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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
18vi Shatabdi mein Rajasthan ka Samajik evam Aarthik Jivan
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास18vi Shatabdi mein Rajasthan ka Samajik evam Aarthik Jivan
18वीं शताब्दी में राजस्थान का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन (मारवाड़ के संदर्भ में) : प्रस्तुत पुस्तक के लेखन हेतु पुरालेखीय सामग्री मारवाड़ की ख्यातों, विगत व तवारीखों के साथ ही मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र में संग्रहित दस्तूर बहियों, विवाह बहियों, जवाहरखाना की बहियों, मिन्ट की बहियों, कपड़ों के कोठार की बहियों, सनद परवाना बहियों, हकीकत बहियों, हथ बहियों, औहदा बहियों आदि का उपयोग किया गया है। साथ ही अजितोदय’, ‘अजीतचरित्र’, ‘महाराजा अजीतसिंह जी री दवावैत’, अजीतविलास’, ‘अभयविलास’, ‘सूरजप्रकाश’, ‘राजरूपक’, ‘मुंदियाड़ री ख्यात’, ‘मारवाड़ री ख्यात’, ‘बांकीदास री ख्यात’ आदि समकालीन ग्रंथों का भी अध्ययन किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक की सामग्री विषयानुसार आठ प्रकरणों में प्रस्तावित है। सामाजिक जीवन के अध्ययन के पूर्व मारवाड़ के भौगोलिक पर्यावरण, तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों, मारवाड़ में मराठों के प्रवेश व प्रभाव तथा सामन्त व्यवस्था के स्वरूप पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार आलोच्यकालीन मारवाड़ के प्रारंभिक काल में महाराजा अजीतसिंहजी व उनके स्वामीभक्त राठौड़ों के निरन्तर संघर्ष के पश्चात् भी धर्मान्ध औरंगजेब ने महाराजा अजीतसिंहजी का मारवाड़ पर आधिपत्य स्वीकार नहीं किया। अन्ततः औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् ही अजीतसिंह को मारवाड़ की सत्ता प्राप्त हुई। पतनोन्मुख मुगल साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर मराठों ने उत्तर भारत में प्रसार की नीति अपनाई। इस नीति के अन्तर्गत राजपूताना की अन्य रियासतों के साथ ही मारवाड़ भी सम्मिलित था। इस बिन्दु में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार मराठों की धनलोलुपता ने मारवाड़ को आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। साथ ही राजा व सामन्तों में परस्पर सहयोग की उपयोगी अवधारणा ‘सामन्त व्यवस्था’ पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार प्रारंभिक काल के आज्ञानुकारी व स्वामिभक्त सामन्तों के वंशज कालान्तर में निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर अपनी शक्ति का दुरुपयोग अपने स्वामी की शक्ति को कमजोर करने में करने लगे। मारवाड़ एक धर्मप्राण प्रदेश रहा है। यहाँ धार्मिक जीवन धर्म के विभिन्न मतों शैव, शाक्त व वैष्णव मत के रूप में प्राणवान् रहा है। जैन व इस्लाम धर्म के अनुयायी भी अपने-अपने धर्मों में निर्बाध निरत थे। रामस्नेही, नाथ, साध, निम्बार्क, वल्लभ, विश्नोई, दादूपंथ, कबीर पंथ इत्यादि विभिन्न सम्प्रदायों के प्रणेताओं तथा विचारकों ने भी ईश्वर प्राप्ति के आडम्बरहीन सुगम मार्ग को बताकर जनता को प्रभावित व प्रेरित किया। साथ ही लोकमानस पर लोकदेवताओं के प्रभाव को रेखांकित किया है। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में व्यक्तित्व के उत्थान के निमित्त संयोजित संस्कारों का अध्ययनकालीन मारवाड़ में क्या स्वरूप था तथा उनकी अनुपालना किस प्रकार रीति रस्मों व हर्षोल्लास द्वारा सम्पादित होती थी, इसका अध्ययन किया गया है। इसके साथ-साथ इस तथ्य को भी विवेचित किया गया है कि = तत्कालीन समय में शिक्षा व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के निमित्त थी तथा नैतिक जीवन के आदर्श के रूप में शिक्षा का महत्व था। शिक्षा हेतु प्रथम और महत्वपूर्ण संस्था परिवार ही होता था। इसी परिवार संस्था एवं उसके परम्परागत स्वरूप संयुक्त परिवार प्रथा पर प्रकाश डाला गया है। परिवार में सभी सदस्यों की छोटे-बड़े व स्त्री-पुरुष के अनुसार एक विशेष स्थिति होती थी। इसका अध्ययन महिलाओं के विशेष सन्दर्भ में किया गया है। स्त्री जीवन से जुड़ी पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बहुविवाह, दास प्रथा, दहेज प्रथा, वैधव्य, उपपत्नियाँ आदि विभिन्न कुप्रथाओं के साथ ही साथ स्त्री के सम्पत्ति अधिकार, नारी शिक्षा, उसके द्वारा निर्माण कार्य आदि विविध आयामों का विस्तृत अध्ययन किया गया है। जीवन के भौतिक तथा सांस्कृतिक पक्ष खानपान, वस्त्राभूषण, सौन्दर्य प्रसाधन, शृंगार, त्योहार, मेले एवं मनोरंजन के साधनों का महत्वपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, कहानियां
Adarsh Kahaniya 1093
कहानियों के माध्यम से उपदेशात्मक सूत्रों की व्याख्या भारत की प्राचीन कला है। कहानियों के द्वारा पारमार्थिक एवं लौकिक शिक्षा सरलता से दी जा सकती है। इस पुस्तक में स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों से संकलित तत्त्व-ज्ञानकी प्रेरणास्रोत 32 कहानियों का सुन्दर संग्रह है।
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Ekam Goodies
Ekam Flag
एकम_सनातन_भारत_दल के ध्वज को लेकर पूरे देश ने जो उत्साह दर्शाया उसके लिए सभी सनातनियों का धन्यवाद। वैष्णव (पीला रंग), शैव (नीला रंग), शाक्त व सौर्य (लाल रंग) और गाणपत्य (ऐ में गणेश जी की आकृति) के रूप में सनातन के पंचदेवताओं के आशीर्वाद और उनके संप्रदाय के शौर्य को प्रदर्शित करता है यह ध्वज।
इस ध्वज पर जगत के पालक भगवान श्रीहरि विष्णु के वाहन गरुड़ जी भी विद्यमान हैं। इस ध्वज को उस देवासुर संग्राम से लिया गया है, जिसमें भगवान विष्णु ने असुर कालनेमि का वध किया था। इसमें तंत्र का बीज मंत्र ‘ऐ’ भी छिपा है। यह मां की प्रकृति रूप को भी दर्शाता है। प्रकृति ही हमारा बीज, हमारा मूल है।
सप्त कोण में इस ध्वज में एकम के ‘सप्त संकल्प’ को भी दृढ़ता से प्रदर्शित किया गया है ताकि कोई भी सनातनी उन संकल्पों को मृत्यु के क्षण तक न भूल सके। और जब मृत्यु आए तो उस ध्वज के रुप में सप्त संकल्प को अगली पीढ़ी को सौंप सके कि अब सनातन समाज के लिए इसे पूरा करना तुम्हारा कर्तव्य है!
एकम समर्थकों, शुभचिंतकों, कार्यक्रताओं और पदाधिकारियों के लिए यह ध्वज @KapotMedia पर आनलाइन उपलब्ध करा दिया गया है।
इससे होने वाली आमदनी लागत आदि काट कर पार्टी के फंड में जाएगी। सनातनियों की अपनी एक मात्र इस पार्टी को फंड की बेहद आवश्यकता है चुनाव लड़ने और पार्टी के संचालन के लिए। ध्वज का मूल्य भी बेहद कम 50₹/ ध्वज रखा गया है।
इसकी प्रिंटिंग भी बहुत उच्च गुणवत्ता के साथ कपड़े पर कराई गई है। खड़मास समाप्ति के बाद शुभ तिथि मकर संक्रांति से आप सभी को ध्वज भेजने की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी।
चूंकि अभी केवल 10000 ध्वज की ही प्रिंटिंग कराई गई है, इसलिए पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर इसे भेजा जाएगा। आप सनातनियों का उत्साह देख कर ही आगे बड़ी मात्रा में ध्वज की प्रिंटिंग कराई जाएगी।
अतः बड़ी संख्या में इस ध्वज को लेकर अपने सनातनी भाई-बहनों तक पहुंचाए ताकि यह ‘धर्मध्वज’ के रूप में सभी के घरों पर फहरता रहे। इस ध्वज में सनातन का संपूर्ण दर्शन और शक्ति को पिरोया गया है। यह आपकी और आपके घर की रक्षा ही करेगा। जय सनातन।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rashtra Dharma Aur Sanskriti (PB)
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आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे।
वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया ।
चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है।
इसीलिए इस संचयन का नाम ‘राष्ट्र, धर्म और संस्कृति’ रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र – सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
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