Publisher – Gita Press
Language – Hindi
Binding – Hardcover
Brihadaranyak-Upanishad
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यह उपनिषद् यजुर्वेद की काण्वीशाखा में वाजसनेय ब्राह्मण के अन्तर्गत है। कलेवर की दृष्टि से यह समस्त उपनिषदों की अपेक्षा बृहत् है तथा अरण्य (वन) में अध्ययन किये जाने के कारण इसे आरण्यक भी कहते हैं। वार्त्तिककार सुरेश्वराचार्य ने अर्थतः भी इस की बृहत्ता स्वीकार की है। विभिन्न प्रसंगों में वर्णित तत्त्वज्ञान के इस बहुमूल्य ग्रन्थरत्न पर भगवान् शंकराचार्य का सबसे विशद भाष्य है।
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Weight | 1.500 kg |
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Dimensions | 9.5 × 5.57 × 1.57 in |
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishadon Ki Kathayen (HB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिUpanishadon Ki Kathayen (HB)
0 out of 5(0)हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शिष्यों को अपने समीप बैठाकर ज्ञान प्रदान किया, वही ज्ञान उपनिषद् बनकर प्रसिद्ध हुआ। उपनिषद् को वेदों का अंतिम भाग भी कहा जाता है—यानी वेदांत, अर्थात् ‘उपनिषद्’ वेदों में प्रतिपादित ज्ञान का सार है। उपनिषद् का सारा अनुसंधान इस प्रश्न में निहित है—‘वह कौन सी वस्तु है, जिसे जान लेने पर सबकुछ जान लिया जाता है?’ और विभिन्न उपनिषदों में इस प्रश्न का एक ही उत्तर दिया गया है और वह है ‘ब्रह्म’।
उपनिषद् ज्ञान का अजस्र स्रोत हैं। इनमें ज्ञान और कर्म का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। चरित्र-निर्माण की शिक्षा दी गई है। पितृ-महिमा, अतिथि-महिमा, आत्मा, प्राण, ब्रह्म, ईश्वर आदि का सूक्ष्म विश्लेषण है। मुगल-कुमार दाराशिकोह तो इनसे इतना प्रभावित हुआ कि कुछ उपनिषदों का उसने फारसी भाषा में अनुवाद कराया।
कहा जा सकता है कि उपनिषदों को समझे बिना भारतीय इतिहास और संस्कृति को नहीं समझा जा सकता। भारतीय संस्कृति में आदर प्राप्त सभी आदर्श उपनिषदों में देखे जा सकते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं उपनिषदों की शिक्षा को कथात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है, ताकि सामान्य पाठक भी इनका चिंतन-मनन कर ज्ञान अर्जित कर सकें।SKU: n/a -
Literature & Fiction, Vani Prakashan
Desh Ke Hit Mein
0 out of 5(0)नरेन्द्र कोहली
‘‘सत्य महाराज।’’ ललित ने हाथ जोड़ दिए, ‘‘किन्तुु क्या सरकार जानती है कि उसके जीवन के मूल में एक वोटर है और वह किसी भी दिन उसे छोड़ देगा; और सरकार के प्राण निकल जाएँगे।’’ ‘‘वोटर सरकार का शरीर बनाता है, सरकार की आत्मा तो उसका अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया कार्यालय-तंत्रा है। वह शाश्वत है। वोटर उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’ ‘‘किन्तुु सरकार का शरीर भी तो मरेगा, उसकी पेंशन का क्या होगा?’’ ललित ने कहा। ‘‘मंत्रियों और सांसदों को पेंशन मिलेगी। उस पेंशन के अनेक रूप हैं, हरि के अनेक रूपों के समान। आप जैसे हरि को नहीं समझ सकते, वैसे ही सरकार को भी नहीं समझ सकते।’’ वे रुके, ‘‘अच्छा, अब इस चर्चा को छोड़िए और अपने जीवित होने के प्रमाण का नहीं, प्रमाणपत्रा का प्रबन्ध कीजिए।’’ आगन्तुकों को विदा कर ललित अपने मुहल्ले के पार्षद के पास पहुँचा, ‘‘देखिए, मैं जीवित हूँ।’’ ‘‘देख रहा हूँ।’’ ‘‘तो मुझे मेरे जीवित होने का एक प्रमाणपत्रा दे दीजिए।’’ ‘‘आप जीवित हैं तो फिर प्रमाणपत्रा की क्या आवश्यकता है? आपका जीवन ही आपका सबसे बड़ा प्रमाण है।’’ ‘‘देखिए, हमारे देश में एक सरकार है। उसके कार्यालय में एक फाइल है। वह फाइल मुझे वेतन देती है। उस फाइल को मेरे जीवित होने का एक प्रमाणपत्रा चाहिए, नहीं तो वह मेरा वेतन बन्द कर देगी। वह फाइल मुझे नहीं पहचानती, केवल प्रमाणपत्रा को पहचानती है। प्रमाणपत्रा के बिना तो स्वामी विवेकानन्द भी अमरीका में नहीं पहचाने गये थे।’’ ‘‘आप महान हैं; स्वामी विवेकानन्द के समान महान हैं। उनके पास भी प्रमाणपत्रा नहीं था और आपके पास भी नहीं है।’’ वह बोला, ‘‘उन्हें प्रो. हेनरी जॉन राइट ने एक प्रमाणपत्रा दिया था। आप भी प्रो. हेनरी जॉन राइट के पास चले जाइए, वे आपको भी प्रमाणपत्रा दे देंगे। उनसे कम का कोई प्रमाणपत्रा आपको शोभा भी नहीं देता।’’ ‘‘पर हमारी सरकारी फाइलें क्या प्रो. हेनरी जॉन राइट को पहचान लेंगी?’’ ‘‘क्यों नहीं, हेनरी जॉन राइट पहले अपने जीवित होने का प्रमाणपत्रा प्रस्तुत करें।’’ और ललित प्रो. हेनरी जॉन राइट की खोज में निकल पड़ा… (पुस्तक अंश)
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kashmir Aur Hyderabad
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0 out of 5(0)‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था।
हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटले समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निजाम द्वारा बाह्य मामले तथा रक्षा एवं संचार मामले भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निजाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अंततः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे.एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र काररवाई पूरी करने का निर्देश दिया। अंततः 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में कश्मीर और हैदराबाद के भारत में विलय की राह में आई कठिनाइयों और उन्हें दूर करने में सरदार पटेल की अदम्य इच्छाशक्ति पर प्रामाणिक ढंग से प्रकाश डाला गया है।SKU: n/a -
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Marxvad Ka Ardhsatya (Hindi, Anant Vijay)
0 out of 5(0)अनंत विजय की पुस्तक का शीर्षक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ एक बार पाठक को चौंकाएगा। क्षणभर के लिए उसे ठिठक कर यह सोचने पर विवश करेगा कि कहीं यह पुस्तक मार्क्सवादी आलोचना अथवा मार्क्सवादी सिद्धान्तों की कोई विवेचना या उसकी कोई पुनव्र्याख्या स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है। मगर पुस्तक में जैसे-जैसे पाठक प्रवेश करता जायेगा उसका भ्रम दूर होता चला जायेगा। अन्त तक आते-आते यह भ्रम उस विश्वास में तब्दील हो जायेगा कि मार्क्सवाद की आड़ में इन दिनों कैसे आपसी हित व स्वार्थ के टकराहटों के चलते व्यक्ति विचारों से ऊपर हो जाता है। कैसे व्यक्तिवादी अन्तर्द्वन्द्वों और दुचित्तेपन के कारण एक मार्क्सवादी का आचरण बदल जाता है। पिछले लगभग एक दशक में मार्क्सवाद से। हिन्दी पट्टी का मोहभंग हुआ है और निजी टकराहटों के चलते मार्क्सवादी बेनकाब हुए हैं, अनंत विजय ने सूक्ष्मता से उन कारकों का विश्लेषण किया है, जिसने मार्क्सवादियों को ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विचारधारा बड़ी है या व्यक्ति। व्यक्तिवाद के बहाने अनंत विजय ने मार्क्सवाद के ऊपर जम गयी उस गर्द को हटाने और उसे समझने का प्रयास किया है। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ दरअसल व्यक्तिवादी कुण्ठा और वैचारिक दम्भ को सामने लाता है, जो प्रतिबद्धता की आड़ में सामन्ती, जातिवादी और बुर्जुआ मानसिकता को मज़बूत करता है। आज मार्क्सवाद को उसके अनुयायियों ने जिस तरह से वैचारिक लबादे में छटपटाने को मजबूर कर दिया है, यह पुस्तक उसी निर्मम सत्य को सामने लाती है।
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