Author – Dr Ak Saxena / Dr Preeti Pai
ISBN – 9789351864431
Language – Hindi
Pages – 240
Dr Ak Saxena / Dr Preeti Pai
Rs.250.00
Author – Dr Ak Saxena / Dr Preeti Pai
ISBN – 9789351864431
Language – Hindi
Pages – 240
Weight | .250 kg |
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निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को ‘भक्तियोग’ कहते हैं। इस खोज का आरंभ, मध्य और अंत प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति को देनेवाली होती है। ‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, ‘‘भगवान्् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है। जब मनुष्य इसे प्राप्त कर लेता है, तो सभी उसके प्रेमपात्र बन जाते हैं। वह किसी से घृणा नहीं करता; वह सदा के लिए संतुष्ट हो जाता है। इस प्रेम से किसी काम्य वस्तु की प्राप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि जब तक सांसारिक वासनाएँ घर किए रहती हैं, तब तक इस प्रेम का उदय ही नहीं होता। भक्ति कर्म से श्रेष्ठ है और ज्ञान तथा योग से भी उच्च है, क्योंकि इन सबका एक न एक लक्ष्य है ही, पर भक्ति स्वयं ही साध्य और साधन-स्वरूप है।’’
कवि-हृदय राजनेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी संवेदनशील मन के ओजस्वी रचनाकार हैं। राजनीति में सक्रिय रहते हुए भी उनके संवेदनशील और हृदयस्पर्शी भाव कविताओं के रूप में प्रकट होते रहे। उनकी कविताओं ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और पाठकों द्वारा सराही गईं। उनकी कविताओं में स्वाभिमान, देशानुराग, त्याग, बलिदान, अन्याय के प्रति विद्रोह, आस्था एवं समर्पण का भाव है।
प्रस्तुत काव्य संकलन में संकलित कविताएँ इस मायने में वशिष्ट हैं कि ये स्वयं अटलजी द्वारा चयनित हैं। इनका एक अन्य आकर्षक और विशिष्ट पक्ष है इनका प्रस्तुतिकरण। ये कविताएँ सुंदर और कलात्मक हस्तलिपि में तथा ललित-सुंदर भाव-चित्रों से आकंठ सज्जित हैं। कविताओं में स्थित समस्त भाव अपने चित्रित में इस कलात्मकता एवं कुशलता से रचित हैं कि चित्रों को देखकर ही कविताओं का भाव सहज दृष्टिगत हो जाता है।
राजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्लाते रहो, तो तुम कभी खगोलशास्त्र के अधिकारी न हो सकोगे। रसायनशास्त्र के संबंध में भी ऐसा ही है; उसमें भी एक निर्दिष्ट प्रणाली का अनुसरण करना होगा; प्रयोगशाला में जाकर विभिन्न द्रव्यादि लेने होंगे, उनको एकत्र करना होगा, उन्हें उचित अनुपात में मिलाना होगा, फिर उनको लेकर उनकी परीक्षा करनी होगी, तब कहीं तुम रसायनविज्ञ हो सकोगे। यदि तुम खगोलशास्त्रज्ञ होना चाहते हो, तो तुम्हें वेधशाला में जाकर दूरबीन की सहायता से तारों और ग्रहों का पर्यवेक्षण करके उनके विषय में आलोचना करनी होगी, तभी तुम खगोलशास्त्रज्ञ हो सकोगे।
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