक ज्ञान से परिचित कराना।
रामचरितमानस ज्ञान का भंडार है। इस ‘दोहा शतक’ में रामचरितमानस से मूलत: ऐसे दोहों या चौपाइयों का चयन किया गया है, जो साधारण मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन दोहों-चौपाइयों को हिंदी में दिया गया है, साथ-साथ उनका अंग्रेजी में अनुवाद भी दिया गया है। इस कारण जो पाठक हिंदी से भली-भाँति परिचित नहीं हैं, उन्हें भी इन दोहो-चौपाइयों में छिपे ज्ञान का लाभ मिल सके। विद्वान् लेखक ने अपने सुदीर्घ अनुभव और अध्ययन के बल पर अपनी टिप्पणी भी लिखी है, जिन्हें पाठकगण अपने जीवन-अनुभवों व विचारों के अनुसार उन्हें आत्मसात् कर सकते हैं।
मानस के विशद ज्ञान को सरल-सुबोध भाषा में आसमान तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास।
युद्ध-1
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
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