Folk Literature
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Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिLokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
लोकावलोकन (लोक जीवन एवं लोक साहित्य सम्बन्धी लेख) : सुपर बाजार में सब्जी खरीदते हुए हम माली के बारे में नहीं सोचते, ऐसे ही कला को जब हम मात्र मंच पर से विशिष्टजनों के लिए प्रक्षेपित या सेवार्पित की जाती हुई जिंस बना देते हैं तब हम कलाकार और उस कला के व्यापक और निर्णायक आर्थिक-सामाजिक मानवीय पहलुओं को नजरअन्दाज कर देते हैं। यदि परम्परा के मूल और मूल्यवान अंशों की रक्षा होनी है, तो सांस्कृतिक संध्याओं के मौसमी ढोल-ढमाके के परे कुछ ज्यादा ठोस, ज्यादा सुचिंतित और ज्यादा सतत प्रयासों की दरकार रहेगी। इन विधाओं, उनकी विशेषताओं और उनसे जुड़े वाद्ययंत्रों को बचाना है, तो उन्हें नये सन्दर्भों में नई सार्थकता देनी होगी। तीन संकट हैं :- संकुचन-विलोपन, अवमिश्रण-पनीलापन, विरूपण-वर्णसंकरण-शायद तीन ही संभव निदान हैं। कुछ चीजों को लगभग ज्यों-का-त्यों बनाये रखने का प्रयास, उनके ही ठीए पर, गुरु शिष्य परम्परा आदि के माध्यम से ‘सम्प्रेषण’ (ट्रांसमिशन)। शेष का अनुकूलन, रूपान्तरण, प्रतिरोपण-एडैप्टेशन, ट्रांसफौर्मेशन, ट्रांसप्लान्टेशन। इन दोनों के लिए असाध्य, शेष मरणोन्मुख की यादगार, पहचान संजोना, शव का परिरक्षण-ममिफिकेशन जैसा, म्यूजियम में रखने जैसा। कुछ लोग पूरी सदेच्छा से, लोकवार्ता को रखने के लिए लोक संस्कृति की संबंधित सीप को बनाये रखने की बात करते हैं। यह अव्यावहारिक दुराशा है। कुछ और उतनी ही सदेच्छा से कहते हैं कि लोक-कला सीखने-सिखाने की चीज नहीं है, रूपान्तरण, अनुकूलन से उसका मूल स्वरूप नष्ट होता है। मत करिये, वह जहां है वहीं अपना मूल स्वरूप लिए-दिए नष्ट हो जाने वाली है। फिर, विरूपण तो बिना एडैप्टेशन, बिना हमारे चाहे भी तो हो ही रहा है।
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